अपनी शब्दावली
व भाव प्रणाली
की विशिष्टिता के
कारण इसे अत्यन्त
विकट शत्रु से
सन्त्रास को ध्वस्त
करने के लिए किया जाता
है। प्रस्तुत प्रयोग
की फलश्रुति के
अनुसार नित्य एक
बार अथवा तीनों
संन्ध्याओं में एक
एक बार, एक मास तक
पाठ से बगलामुखी
देवी साधक के शत्रु को
उद्घ्वस्त करती है:-
मास मेकं पठेन्नित्यं
त्रैलोक्ये चाति दुर्लभम्।
सर्व सिद्धिम वाप्नोति देव्या
लोकं स गच्छति।।
माँ की
सिद्धि का सुगम उपाय है
यदि इसका श्रृद्धायुक्त
तीनों संघ्याओं में
पाठ करने के उपरान्त रात्रि में
तिल की खीर से नित्य
भवगती को होम दें। एक
मास तक यही प्रक्रिया करते रहें
भवगती बगलामुखी साधक
को बिना जप किए सब
कुछ उपलब्ध करा
देती है।
सर्वप्रथम बगलामुखि के
यंत्र का आगे दिए विधान
द्वारा पूजन कर,
स्त्रोत के पाठ से शत्रुओं
का शमन होता
है और वे आप के
मार्ग से हट जाते हैं।
ग्यारह सौ पाठ का विधान
है व एक सौ ग्यारह
पाठ का हवन करते हैं।
हवन सामग्री:- हल्दी, मालकाँगनी,
तिल, बूरा, हरताल,
घी में सान कर पाठ
के प्रत्येक स्वाहा
पर आहुति देते
हैं। व अन्तिम
आहुति प्रत्येक पाठ
के बाद खीर की देते
हैं। इसका तर्पण-मार्जन नहीं
होता है। खीर-दूध में
तिल डाल कर टाइट खीर
बनाते हैं बाद में उसमें
केसर व शहद भी मिला
लेते हैं। स्वअनुभूति
इस विधान को
पूर्ण कर जब हवन की
अन्तिम आहुति दी
गई, षडयंत्रकारी को
मार्ग से हटना ही पड़
गया, जब कि वह माँ
दुर्गा का अच्छा
साधक था, परन्तु
षडयंत्र रचने में
उसे महारत हासिल
थी। किसी को ज्ञात भी
नहीं होता था कि किसका
षडयंत्र है, परन्तु
भगवती की दृष्टि
से वह माँ दुर्गा का
सेवक छुप न सका और
माँ के दंड को उसे
भुगतना ही पड़ गया। इसे
नित्य की पूजा में सम्लित
कर आप पूर्णतः
निश्चिन्त हो जाएं।
भगवती सदैव आप की रक्षा
ही नहीं करेगी
वरन् आप के गुप्त शत्रुओं
को मार्ग से
सदैव के लिए हटा देती
है।
पुस्तकों में लिखा
है परन्तु मेरा
ऐसा कोई अनुभव
नहीं रहा कि यदि किसी
मकान या दुकान
को बांध दिया
गया है तो उपरोक्त पाठ 108 बार
पढ़ कर, जल पर फूकें।
इस जल को घर या
दुकान में प्रवेश
करते समय अपने
सिर पर से द्वार के
बाहर की ओर फेंक दें।
उसके बाद पुनः
ग्यारह पाठ कर जल पर
फूंके व इस जल को
घर/दुकान में
सभी जगह छिड़क
देने से वह स्थान जीवंत
हो जाता है।
दुकान चलने लगती
है व घर की समस्त
बाधाएं शान्त हो
जाती है।
श्री बगलामुखी
कल्प विधान देखने
में बहुत बड़ा
लगता है, परन्तु
वास्तव में अत्यन्त
आसान है। सर्व
प्रथम भगवति से
प्रार्थना करें माँ
मैं आप के इस कल्प
विधान को करना चाहता हूँ
मुझे अनुमति प्रदान
करें साथ ही मेरी मदद
करे, आप को बता दूँ
माँ इसे अत्यधिक
सुगम तरीके से
करा देगी कि आप को
पता ही नहीं चलेगा। पाठ
की कुछ कुन्जियाँ
आप को देता हूँ, जिससे
आप को भटकन नहीं होगी
पहली कुन्जी है
दिशा जैसे
ऊँ ऐं ह्लीं
बगलामुखि एहि एहि
पूर्व दिशा बन्धय
बन्धय इन्द्रस्य मुखं
ऊँ ऐं ह्लीं
पीताम्बरे एहि एहि
अग्निदिशायाां - अग्नि मुखं
इस चक्र
को मस्तिष्क मैं
बैठा ले किस दिशा पर
किस शक्ति को
पुकारते हैं और किस देवता
का बन्ध करते
हैं।
तीसरी कुंजी - मानव आकृति
मस्तिष्क में बैठा
लें व सर से ध्यान
करे-
1. शिरो (सर) - बगलामुखि
2. भाले (मत्था) - पीताम्बरे
3. नेत्रो - महा भैरवि
4. कर्णो (कान) - विजये
5. नासौ (नाक) - जये
6. वदंन (चेहरा) - शारदे
7. कण्ठे (गला) - रूद्राणि
8. स्कन्धौ (कंधे) - विन्ध्यवासिनि
9. बाहू (हाथ) - त्रिपुर सुन्दरि
10. करौ (उगलियाँ) - दुर्गे
11. हृदयं - भवानि
12. उदरं (पेट) - भुवनेश्वरि
13. नाभिं - महामाये
14. कटिं (कमर) - कमल लोचने
15. उरौ (छाती) - तारे
16. सर्वाङ - महातारे
