Saturday 30 December 2017

माँ बगलामुखी की कृपा का आंकलन कैसे करें

भगवती पीताम्बरा अपने सभी साधकों पर कृपा अवश्य करती है, ऐसा मेरा बारम्बार का अनुभव रहा है कुछ साधकों को प्रत्यक्ष कृपा मिलती है तो कुछ को घटना चक्र के अनुसार माँ की कृपा का अनुभव होता है दृष्टांत देखें -
1. लखनऊ में राधिका सिंह जो मेरी शिष्या हैं ने हमें बतलाया इनकी बेटी सेवारत है जो दूसरी बिरादरी के लड़के को चाहने लगी व उसी से विवाह करने की ज़िद ठान ली। मैंने भी मन बना लिया कि इसकी कोर्ट मेरिज कर दूंगी, परन्तु लड़का कुछ करता नहीं था। अतः मेरा मन पता नहीं क्यों इस विवाह के लिए इच्छुक नहीं हो रहा था, तभी नेट के माध्यम से मैं तपेश्वरी दयाल सिंह के सम्पर्क के आकर उनसे दीक्षा ली। गुरू जी द्वारा बताये जप व सतनाम का एक हजार पाठ कर गुरू जी से हवन करवाया, हवन होने के दो दिन पश्चात् घटना चक्र बहुत तेजी से बदलने लगे, मैं भी अचम्भित थी कि यह हो क्या रहा है। हमें विश्वास ही नहीं हो रहा था, चूंकि मैंने अपनी बेटी को बहुत समझाया, ऊँच-नींच की खाई की दुहाई दी, परन्तु वह उस लड़के से ही विवाह करने की ज़िद पर दृढ़ता से खड़ी थी। परन्तु ऐसा क्या हो गया मैरी बेटी ने उस लड़के से विवाह करने से ही मना कर दिया। हुआ यह कि लड़के के दो अन्य लड़कियों से अनैतिक सम्बन्ध चल रहे थे, उन दो लड़कियों में से एक कन्या ने सप्रमाण उस लड़के की पोल मेरी बेटी को दिखा दिया। सही समय पर माँ ने हम पर कृपा की और मेरी बेटी को अन्धकार में जाने से बचा दिया।
मैंने बेटी के लिए रिश्ता ढूंढा विवाह की दो रश्में भी पूर्ण हो गयी, फिर लड़के वालों ने विवाह से मना कर दिया, मेरे तो होश ही उड़ गये, गुरू जी ने समझाया परेशान न हो माँ सब ठीक करेगी, गुरू जी ने एक संकल्पित हवन का आयोजन किया, कुछ ही दिन बाद लड़के वालों ने कहला भेजा कि आप लोग तिलक लेकर कब आ रहें हैं, इस प्रकार पुनः माँ ने हम पर अपनी कृपा दृष्टि की जिससे मेरी बेटी का विवाह निर्विघ्न पूर्ण हुआ। मैं देखती हूं जब से हम गुरू जी के सम्पर्क में आयें हैं। गुरू जी फोन द्वारा ही मेरी समस्याओं का समाधान तुरन्त बता देते हैं व माँ की कृपा का अनुभव भी करा देते हैं। मेरी हार्दिक कामना है ऐसे गुरू जी सभी सच्चे हृदय वाले साधकों को मिलें।

2. मेरठ से मेरी शिष्या उमा जोशी जिसकी हाथों व पैरों में रात में काफी भयानक खुजली होती थी। पिछले चार वर्षों से परेशानी थी अनेकों दवा की तांत्रिकों के अभिमन्त्रित तेलों का प्रयोग किया कुछ लाभ न हुआ। जब से मैं भगवती बगलामुखी की शरण में आयी यह सारी समस्याओं का स्वतः ही समाधान हो गया। जब कभी खुजली होती है अपनी गदेलियों को मूल मंत्र से अभिमंत्रित कर वहां हाथ फैर देती हूँ खुजली तुरन्त समाप्त हो जाती है, है न यह माँ की कृपा ।

3. अलीगढ़ से मेरे शिष्य सुरेश चन्द्र ने भी माँ की कृपा का अनुभव इस प्रकार प्राप्त किया - मेरे बेटे का विवाह तय होकर विवाह की दो रश्में भी पूर्ण हो गयी परन्तु कहीं से पैसों का प्रबन्ध नहीं हो पा रहा था, मैंने उन्हें आश्वासन दिया, यदि माँ पर भरोसा किया है तो वह कुछ न कुछ प्रबन्ध अवश्य करेगी और हुआ भी ऐसा ही, विवाह से एक सप्ताह पूर्व ही इन्हें विवाह सम्पन्न कराने से अधिक पैसों का प्रबन्ध हो गया, इन्होंने माना माँ कृपा अवश्य करती है। हुआ यों कि इन्होंने ने दो वर्ष पूर्व ब्रेड कारखाना लगाया था। कुछ मशीनें व बड़ा ओवन भी लिया था, परन्तु कुछ कारणोंवश कारखाना नहीं चल सका। अब इन्होंने जिससे मशीनें वगैरह खरीदे थे अपनी समस्या बताते हुए उसे अनुरोध किया जो भी उचित पैसा बनता हो हमें देकर मशीनें ले लीजिये, मशीन बनाने वाली पार्टी ने आकर देखा वह उतने ही पैसे इनको दे दिये जितने में इन्होंने मशीनें खरीदें थी, लाखों रूपये इनके हाथों में थे, पुत्र का विवाह निर्विघ्न सम्पन्न हुआ।

4. लखनऊ से मेरे शिष्य मयंक सिंह को माँ की कृपा का चमत्कारी अनुभव प्राप्त हुआ, शतनाम एक हजार पाठ कर इसका हवन सम्पन्न किया। अमेरिका जाने का बीजा माँ ने इतनी सरलता से दे दिया कि इन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था। अमेरिका का बीजा इस समय बड़ी ही कठिनाई से मिल रहा है। इन्टरव्यु में उत्तीर्ण होने के कम ही अवसर होते हैं। इन्टरव्यु में जब इसका नम्बर आया तो इन्होंने माँ का स्मरण कर उनसे प्रार्थना की, माँ आप ही सम्भालें, इन्टरव्यु भी चमत्कारी ही हुआ, दो प्रश्न पूछे और ओ0के0 कर दिया। मेरे शिष्य मयंक सिंह अब अमेरिका रिटर्न होकर माँ के चरणों की सेवा में अपने आप को पूर्ण समर्पित कर दिया है। यह एक विद्ववान वैज्ञानिक हैं व समय निकाल कर माँ बगलामुखी की स्त्रुति परक एक गीत लिखकर हमें दिया है जो शीघ्र ही आप को हवन में सुनने को मिलेगा।




गुप्त संकेत - 

नित जाप करे जो पाँच हजार,
विजय पावें बहु बारम्बार,
बगलामुखी की जय जय कार।

नोट:- मेरे सारे शिष्य इस गुप्त संकेत से लाभ प्राप्त कर रहें है, आप भी प्राप्त करें।
डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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Tuesday 28 November 2017

माँ बगलामुखी की कृपा - साधकों पर कैसे होती है

नासिक से पुरूषोत्तम व सुदर्शना काफी परेशान थे, अलौकिक शक्तियों का काफी कोप था, आर्थिक संकट के कारण इन श्रीमान जी के मस्तिष्क में आत्महत्या करने का विचार बार-बार कौंध रहा था, नेट पर हमारे लेखों को इन्होंने पढ़ा, हिम्मत जुटा कर इन्होंने फोन पर अपनी सारी व्यथा से हमें परिचित कराया, मैंने इन्हें हिम्मत दी और बतलाया कि हमारी दो शर्तों का पालन कर सको तो तुमको इस ब्रम्हाण्ड की सर्वोच्च सत्ता के निकट लाने का प्रयास कर सकता हूँ, जिसमें तुम्हारी सम्पूर्ण समस्याओं का अन्त हो जाएगा और जीवन निष्कंटक हो जाएगा। पहली शर्त है, इस विद्या का दुरूपयोग नहीं करोगे और दूसरी है कि अनुष्ठान के समय पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करोगे। फोन के माध्यम से इनको अपनी मंत्र शक्ति का कुछ अंश देकर दीक्षित कर, भगवति के बीज मंत्र का एक लाख जप का अनुष्ठान कराया, जीवन में कुछ सुधार हुआ, पुरूषोत्तम की पत्नी सुलोचना ने भी स्वप्रेरित होकर हमसे मंत्र जाप की अनुमति ली, अतः उसे भी अपने मंत्र शक्ति का कुछ अंश देकर बीज मंत्र एक लाख जप का अनुष्ठान कराया, जो क्रमैव चल रहा है। तभी इनके सम्मुख घटनाएं घटने लगी व प्रत्यक्ष दिखने लगी वह घटनाक्रम इन्हीं के शब्दों में आप पढ़े-

