Monday 23 November 2015

किस प्रकार साधना प्रारम्भ करें


‘क्रम दीक्षा’ के अनुसार साधना करने से मन्त्र-साधना का श्रेष्ठ फल भुक्ति और मुक्ति दोनों ही साधक को प्राप्त होती है। निम्न क्रम से मन्त्र प्राप्त कर क्रमशः उनका पुरूश्रचरण करते हैं, सामान्यतः लोग सीधे छत्तीस अक्षर (मूल मंत्र) का जप करने लगते हैं, यह उचित नहीं प्रतीत होता, यदि एकाक्षर मंत्र (बीज मंत्र) से साधना प्रारम्भ कर आगे बढ़ते है तो सफलता अवश्य मिलती है। बाकी जो भी हो, यह बात तो अनुभवी गुरूओं के आधीन है। सामान्यतः - एकाक्षर, चतुरक्षर, अष्टाक्षर व छत्तीस अक्षर का पुरश्रचरण पूर्ण करते है। योग्य गुरू के सान्धि में ही साधना को बढ़ाने का प्रयत्न करें। योग्य गुरू - गुरू शब्द दो अक्षरों से मिल कर बना है। गु और रू, ‘‘गु’’ का अर्थ है अन्धकार, और ‘‘रू’’ का अर्थ है भगाने वाला कोई भी चीज या मनुष्य, जो आप के अन्धकार को मिटाने का कार्य करता है। वह आपका गुरू है शरीर में मौजूद गुरू को आप अच्छे तरीके से जोड़ सकते हैं व अपनी शंकाओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकते हैं। केवल पुस्तक से विषय स्पष्ट नहीं होता, न वहाँ कुंजियाँ मिलती हैं। ‘‘क्रम पूर्वक’’ ही महा विद्या का अनुष्ठान करना चाहिए। जैसा शिष्य, जैसी सामर्थ्य, वैसा ही ‘‘क्रम’’ होता है। गुरू और शिष्य - उभय पक्षों को बहुत सोच समझ कर भर पूर परीक्षा के बाद इस महाविद्या को देना और लेना चाहिए।
सर्व प्रथम आप लेखक के अनुभवों का एकाग्र मन से अध्ययन करें, यदि आप ने गुरू से दीक्षा नहीं ली है तो मन में गुरू बनाने की तड़प पैदा करें फिर भी कोई गुरूजन नहीं मिल रहा है तो लेखक का चित्र अपने सामने रख कर, उन्हें अपना मानसिक गुरू बनाने का संकल्प लेकर किसी भी शुभ मुर्हुत में पीताम्बरा माँ के बीज मंत्र ‘‘ह्ल्रीं’’ (हल्रीम) का सवा लाख का जप का संकल्प लेकर जप प्रारम्भ कर दें। माँ बगलामुखी का प्राण प्रतिष्ठित यंत्र साधना स्थल में स्थापित करे और नित्य गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवद्य से पूजन कर, माँ बगलामुखि मंत्र का जप करें। इस यंत्र के विशिष्ट प्रभाव से साधक को तंत्र साधना में शीघ्र सफलता मिलती है। जप हल्दी की माला से करते हैं असानी व पहनने के वस्त्र भी पीले होते हैं।
मन में दृढ़ विश्वास कर अपने मंत्र व गुरू की शक्ति पर भरोसा रखे आप अवश्य सफल होंगे एक अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद पुनः दूसरी, तीसरी व चौथी बार अनुष्ठान पूर्ण करें । इस प्रकार माँ को आप चार बार हवन एक ही मंत्र से ‘‘ह्ल्रीं स्वाहा’’ द्वारा करने के बाद स्वयं अनुभव होने लगेगा, परिस्थितियाँ आप के अनुकूल होने लगेंगी, परन्तु आप की अपनी यात्रा का विराम नहीं होगा, यह तो प्रथम सीढ़ी है। अब तीन-चार दिन विश्राम कर पुनः अनुष्ठान प्रारम्भ करें । इस बार मंत्र होगा ‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों’’ व संकल्प होगा मात्र एक लाख जप का। अनुष्ठान पूर्ण कर तीन चार दिन विश्राम कर पुनः अनुष्ठान प्रारम्भ करें। इस बार मंत्र होगा ‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा’’ व संकल्प होगा मात्र एक लाख जप का। इसको पूर्ण करने के उपरान्त तीन-चार दिन विश्राम कर लें। इस प्रकार निरन्तर अभ्यास करने से आप की साधना की भूमि दृढ़ हो जाती है। अब आप माँ पीताम्बरा के ‘मूल मंत्र’ जप के उत्तराधिकारी बन जाते हैं, अतः भवगती बगलामुखि के मूलमंत्र के एक लाख जप का संकल्प कर पुरश्चरण पूर्ण करें, ऐसा चार बार पुरश्चरण पूर्ण करें। मंत्र जप का समय रात्रि 10 से 2 बजे का हो तो सर्वोत्तम रहेगा। जप समय से ही करें व निश्चित संख्या रखे घट-बढ़ न होने पाए सुबह माँ बगलामुखि के कवच-स्त्रोत का पाठ करें , बीच-बीच में श्तनाम से अर्चियामि भी करते रहें। लेखक के पूर्व के अनुभवों का हृदयांगम करें , निश्चित रहिए मन की तड़प के अनुसार माँ आप पर कृपा करेगी। जो स्वयं ही आप अनुभव करेगें। याद रखें - पुरश्चरण पूर्ण होने व माँ की कृपा प्राप्त होने पर भी आप को अपनी साधना की साध्य से जोड़ने वाली परम्परा को कभी शिथिल नहीं होने देना है यही उच्च कोटि की साधना का गूढ़ रहस्य है।
नोट - जप के अनुसार उसका ध्यान अवश्य करते है क्यों कि सिद्ध मन्त्र भी बिना ध्यान के गूंगा ही रहता है।