17. अग्रे (सामने) - योगिनि
18. पृष्ठे (पीछे) - कौमारि
19. दक्षिण पार्श्वे (दाई ओर) - शिवे
20. वाम पार्श्वे (बाई ओर) - इन्द्राणि
2. भाले (मत्था) - पीताम्बरे
3. नेत्रो - महा भैरवि
4. कर्णो (कान) - विजये
5. नासौ (नाक) - जये
6. वदंन (चेहरा) - शारदे
7. कण्ठे (गला) - रूद्राणि
8. स्कन्धौ (कंधे) - विन्ध्यवासिनि
9. बाहू (हाथ) - त्रिपुर सुन्दरि
10. करौ (उगलियाँ) - दुर्गे
11. हृदयं - भवानि
12. उदरं (पेट) - भुवनेश्वरि
13. नाभिं - महामाये
14. कटिं (कमर) - कमल लोचने
15. उरौ (छाती) - तारे
16. सर्वाङ - महातारे
17. अग्रे (सामने) - योगिनि
18. पृष्ठे (पीछे) - कौमारि
19. दक्षिण पार्श्वे (दाई ओर) - शिवे
20. वाम पार्श्वे (बाई ओर) - इन्द्राणि
फिर गां गीं
गू .....।
सभी में
प्रारम्भ ऊँ ह्लां
ह्लीं हलूं ह्लैं
ह्लौं ह्लः लगा करे अंग का नाम रक्षतु
देवी का नाम रक्ष रक्ष स्वाहा लगाते हुए
क्रमशः बढ़ते रहे
और अन्त में एक पाठ पूरा
हो जाएगा जिह्वा
धारावाहिक वाचिक चलती
रहती है, आनन्द
की अनुभूति क्रमशः
चलते-चलते चरम
पर पहुंच ही
जाती है।
बगलामुखी कल्प विधान
इसमें माँ
बगलामुखी का सर्वांग
पूजन आगे दी विधि के
अनुसार करें। सर्वप्रथम
3 बार मूलमंत्र से
प्राणायाम करें बाएं
नथुने से धीरे-धीरे सांस
खींच कर उसे तब तक
रोके रहे जब तक छटपटाहट
महसूस न होने लगे फिर
इसे दांए नथुने
से धीरे-धीरे
बाहर छोडे़ पुनः
दांए से खींच कर बाए
नथुने से सांस छोडें़ यह
एक प्राणायाम हुआ,
इस प्रकार तीन
बार कर, मूल मंत्र का
108 बार जाप कर, दिग्बन्धन के समय सम्बन्धित दिशा में
चुटकी बजाए-
दिग्बन्धन -
ऊँ ऐं ह्ल्रीं
श्रीं श्यामा माँ।
पूर्वतः पातु।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं आग्नेय्यां पातु
तारिणी।।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं माहविद्या दक्षिणे
तु।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं नैर्ऋत्यां षोडशी
तथा।।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं भुवनेशी पिश्रिमायाम्।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं वायव्यां बगलमुखी।।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं उत्तरे छिन्नमस्ता
च।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं ऐशान्यां धूमावती
तथा।।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं ऊर्घ्व तु,
कमला पातु।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवता।।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं अद्यस्तात् चैव
मातङगी।
ऊँ ऐं ह्लीं
श्रीं सर्वदिग् बगलामुखी।।
विनियोग - विनियोग बोल कर जल पृथ्वी
पर डाले। दांए
हाथ में जल लेकर
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं ब्रह्मास्त
सिद्ध प्रयोग स्त्रोत
मन्त्रस्य भगवान नारद
ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
बगलामुखी देवता, हृं
बीजम् ई शक्ति,
लं कीलकं, मम
सर्वार्थ-साधन-सिद्धयर्थे
पाठे
विनियोमः। फिर सम्बन्धित
स्थानो को छुए
ऊँ भगवते
नारदाय ऋषये नमः
शिरसि
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्यामा
देव्यै नमः ललाटे।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः तारा
देव्यै नमः कर्णयोः।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः महा
विद्यायै नमः भ्रवोर्मध्ये।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः षोडशी
देव्यै नमः नेत्रयो।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः अनुष्टुप्
छन्दसे नमः मुखे।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्री
बगला मुखी देव्यै