गुरू जी आपने जब से मुझे माँ बगलामुखी का अनुष्ठान करवाया है तब से न जाने मेरे परिवार और मेरे साथ क्या अद्भुत और अनन्य अनुभव हो रहा है यह सविस्तार बता रहा हूँ। मेरे जीवन को सही में आकार प्राप्त हुआ तो सिर्फ मेरे गुरूवर डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह जी की कृपा से। गुरू जी ने मुझे बहुत बार माँ बगलामुखी के अलग-अलग अनुष्ठान कराए परन्तु जैसा श्री गुरू जी चाहते थे, वैसा रिजल्ट नहीं मिल रहा था मेरी धन सम्बन्धित समस्या बहुत दिनों से चली आ रही है, गुरू जी ने हमें बतलाया भगवती के मंदार मंत्र का अनुष्ठान करना अनिवार्य हो गया है। अतः गुरू निर्देशानुसार संकल्प कर जप प्रारम्भ कर दिया अभी सात हजार जप ही हुए थे कि रात्रि 2.30 बजे मेरी पत्नी को एक लगभग तीन फुट ऊँची फूलदार हरी साड़ी पहने एक औरत दिखी जो मेरी चार साल की बेटी को उठा रही थी, मेरी पत्नी सुदर्शना ने चिल्लाकर उस औरत से कहा, यह क्या कर रही हो तो वह वहाँ से हट कर मेरे पैरों के पास खड़ी हो गई, पत्नी बहुत डर गई थी। रात भर जागती रही यह प्रत्यक्ष घटना उसके आंखों के सामने हुई, कोई स्वप्न की बात नहीं है। रात को उसने हमें जगाने की बहुत कोशिश की, परन्तु हम बहुत गहरी नींद मे थे, सुबह उसने हमें बताया तो मुझे मजाक लगा और बाहर निकल गया, फिर उसी दिन दोपहर में मेरी पत्नी बेटी को साथ लेकर सुलाने लगी तो वही हरी साड़ी वाली औरत जिसका सिर (चेहरा) साड़ी से ढका हुआ था, अतः उसका चेहरा नजर नहीं आया, यह मेरी बेटी को दिखाई दी, मुझे पत्नी ने फोन द्वारा यह घटना बताई परन्तु मैं काम पर था, पैसे की फ्रिक में मैंने ध्यान नहीं दिया, शाम को इसी बात पर पत्नी से हमारा झगड़ा हुआ, मैं गुरू जी को बार-बार परेशान नहीं करना चाहता था, क्यों कि गुरू जी मेरा आखिरी सहारा है फिर उस दिन रात को हमें नींद नहीं आई, मैंने पत्नी व बेटी को आश्वस्त कर सुला दिया और मैं उस औरत के आने की प्रतीक्षा करने लगा कि वह आए तो मैं उसकी पिटाई कंरू, लगभग तीन बजे मैं सो गया मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया, सुबह आठ बजे मेरी आँख खुली, मंदार मंत्र पूर्ण कर गुरू अनुमति से हवन किया।

एक प्राचीन शिव मंदिर में हवन का दृश्य 



घर से जाते समय मैंने पत्नी व बेटी को समझाया जो काफी डरी हुई थीं। मेरी पत्नी भी गुरू जी की कृपा से माँ बगलामुखी की साधक है। इसी बीच एक दिन दोपहर में उस औरत ने पत्नी को हाल से घसीट कर रसोई की ओर ले गई, मेरे घर में डर का माहौल बना हुआ है, पत्नी को वह औरत बार-बार दिखने लगी, एक दिन उसने मेरी बेटी का गला दबाया और पत्नी ने गुरू जी को फोन लगाकर बतलाया तभी श्री गुरू जी ने बताया आप लोगों पर माँ की कृपा हो गई है। यही गुप्त अलौकिक शक्ति तुम्हारे घन सम्बन्धी कार्य सम्पन्न नहीं होने दे रही है, इसको नष्ट करने के लिए भगवती बगलामुखी के प्रत्यंगिरा का दस हजार संकल्प लेकर पाठ प्रारम्भ करो अतः हमने गुरू निर्देशानुसार पाठ शुरू कर दिया और अभी पाठ चल रहा है, पाठ करते बहुत विघ्न आ रहे हैं, पाठों की संख्या सौ से ऊपर नहीं हो पा रही है, गुरू जी को बताया बहुत कम पाठ हो पा रहा है, गुरू जी ने हमें बतलाया बहुत अच्छा पाठ हो रहा है, इस बात का ध्यान रखना छोड़ना नहीं और सम्पूर्ण पाठ का जप करना। हमारा मन केवल मंत्र ही करने का हो रहा था, लेकिन जब हमने गुरू जी के आदेश से मां को कपूर देकर माँ से पूछा इतना बड़ा मंत्र और उसके नीचे जो पद्य है उसकी क्या जरूरत है, तब जाप बढ़ने के बाद एक दिन अंतर चेतना में माँ ने ज्ञात कराया, अपने आस-पास नजर डाल कर देख - मैंने अनुभव किया, मेरे शत्रु संतापय, मेरा मीठी जबान वाला दोस्त मुझे देख कर संताप करता है, मेरा विरोध करने वालों पर मोहय-मोहय कहा गया है, मेरे शत्रुओं पर स्तम्भय-स्तम्भ्य कहा गया है। अब हमें पता चल गया, यह मंत्र तो मेरे लिए ही है, मेरी सारी समस्याओं का सम्पूर्ण हल तो इसी मंत्र में लिखा है, मेरे अन्दर ऐसी भावना आते ही मैने अपने अन्दर एक अद्भुद ऊर्जा के संचार का अनुभव किया और मैं पूरे होशों-हवास के साथ पाठ करता रहा, परन्तु मेरे आंखों के ऊपर बहुत दर्द होता है, पत्नी के एक कान व दांत में असहनीय दर्द होता है, बच्ची बहुत चिड़चिड़ापन करती है, मेरी मम्मी के बाए पैर में असहनीय दर्द होता है। श्री गुरू जी को अपनी यह पीड़ा बतलाई उन्होंने निर्देश दिया जप के समय सामने एक लोटे या गिलास में जल रख दिया करो और इसी जल का प्रयोग करो, तब से हम लोग इस जल को पीने लगे, बच्ची को उस जल से नहलाया, उसका चिड़चिड़ापन लगभग उसी दिन से गायब हो गया, मुझे भी उस पानी के स्नान से उसी क्षण शरीर के भारीपन से राहत मिली, परन्तु मेरी पत्नी का दांत दुखता रहा, वापस श्री गुरू जी से पूछा तो उन्होंने बतलाया, अब ऐसा करो जब भी दर्द करें अपनी उंगलियों पर मूलमंत्र तीन बार पढ़ कर फूंक कर दर्द वाले स्थान पर फेर दिया करो, ऐसा ही मेरी पत्नी ने किया, उसका दाँत दर्द उसी क्षण बन्द हो गया, श्री गुरू जी ने तो हमंे वह बता दिया जैसे जादू हो। अब जब भी पत्नी के दांतों में दर्द उठता है, वह इसी जादू का प्रयोग करती है और उसे तुरन्त राहत मिल जाती है, उधर वह हरी साड़ी वाली मोटी ताजी औरत सूख कर एकदम पतली हो गई है, और तीन दिन बाद उसका घर में दिखना भी बन्द हो गया है। हम और सुदर्शना बातें कर रहे थे बहुत दिन हो गए हैं, श्री गुरू जी से बाते नहीं हुई है - तभी श्री गुरू जी का फोन आया, हम पति-पत्नी दोनों ने उनसे बातें की। धन्य हैं माँ बगलामुखी जिन्होंने मुझे श्री गुरू जी को दिया और धन्य हैं मेरे श्री गुरूमूर्ति जिन्होंने मुझे माँ बगलामुखी की दीक्षा देकर कृतकृत्य किया, मैं श्री गुरू जी का ऋणी हूं, क्यों कि आज तक हम सिर्फ और सिर्फ फोन पर मिलें हैं, इसमें मुझे किसी प्रकार का खर्चा नहीं आया, मेरे श्री गुरूजी सम्पूर्णतया निस्वार्थ ही हैं और मैं पति-पत्नी अपने को भाग्यशाली समझते हैं कि माँ बगलामुखी के चरणों में आने का सुनहरा अवसर मिला। अब मुझे जहाँ भी टाइम मिलता है श्री गुरू निर्देशानुसार माँ के मूलमंत्र का मानसिक जाप करता हूँ और माँ की शरण में रहता हूँ।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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Sunday 29 October 2017

