Monday 5 September 2016

माँ बगलामुखि मूल मंत्र द्वारा सम्पुटित माता धूमावती साधना की तीव्रता

मैं बड़ा परेशान रहता था, जमीन तो थी परन्तु पैसा नहीं था कि मकान बनवा सकू, कभी सोचता एक कमरा ही बन जाए परन्तु सोचने से कुछ नहीं होता। कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। लोग मेरी जमीन हड़पने का प्रयास भी करने लगे। कोई कहता यहाँ मकान बन ही नहीं सकता, कोर्ट से स्टे ले लूंगा, कोई कहता यहाँ पर नीम का पेड़ है जैसे ही कटेगा अन्दर करवा दूंगा, पैसा भी मेरे पास नहीं कैसे सबका सामना करूगा। मेरे प्लाट के मध्य में एक नीम का पेड़ लगा था। एक दिन उस पेड़ के नीचे खड़े होकर उससे उपरोक्त बाते करने लगा, उसने सुना या नहीं, यह तो मुझे ज्ञात नहीं, परन्तु दूसरे ही दिन पेड़ की सारी पत्तियाँ गिरने लगी, मानो पतझड़ आ गया, अब वहाँ वृक्ष की मोटी-मोटी शाखाएं ही शेष रह गई। सोचने लगा कुछ तो है, पेड़ यो ही नहीं सूख गया, मन की स्थित शान्त नहीं थी, एक हफ्ते बाद मन में दृढ़ विश्वास किया कि अब हमें माता बगलामुखि के मूल मंत्र द्वारा सम्पुटित माता घूमावती मूल मंत्र का अनुष्ठान करना है, अतः एक लाख जप का संकल्प कर, जप प्रारम्भ कर निर्विघ्न पहला अनुष्ठान पूर्ण किया पुनः दूसरा एक लाख जप का अनुष्ठान करने से पूर्व एक बार घूवती गायत्री का अनुष्ठान कर लें, अतः घूमावती गायत्री का एक लाख जप का संकल्प कर जप समाप्त किया, तभी ज्ञात हुआ घूमावती जप 80 हजार पर एक सर्किल होता है अतः मैने साठ हजार जप और कर थकावट महसूस कर रहा था, तभी एक सज्जन मेरे पीछे पड़ गये कि मकान मैं बनवा दूंगा, कितना पैसा तुम्हारे पास है। मैने कहा मात्र एक लाख ही मेरे पास है - कहा बहुत है। दूसरे ही दिन मकान की नींव खुदने लगी। मैं चिन्तित था जग हँसाई होगी। एक लाख में तो एक कायदे का कमरा भी नहीं बन सकता, कार्य होता रहा। दवाखाने में प्रतिदिन कभी 4 हजार कभी 5 हजार मिलता रहा, अन्ततः तीन माह में तीन बड़े कमरे, किचन, बाथरूम, लैट्रीन, जीना व पूजाघर सभी बन गया। मैं बड़ा अचम्भित था, यह सब हो कैसे गया और आज तक भी मुझे विश्वास नहीं हो रहा, यह सब कैसे हो गया। किसी भी विरोधी ने कोई विरोध करना तो दूर रहा, वहाँ आया तक नहीं। माँ की अजब कृपा हुई मैं भाव विभोर हूँ। आप को भी माँ की कृपा प्राप्त हो अतः जैसे मैने क्रिया की आप के सामने रख रहा हूँ, कृपया योग्य गुरू के मार्ग दर्शन से आगे बढ़े।
मन्त्र जप समय ध्यान बहुत महत्वपूर्ण होता है, बिना ध्यान में मंत्र जप निष्फल हो जाता है। मात्रा घूमावती का ध्यान है-कौवे की ध्वजा वाले रथ पर बैठी है, विधवाओं जैसे वेश है। खुले रूखे बाल है, बूढ़ी औरतों की तरह लटके स्तन है, दाएं हाथ में खाली सूप है व बाया हाथ वरद मुद्रा में उठा हुआ है। कल्पना करें - हमारे दुःख, दरिद्रता-कलह-क्लेश व बुरे प्रारब्ध को अपने साथ ले जा रही है और जाते समय अपने वरद हस्त से हमें आशीर्वाद दे रही है।
आवाह्न - कौवे के पंख पर सिन्दुर में घी लगा कर त्रिशुल की आकृति बनाकर, उसी पर इनका आवाह्न करते हैं जप के अन्त में जय माँ के बाए हाथ में समर्पित कर विसर्जन कर दें।
विसर्जन- हे माता पुनः आगमन हेतु अब आप प्रस्थान करें, जप वाद जब कपूर जलाए तब कपूर बुझने से पूर्व इनका विसर्जन कर देते हैं।
बगला मूलमंत्र संपुटित घूमावती साधना करने के पूर्व मेरे एक परिचित हैं, वह माँ घूमावती के अच्छे साधक है, उनसे विचार विमर्श किया, उन्होंने हमें बतलाया बगला और घूमावती में आपस में शत्रुता है, यदि तुम इनके साथ घूमावती का जप करोगे तो बगला तुरन्त तुम्हारी दुश्मन बन जायेगी। मैने इनकी बात सुन तो ली, परन्तु विरोध नहीं किया। मंथन किया जब बगला कल्प में ‘‘ ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं घूमावती यथेशान्याम्’’ व ‘‘ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं  ह्रः घूमावती देव्यै नमः कटयाम्’’ इन दो स्थानों पर घूमावती को पुकारा गया है, तो इन दोनों में शत्रुता होने का प्रश्न ही नहीं उठता अतः संकल्प लिया -