नमः मुखे।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः बगला
भुवनेश्वरी भ्यां नमः
नासिकयोः।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः छिन्न
मस्ता देव्यै नमः
नाभौ।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः धूमावती
देव्यै नमः कटयाम्।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः कमला
देव्यै नमः गुहृो।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्री मातंगी देव्यै नमः
पादयो।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हृी
बीजाय नमः नाभौ।
ऊँ ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हृी
कीलकाय नमः सर्वाङगे।
मम सर्वार्थ साधने बगला
देव्यै जपे विनियोगः। (जल पृथ्वी
पर डाल दे)।
कर न्यास-
ऊँ ह्लं
बगलामुखी अड.गुष्ठाभ्यां
नमः।
ऊँ ह्लीं
बगलामुखी तर्जनी भ्यां
नमः।
ऊँ ह्लूं
बगलामुखी मध्यमा भ्यां
नमः।
ऊँ ह्लैं
बगलामुखी अनामिका भ्यां नमः।
ऊँ ह्लौं
बगलामुखी कनिष्ठिका भ्यां नमः।
ऊँ ह्लः
बगलामुखी करतल कर
पृष्ठा भ्यां नमः।
हृदयदि न्यास-
ऊँ हृीं
हृदयाय नमः। (हृदय
को दांए हाथ
से स्पर्श करें)
बगलामुखी शिरसे स्वाहा।(सिर का
स्पर्श करें)
सर्व दुष्टानां
शिखायै वषट्। (शिखा
का स्पर्श करें)
वाचं मुखं
पदं स्तम्भय कवचाय
हुम्। (कवच बनाएं)
जिह्वां कीलय् नेत्रयाय
वौषट। (नेत्रों का
स्पर्श करें)
बुद्धि विनाशाय
ऊँ ह्लीं स्वाहा
(सिर के पीछे से, दाए
हाथ से चुटकी
बजाते हुए, दांए
हाथ की गदेली
पर, बांए हाथ
की तर्जनी व
मध्यमा से तीन बार ताली
बजाए।)
कवच - दांए हाथ की उंगलियाँ बाए कंधे पर रखे व ठीक इसका उल्टा अर्थात् बांए हाथ की उगलियाँ दाहिने कंधे पर रखे, इस भांति सीने पर कवच की मुद्रा बनाते हैं।
कवच - दांए हाथ की उंगलियाँ बाए कंधे पर रखे व ठीक इसका उल्टा अर्थात् बांए हाथ की उगलियाँ दाहिने कंधे पर रखे, इस भांति सीने पर कवच की मुद्रा बनाते हैं।
ध्यान -
सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशु कोल्लासिनीं,
हेमा भाङग रूचिं शशाङक मुकुटां सच्चम्पक स्त्रग्युताम्।
हस्तै र्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संविभ्रतीं भूषणैः।
र्व्याप्ताङगीं बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत।।
सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशु कोल्लासिनीं,
हेमा भाङग रूचिं शशाङक मुकुटां सच्चम्पक स्त्रग्युताम्।
हस्तै र्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संविभ्रतीं भूषणैः।
र्व्याप्ताङगीं बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत।।
यन्त्रोद्वार
-
त्रिकोणं
चैव षट्-कोणं,
वसु-पत्रं ततः
परम्।
पुनश्च वसु-पत्रं, वर्तुलं
च प्रकल्पयेत्।।
षोडशारं ततः पश्चात्,
चतुरस्त्रं विधीयते।
वर्तुलं चतुरस्तं च,
मध्ये मायां समालिखेत्।।
नोट - माँ
बगलामुखी के उपरोक्त
यन्त्रोंद्वार वाला ही
यंत्र प्रयोग करें,
बाजार में इनके
विभिन्न प्रकार के
यंत्र मिलते हैं।
इसकी विधिवत् प्राण
प्रतिष्ठा कर, सर्वांग
पूजन करते हैं।
पीले वस्त्र पर
प्राण प्रतिष्ठित यंत्र
स्थापित कर जहाँ-जहाँ पूजयामि
है वहाँ-वहाँ
पुष्प की पंखुडियाँ
सामने प्लेट में
डालते जाए व तर्पयामि भी जल से करते
रहें।
आदौ-त्रिकोण देवताः पूजयेत्
-
ऊँ ऐं ह्री
श्रीं क्रोधिन्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्री
श्रीं स्तंभिन्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्री
श्रीं चामर धारिण्यै
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
पुनस्त्रि कोणे -