शताक्षरी मंत्र का प्रयोग - यह शत्रु नाशक है

हमारा एक शिष्य जो अपने शत्रुओं से भयंकर रूप से पीड़ित था, शत्रु अति बलशाली व पैसों वाला था, उसके दस-दस ट्रक सड़कों पर दौड़ते थे और हमारा शिष्य इनके आगे कहीं टिक ही नहीं सकता तथा उसकी पत्नी से शत्रु के गुप्त सम्बन्ध थे, बस यहीं से शत्रुता जो प्रारम्भ हुई आज तक इनकी बरबादी का कारण बनी रही। शिष्य की सारी व्यथा सुनने के उपरान्त इन्हें दिशा-निर्देश दिया बगला शताक्षरी मंत्र के दस हजार जप का संकल्प लें, परन्तु दस हजार जप के उपरान्त कुछ नहीं हुआ। मेरा शिष्य काफी हताशा की स्थिति में आ गया था, मैने उसे ढाढस बंधाया व वास्तिविकता से परिचय कराया, ये कलियुग है, इसमें मंत्र का चार गुना जप करने के उपरान्त ही वह फलीभूत होता है। अतः लगे रहो सफलता मिल कर रहेगी, यदि सफल नहीं होते तो यह अनुष्ठान तुम्हारे लिए मैं ही कर दूंगा। मेरे शिष्य के अन्दर अजब आशा का संचार हुआ। अन्तोगत्वा उसने चारों अनुष्ठान निर्विध्न पूर्ण कर लिया। एक माह व्यतीत हो गए कोई परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था, उसके निराश मन को उत्साहित करते हुए मैने उसे माँ को कपूर देने को कहा। आज रात एक बड़ा कपूर जला कर माँ का आवाह्न करना है - हे माँ! आपको मैं कपूर की ज्योति देना चाहता हूँ, आप आए और इसे ग्रहण करें, जैसे ही कपूर बुझने वाला हो थोड़ा कपूर उस पर रखते रहें और अपनी सारी व्यथा उनसे कहते रहे, कल्पना करें माँ सामने ही है, जैसे अपनी व्यथा सुनाते हुए मेरे सामने रोए थे, वैसे ही माँ को अपनी सारी व्यथा सुना दो, आंसू स्वतः ही अविरल गति से बहने लगेगे, इससे माँ तुरन्त ही तुम्हारे कार्य कासम्पादन करने के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेगी, भक्त की छटपटाहट माँ को बैचेन कर देती है। उसने मेरे दिशा-निर्देश का सटीक पालन किय। दूसरे ही दिन से समाचार मिलने प्रारम्भ हो गए, उसकी ट्रकों का भयंकर एक्सीडेंट होना प्रारम्भ हो गया, अब दस की दसों ट्रकें बिक चुकी हैं। शत्रु की पत्नी पागल हो गई, उसके पुत्रों से ऐसी अनबन हुई कि इन्हें छोड़ कर अलग रहने लगे, माँ का क्रोध यही नहीं रूका, शत्रु को फालिज का अटैक पड़ा बोलने व चलने में लाचार हो गए तब जाकर मेरे शिष्य की पत्नी इनके चंगुल से छूट पाई।

क्रिया इस प्रकार की गई -

शताक्षरी मंत्र -

‘‘|| ह्लीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ग्लौं ह्लीं वगलामुखि स्फुर स्फुर सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय प्रस्फुर प्रस्फुर 
विकटांगि घोररुपि जिह्वां कीलय महाभ्मरि बुद्धिं नाशय विराण्मयि सर्व-प्रज्ञा-मयी प्रज्ञां नाशय, उन्मादं कुरु कुरु, मनो-पहारिणि ह्लीं ग्लौं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं ह्लीं स्वाहा ||

विनियोग -

ऊँ अस्य श्री बगला-मुखि शताक्षरी-महा-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, जगत्-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला मुखी देवता, ह्लीं शक्तिः, ऐं कीलकं, जगत-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला-मुखी-देवताम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास - 

श्री ब्रह्मा-ऋषये नमः शिरसे,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे, 
जगत्-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला मुखी-देवतायै नमः हृदि, 
हृीं ब्रीजाय नमः लिंगे, 
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः, 
ऐं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे। 
जगत् स्तम्भन-कारिणी श्री बगलामुखी- देवताम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ।

कर न्यास -

ऊँ ह्राँ अनुष्ठाभ्यां नमः। 
ऊँ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा। 
ऊँ ह्रूं मध्यमाभ्यां वषट्। 
ऊँ ह्रैं अनामिकाभ्यां हुं। 
ऊँ ह्रौं कनिष्ठाभ्यां वौषट्। 
ऊँ ह्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

अंग न्यास:- 

ऊँ ह्रां हदयाय नमः। 
ऊँ ह्रीं शिरस स्वाहा। 
ऊँ ह्रूं शिखाये वषट्। 
ऊँ ह्रैं कवचाय हुं। 
ऊँ ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। 
ऊँ ह्रः अस्त्राय फट्।

ध्यान

पीताम्बर -धरां सौम्यां, पीत-भूषण-भूषिताम्।
स्वर्ण-सिहासनस्थां च, मूले कल्प-तरोरधः।।
वैरि-जिह्वा-भेदनार्थ, छुरिकां विभ्रतीं शिवाम्।
पान-पात्रं गदां पाशं, धारयन्तीं भजाम्यहम्।।

नलखेड़ा बगलामुखी मंदिर हवन वीडियो




तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434


नोट: 

1. सांकेतिक शब्द

ह्रीं - सतब्ध माया, स्तम्भ माया, स्थिर-माया।
ऐं - वाग्भव।
ह्रीं - भुवनेशी, शक्ति बींज
क्लीं - काम-राज।
श्रीं - श्री-बींज
ग्लौ - शक्ति-वाराह।

2. पच्चाङग-पुरश्चरण करने से ही मंत्र सिद्ध होता है। तब अभीष्ठ कामना की पूर्ति के लिए उसका प्रयोग करते हैं। जपान्त में दसांश पद्धति से हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन सम्पन्न करते हैं।
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Saturday 23 September 2017

माँ बगला की कृपा और दुष्टता का शमन

मेरे एक गुरुभाई हैं ओंकार जी | मैं उनसे कहता था की आप भी अपना कोई अनुभव शेयर करिए | बचपन से ही माँ की कृपा दया की गाथाएं तो बहुत हैं, पर हाल में हुई एक घटना, प्रसन्नता और भक्ति पूर्वक नवरात्री के पावन अवसर पर इस प्रकार भेजा है  -

उनकी पत्नी सुलेखा ( बदला हुआ नाम ) की पुणे के एक बैंक में पोस्टिंग हुई | पर उस ब्रांच का मेनेजर दुष्ट था और उन्हें अपने ब्रांच में नहीं रहने देना चाहता था | और वह तरह तरह से अकारण ही परेशानी खड़े करने लगा जैसे की उनके द्वारा किया गया काम उनके नाम पे नहीं जाने देता था और अपने किसी चाटुकार के नाम पे कर देता था ,आदि आदि | गलत तरीके से बात करना और सबके सामने उनकी बेइज्जती करने  में उसे बहुत तृप्ति मिलती थी | नयी एम्प्लोयी होने के कारण उन्हें सीखने की जरूरत थी, जिसके वो सख्त खिलाफ था, जिसके लिए वो उनके हर काम में अडंगा डालता था | सुलेखा जी का हर दिन ऑफिस से घर आते समय रास्ता रोते हुए कटता था | ओंकार जी, को शुरू में लगा की शायद स्थिति थोड़े दिन बाद सुधर जायेगी, परन्तु लगातार १ महीने तक ऐसा ही चलता रहा | और तो और उन्हें मेनेजर ने बैठने की जगह तक नहीं दी, और सिस्टम भी नहीं मिलने दिया जिससे की उनका सारा काम रुक गया | मेनेजर की सीनियर से सांठ गाँठ होने से वह उल्टा उनकी शिकायत करके उनके भविष्य को अंधकारमय बनाने का भरसक प्रयत्न करने लगा | पर माँ भगवती की भक्त होने के कारण, दुष्ट के आगे ना झुकने का उनका स्वभाव, मेनेजर की आखों में चुभता था, जिससे की उसका रवैया और आक्रामक होता गया| डिपुटी ब्रांच मेनेजर भी उस दुष्ट की सहयोगी थी, और उनसे चपरासी के लेवल का काम कराती थी|

सच्चे साधक का ये स्वभाव  होता है की वो निष्काम भाव से माँ की साधना करे | और वो भरसक प्रयास करता है की, अपनी साधना से  आत्मिक कल्याण के लिए तत्पर रहे | परन्तु जब उस साधक को दुष्ट प्रयोजन से, कोई अत्यंत नुक्सान करने पे उतर आये तो फिर ऐसे भगवती के साधक अंततः माँ से गुहार लगाते हैं| और ये सर्वविदित है माँ बगला फिर अपने भक्त के दुश्मन की लंका लगाने में देर नहीं करती|