1- एकाक्षरी मंत्र - ह्ल्रीं (ह्ल्रीम) 

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगला-मुखी महा-मन्त्रस्य, श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री बगलामुखि देवता, लं बीजं, ह्ल्रीं शक्तिः, ई कीलकं, श्री बगलामुखि-देवताम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः (जल पृथ्वी पर डाल दें)।

ऋष्यादि न्यास - ऊँ ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री बगला मुखी देवतायै नमः हृदि, लं बीजाय नमः गुह्म, ह्ल्रीं शक्तये नमः पादयोः, ई कीलकाय नमः सर्वाङगे।

कर न्यास - ऊँ हल्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ऊँ ह्ल्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा (दोनों प्रथम उंगली के ऊपरी सिरे आपस मंे मिलाएं।
ऊँ ह्ल्रूं मध्यमाभ्यां वषट् (दोनों मध्यमा उंगली के सिरे आपस मंे मिलाए।
ऊँ ह्ल्रैं अनामिकाभ्यां हुं (अनामिका उंगली के सिरे मिलाए)
ऊँ ह्ल्रौंकनिष्ठाभ्यां वौषट् (कनिष्ठा उंगली मिलाए)
ऊँ हल्रः करतल कर - पृष्ठाभ्यां नमः। (दोनों हथेलियों आगे-पीछे भागों को छुए)

अगङ न्यास - 

ऊँ हृा हृदयाय नमः (हृदय को दाहिने हाथ से छुए)
ऊँ हृीं शिरसे स्वाहा (सिर को छुए)
ऊँ हृं शिखायै वषट् (शिखा को छुए)
ऊँ ह्रैं कवचाए हुं (सीने पर कवच बनाए)
ऊँ हृौं नेत्र-लयाय वौषट् (आंखों को छुए)
ऊँ हृः अस्त्राय फट् (सर पर दाया हाथ दाई तरफ से बांई तरफ घुमाते हुए 3 बार चुटकी बजाएं)

ध्यान -

वादी मूकति, रङकति क्षिति-पति वैश्वानरः शीतति,
क्रोधी शाम्यति, दुर्जनः सुजनति, क्षि प्रानुग खञजति।
गर्वी खर्वति सर्व विच्च जड़ति त्वद्-यन्त्रणा यन्त्रितः,
श्री नित्ये! बगलामुखि! प्रति दिनं कल्याणि तुभ्यं नमः।।