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं ओडयान पीठाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं जालन्धर पीठाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं कामगिरि पीठाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं अनन्त नाथाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं श्री कण्ठ
नाथाय स्वाहा पूजयामि
नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं दन्तात्रेय नाथाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
अथ षट्कोणे -
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं सुभगायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं भग वाहिन्यै
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं भग मालिन्यै
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं भग शुद्धायै
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं भग पत्न्यै
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
अथ वसुपत्रे -
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं ब्राह्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं माहेश्वर्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं कौमार्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं वैष्णव्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं वाराहौै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं इन्द्राण्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं चामुण्डायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ द्वितीय वसुपत्रे -
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं जयाय स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं विजयाय स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं अजिताय स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं अपराजिताय स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं मोहिन्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ पत्राग्रे-
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं असिताङग भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं रूरू भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं चण्ड भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं क्रोध भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं उन्मन्त भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं कपालि भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं भीषण भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं संहार भैरवाय
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
षोडश दले -
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं बगला मुख्यै
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं मोहिन्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं चच्चत्रायैै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं अचलायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं वश्यायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं कालिकायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं कल्मषायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं छात्रयै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं काल्पान्तायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं शाकिन्यै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं अष्ट गन्धायै
स्वाहा पूजयामि नमः
तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं भोगेच्छायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं भाविकायै स्वाहा
