Saturday 27 February 2016

बगला मुखी मूल मंत्र



‘‘क्रम दीक्षा के अनुसार-एकाक्षरी, चतुरक्षर, अष्टाक्षर मंत्र जप के बाद पश्चात् ही मूल मंत्र का जप करें, सीधे मूल मंत्र का जप न करें, क्यों कि बालू पर उठाई गई दीवार अधिक दिन टिक नहीं पाएगी, अतः नींव मजबूत करनी ही पड़ेगी।’’

साधानानुशासन इनकी साधना में अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि  ये दुधारी तलवार है, अतः थोड़ी भी चूक का परिणाम भुगतान ही पड़ता है। एक दृष्टांग बताते हैं। हम और एक पंडित जी ने बगला जप प्रारम्भ किया, तीसरे दिन मेरे दवाखाने में एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री आई, उसके बाए स्तन में गिल्टी थी, पहले तो मैं उसे टाल रहा था, किसी लेडी डाक्टर से चेक करा लो, परन्तु उसके बार-बार आग्रह को मैं टाल न सका और उसका बाया स्तन चेक करने लगा, तीन बड़ी गिल्टियाँ थी, दांए स्तन की ओर भी मेरे हाथ गए, जब कि दांए स्तन में कोई तकलीफ नहीं थी, चंूकि चिकित्सीय परीक्षण के अनुसार मैने उचित कार्य किया, परन्तु मन के भाव ठीक नहीं थे, मैं जानता था इसका दंड हमें अवश्य मिलेगा। रात्रि दवाखाने से मैं लौट रहा था, मेरा एक्सीडेन्ट हुआ और मैं जमीन पर पड़ा था, परन्तु कोई चोट नहीं लगी, गाड़ी भी ठीक हालत में थी, मैं उठा और चलता बना। मेरे साथ दुर्घटना हुई क्यों कि मेरी भावनाएं उचित नहीं थी। परन्तु चिकित्सीय परिवेश में उचित थी, दूसरे दिन पंडित जी को यह सब बताने हेतु उनके घर गया। पंडित जी के पैरो पर प्लास्टर चढ़ा था। यह सब कैसे हुआ पूछने पर उन्होंने बताया, यजमानी में कथा वाचने गया था लौटते समय यजमान ने हमें दूसरे दिन दोपहर में आने को कहा, मैं भी सीधा व दक्षिणा के लालच में दूसरे दिन उनके वही पहुंच गया, घर में सन्नाटा था यजमानिन ने मेरी काफी आवभगत की सीधा भी काफी बांध दिया और उसने वह सब हमें अर्पित कर दिया जो न देना चाहिए, भावावेश में मैं बह गया, और जब पाप का नशा उतरा तभी मैं डर गया था कि इसका दंड हमें अवश्य मिलेगा, वहाँ से घर लौट रहा था, रास्ते में एक्सीडेन्ट हुआ, सीधा-वीघा तो वहीं जमीन पर गिर कर बेकार हो गया, लोगों ने उठा कर अस्पताल पहुंचाया, परीक्षण के बाद पता चला मेरे दोनो पैर की हड्डियाँ टूट गई है और पैरों मैं प्लास्टर चढ़ गया। उन्हें हमने भी अपनी घटना बताई। हमारे इस अनुभव से आप भली-भाती समझ लें, माँ बगलामुखी के अनुष्ठान में सघना अनुशासन अति आवश्यक है, चूक हुई नहीं कि दंड भोगने के लिए तैय्यार रहे। अतः हमारा साधकों से विनम्र निवेदन है भगवति के प्रति पूर्णतः समर्पित होकर उनसे प्रार्थना करते रहे माँ मेरे अनुष्ठान को आप निर्विघ्न पूर्ण कराएं। माँ इस अनुष्ठान को करने की आप अनुमति प्रदान करंे व इसे शीघ्र ही निर्विघ्न पूर्ण कराएं।
इस मंत्र की जितनी प्रशंसा की जाय वह कम है। यह मंत्र सिद्ध हो जाने पर स्वयं में अपार शक्ति का संचार होने लगता है। ब्रह्मचर्य पूर्वक इस विद्या का क्रमशः अभ्यास करते-करते हुए एक एसी अवस्था आ जाती है कि स्वयं को आभास होने लगता है कोई शक्ति सदैव मरे साथ बनी हुई है। दैनिक जीवन में इस मंत्र की आवश्यकता -
1. यदि आप आग से जल जाए तो भगवती के मूल मंत्र केवल एक बार पढ़ कर अपनी हथेली पर फूकें व जले भाग पर एक बार हाथ फेर दें। जलन तुरन्त समाप्त हो जाती है व फफोला भी नहीं पड़ता। हवन करते समय मेरा हाथ अक्सर जल जाया करता था, जलन से मैं छटपटा जाता था दूसरे दिन जले स्थान पर फफोला भी पड़ जाता था। हवन से पूर्व में भी भगवती से प्रार्थना करता कि हाथ जलने न पाए फिर भी हाथ जल गया, आवाज आई ‘फूको व फेरो’ मैने मूलमंत्र तुरन्त अपने बांए हाथ पर ‘फंूका’ व जली हुई उगलियों पर हाथ फेरा मुझे स्वयं बड़ा आश्चर्य हुआ जलन तुरन्त समाप्त हो गई इतनी तीव्रता तो किसी औषधि में भी नहीं है बस मुझे एक फार्मूला मिल गया ‘‘फूंको और फेरो’’।
2. बरैय्या का डंक वह भी आंख के पपोटे के ऊपर-गाड़ी चला रहा था, एक पीली बर्र तेजी से आकर आंखों के ऊपर डंक मार कर उड़ गई, तीव्र जलन का एहसास तभी अपना फार्मूला याद आया, हाथ पर मूल मंत्र फूंका व उसे आंखें पर फेर दिया, चमत्कार हुआ जलन तीव्रगति से उसी क्षण समाप्त हो गई।
3. बिच्छू का डंक - एक बालिका को बिच्छू ने डंक मार दिया था, वह छटपटा रही थी, तेज स्वर में चीख रही थी, मैं उधर से निकल रहा था, बालिका से पूछा बिच्छू ने कहाँ डंक मारा है, तीव्र पीड़ा वाले स्थान की ओर इशारा किया मैंने तुरन्त अपने फार्मूले का प्रयोग किया। वह बालिका खुशी से उछलने लगी और कहने लगी अंकल जी आप जादू जानते हैं क्यों कि हाथ फेरते ही उसकी तीव्र पीड़ा, तीव्र गति से ही चली गई।
कहने का तात्पर्य है कि भगवती के मूल मंत्र में असीमित शक्ति समाई हुई है, हमें मात्र उसे जाग्रत कर देना है और वह आप के हाथ में है। अपने गुरू, मंत्र और भगवती पर पूर्ण आस्था रखते हुए धैर्यता पूर्वक मंत्र का पुरश्चरण करे , जो एक लाख होता है, परन्तु वर्तमान काल में 4 गुना जप करने के पश्चात् मंत्र फलीभूत होते मैंने देखा है यह अति गोपनीय तथ्य है। अधिकांश गुरूजप मात्र 1 लाख जप करा निर्देश देते हैं कार्य नहीं बनता अतः शिष्य के मन में मंत्रों के प्रति अविश्वास आ जाता है और वह मन्त्र जाप छोड़ देता है। यह आप की समस्या का समाधान नहीं है, आप निर्दिष्ट संख्या का चार गुना जप करें सफलता अवश्य मिलेगी।
किसी शुभ मुहुर्त से, माँ बगलामुखि के यंत्र के सामने पीले आसन पर बैठ कर माँ का पच्चोपचार पूजन के उपरान्त संकल्प कर जप प्रारम्भ करें। पूजा में उपयोगी वस्तुए पीले रंग की रखें, जैसे पीत पुष्प, बेसन का लड्डू, हल्दी का माला, पीतल का यंत्र, सरसों के तेल का दीपक आदि। दिशा पूर्व की हो। जप स्थान में एक कलश में जल अवश्य रखें जप के उपरान्त कपूर जला कर माँ के बाएं हाथ में जप समर्पित करते हैं। सर्वप्रथम जल ले कर संकल्प करें -

संकल्प - ऊँ तत्सद्य परमात्मन् आज्ञया प्रवर्तमानस्य 2070 सवंत्सरस्य श्री श्वेत वाराह कल्पे जम्बूदीपे भरत खंडे उत्तर प्रदेशे, लखनऊ नगरे ........... निवासे, ......... मासे .......... पक्षे ............... तिथे गुरू वासरे, गोत्रोत्पनः (अपना नाम) अंह भगवत्याः पीताम्बरायाः प्रसाद सिद्धि द्वारा मम सर्वाभिष्ट सिद्धियर्थे च भगवती पीताम्बरायाः प्रसन्नार्थे एक लक्ष मूल-मंत्र जपे अहं कुर्वे।

ध्यान - सौ वर्णासन-सस्थितांत्रिननां पीतांशुकोल्लासिनी, हेमा भाङग रूचिं शशांङक मुकटां सच्चम्पक स्रगयुताम, हेस्तै मुर्द्गर-पाश बद्ध-रसनां संविभ्रतिं भूषणै-व्र्याप्ताङगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनी चिन्तये।
भावार्थ - सुवर्ण के आसन पर स्थित, तीन नेत्रों वाली, पीताम्बर से उल्लसित, सुवर्ण की भांति क्रान्ति-मय अङगों वाली, जिनके मणिमय मुकुट में चन्द्र चमक रहा है, कण्ठ में सुन्दर चम्पा पुष्प की माला शोभित है, जो अपने चार हाथों में -1 गदा, 2 पाश, 3 बज्र और 4 शत्रु की जीभ ग्रहण किए है, दिव्य आभूषणों से जिनका सारा शरीर भरा हुआ है - ऐसी तीनों लोकों का स्तम्भन करने वाली श्री बगलामुखी की मैं चिन्तन करता हूँ।

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगलामुखि महाविद्या मन्त्रस्य नारद ऋषि, त्रिष्टुप छन्दः, बगलामुखि महाविद्यां देवता, ह्ली बीजम् स्वाहा शक्ति, ऊँ कीलंक ममडभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग।

दाए हाथ में जल लेकर विनियोग बोल कर बगलामुखि यंत्र के सामने जल छोड़ दे, फिर न्यास करें।

ऋष्यादि न्यास - ऊँ नारद ऋषये नमः शिरसि, ऊँ त्रिष्टुप छन्द से नमः मुखे, ऊँ बगलामुखी महाविद्या देवताये नमः हृदि, ऊँ ह्लीं बीजाय नमः गुहो, ऊँ स्वाहा-शक्तये नमः पादयो, ऊँ ओम् कीलकाय नमः नाभौ।

कर न्यास - ऊँ ऊँ ह्लीं अनुष्ठाभ्याम् नमः। ऊँ बगलमुखि तर्जनीभ्याम् नमः, ऊँ सर्व दुष्टानां मध्यमाभ्याम् नम, ऊँ वाचं मुखं पंद स्तम्भय अनामिकाभ्याम् नमः, ऊँ बुद्धिं विनाशयं ह्लीं ऊँ स्वाहा करतल कर-पृष्ठाभ्याम नमः।

हृदयादि न्यास - ऊँ ऊँ ह्लीं हृदयाय नमः, ऊँ बगलामुखि शिरसे स्वाहा, ऊँ सर्वदुष्टानां शिखायौ वषट्, ऊँ वाचं मुखं पंद स्तम्भय् कवचाय हुम्, ऊँ जिह्वा कीलम नेत्र त्रयाय वौषट्, बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा अस्त्राय फट्।

जप से पूर्व क्रियायें - जप से पूर्व मुखशोधन हेतु ‘ऐ ह्लीं ऐ’  का दस बार जप करे। चैतन्य मंत्र ‘ई मूलं ई’ का 108 बार जप, कुल्लका ऊँ हुं क्षौ सिर पर 10 बार, सेतु ‘‘ह्लीं स्वाहा’’ कष्ठ पर 10 बार, महासेतु ‘‘स्त्रीम्’’ हृदय पर 10 बार, दीपन ई (मूल मंत्र ई-7 बार जपे)

कवच (जप से पूर्व पढ़े)

ऊँ ह्लीं में हृदयं पातु पादौ श्री बगलामुखी।
ललाटम् सततं पातु दुष्ट ग्रह निवारिणी।।
रसनां पातु कौमारी भैरवी चक्षु षोम्र्मय।
कटौ पृष्ठे महेशानी कर्णों शंकर भामिनी।।
वर्जितान तु सथानानि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि में देवी सततं पातु स्तम्भिनी।।

स्त्रोत (जप से पूर्व पढ़े)

बगला सिद्ध विद्या च दुष्ट निग्रह कारिणी।
स्तम्भिन्या कार्षिणी चैव तथोच्चाटन कारिणी।
भैरवी भीम नयनां महेश गृहिणी शुभा।
दश नामात्मकं स्त्रोत पठेद्वा पाठयेद्यदि।
स भवेत् मन्त्र सिद्धश्च देवी पुत्र दव क्षितौ।

बगला गायत्री

ऊँ ह्लीं ब्रह्मा स्तायै विद्महे स्तम्भन वाणायै धीमहि तन्नो बगला प्रचोतयात।

जप से पूर्व 1 माला करे, जप में आने वाली विघ्नो से रक्षा होती है। तत्पश्चात! जप प्रारम्भ करें -

मंत्र - ऊँ ह्लीं बगलामुखि! सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा। 
(ह्लीं का उच्चारण - हल्रिम )

एक लक्ष के उपरान्त हवन कर उसका दशांश तर्पण, मार्जन ब्राम्हण भोज कराए।




हवन सामग्री - पिसी हल्दी, पीली सरसों, चम्पा के फूल, सुनहरी हरताल, थोड़ा नमक पिसा, लौंग, मालकांगनी, इसे कड़ुवे तेल में सान कर आहुतियाँ दें।


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