भावार्थ: हे कल्याणि! आप के मन्त्र के द्वारा यंत्रित किया गया वादी-गूंगा, छत्रपति रंक, अग्नि शीतल, क्रोधी-शान्त, दुर्जन-सुजन, धावक लंगड़ा, गर्व युक्त छोटा और सर्वज्ञ-जड़ हो जाता है अतः एव हे लक्ष्मी स्वरूपे नित्ये माँ बगला! कल्याणी! मैं आप को प्रतिदिन नमन करता हूँ।

हवन सामग्री -

पीसी हल्दी - 1 किलो0
मालकांगनी - 500 ग्राम
सुनहरी हरताल - 20 ग्राम
पिसा सेंघा नमक - 1 चम्मच
सरसों का तेल - 200 ग्राम
लौंग - 50 ग्राम
बेसन के लड्डू

समिधा - आम/नीम की लकड़ी

एक पुरूश्रचरण पूर्ण होता है -


  1. जप का दशांश हवन 
  2. हवन का दशांश तर्पण
  3. तर्पण का दशांश मार्जन
  4. व मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज


भगवती के बीज मंत्र ‘‘ह्ल्रीं’’ की तीव्रता

मेरे यजमान की ‘‘आप्टिकल्स’’ की दुकान है, मकान मालिक ने दो माह में दुकान खाली कर देने को कहा, मेरा यजमान काफी परेशान हो गया, उसकी पिछले दस वर्षों का परिश्रम व्यर्थ हो रहा था। समीप में कहीं दुकान मिल भी नहीं रही थीं। मैंने उसे भरोसा दिया ‘‘माँ की सेवा में आ जाओ, सब ठीक ही होगा। उसने मुझ पर भरोसा किया रात्रि को श्मशान में वह भी मेरे साथ हवन पर बैठने लगा। यजमान को ‘‘ह्ल्रीं’’ का जप एक लाख पूर्ण कराने के बाद, उसे लेकर भैरोसुर महादेव के प्राचीन मंदिर के प्रांगण में हवन किया तथा उससे भी आहुतियाँ डलवाई, हवन लगातार दो घंटे चला। हवन के अन्त में यजमान के कल्याण हेतु भवगती से प्रार्थना की। रात्रि दो बजे वापस घर, लौट आए तथा यजमान को निर्देश दिया कि घर जाकर तपर्ण, मार्जन भी कर देना।
दूसरे दिन यजमान ने हमें बतलाया कि तपर्ण, मार्जन करते-करते सुबह के छः बज गए थे। उसकी भगवती के प्रति पूर्ण समपर्ण की भावना को देखते हुए मैंने भगवती से पुनः स्वतः प्रार्थना की ‘‘हे! भगवती इस नवीन साधक पर अपनी कृपा दृष्टि करने की महान कृपा करें।’’
चमत्कार हो गया भगवती ने यजमान पर भरपूर कृपा की, एक ग्रहक उसके पास अपना चश्मा बनवाने आया जिसे उसने तुरन्त ठीक कर दिया और कहा अब आगे से आप को सेवा नहीं दे पाऊँगा क्योंकि मकान मालिक ने इस माह के अन्त तक दुकान खाली कर देने को कहा है, मैं देख रहा हूँ, परन्तु दुकान कहीं मिल नहीं रही है, देखों अब मेरा क्या होता है। उस ग्राहक ने तुरन्त कहा, आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। मेरी एक दुकान खाली है, कल शाम आकर मेरी माँ से बात कर लेना, दुकान आपको मिल जाएगी। दूसरे दिन यजमान ने मुझसे वहाँ चलने का आग्रह किया, जिसे मैं टाल नहीं सका और उसकी माँ ने कल बताऊँगी कह कर टाल दिया। मेरा यजमान पुनः भयभीत होने लगा, यदि दुकान न दी तब क्या होगा? मैंने उसे माँ पर भरोसा रखने का आश्वासन दिया। दूसरे दिन मकान मालकिन ने अपने पुत्र के द्वारा दुकान की चाभी भिजवा दी और कहा आप दुकान देख लो आज पन्द्रह तारीख है, मैं पन्द्रह दिनों का किराया नहीं लूंगी, आप का एक तारीख से किराया शुरू होगा। मैंने जब सुना मेरा मन गदगद हो गया, भगवती ने उसकी सुन ली दुकान भी प्रमुख स्थान पर और अभी माह समाप्त होने में पन्द्रह दिन शेष थे। दुकान खाली करने का भय जो मेरे यजमान को सता रहा था भगवती ने उस भय को समाप्त ही नहीं किया वरन् समीप ही उससे अच्छे स्थान पर दुकान दे दी और वह भी बिना प्रयास किए। यह होता है भगवती पर पूर्ण भरोसा रखने का पुरस्कार। यदि आप ने भरोसा किया तो भगवती उसे कभी टूटने नहीं देती ऐसा मेरा बारम्बार का अनुभव रहा है।