पूजयामि नमः तर्पयामि।
मन्त्र पाठ -108 बार पाठ कर, स्त्रोत
का पाठ करें।
ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं बगला मुखि
सर्व दुष्टानां वश्यं
कुरू कुरू कलीं
कलीं ह्रीं हुं
फट् स्वाहा। ऊँ
ह्लं बगलामुखि श्री
बगलामुखि दुष्टान् भिन्धि भिन्धि,
छिन्धि छिन्धि, पर
मन्त्रान् निवारय निवारय,
वीर चंक्र छेदय
छेदय, वृहस्पति मुखं
स्तम्भय स्तम्भय, ऊँ
ह्रीं अरिष्ट स्तम्भनं
कुरू कुरू स्वाहा,
ऊँ ह्रीं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
(108 बार पाठ करें)
स्त्रोत्र -
ब्रह्मास्त्रां
प्रवक्ष्यामि बगलां नारद
सेविताम्।
देव गन्धर्व यक्षादि सेवित
पाद पङकजाम्।।
त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या सर्व
शत्रु वशङकरी आकर्षणकरी
उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरी मारणकरी
जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व
वश्यं कुरू कुरू
ऊँ ह्लं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लं द्राविणि
द्राविणि भ्रामिणि भ्रामिणी एहि
एहि सर्व भूतान्
उच्चाटय उच्च्चाटय सर्व
दुष्टान् निवारय निवारय
भूत प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनीः
छिन्धि छिन्धि, खड्गेन
भिन्धि भिन्धि मुद्गरेण
संमारय संमारय, दुष्टान्,
भक्षय-भक्षय, ससैन्यं
भूपतिं कीलय मुख
स्तम्भनं कुरू कुरू
ऊँ ह्लां बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
आत्म-रक्षा
ब्रह्म-रक्षा, विष्णु-रक्षा रूद्र-रक्षा, इन्द्र-रक्षा, अग्नि-रक्षा, यम-रक्षा, नैर्ऋत-रक्षा, वायु-रक्षा, कुवेर-रक्षा, ईशान-रक्षा, सर्व-रक्षा, भूत-प्रेत, पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-रक्षा-अग्नि
वैताल-रक्षा गण-गन्धर्व-रक्षा, तस्मात्
सर्वरक्षां कुरू कुरू,
व्याध्र-गज-सिंह रक्षा गण
तस्कर-रक्षा, तस्मात्
सर्व बन्ध्यामि ऊँ
ह्लं बगलामुखि हुँ
फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लीं
भो बगलामुखि सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं
स्तम्भय जिह्वां कीलय
बुद्धिं विनाशय ह्लीं
ऊँ स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं बगलामुखि
एहि-एहि पूर्व
दिशायां बन्धय-बन्धय
इन्द्रस्य मखं स्तम्भ-स्तम्भ इन्द्र
शास्त्रं निवारय निवारय
सर्व सैन्यं कीलय
कीलय पच पच मथ मथ
मर्दय मर्दय ऊँ
ह्लीं वश्यं कुरू
कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं पीताम्बरे
एहि-एहि अग्नि
दिशायां बन्धय-बन्धय
अग्नि मुखं स्तम्ीाय
स्तम्भय अग्नि शस्त्र
निवारय निवारय सर्व
सैन्य कीलय कीलय
पच पच मथ मथ मर्दय
मर्दय ऊँ ह्लीं
वश्यं कुरू कुरू
ऊँ ह्लं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं महर्षि
मर्दिनि एहि-एहि अग्नि दिशायां
बन्धय-बन्धय समस्य
अग्नि स्तम्भय स्तम्भय
यम शास्त्रं निवारय
निवारय सर्व सैन्य
कीलय कीलय पच पच मथ
मथ मर्दय मर्दय
ऊँ ह्लीं हज्जृम्भणं
कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं चण्डिके
एहि-एहि नैऋत्य
दिशायां बन्धय-बन्धय
नैऋत्य मुखं स्तम्भय
नैऋत्य शास्त्रं निवारय
निवारय सर्व सैन्य
कीलय कीलय पच पच मथ
मथ मर्दय मर्दय
ऊँ ह्लीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं कराल
नयने एहि-एहि पश्चिम दिशायां
बन्धय-बन्धय वरूण
मुखं स्तम्भय वरूण
शास्त्रं निवारय निवारय
सर्व सैन्य कीलय
कीलय पच पच मथ मथ
मर्दय मर्दय ऊँ
ह्लीं वश्यं कुरू
कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं कालिके
एहि-एहि वायव्य
दिशायां बन्धय-बन्धय
वायु मुखं स्तम्भय
वायु शास्त्रं निवारय
निवारय सर्व सैन्य
कीलय कीलय पच पच मथ