मम पुरातन अनिष्ठ परम बन्धन विनाशार्थे च भगवति बगलामुखी व भगवती घूमावती प्रसन्नार्थे, भगवती बगलामुखी मूल मंत्र सम्पुटे, भगवती घूमावती मूल मंत्र एक लक्ष जपे अहं कुर्वे

संम्पुटित मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखि सर्व दुटानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ऊँ स्वाहा (1 माला)
धूं धूं धूमावती ठः ठः। (1 माला)
ऊँ  ह्रीं बगलामुखि सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा (1 माला)

यह एक मंत्र हुआ इसी का जप किया गया।

मंदिर में हवन

परिणाम - अति उत्तम व विस्मयकारी आया।

धूमावती गायत्री - घूमावत्यै च विद्यहे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो घूमा प्रचोदयात्।

विनियोग - अस्य श्री घूमावती गायत्री मन्त्रस्य श्री घूमावती देवता वर प्रसाद सिद्धी द्वारा मम सर्वमनोभिलाष्टि कार्य सिद्धै जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास -

पिप्पलाद ऋषये नमः शिरसि। 
निवृच्छन्दसे नमः मुखे। 
घूमावती देवतायै नमः हृदि। 

कर न्यास -

धूमावत्यै अनुष्ठाभ्यादि नमः। 
विद्यहे तर्जनीभ्यां नमः। 
संहारिण्यै मध्यमाभ्यां नमः। 
धीमहि अनामिकाभ्यां नमः। 
तन्नो घूमा कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 
प्रचोदयात् कर तल कर पृष्ठाभ्यां नमः।

षडंग न्यास -

धूमावत्यै च ह्दयाय नमः। 
विद्यहे शिरसे स्वाहा। 
संहारिण्यै च शिखायै वषट्। 
धीमहि कवचाय हुं। 
तन्नो घूमा नेत्र त्रयाय वौष्ट्। 
प्रचोदयात् अस्त्राय फट्।

नोट - दीर्घ काल तक, निरन्तर प्रतिदिन सत्कार पूर्वक अभ्यास करने से साधना की भूमि दृढ़ होती है और तब कहीं उसका फल होता है। सतर्कता से इन्द्रिय-निग्रह-पूर्वक साधना-पथ पर अग्रसर होते हुए सफलता की प्राप्ति होने तक प्रयत्न पूर्वक रहना पड़ता है। पुरश्चरण पूर्ण होने तथा माँ की कृपा प्राप्त होने पर भी साधक को अपनी साधना की साध्य से जोड़ने वाली परम्परा को कभी शिथिल नहीं होने देना चाहिए-यही ‘‘ऊर्ध्वाम्नाय’’ की उच्च कोटि की साधना का गूढ़ रहस्य है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह

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