2- तुर्याक्षर, चतुरक्षर (4 अक्षरों वाला) मंत्र

‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों’’

ध्यान - 

कुटी लालक-संयुक्तां मदा घूर्णित-लोचनाम्।
मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशा घराम्।।
सुवर्ण-शैल-सुप्रख्य-कठिन-स्तन-मण्डलाम्।
दक्षिणा र्क्त-सन्नाभि-सूक्ष्म-मध्यम-संयुताम।।

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगला-चतुरक्षरी-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री बगला मुखी देवता, ह्ल्रीं बीजम् आँ शक्तिः, क्रों कीलंक श्री बगलामुखी देवताऽम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोग।

ऋष्यादि न्यास - श्री ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदये, ह्ल्रीं बीजाय नमः गुहये, आँ शक्तिये नमः पादयो, क्रों कीलकाय नमः सर्वाङगे, श्री बगलामुखी देवताऽम्बा- प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।

कर न्यास व अंग न्यास - एकाक्षरी की तरह करें।

3- अष्टाक्षर (आठ अक्षरों वाला मंत्र)

‘‘ऊँ आं ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा।’

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगलाऽष्टाक्षरात्मक-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, ऊँ बीजं, ह्ल्रीं शक्तिः, क्रों कीलकम् श्री बगलाम्बा प्रसाद प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। (जल पृथ्वी पर डाल दें)

ऋष्यादि-न्यास - श्री ब्रह्मार्षये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, ऊँ बीजाय नमः गुहे, ह्रीं शक्तये नमः पादयोः, क्रों कीलकाय नमः सर्वाङगे, श्री बगला-प्रसाद पीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।
(कर न्यास, अङगन्यास - एकाक्षर मंत्र की तरह करें।)

ध्यान -

युवतीं च मदोन्मतां, पीताम्बरा-घरां शिवाम्।
पीत-भूषण-भूषाङगी-सम-पीन-पयोघराम्।।
मदिरामोद-वनां प्रवाल-सदृशाघराम्।
पान-पात्रं च शुद्धि च विभ्रतौ बगलां स्मरेत्।।

नोट - इस बीज मंत्र ह्ल्रीं में माँ पीताम्बरा लता की तरह सदा विलास करती हैं। अतः ध्यान पूर्वक जप करने से वह साधक के शत्रुओं का स्तम्भन करती है, मनोहर कामिनियाँ उसके वशीभूत होती हैं, विपत्तियाँ दूर होती है और मन-माना घर प्राप्त होता है तथा सभी मनोवांच्छित कार्य पूरे होते हैं, ऐसा मेरा अनुभव रहा है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह

2 comments :

  1. गुरु जी चरण स्पर्ष गुरु जी एकाक्षरी मन्त्र हरलीम है या ह्ल्रीं(हलरीम)है कृपया ज्ञान बर्धन करने की कृपा करें

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  2. कोटि कोटि अन्नत बार नमन करता हूं सदगुरुदेव जी को

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