मथ मर्दय मर्दय
ऊँ ह्लीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्लीं श्रीं महा
त्रिपुर सुन्दरी एहि-एहि नैऋत्य
दिशायां बन्धय-बन्धय
कुवेर मुखं स्तम्भय
कुबेर शास्त्रं निवारय
निवारय सर्व सैन्य
कीलय कीलय पच पच मथ
मथ मर्दय मर्दय
ऊँ ह्लीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं महाभैरवि एहि
एहि ईशान दिशायां
बन्धय बन्धय ईशान
मुखं स्तम्भय स्तम्भय
ईशान शास्त्रं निवारय
निवारय सर्व सैन्यं
कीलय कीलय पच पच मथ
मथ मर्दय मर्दय
ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं गाङगेश्वरि एहि
एहि ऊर्ध्व दिशायां
बन्धय बन्धय ब्रह्मणं
चतुर्मखं स्तम्भय स्तम्भय ब्रह्म
शास्त्रं निवारय निवारय
सर्व सैन्यं कीलय
कीलय पच पच मथ मथ
मर्दय मर्दय ऊँ
हलीं वश्यं कुरू
कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ललितादेवी एहि
एहि अन्तरिक्ष दिशायां
बन्धय बन्धय विष्णु
मुखं स्तम्भय स्तम्भय
विष्णु शास्त्रं निवारय
निवारय सर्व सैन्यं
कीलय कीलय पच पच मथ
मथ मर्दय मर्दय
ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं चक्रधारिणि एहि
एहि अधो दिशायां
बन्धय बन्धय वासुकि
मुखं स्तम्भय स्तम्भय
वासुकि शास्त्रं निवारय
निवारय सर्व सैन्यं
कीलय कीलय पच पच मथ
मथ मर्दय मर्दय
ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
दुष्ट मन्त्रम्
दुष्ट यन्त्रं दुष्ट
पुरूषम् बन्धयामि शिखां
बन्ध ललाट बन्ध
भ्रवौ बन्ध नेत्रे
बन्ध कर्णों बन्ध
नासौ बन्ध ओष्ठी
बन्ध अधरौ बन्ध
जिह्वां बन्ध रसनां
बन्ध बुद्धि कष्ठम्
बन्ध हृदयं बन्ध
कुक्षि बन्ध हस्तौ
बन्ध नाभि बन्धा
लिङगम् बन्ध गुहां
बन्ध ऊरू बन्ध
जानू बन्ध जङघे
बन्ध गुल्फौ बन्ध
पादौ बन्ध स्वर्ग-मृत्युं-पातालं बन्ध
बन्ध रक्ष रक्ष
ऊँ ह्लीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि इन्द्राय सुराधि पतये
ऐरावत् वाहनाय श्वेत
वर्णाय वज्र हस्ताय
सपरिवाराय एहि एहि
मम विघ्नान् निरासय
निरासय विभज्जय विभज्जय
ऊँ ह्लीं अमुकस्य
मुखं स्तम्भय स्तम्भय
ऊँ ह्लीं अमुकस्य
मुखम् भेदय भेदय
ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि अग्नेय तेजोधिपतये
छाग वाहनाय रक्त वर्णाय
शक्ति हस्ताय सपरिवाराय
एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय
ऊँ ह्लीं अमुकस्य
मुखं स्तम्भय स्तम्भय
ऊँ ह्लीं अमुकस्य
मुखम् भेदय भेदय
ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि यमाय प्रेताधिपतये
महिष वाहनाय कृष्ण
वर्णाय दण्ड हस्ताय
सपरिवाराय एहि एहि
मम विघ्नान् विभज्जय
विभज्जय ऊँ ह्लीं
अमुकस्य मुखं स्तम्भय
स्तम्भय ऊँ ह्लीं
अमुकस्य मुखम् भेदय
भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू
कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि वरूणाय जलाधि
पतये मकर वाहनाय
श्वेत वर्णाय पाश
हस्ताय सपरिवाराय एहि
एहि मम विघ्नान्
विभज्जय विभज्जय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखं
स्तम्भय स्तम्भय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखम्
भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि वायव्याय मृगवाहनाय ध्रूम
वर्णाय ध्वजा हस्ताय
सपरिवाराय एहि एहि
मम विघ्नान् विभज्जय
विभज्जय ऊँ ह्लीं
अमुकस्य मुखं स्तम्भय
स्तम्भय ऊँ ह्लीं
अमुकस्य मुखम् भेदय
भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू
कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि ईशानाय भूताधि
पतये वृषभ वाहनाय
कर्पूर वर्णाय त्रिशूल
हस्ताय सपरिवाराय एहि
एहि मम विघ्नान्
विभज्जय विभज्जय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखं
स्तम्भय स्तम्भय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखम्
भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि ब्रह्मणे ऊर्ध्व दिग्लोकपालाधि
पतये हंस वाहनाय
श्वेत वर्णाय कमण्डलु
हस्ताय सपरिवाराय एहि
एहि मम विघ्नान्
विभज्जय विभज्जय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखं
स्तम्भय स्तम्भय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखम्
भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ऐं ऊँ ह्लीं
बगलामुखि वैष्णी सहिताय
नागाधिपतये गरूण वाहनाय
श्याम वर्णाय चक्र
हस्ताय सपरिवाराय एहि
एहि मम विघ्नान्
विभज्जय विभज्जय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखं
स्तम्भय स्तम्भय ऊँ
ह्लीं अमुकस्य मुखम्
भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं
कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
ऊँ नमो
भगवते पुण्य पवित्रे
स्वाहा।
ऊँ ह्लीं
बगलामुखि नित्यम् एहि एहि रवि मण्डल
मध्याद् अवतर अवतर
सानिध्यं कुरू कुरू।
ऊँ ऐं परमेश्वरीम्
आवाहयामि नम्। मम्
सानिध्यं कुरू। ऊँ
ह्लीं बगलामुखि हुम्
फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं
ह्रीं श्रीं ह्लं
ह्लीं ह्लू ह्लै
ह्लौं ह्लः बगले
चतुर्भुजे मुद्धरशर संयुक्ते दक्षिणे
जिह्वा व्रज संयुक्ते
वामे श्री महाविद्ये
पीत बस्त्रे पच्च
महाप्रेताधि रूढे सिद्ध
विद्याधर बन्दिते ब्रह्म विष्णु
रूद्र पूजिते आनन्द
स्वरूपे विश्व सृष्टि
स्वरूपे महा भैरव
रूप धारिणि स्वर्ग
मृत्यु पाताल सतम्भिनि
वाम मार्गाश्रिते श्री
बगले ब्रह्म विष्णु
रूद्र रूप निर्मिते
षोडशकला परिपूरिते दानाव
रूप सहस्त्रादित्य शेभिते
त्रिवर्णे एहि एहि
हृदयं प्रवेशय प्रवेशय
शत्रुमुखं स्तम्भ स्तम्भ
अन्य भूत पिशाचान्
खादय खादय अरिसैन्यं
विदारय विदारय पर
विद्यां परचक्रं छेदय
छेदय वीर चक्रं
धनुषां संभारय संभारय
त्रिशूलेन् छिन्धि छिन्धि
पाशेन बन्धय बन्धय
भूपतिं वश्यं कुरू
कुरू संमाहेय-संमोहय
बिना जाप्येन सिद्धय
सिद्धय बिना मन्त्रंण
सिद्धिं कुरू कुरू
सकल दुष्टान् घातय-घतय मम
त्रैलोक्यं वश्यं कुरू-कुरू सकल
कुल राक्षसान् दह
दह पच पच मथ मथ
हन हन मर्दय
मर्दय मारय मारय
भक्षय भक्षय मां
रक्ष रक्ष विस्फाटका
दीन् नाश्य नाशय
ऊँ ह्रीं विषम
ज्वरं नाशय-नाशय
विषं निर्विष कुरू
कुरू ऊँ ह्लीं
बगलामुखि हुं फट्
स्वाहा।
ऊँ क्लीं
क्लीं ह्लीं बगलामुखि
सर्वदुष्टानां वाचं मुखं
पंद स्तम्भय जिह्वां
कीलय कीलय बुद्धि
विनाशय विनाशय क्लीं
क्लीं ह्लीं स्वाहा।
ऊँ बगलामुखि
स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे
स्वाहा। ऊँ त्रिपुर
भैरवि स्वाहा। ऊँ
विजयायै स्वाहा। ऊँ
जयायै स्वाहा। ऊँ
शारदायै स्वाहा। ऊँ
सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै
स्वाहा। ऊँ विन्घ्य
वासिन्यै स्वाहा। ऊँ त्रिपुर
सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गाये
स्वाहा। ऊँ भवान्यै
स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै
स्वाहा। ऊँ महा मायायै स्वाहा।
ऊँ कमल लोचनायै
स्वाहा। ऊँ तारायै
स्वाहा। ऊँ योगिन्यै
स्वाहा। ऊँ कौमार्यै
स्वाहा। ऊँ शिवायै
स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै
स्वाहा। ऊँ ह्लीं
बगलामुखि हं फट्
स्वाहा।
ऊँ क्लीं
क्लीं ह्लीं बगलामुखि
सर्वदुष्टानां वाचं मुखं
पदं स्तम्भय जिह्वां
कीलय कीलय बुद्धिं
विनाशय विनाशय क्लीं
क्लीं ह्लीं स्वाहां
ऊँ बगलामुखि
स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे
स्वाहा। ऊँ त्रिपुर
भैरवि स्वाहा। ऊँ
विजयायै स्वाहा। ऊँ
जयायै स्वाहा। ऊँ
शारदायै स्वाहा। ऊँ
सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै
स्वाहा। ऊँ विन्ध्य
वासिन्यै स्वाहा। ऊँ त्रिपुर
सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गायै
स्वाहा। ऊँ भवान्यै
स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै
स्वाहा। ऊँ महा मायायै स्वाहा।
ऊँ कमल लोचनायै
स्वाहा। ऊँ तारायै
स्वाहा। ऊँ योगिन्यै
स्वाहा। ऊँ कौमार्यै
स्वाहा। ऊँ शिवायै
स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै
स्वाहा। ऊँ ह्लीं
बगलामुखि हं फट्
स्वाहा।
ऊँ ह्लीं
शिव तत्व व्यापिनि
बगलामुखि स्वाहा। ऊँ ह्लीं
माया तत्व-व्यापिनि
बगलामुखि हृदयाय स्वाहा।
ऊँ ह्लीं विद्या
तत्व व्यापिनि बगलामुखि
शिसे स्वाहा। ऊँ
ह्लीं बगलामुखि हुं
फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः शिरो रक्षतु
बगलामुखि रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः भालं रक्षतु
पीताम्बरे रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः नेत्रे रक्षतु
महा भैरवि रक्ष
रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः कर्णों रक्षतु
विजये रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः नासौ रक्षतु
जये रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः वदनं रक्षतु
शारदे रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः स्कनधौ रक्षतु
विन्घ्यं रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः बाहु रक्षतु
त्रिपुर सुन्दरि रक्ष
रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः करौ रक्षतु
दुर्गे रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः उदरं रक्षतु
भुवनेश्वरि रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः नाभिं रक्षतु
महामाये रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः कटिं रक्षतु
कमल लोचने रक्ष
रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः उरौ रक्षतु
तारे रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः संर्वाङगे रक्षतु
महातारे रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः अग्रे रक्षतु
येागिनि रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः पृष्ठे रक्षतु
कौमारि रक्ष रक्ष
स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः दक्षिण पार्श्वे
रक्षतु शिवे रक्ष
रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं
ह्लू ह्लै ह्लौं
ह्लः वाम पार्श्वे
रक्षतु इन्द्राणि रक्ष
रक्ष स्वाहा।
ऊँ गां
गीं गूं गैं गौं गः
गणपतये सर्व जन मुख स्तम्भनाय
आगच्डछ आगच्छ मम
विध्नान् नाशय नाशय
दुष्टं खादय खादय
दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकाल मृत्युं
हन हन भो गणाधिपते ऊँ ह्लीं
वश्यं कुरू कुरू
ऊँ ह्लीं बगलामुखि
हुं फट् स्वाहा।
हवन - जहाँ-जहाँ
स्वाहा है आहुतियां देते रहें।
एक हजार
पाठ के उपरान्त
यह पाठ स्वतः
चलने लगता है,
भगवती के यंत्र
की पंचोपचार पूजन
कर, रीढ़ की हड्डी सीधी
कर बैठे व अपनी त्रिकुटि
के मध्य में
ध्यान रखते हुए
पाठ करें कैसा
भी आप पर तांत्रिक प्रयोग किया
गया हो उसको यह ध्वस्त
कर देता है व अभिचारिक
व्यक्ति को दंड भी मिल
जाता है। इस पाठ को
आप अपनी दैनिक
पूजा में यदि स्थान देते
हैं तो भगवती
आप की पूरी सुरक्षा ही नहीं करती वरन्
बहुत कुछ दे देती है,
जिसे स्वयं आप
अनुभव करेंगे, धर्मता
पूर्वक क्रमशः आगे
बढ़ते रहें, भगवती
आप की प्रत्येक
मनोकामनाओं को पूर्ण
करेगी। एक वर्ष में ही
आप शक्ति सम्पन्न
हो जाएगें। ऐसा
अनुभवी साधकों ने
स्वीकारा है।
(श्री बगलामुखि कल्पै वीर-तन्त्रे बगला-सिद्ध
प्रयोग)
डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह