Wednesday 22 June 2016

सम्पुटित मंत्र की तीव्रता (कन्या विवाह हेतु)




स्वर्णाकर्षण भैरव - निराशा में आशा।


अपनी भगवती वगलामुखि की अंग विद्या है-स्वर्णाकर्षण भैरव। मेरे यजमान जो एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है व सचिवालय में अच्छे उच्चाधिकारी है की पुत्री का विवाह नही हो पा रहा था, उम्र बढ़ती जा रही थी, वे काफी परेशान थे , उन्होने अपने कष्ट निवारण हेतु हमसे परामर्श किया। इस बार हमने भगवती की अंग विद्या के प्रयोग का मन में संकल्प किया।
इसमें हमें आशा से अधिक प्रसन्नता मिली। छह माह पश्चात् कन्या का विवाह काफी सम्पन्न परिवार में हो गया साथ ही चार माह उपरान्त कन्या को उच्च सरकारी नौकरी भी मिल गई। वह अपने परिवार में प्रसन्नता पूर्वक रह रही, उसके साथ सास-ससुर भी उसे काफी मानते है, सुन कर मुझे प्रसन्नता होती है कि माँ ने मेरी सुन ली, एक निराश परिवार को खुशी प्रदान कर दी। माँ से मेरा बारम्बार यही निवेदन रहता है ‘‘ हे भगवती ! मुझसे अच्छे कार्य ही कराना।’’
जिस प्रकार क्रिया की गई आप के सम्मुख प्रस्तुत है-

स्वर्णाकर्षण भैरव प्रयोग - कृष्ण पक्ष की अष्टमी से चतुर्दशी तक विशेष फलदायी होता है, इनके प्रयोग 9,18,27 व 36 दिनों में पूर्ण कर लेते है।

संकल्प- ऊँ तत्सद्य परमात्मन आज्ञया प्रवर्तमानस्य.............संवत्सरस्य  श्री श्वेत वाराह कल्पे जम्बूदीये भरत खण्डे, उत्तर प्रदेशे, लखनऊ नगरे...... निवासे....... मासे.......पक्षे...... तिथे....... गोत्रोत्पन्व (अपना नाम दे) अहं भगवत्या पीताम्बराया प्रसाद सिद्धी द्वारा मम यजमानस्य (यजमान के नाम,गोत्र व पते का उल्लेख करे) मम यजमानस्य घन-पद-यश सुखं-शान्ती प्राप्तार्थे च सन्तुष्टार्थे भगवती वगलामुखि शाबर मंत्र सम्पुटे स्वर्णा-कर्षण भैरव मंत्र एक आयुत ज्ये अहं कुर्बे।

विनियोग- ऊँ अस्य श्री स्वर्णा कर्षण भैरव मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः पक्तिश् छन्दः हरिहर ब्रह्मात्मक, स्वर्णाकर्षण भैरव देवता, हृ्रीं बीजम्, सः शक्ति, ओम कीलकं, मम दारिद्रय नाशर्थे स्वर्णा राशि प्राप्तार्थे, स्वर्णाा कर्षण भैरव प्रसनार्थे जाये विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास- ब्रह्म ऋष्ये नमः शिरसि। 
पन्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
स्वर्णा कर्षण दैवताय नमः हृदि। 
ह्रीं बीजाय नमः गुहो।
सः शक्तिये नमः पादयोः। 
ओम कीलकाय नमः नाभौ। 
विनियोगाय नमः सर्वाङेग।

कराङग न्यास - 
ओम् ऐं ह्रीं श्री अपादु द्धारणाय अंगुष्ठाभ्यां नमः (हृदयाय नमः)
ओम् ह्रीं ह्रीं हूं अजामिल वद्धाय तर्जनीभ्यां नमः (शिरसे स्वाहा)
ओम् लोकेश्वराय मध्यमाभ्यां नमः (शिखायै वषट्)
ओम् स्वर्णा कर्षण भैरवाय अनामिकाभ्यां नमः। (कवचाय हुम्)
ओम् महा भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐ कर तल कर पृष्ठाभ्यां नमः (अस्त्राय फट्)

ध्यान:-
पीत वर्ण चतुर्वाहुं त्रिनेत्रं पीतवास सम्।
अक्ष्यं स्वर्णा माणिक्यं - तडित पूरित पात्रकम्।।
अभिलषितं महाशूल चामरं तोमरोद्वहम।
स्र्वाभरण सम्पन्नं मुक्ता हाराय शोभितम्।।
मदोन्मन्तं सुखासीनं भक्तानाम् च वर प्रदम्।
सततं चिन्तयेद् देवं भैरवं सर्व सिद्धिदम्।।
पारिजात द्रमुकान्तार स्थिते मणि मण्डये।
सिहासन गंत ध्यायेद भैरवं स्वर्णा दायकम्।।
गांगेय पात्रं डमरू त्रिशूलं वरं करैः संदघतं त्रिनेत्रं।
देव्या युतं तप्त स्वर्णावर्ण स्वर्णाकृतिः भैरव माश्रयामि।।

जप मंत्र:-
ऊँ ह्रीं बगलामुखि जगद् वंशकरी माँ बगले पीताम्बरे प्रसीद-प्रसीद मम सर्व मनोरथान पूरय पूरय ह्लीं ऊँ।
ऊँ ऐं क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं हूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामिल व्द्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम दारिद्रय विद्वेषजाय ऊँ ह्रीं महा भैरवाय नमः।
ऊँ ह्लीं बगलामुखि जगद्शंकरी माँ बगले पीताम्बरे ................... ह्लीं ऊँ।

हवन:- पहले जगद्वशंकरी का 10 माला हवन करे फिर भैरव का 10 माला हवन करे पुनः जगद्वशंकरी का 10 माला हवन करें।

हवन सामग्री:-

1. स्वर्णाकषर्ण भैरव हवन सामग्री

शक्कर का बूरा - 1 किलो0 समिधा - बेल की लकड़ी
सफेद तिल - 1 किलो0 दीपक - सरसों का तेल
जौं - 500 ग्राम भोग - मीठा
चावल - 500 ग्राम
कमलवीज - 100 ग्राम
शहद - 500 ग्राम

2. जगदवशंकरी हवन सामग्री -

हल्दी समिधा - आम एवं नीम की लकड़ी
मालकागनी
सुनहरी हरताल
लौंग
पिसा नमक
काले तिल

(एक आयुत - दस हजार)
डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह

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