Thursday 3 September 2015

पीले पुष्प और जल

‘‘पीला रंग’’ पृथ्वी का है व गति का कारण ही नहीं है वरन् जहाँ वह गति के अभाव में गति-प्रद है वही गति के आधिक्य में अवसादक है। एक शब्दों में कह सकते हैं कि पीत वर्ण गति का सर्व तो -भावेन संयामक है। भगवति बगलामुखि का वर्ण भी पीला है अतः इन्हें पीताम्बरा भी पुकारते हैं एक दृष्ठांत देखे-

बात सम्वत् 1930 की है स्वामी परमहंस राम कृष्ण देव की पत्नी श्री श्री शारदा माँ मलेरिया से मुक्त हुई थी और बहुत कमजोर थी। चिकित्सक की राय से दरवाजे पर शाम को धीरे-धीरे टहला करती थी। उसी गांव में एक पहलवान था, जो पागल हो गया था। जिसे भी देखता मारने दौड़ता था।एक दिन श्री श्री माँ जब टहल रही थी, तब वह पागल लकड़ी से माँ को मारने दौड़ा, पहले तो माँ मार से बचने के लिए दौड़ती हुई चक्कर लगाने लगी। फिर घूम कर उस पागल को एक थप्पड़ मारा। पागल गिर पड़ा और उसकी जिव्हा बाहर निकल आई, माँ ने उसकी जिह्वा बाए हाथ से पकड़ ली और उसके सीने पर अपना ठेहुना अड़ा कर थप्पड़ से उसे मारने लगी। तब तक लोग भी दौड़ कर आ गए थे, किन्तु सभी कुछ दूरी पर ही स्तम्भित होकर खड़े थे, क्योंकि उन लोगों ने देखा कि पागल नीचे पड़ा है और माँ उसकी जिव्हा को पकड़ उसे मार रही है, किन्तु माँ का देह, वस्त्र आदि सभी पीत प्रकाश से परिपूर्ण है और वह प्रकाश बाहर भी फैल रहा है तथा वह पागल भी ‘‘पीत वर्ण’’ का हो गया। पागल शान्त हो गया। माँ ने उसे छोड़ दिया और हंसती हुई अपने कमरे में चली गई। वह पागल भी उठा और अपने घर चला गया। बाद में वह पागल ‘साधू’ कहा जाने लगा। माँ की इस पर विशेष कृपा रही। इस प्रकार हम देखते है भवगती के पूजन में सभी सामग्रियों का रंग पीत वर्ण ही रखते हैं। पुण्य जो भगवती को अर्पण करते हैं बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। इन पुष्पों में भी अत्यधिक चमत्कारिक शक्ति छिपी होती है। एक दृष्टांत देखे-

आज  से आठ वर्ष पूर्व मैं सुबह भगवती की दैनिक पूजा कर रहा था, कमरे के बाहर एक स्त्री बहुत ही करूणा पूर्वक रो रही थी, जैसे तैसे पूजा कर बाहर आया, उस स्त्री ने बताया उसका पति अस्पताल में भर्ती है, डाक्टरो ने जवाब दे दिया है खून व ग्लूकोज नहीं चढ़ पा रहा है, मैने उसे धीरज दिलाया सब ठीक हो जाएगा और पूजा घर से भगवती को अर्पित पुष्पो से एक पुष्प उठा कर दे दिया, इसे अस्पताल में जाकर उनके पलंग के सिरहाने रख देना। दूसरे दिन वह स्त्री मेरे पास पुनः आई उसने बताया, फूल रखते ही उनकी दशा में सुधार आने लगा। मै जानता हूँ भगवती को आर्पित प्रत्येक वस्तु बहुत ही चमत्कारिक बन जाती है चाहे अर्चयामि की किशमिश हो, चाहे भगवती को आर्पित पुण्य हो या उनके सामने रखा जल हो, चाहे मंत्र को स्नान कराया गया जल हो।

भगवती को आर्पित जल का चमत्कार-

मेरे शिष्य ने हमें बताया रात्रि 2 बजे मेरी बड़ी बहन के पेट के तीव्र दर्द से छटपटा रही थी, मुझे कुछ  समझ में नही आया क्या करू, फौरन पूजा घर से भगवती को अर्पित जल लाकर उसके छीटे अपनी बहन पर छोड़ी,छीटे पड़ते ही वह शान्त हो गई। तीव्र दर्द तुरन्त शांत हो गया, और वह सो गई। दूसरे दिन जानकारो से पूछा यह सब क्या था? उससे ज्ञात हुआ मारण हेतु शिफली का प्रयोग किया गया था। शिफली मुस्लिम तंत्र में मारण के लिए अकाट्य प्रयोग होता है। इसको कोई बहुत पहुँचा तांत्रिक ही काट सकता है, परन्तु देखे माँ को अर्पित जल का चमत्कार, छीटे पड़ते ही सिफली कट गई।

मेरे एक मित्र है टेलिरिग की दुकान है, बड़े परेशान रहते, कोई कारीगर दुकान पर नही टिकता, उनका  बड़ा बेटा जो पहले दुकान पर नही आ रहा था, ग्राहक भी कम आ रहे थे कुल मिलाकर उनकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो गई। मैने भगवती को अर्पित जल उनको दिया, दुकान पर छिड़को व अपने बेटे को किसी भांति पिला दो, उसने पूरे मनोवेग से पन्द्रह दिन ऐसा ही किया। उसका बेटा अब दुकान में हाथ बढ़ा रहा है, कारीगर भी वापस आ गया साथ ही सिलाई के कपड़ो को अम्बार लगा रहता है। यह सब इस लिए बता रहा हूँ कि आप भगवती को अर्पित उपयोग चीजो को कभी भूल कर हल्के में न लेना वरन् उनसे लाभ उठाए व दुसरे को भी लाभावन्ति करेंगे ।

घर में स्थान-स्थान पर काली चीटियों, जमीन से काफी मिट्टी निकाल रही थी, नित्य झाडू से मैं तमाम  मिट्टी हटाते-हटाते परेशान हो गया, एक दिन यंत्र को अभिषेक किया जल उसी स्थान पर डाल दिया जहाँ चीटियाँ काफी थी व मिट्टी नित्य 100 ग्राम तक निकाल रही थी, आश्चर्य उस तारीख के बाद चीटियाँ एकदम लुप्त हो गई।

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