खैर, अभी उसकी दुष्टता का अंत नहीं हुआ, मेनेजर अपने सीनियर से बात करके उन्हें अपने ब्रांच से निकलवाने की कोशिश में सफल हो गया | और उन्हें बाहर घुमने वाले सेल्स का काम लगवा कर स्थानान्तरन करवा दिया| परेशानी हद से पार जाते देख ओंकार जी ने मुझे फ़ोन करके बताया| मुझे ये समझते देर नहीं लगी की माँ परीक्षा पे उतर आई है, और वही पार लगाएगी| ओंकार जी का एक अनुष्ठान पहले से ही चल रहा था, लेकिन इस परेशानी के लिए बगला साबर मन्त्र उठाने को बोला| ये साबर मन्त्र अत्यंत अचूक है, और ये ऐसा रिवाल्वर है जिसकी गोली का वार कभी खाली नहीं जाता| हाँ शक्ति को मन्त्र जप की संख्या से जरूर बढाया जा सकता है, जिससे की शीघ्रतिशीघ्र परिणाम संभव हो जाता है | मेरे सलाह से सुलेखा जी ने भी 1000, शतनाम स्तोत्र का जप संकल्प लिया | शाबर के १०,००० के संकल्प का तीसरा ही दिन हुआ था, की मेनेजर की दुष्टता से परेशान एक दुसरे एम्प्लोयी ने उसे सरेआम थप्पर मार सफलता का शिलान्यास कर दिया | जिससे की साधना सही दिशा में जा रही है ऐसा प्रतीत होने लगा| माँ की कार्यशैली माँ ही जाने, संकल्प पूरा होते होते, 2 महीने ही बीते थे की उन्हें वापस अपने पोस्ट के अनुकूल काम दिया गया| नयी एम्प्लोयी होने के कारण इनके साथ कोई नहीं था, पर जब माँ साथ हो तो दुनिया को साथ चलना ही पड़ता है| यही रीत है| समय गुजरने के साथ,  मैनेजमेंट ने ब्रांच मेनेजर की दुष्टता को समझा और वो प्रश्न के घेरे में फसने लगा | इधर डेपुटी ब्रांच मेनेजर की शादी हुए १ साल ही हुए थे की उसके पति को लकवा का अटैक आ गया| सुलेखा जी को अच्छे काम के लिए इतने कम समय में ही अवार्ड भी मिला| माँ का न्याय अभी जारी ही है, और सुलेखा जी की परेशानी का सुखद अंत होने से गदगद ह्रदय से हम सब माँ की वंदना करते हैं| जय माँ बगलामुखी|

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434
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Sunday 27 August 2017

दुष्ट अदृश्य शक्तियाँ व माँ बगलामुखी

मेरे शिष्य हैं राजेन्द्र कुमार सोनी - इन्हें माँ बगलामुखी के बीज मंत्र का एक लाख जप करने का निर्देश दिया गया, जप करने का आज दूसरा ही दिन था - एक शक्ति आती है और कहती है, हमें घर से भगा रहे हो, ठीक है बाहर निकलो तो बताते हैं, राजेन्द्र जी किसी कार्यवश टैम्पो से बाजार जा रहे थे, वह टैम्पों कुछ दूर चलने के बाद पलट गई, सभी सवारियाँ सुरक्षित रही परन्तु इनके हाथ में फैक्चर हो गया। इस प्रकार की कई कठिनाइयों को पार करते हुए अन्तोगत्वा एक लाख बीज मंत्र पूर्ण कर उसका हवन भी कर दिया। तभी चन्द्र ग्रहण पड़ गया, जिसमें बगला शाबर मंत्र का अनुष्ठान पूर्ण कर लिया। राजेन्द्र कुमार जी ने हमें बतलाया कि मेरे विरोधीगण हम पर नाना प्रकार की तांत्रिक कार्यवाही करते रहते हैं, जिसके चलते मेरे तीन पुत्रों की मृत्यु भी हो चुकी है, दो बेटियाँ शादी की उम्र पार कर रही हैं जहाँ भी इनके रिस्ते के लिए जाते हैं, बात बन कर बिगड़ जाती है, मेरा भी बीच-बीच में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, मैं जीवन से हताश हो गया हूँ। तमामों तांत्रिकों के पास भटक चुका हूँ, वह लगातार कोई न कोई तांत्रिक कार्यवाही कर देती है, जिससे पुनः तांत्रिकों की शरण में जाना पड़ जाता है। कुछ ही दिन सब ठीक-ठाक चलता है, फिर पुनः कष्टों का लम्बा सिलसिला चल जाता है, मेरी समझ में नहीं आता क्या करूँ? मेरा धन व स्वास्थ्य दोनों काफी चिन्ताजनक स्थिति में आ गए हैं। मैने इनकी समस्याओं पर चिन्तन किया तो ज्ञात हुआ शत्रुओं द्वारा की गई सारी क्रियाओं को नष्ट करने व भूत-प्रेत पिशाच के निर्वार्थ बगला अष्टोतर शतनाम का एक हजार पाठ कर उसका दशांश हवन कर दिया जाए। अतः इनको इस पाठ करने का दिशा-निर्देश किया। अभी पाँच सौ पाठ ही हुए थे, रात में जब राजेन्द्र जी पाठ कर रहे थे कि इन्होंने देखा कोई सफेद साड़ी पहने महिला अन्दर के कमरे से निकल कर बाहर गई है, पहले सोचा कौन बाहर गया। अतः अपनी पुत्री को आवाज दी, उसने अन्दर से ही कहा क्या बात है पापा, मैंने कहा तुम्हारी मम्मी कहाँ है, उसने बतलाया मेरे बगल में लेटी है। इसी भाँति दूसरे दिन भी कोई महिला सफेद साड़ी पहले घर से निकल कर बाहर गई। पाठ पूरे होने में अभी तीन दिन शेष थे, पूरे घर में अजब तेजाबी बदबू आने लगी। उस बदबू के कारण वह बहुत परेशान रहे, मैंने इन्हें धैर्यता पूर्वक पाठ पूर्ण करने का निर्देश दिया। अन्ततः पाठ अपने लक्ष्य एक हजार पर पहुँच ही गया, साथ ही सारी बदबू भी समाप्त हो गई, इनकी पत्नी ने बतलाया अब घर में हल्कापन महसूस हो रहा है, कोई घुटन सी अब महसूस नहीं हो रही है।

क्रिया जिस प्रकार की गई -

विनियोग - ऊँ अस्य श्री पीताम्बर्य अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत्रस्य, सदा शिव ऋषि 
अनुष्टुप छन्दः श्री पीताम्बरी देवता, श्री पीताम्बरी, प्रीतिये जपे विनियोगः।(जल पृथ्वी पर डाल दे)

ऋष्यादि न्यास - 

श्री सदाशिव ऋषये नमः शिरसि, 
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, 
श्री पीताम्बरा- देवतायै नमः हृदि, 
श्री पीताम्बरा-प्रीयते पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।


श्री बगला अष्टोन्तर शतनाम (रूद्रयामल से उद्त)

ब्रम्हास्त्र रूपिणी देवी 1, माता श्री बगलामुखी 2, चिच्छक्ति ज्ञान रूपा 3, ब्रह्मा नन्द प्रदायिनी 4, महा विद्या 5, महालक्ष्मी 6, श्रीमत् त्रिपुर सुन्दरी 7, भुवनेशी 8, जगन्माता 9, पार्वती 10 सर्व मंगला 11, ललिता 12, भैरवी 13, शान्ता 14, अन्नपूर्णा 15, कुलेश्वरी 16, वाराही 17, छिन्न मस्ता 18, तारा 19, काली 20, सरस्वती 21, जगत्पूजया 22, महामया 23, कामेशी 24, भग मालिनी 25, दक्ष पुत्री 26, शिवां कस्था 27, शिव रूपा 28, शिव प्रिया 29, सर्वसम्पत करी देवी 30, सर्वलोक वंशकरी 31, वेद विद्या 32, महा पूज्या 33, भक्ताद्वेषी 34, भयंकरी 35, स्तम्भरूपा 36, स्तम्भिनी 37, दुष्ट स्तम्भन कारिणी 38, भक्त प्रिया 39, महाभोगा 40, श्री विद्या 41, ललिताम्बिका 42, मैना पुत्री 43, शिवा नन्दा 44, मातग्ड़ी 45, भुवनेश्वरी 46, नरसिंही 47, नरेन्द्रा 48, नृपाराध्या 49, नरोत्तमा 50, नागिनी 51, नागपुत्री 52, नागराजसुता 53, उमा 54, पीताम्बरा 55, पीत पुष्पा 56, पीत वस्त्र प्रिया 57, शुभा 58, पीत गन्ध प्रिया 59, रामा 60, पीत रत्नार्चिता 61, शिवा 62, अर्धचन्द्रधरी देवी 63, गदा मुग्दर धारिणी 64, सावित्री 65, त्रिपदा 66, शुद्धा 67, सद्योराग विवर्धिनी 68, विष्णुरूपा 69, जगन्मोहा  70, ब्रह्म रूपा 71, हरि प्रिया 72, रूद्र रूपा 73, रूद्र शक्तिश्चिन्मयी 74, भक्त वत्सला 75, लोक माता 76, सन्ध्या 78, शिव पूजन तत्परा 79, धनाध्यक्षा 80, धनेशी 81, धर्मदा 82, धनदा  83, धना 84, चण्ड दर्प हरी देवी 85, शुम्भासुर-निवर्हिणी 86, राज राजेश्वरी देवी 87, महिषासुर मर्दिनी 88, मधु-कैटभ हन्त्री 89, रक्तबीज-विनाशिनी 90, धूम्राक्ष दैत्य हन्त्री  91, भण्डासुर विनाशिनी 92, रेणु पुत्री 93, महामाया 94, भ्रामरी 95, भ्रमराम्बिका 96, ज्वाला मुखी 97, भद्रकाली 98, बगला शत्रु नाशिनी 99, इन्द्राणी 100, इन्द्र पूज्या 101, गुह्यमाता 102, गुणेश्वरी 103, ब्रज पाशधरा देवी 104, जिह्वा मुद्गर धारिणी 105, भक्तानन्द करी 106, बगला 107, परमेश्वरी 108

हवन वीडियो



हवन सामग्री:-

1. बूरा 1 किलो
2. काले तिल 1 किलो
3. कमल बीज 200 ग्राम
4. पीली सरसों 200 ग्राम
5. शहद 200 ग्राम
6. देशी घी 150 ग्राम
7. हल्दी पिसी 100 ग्राम
8. गुगल 100 ग्राम
9. सेंधा नमक 10 ग्राम

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434

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Thursday 27 July 2017

बन्धन कैसे खोले

समाज में अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के साधक होते हैं, यदि किसी दुष्ट तांत्रिक ने आप के मंत्रों का कीलन कर दिया, दूसरे शब्दों में उसने आप के मंत्रों को बांध दिया है, तो आप का सारा परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा, परिणाम शून्य ही आयेगा। इसलिए कहा गया है कि अनुष्ठान करते समय अपना मंत्र किसी को नहीं बतलाना चाहिए। फिर भी किसी दुष्ट ने यदि आप के मंत्रों को बांध दिया है तो उस दुष्ट तांत्रिक को उचित दंड देने हेतु मां से प्रार्थना करें। मैं वह विधि सार्वजनिक नहीं कर सकता जिससे उस दुष्ट तांत्रिक को चाहे कितना ही ताकतवर क्यू न हो इस संसार को टाटा करना ही पड़ जाता है। कुछ साधारण प्रयोग हैं, जिसे आप करें बन्धन उत्कीलित हो जाएगा व सफलता मिल जाएगी।

1. मंत्र जप से पूर्व ‘‘ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं’’ का एक हजार बार जप कर लें, यह विपरीत परिस्थितियों को प्रवेश नहीं करने देगा। इस क्रिया से मंत्र को चारों ओर से सुरक्षित कर दिया जाता है, जिससे किसी प्रकार की विपरीत बाधा का प्रभाव न हो सके। इसे बन्धन कहते हैं।

2. भयंकरतम क्रिया को बन्धन मुक्त करने के लिए सर्वप्रथम निम्न मंत्र का एक हजार जप कर लें फिर एक सौ आठ बार जप कर, जल अभिमंत्रित कर उसे पी जाएं, चाहे जैसा भी बन्धन लगाया गया है, वह कट जाता है।

मंत्र - ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ऊँ ऐं ह्रीं श्री ह्रीं  बगलामुखि सर्वदुष्टनां वश्यं कुरू कुरू क्लीं क्लीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा। ऊँ ह्रीं बगलामुखि श्री बगलामुखि दुष्टान् भिन्धि भिन्धि, छिन्धि छिन्धि, परमन्त्रान् निवारय निवारय, वीर चक्रं छेदय छेदय, बृहस्पतिमुंख स्तम्भय स्तम्भय, ऊँ ह्रीं अरिष्ट स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा। ऊँ ह्रीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

3. जादू नगरी कामाख्या धाम असम का एक गुप्त शावर है, जिसे बन्धन काटने में प्रयोग करते हैं।

मंत्र - धुर खोलू, धुरखन्द खोलू, आकाश खोलू पाताल खोलू गौरा जी काते सूत महादेव जी बनावे जाल, जिहमा खोलू दासू नाग, किया करतब जादू टोना खोलू धरती के चारों कोना खोलू, बधा हुआ मंत्र खोलू, दुहाई कामरूप कामाख्या माई की।

नोट - इसे शाबर परम्परा के अनुसार जाग्रत कर कार्य कर सकते है। (स्वअनुभूति)

4. बन्धन काटने हेतु बगला विपरीत प्रत्यांगिरा मंत्र का ग्यारह हजार मंत्र जप व हवन करते हैं, 108 आहुतियाँ दे हवन, घी व राई से करते हैं।

मंत्र - ‘‘ऊँ ह्रीं याम् कल्पयन्ति नोऽरयः, क्रूरा कृत्यां वधू मित्र।
ताम् ब्रहणा अप निर्नुद्मः प्रत्यक् कर्तार मिच्छतु ह्रीं ऊँ।।

5. भीषणतम तांत्रिक विधान नष्ट करने के लिए - बगला विपरीत प्रत्यंगिरा व बगला-सूक्त का प्रयोग साथ-साथ करें।

6. बगला कल्प के ग्यारह बार पाठ कर, जल अभिमंत्रित कर यह बोलते हुए कि ‘मेरे ऊपर जो भी बन्धन लगाया गया है, जो भी जादू टोना किया गया है उसे नष्ट कर दिया जाए।’ और वह जल स्वयं पी जाए, तुरन्त उसी क्षण परिणाम सामने आ जाएगा।

एक घटना आप को सुनाता हूँ एक साहब की नई-नई शादी हुई थी, सुहाग रात में ही उनके लिंग की ताकत जाती रही काफी इलाज किया, हमारे सम्पर्क में आए, हमने उपरोक्त जल बनाकर दिया और बतलाया इसे आधा पी जाए व आधे बचे जल से लिंग को धो लें, आप को आश्चर्य होगा उसी रात उनके लिंग में जबर्दस्त तनाव आया व उन्होंने अपने दाम्पत्य दायित्वों का प्रथम बार निर्वहन किया। हमने अनुभव में पाया है कि बगला कल्प का प्रयोग कभी असफलता की ओर नहीं बढ़ता।

दूसरी घटना हमारे शिष्य के साथ हुई, उन्होंने एक बालिका के विवाह हेतु अनुष्ठान पूर्ण किया परन्तु कोई लाभ न हुआ, तीन माह बाद उन्होंने अपनी आप बीती बतलाई कि मेरा सारा परिश्रम व्यर्थ गया, यजमान की बालिका का विवाह नहीं हो पाया और मेरी प्रतिष्ठा पर भी दाग लग गया। उन्हें निर्देश दिया बगला कल्प का तीन बार पाठ कर, जल अभिमंत्रित कर दिया जाए व पुनः कन्या के विवाह का संकल्प कर पूर्व मंत्र का ही जप करें सफलता अवश्य मिलेगी। मेरे शिष्य ने ठीक वैसा ही किया जैसा मैने बतलाया अनुष्ठान पूर्ण होने के एक माह बाद ही कन्या का विवाह एक सम्पन्न परिवार में तय होकर वर इक्क्षा व गोद भराई विवाह की दो रस्में भी पूर्ण हो गई। कहने का अभिप्राय यह है कि बीच-बीच में बगला कल्प का तीन-चार पाठ अवश्य कर लिया करें, क्यों कि समाज में दुष्टों की कमी नहीं है, वे आप की प्रगति देख कर ही जलनवश आप पर बन्धन लगवाने का कार्य भी करेंगे, यह मैं पूर्णतः सत्य कह रहा हूँ क्यों कि मैं मुक्त भोगी हूँ और मैं नहीं चाहूँगा कोई भी व्यक्ति हमारे जैसा पीड़ित हो व तांत्रिकों के चक्रव्यूह में न फंसे। यदि आप बगला कल्प का पाठ कर रहे हैं तो आप का अहित चाहने वालों को माँ बड़ा भयंकर दंड देती है यदि वह फिर भी न माना तो उसके जीने का अधिकार ही समाप्त कर देती है। यह विद्या बहुत ही तीव्र व छुपे हुए शत्रुओं को नष्ट करने वाली है ऐसा बगला उपनिषद में लिखा है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Monday 19 June 2017

मानव बलि और मैं

कुछ समय पहले की बात है, मैं बहुत परेशान व चिन्ताग्रस्त रहा, अपने परिवार के विषय में हरसमय चिन्तित रहता था, तभी मेरी मुलाकात डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह से हुई, मैने अपनी सारी परेशानियों से उन्हें अवगत कराया और उनसे अपने इस कष्ट से मुक्ति पाने हेतु प्रार्थना की आप हमारे पथ प्रदर्शक बनने की कृपा करें। डाक्टर साहब माँ पीताम्बरा के अच्छे साधक हैं, ये बसन्त बाबा, कामाख्या धाम आसम के शिष्य हैं, इन पर अपने गुरूदेव व माँ पीताम्बरा की असीम कृपा है। अतः इनसे ही मेरा कल्याण हो सकता है। मैं भली-भाँति जानता हूँ, अतः बार-बार अनुरोध करने पर इन्होंने भगवती पीताम्बरा का यंत्र लाने को कहा, दूसरे ही दिन मैं यंत्र लेकर इनके पास उपस्थित हुआ। यंत्र पर इन्होंने शक्ति संचार कर, यंत्र पुनः हमें देकर कहा, मैंने माँ बगलामुखी के मूल मंत्रों का एक लाख जप तुमको दान में दे दिया है, अब आप निर्भय होकर ‘‘बगला विपरीत प्रत्यंगिरा’’ का सवा लाख जप कर दो।
डाक्टर साहब के निर्देशानुसार सर्वप्रथम थाली में फूल रखकर, उसके ऊपर यंत्र रख कर उसका अभिषेक करने के पश्चात् उस पर हल्दी लेपर कर, पीले आसन पर विराजमान कर उसकी पंच्चोपचार पूजन के उपरान्त ‘‘बगला विपरीत प्रत्यंगिरा’’ का जप प्रारम्भ कर दिया, शैन-शैन मंत्र चलता हुआ अपने लक्ष सवा लाख तक पहुँच गया, हवन भी कर दिया, कोई परिणाम नहीं आया।
डाक्टर साहब ने पुनः सवा लाख जपने का निर्देश दिया और मुझे हिम्मत दिलायी कि परिणाम अवश्य आएगा, जप व्यर्थ नहीं जाएगा और वैसा ही हुआ, पुनः सवा लाख जप करने का तीसरा ही दिन हुआ कि अनुभव आना प्रारम्भ हो गया, जिन लोगों ने हमारे परिवार पर तांत्रिक अभिचार करवाया वह सब माँ पीताम्बरा की कृपा से सामने आने लगे, वह सब अभिचार उन्हीं लोगों पर वापस होने लगा, यहाँ तक जिन लोगों ने अभिचार कराया उनके चेहरे भी सामने आने लगे, जो कि एक माने हुए प्रतिष्ठित तांत्रिक थे, माँ पीताम्बरा ने उनकी सारी शक्ति क्षीण कर दी, जब कि उनके वहाँ हजारों लोगों की भीड़ होती थी। भगवती ने रात में हमे स्वप्न में बताने आयी कि उनकी सारी शक्ति क्षीण हो गई है। किसी को मालूम न होने पाए और बता कर चला गया। ज्यों-ज्यों जप संख्या बढ़ती गई त्यों-त्यों नए-नए चेहरे सामने आने लगे। बड़े-बड़े औघड़-अघोरी दिखाई पड़ने लगे। एक अघोरी तो ऐसा दिखाई पड़ा कि कुछ लिखने में डर लगता है। माता जी ने बताया यह अघोरी आंख नहीं खोलते अगर यह आँख खोल दें तो लोग भस्म हो जाए। हमने देखावह साइकिल परचल रहे हैं, सर में बड़ा सा अंगोछा लपेटे हैं, जब उनकी साइकिल रूकी, उन्होंने जटा को फटकारा तो बाल उनके पैरों के नीचे ज़मीन तक घसिटते थे, दर्शन देकर साइकिल पर चढ़ कर चले गए। इस प्रकार नित्य कुछ न कुछ स्वप्न आते रहे।
डाक्टर साहब ने बताया था, सवा लाख से कुछ नहीं होगा, उसका चार गुना जप करो अन्ततः चार गुना जप पूर्ण कर मैं डाक्टर साहब के पास गया और निवेदन किया, अभी मेरी समस्या का पूर्ण निदान नहीं हो पाया है, मेरा छोटा बेटा बीमार ही रहता है। कुछ क्षण सोचने के उपरान्त डाक्टर ने मुझे माँ पीताम्बरा के मूलमंत्र का एक लाख जप करने का निर्देश दिया।
एक लाख जप का संकल्प कर जप प्रारम्भ किया जो क्रमशः पूर्ण हो गया दशांश हवन के उपरान्त मैं डाक्टर साहब के पास गया और बताया अभी तक समस्या का निदान नहीं हो पाया है। अब मन में हताशा भी आने लगी है, डाक्टर साहब ने हमें हिम्मत दी एक बार पुनः मूल मंत्र का एक लाख जप करों, इस बार कुछ न कुछ अवश्य होगा, मैं भी अपनी माता श्री से प्रार्थना करूँगा, यह तय जानों कि परिश्रम व्यर्थ नहीं जाएगा न ही जप व्यर्थ जाएगा, आपकी समस्या का निश्चित निदान माँ पीताम्बरा अवश्य करेगी, हमारे हताश मन को बड़ा सहारा मिला। एक बार पुनः पूरी आस्था के साथ मैं माँ पीताम्बरा के मूल मंत्र का जप करने लगा, अभी जप के कुछ ही दिन बीते थे कि अनुभव आने लगे। हमारे छोटे लड़के की तबीयत खराब रहती थी, उसके ऊपर किया हुआ अभिचार था, पता नहीं कौन शक्ति थी, उसके मुँह से बोलने लगी, उस समय मैं जप पर बैठा था, अतः जप को विराम देकर मैं उसकी बाते सुनने लगा। वह शक्ति कहने लगी, जो जाप आप करते हो बहुत ही शक्तिशाली है, आप का कोई  तांत्रिक कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। मुझकों आप एक बलि मनुष्य की दे दो मैं आप का सारा काम कर दिया करूँगी। हमने उस शक्ति से कहा कि आप नींबू या नारियल की बलि ले लीजिए, मनुष्य की बलि हम नहीं दे सकते, मैं बड़ी देर तक उसकी अनुनय-विनय करता रहा, लेकिन वह कुछ नहीं मानी, उसने बताया पन्द्रह दिन पहले तुम्हारे साले को मैं ही ले गई हूँ और अब तुम्हारे बड़े लड़के को ले जाऊँगी। तभी मेरे मझले बेटे ने इस पूरे घटना क्रम को मोबाइल द्वारा डाक्टर तपेश्वरी दयाल सिंह को तुरन्त अवगत कराया, उन्होंने कहा चाहे जो शक्ति हो, अब बचकर नहीं जा पाएगी, उसको नष्ट ही होना होगा, मैं जप पर बैठा हूँ, अपने पापा से कहो जप करते रहे, उसकी कोई भी बात न माने, आज्ञानुसार मैं जप करता रहा और रात्रि 12.30 बजे जप समाप्त कर मैं श्यान हेतु लेट गया।
दूसरे दिन नित्य की भांति मैं यंत्र का अभिषेक कर रहा था तो देखा यंत्र बीच से चटक गया था। यंत्र को अलग रख दिया व जप करने लगा, लेकिन यंत्र चटकने की चिंता बनी रही। शाम को टूटा यंत्र लेकर मैं डाक्टर साहब की क्लीनिक जा कर उन्हें टूआ यंत्र दिखाया। यंत्र देखते ही उन्होंने बताया तुम्हारे पास जो शक्ति आई थी यंत्र ने उसे नष्ट कर दिया है। प्रमाण के रूप में यंत्र चटक गया है। अब इस यंत्र पर थोड़े पीले पुष्प व मीठा रख कर गंगा जी में विसर्जित कर दो व पुनः दूसरा यंत्र लाकर प्राण प्रतिष्ठा कर पूजा घर में स्थापित कर दें। मैंने डाक्टर साहब के आदेशानुसार कार्यवाही कर, भगवति के मूलमंत्र का चार लाख जप निर्विघ्न पूर्ण किया।
यह अपनी आप बीती डाक्टर साहब को लिपिबद्ध कर दे रहा हूँ, बगैर इस बात की चिंता किए कि लोग इसे समझेंगे या नहीं, कभी न कभी कोई ऐसा भी इसे पढ़ेगा जो मेरी तरह पीड़ित होगा उसे इस लेख से प्रेरणा अवश्य मिलेगी और मेरे गुरूवर डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह के निर्देशानुसार चलेगा, तत्पश्चात् वह सफल भी होगा ऐसा मुझे दृढ़ विश्वास है, तभी इस लेख की सार्थकता सिद्धि होगी।



भगवती माँ पीताम्बरा अपने सभी साघकों पर अपनी कृपा बनाए रखे ऐसी कामना के साथ लेख समाप्त करता हूँ।

राजन मिश्रा

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Friday 26 May 2017

माँ बगलामुखी के शतनाम पाठ व हवन पर अनुभूतियाँ

नेट के द्वारा अपने सभी दीक्षित शिष्यों को इस बार शतनाम पाठ व हवन करने का दिशा-निर्देश दिया, सभी ने बड़ी लगन के सााथ यह संकल्प पूर्ण किया, माँ भगवती की कृपा भी सभी पर हुई व अनेकों अनुभूतियों के द्वारा मेरे शिष्यों को उन्होंने अवगत भी कराया, हमें भी काफी प्रसन्ता हुई कि मेरे शिष्य माँ के सानिघ्य में आ गए, यही मेरा उद्देश्य रहा है, जिसका सम्बन्ध माँ से हो वह सभी माँ की कृपा शीघ्र से शीघ्र प्राप्त करें, देखे:-

1. प्रकाश थोराट, अजमेर, राजस्थान यह संकल्प पूर्ण कर अपने अनुभव में पाया कि जिस भी व्यक्ति का सुबह ध्यान करते है कि काफी समय हो गया है, अब इनसे मिलना चाहिए, शाम को ही वह व्यक्ति इनके पास पहुंच जाता है। दूसरा अनुभव किसी कार्यक्रम मैं मोटर साइकिल से जा रहा था, रास्ते में गाड़ी खराब हो गई, बहुत प्रयत्न किया पर वह टस से मस न हुई, इतने में एक गाड़ी मेरे पास आकर रूकी उसने अपना परिचय दिया - मैं गाड़ी मैकेनिक हूँ और उसने वही पर मेरी गाड़ी ठीक कर दिया, पैसे भी वाजिब लिया।

2. माँ बगलामुखि के नामों का उच्चारण करने मात्र से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और साघक के सभी कार्य सफल हो जाते हैं अतः शतनाम का पाठ अवश्य करें, माँ ने स्वयं कहा है जो भक्त शारीरिक आरोग्य के लिए अथवा वैरियो के निग्रह के लिए दिन या रात में एक सहस्त्र आहुतियाँ देता है, उसे अतिशीघ्र सिद्धी प्राप्त हो जाती है। इस कथन की सत्यता निम्न प्रकरण से सिद्ध हो जाती है, मेरे शिष्य सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव की जमीन पर एक दबंग ने जबरियन कब्जा कर लिया, उसने मेरे साथ नित्य शतनाम के ग्यारह पाठों का हवन अर्थात् एक सहस्त्र से अधिक आहुतियाँ, लगातार दस दिनों तक दी। दो दिन बाद उसके कार्य की सफलता हेतु स्वप्न आया। एक बड़ा सा सेप्टिक टैंक, जो मल से भरा हुआ है, उसमें एक घोड़ा आता है और उसी में गिर जाता है। बगल में एक छोटी कन्या खड़ी है, मैं पूछता हूँ घोड़ा निकला तो नहीं उसक बतलाया अब वह नहीं निकल पाएगा। यह उसके परिश्रम का सांकेतिक उत्तर आ गया। घोड़े के रूप में उसका दबंग शत्रु था, जो धन के लालच में जैसा मल से भरा सेप्टिक टैंक दिखा, उसी में गिर गया व उसका अन्त हो गया। माँ जो भी करती है पहले सांकेतिक रूप में दिखा देती है।
दूसरा अनुभव इन्होंने बतलाया निर्देशानुसार नित्य दो माले बगला गायत्री व ग्यारह पाठ शतनाम के करना प्रारम्भ किए अभी एक सप्ताह ही हुआ था कि कार्य का पूर्वाभास होने लगा। मेरी एक जमीन जिसे अर्थाभाव में एक सज्जन को बहुत सस्ते में दे दी थी, जब कि उसकी कीमत बहुत अधिक थी। दो दिन पूर्व स्वप्न आया कोई नोटिस आई है। पैसों के लेन-देन से सम्बन्धित थी। दो दिन पश्चात् जिस सज्जन को मैने जमीन बेची थी, कहने लगे मेरा पैसा वापस कर दो, मैं आप की जमीन नहीं खरीद पाँऊगा, मेरे पास बाकी पैसों का प्रबन्ध नहीं हो पा रहा है।

3. नासिक से पुरूषोत्तम ने बतलाया आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय होने के कारण आत्म हत्या करने का विचार मन में आता रहा, तभी नेट के माध्यम से हमसे सम्पर्क हुआ, इन्हें बगला बीजमंत्र, शावर व शतनाम के दस हजार पाठ का क्रमशः अनुष्ठान कराया परिणाम सामने आया। एक डील जो काफी अच्छी थी, जो कई वर्षों से रूकी हुई थी, माँ की कृपा से वह डील हो गयी। अब इन्होंने संकल्प लिया है, शेष जीवन माँ के चरणों की सेवा में लगा देंगे, सुन कर हमें अच्छा लगा, माँ इसी प्रकार अपने सभी साधकों पर अपनी कृपा बनाए रखे व हमें भी प्रेरणा देती रहे कि जो साधक माँ के चरणों में आना चाहे उसे मैं भरपूर मार्ग प्रदर्शक की भूमिका से सरल ढंग से दिशा-निर्देश दे कर इस मार्ग के जटिल प्रयोगों को अत्यन्त सुगम कर संकू।

4. लखनऊ से उमा जोशी ने बतलाया शतनाम का दस हजार पाठ कर, ग्याहर पाठों की आहुतियाँ दी, तीसरे दिन स्वप्न में देखती है कि उनकी आवाज नहीं निकल रही है, इशारे में अपने पुत्रों को बुलाती हैं, परन्तु उनकी तरफ कोई ध्या नही नहीं दे रहा है। नींद खुलने पर बड़ी बैचेनी महसूस करती है, इनके अनुसार कई वर्षों बाद यह स्वप्न आया। इसका उत्तर समय के गर्भ में छिपा है।

5. दिल्ली से सुनील ने बतलाया दोनों पैरों में पिछले पांच वर्षों से दर्द हो रहा था, नित्य सुबह-शाम डाक्टरों की दवा खा-खाकर मैं परेशान हो चुका था, पिछले दो ही मास हुए मुझे दीक्षा लिए हुए, भगवती पीताम्बरा के बीच मंत्र का 2 लाख ही जप कर सका, दर्द के कारण मैं बैठ नहीं पाता था, मेरे गुरूवर डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह ने हमंे निर्देश दिया बैठ कर जप नहीं हो पाता, तो खड़े होकर ही जप करों, माँ बहुत दयालु है, तुम्हारे कष्टों का अवश्य निदान करेगी, मेरी बातों पर भरोसा रखो, मैं भी तुम्हारे कष्टों के निदान हेतु माँ से प्रार्थना करूंगा। जैसे-तैसे बड़ें कष्टों को सहते हुए दो लाख जप पूर्ण किया। मेरे गुरूवर ने पुनः बगला शतनाम पाठ का निर्देश दिया और मैं बड़े मनोयोग से नित्य दो सौ पाठ करने लगा, मुझे बड़ा अचम्भा हुआ, मेरा सारा दर्द समाप्त हो गया, अब मैं कोई दवा नहीं खा रहा हूँ और लगातार तीन से चार घंटे बैठ कर पाठ कर रहा हूँ।

6. तिलकुवा, हापुड़ से राणा वीर भद्र सिंह जो माँ पीताम्बरा के चोटी के साधक हैं ने अपने अनुभव में पाया बगला शतनाम आर्थिक उन्नति के लिए एक अति दुर्लभ प्रयोग है एक दृशटांग देखे - अपने यजमान के लिए इसका अनुष्ठान किया, यजमान शीघ्र ही ऋण मुक्त हो गया, उसकी सारी सम्पत्ति पुनः वापस हो गई, जब कि वह गिरवी रख दी गई थी और अर्थाभाव में वह सम्पत्ति हाथ से जा रही थी। माँ की ऐसी कृपा सभी साधकों को सुगम रूप से प्राप्त हो।

7. रजना सिंह, लखनऊ ने बतलाया कि बगला बीजमंत्र के उपरान्त बगला शाबर का पांच ही दिन जप किया था कि पति से काफी झगड़ा हो गया, इन्हें बगला शतनाम के एक हजार पाठ व हवन करने का दिशा-निर्देश दिया गया, अभी सौ पाठ ही हुए थे कि हालात सामान्य हो गए, शीघ्र ही माँ की कृपा से इनकी बेटी का विवाह भी सम्पन्न ही नही होगा वरन् बहुत कुछ भी मिलेगा।

8. नीलकंठ, ऋषिकेश में शतनाम हवन का परिणाम - सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव ने अपने तीसरे अनुभव में बतलाया -- यंत्र पर खजूर के पेड़ की तरह दो खड़ी लाइने बन गई अर्थात् दो दुष्ट शक्तियों को यंत्रने समाप्त कर दिया व परिणाम स्वरूप यंत्र पर दो काली लाइने बन गई, यही नहीं स्वप्न में दो काले कौवे पिजड़े में बन्द दिखे अर्थात् दो चतुर शत्रुओं द्वारा जो तांत्रिक क्रिया की गई थी वे दोनों पिंजरे में बन्द कर दिए गए, अर्थात् शत्रुकृत सारी क्रियाओं पर बन्धन लग गया।

9. नील कंठेश्वर मंदिर, ऋषिकेश में शतनाम के हवन का परिणाम तीव्र गति से होता है, ऐसा मैने सुना था, अब स्वयं मैं इस बात का साक्षी भी हूँ - एक तलाक का केस जिसमें नीलकंठ में ग्यारह पाठों के हवन के उपरान्त त्वरित सुखद परिणाम सामने आया, अदालत ने मेरे यजमान के पक्ष में फैसला कर दिया। तलाक के मुकदमें दसों साल चलते हैं, परन्तु भगवती की ऐसी कृपा हुई की मात्र दो ही वर्षों में सुखद परिणाम दे दिया।





डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434

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Tuesday 18 April 2017

धनाभाव व भगवती पीताम्बरा


मेरे यजमान की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, वह हर समय पैसों के अभाव में परेशान रहता था। उसके लिए अनुष्ठान करने का मन बना लिया, अब कोई ऐसा अनुष्ठान कंरू, जिससे उसे तुरन्त राहत मिलने लगे, बिना भगवती के प्रसन्न हुए यह सम्भव नहीं था, अतः भगवती बगला की प्रसन्नता एवं धन लाभ हेतु बगला शतनाम के पाठ व हवन का संकल्प लिया।

बगला शतनाम के एक सौ आठ माला पाठ कर, हवन कर दिया। परिणाम तुरन्त सामने आया यजमान की आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधान प्रारम्भ हो गया।

क्रिया इस प्रकार की गई - विष्णुयामल से उद्धत है-

विनियोग - ऊँ अस्य श्री पीताम्वर्य अण्ठोन्तर शतनाम स्त्रोतस्य सदा शिव ऋषि, अनुष्टुप छन्दः श्री पीताम्बरी देवता श्री पीताम्बरी जपे हवन विनियोगः। (जल पृथवी पर डाल दें)

1. ऊँ बगलाये नमः स्वाहा।
2. ऊँ विष्णु विनिताये नमः स्वाहा।
3. ऊँ विष्णु शंकर भामनी नमः स्वाहा।
4. ऊँ बहुला नमः स्वाहा।
5. ऊँ वेदमाता नमः स्वाहा।
6. ऊँ महा विष्णु प्रसूरपि नमः स्वाहा।
7. ऊँ महा-मत्स्या नमः स्वाहा।
8. ऊँ महा-कूर्मा नमः स्वाहा।
9. ऊँ महा-वाराह-रूपिणी नमः स्वाहा।
10. ऊँ नरसिंह-प्रिया रम्या नमः स्वाहा।
11. ऊँ वामना वटु-रूपिणी नमः स्वाहा।
12. ऊँ जामदग्न्य-स्वरूपा नमः स्वाहा।
13. ऊँ रामा राम-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
14. ऊँ कृष्णा नमः स्वाहा।
15. ऊँ कपर्दिनी नमः स्वाहा।
16. ऊँ कृत्या नमः स्वाहा।
17. ऊँ कलहा नमः स्वाहा।
18. ऊँ कलविकारिणी नमः स्वाहा।
19. ऊँ बुद्धिरूपा नमः स्वाहा।
20. ऊँ बुद्धि-भार्या नमः स्वाहा।
21. ऊँ बौद्ध-पाखण्ड- खण्डिनी नमः स्वाहा।
22. ऊँ कल्कि-रूपा नमः स्वाहा।
23. ऊँ कलि-हरा नमः स्वाहा।
24. ऊँ कलि-दुर्गति-नाशिनी नमः स्वाहा।
25. ऊँ कोटि-सूर्य-प्रतीकाशा नमः स्वाहा।
26. ऊँ कोटि-कन्दर्प-मोहिनी नमः स्वाहा।
27. ऊँ केवला नमः स्वाहा।
28. ऊँ कठिना नमः स्वाहा।
29. ऊँ काली नमः स्वाहा।
30. ऊँ कला कैवल्य-दायिनी नमः स्वाहा।
31. ऊँ केश्वी नमः स्वाहा।
32. ऊँ केश्वाराध्या नमः स्वाहा।
33. ऊँ किशोरी नमः स्वाहा।
34. ऊँ केशव-स्तुता नमः स्वाहा।
35. ऊँ रूद्र-रूपा नमः स्वाहा।
36. ऊँ रूद्र-मूर्ति नमः स्वाहा।
37. ऊँ रूद्राणी नमः स्वाहा।
38. ऊँ रूद्र-देवता नमः स्वाहा।
39. ऊँ नक्षत्र-रूपा नमः स्वाहा।
40. ऊँ नक्षत्रा नमः स्वाहा।
41. ऊँ नक्षत्रेश-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
42. ऊँ नक्षत्रेश-प्रिया नमः स्वाहा।
43. ऊँ नित्या नमः स्वाहा।
44. ऊँ नक्षत्र-पति-वन्दिता नमः स्वाहा।
45. ऊँ नागिनी नमः स्वाहा।
46. ऊँ नाग-जननी नमः स्वाहा।
47. ऊँ नाग-राज-प्रवन्दिता नमः स्वाहा।
48. ऊँ नागेश्वरी नमः स्वाहा।
49. ऊँ नाग-कन्या नमः स्वाहा।
50. ऊँ नागरी नमः स्वाहा।
51. ऊँ नगात्मजा नमः स्वाहा।
52. ऊँ नगाधिराज-तनया नमः स्वाहा।
53. ऊँ नाग-राज-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
54. ऊँ नवीना नमः स्वाहा।
55. ऊँ नीरदा नमः स्वाहा।
56. ऊँ पीता नमः स्वाहा।
57. ऊँ श्यामा नमः स्वाहा।
58. ऊँ सौन्दर्य-करिणी नमः स्वाहा।
59. ऊँ रक्ता नमः स्वाहा।
60. ऊँ नीला नमः स्वाहा।
61. ऊँ घना नमः स्वाहा।
62. ऊँ शुभ्रा नमः स्वाहा। 
63. ऊँ श्वेता नमः स्वाहा।
64. ऊँ सौभाग्या नमः स्वाहा।
65. ऊँ सुन्दरी नमः स्वाहा।
66. ऊँ सौभगा नमः स्वाहा।
67. ऊँ सौम्या नमः स्वाहा।
68. ऊँ स्वर्णभा नमः स्वाहा।
69. ऊँ स्वर्गति-प्रदा नमः स्वाहा।
70. ऊँ रिपु-त्रास-करी नमः स्वाहा।
71. ऊँ रेखा नमः स्वाहा।
72. ऊँ शत्रु-संहार-कारिणी नमः स्वाहा।
73. ऊँ भामिनी नमः स्वाहा।
74. ऊँ तथा माया नमः स्वाहा।
75. ऊँ स्तम्भिनी नमः स्वाहा।
76. ऊँ मोहिनी नमः स्वाहा।
77. ऊँ राग-ध्वंस-करी नमः स्वाहा।
78. ऊँ रात्री नमः स्वाहा।
79. ऊँ शैख-ध्वंस-कारिणी नमः स्वाहा।
80. ऊँ यक्षिणी नमः स्वाहा।
81. ऊँ सिद्ध-निवहा नमः स्वाहा।
82. ऊँ सिद्धेशा नमः स्वाहा।
83. ऊँ सिद्धि-रूपिणी नमः स्वाहा।
84. ऊँ लकां-पति-ध्ंवस-करी नमः स्वाहा।
85. ऊँ लंकेश-रिपु-वन्दिता नमः स्वाहा।
86. ऊँ लंका-नाथ-कुल-हरा नमः स्वाहा।
87. ऊँ महा-रावण-हारिणी नमः स्वाहा।
88. ऊँ देव-दानव-सिद्धौध-पूजिता नमः स्वाहा।
89. ऊँ परमेश्वरी नमः स्वाहा।
90. ऊँ पराणु-रूपा नमः स्वाहा।
91. ऊँ परमा नमः स्वाहा।
92. ऊँ पर-तन्त्र-विनाशनी नमः स्वाहा।
93. ऊँ वरदा नमः स्वाहा।
94. ऊँ वदराऽऽराध्या नमः स्वाहा।
95. ऊँ वर-दान-परायणा नमः स्वाहा।
96. ऊँ वर-देश-प्रिया-वीरा नमः स्वाहा।
97. ऊँ वीर-भूषण-भूषिता नमः स्वाहा।
98. ऊँ वसुदा नमः स्वाहा।
99. ऊँ वहुदा नमः स्वाहा।
100. ऊँ वाणी नमः स्वाहा।
101. ऊँ ब्रह्म-रूपा नमः स्वाहा।
102. ऊँ वरानना नमः स्वाहा।
103. ऊँ वलदा नमः स्वाहा।
104. ऊँ पीत-वसना नमः स्वाहा।
105. ऊँ पीत-भूषण-भूषिता नमः स्वाहा।
106. ऊँ पीत-पुष्प-प्रिया नमः स्वाहा।
107. ऊँ पीत-हारा नमः स्वाहा।
108. ऊँ पीत-स्वरूपिणी नमः स्वाहा।

हवन सामग्री:-

शक्कर का बूरा - 2 किलो0
काला तिल - 2 किलो
कमल बीज - 200 ग्राम
शहद - 100 ग्राम
देशी घी         -  200 ग्राम
नमक - 10 ग्राम







नोट:- 

1. पहले 10 माला का हवन यानी दस हजार आहुतियाँ देकर प्रतिदिन छत्तीस दिनों तक एक माला हवन यानी एक सौ आहुतियाँ देते रहने से आर्थिक स्थिति में जबर्दस्त सुधार हो जाता है।

2. इस शतनाम हवन के प्रयोग से भगवती की प्रसन्नता साधक के प्रति बढ़ जाती है, जिससे साधक के प्रत्येक कार्य सुगमता-पूर्वक होने लगते हैं व विपक्षियों की उल्टी गिनती प्रारम्भ हो जाती है।

3. हवन कर अग्नि विसर्जन कर दें - हे अग्नि देव अब आप अपने लोक में प्रस्थान करें व हमारे द्वारा दी गई आहुतियाँ सम्बन्धित देवी/देवताओं को पहुँचा दें, कह कर हवन की अग्नि पर तीन बार जल डाल दें।

परिश्रम करें - लाभ उठाएं।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434

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Wednesday 22 March 2017

माँ पीताम्बरा के हवन देखने मात्र से कष्टों से मुक्ति

एक महिला जो पिछले दो वर्षों से परेशान थी, साथ ही उसके घर वाले भी, परेशान रहते थे, हुआ यह कि उन लोगों ने एक सर्प को मार दिया, उसी के बाद से परेशानियों का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। कई तांत्रिकों को दिखलाया परन्तु ज्यों-ज्यों क्रियाएं की गई, परेशानियाँ बढ़ती गई। रात भर महिला डरी-सहमी सी रहती व रह-रह कर बकती मेरे पास सांप चल रहा है उसे दूध पिलाओ कहते-कहते बेहोश हो जाती। रात में खाना खाकर सोती, एकाएक रात में उठ कर बैठ जाती जिद् करती मैंने खाना नहीं खाया मुझे भूख लग रही है, मुझे खाना दो, यदि खाना नहीं दिया जाता तो बच्चों की भाँति फूट-फूट कर रोने लगती उसकी इन हरकतों से घर वाले परेशान रहते। अभी दो वर्ष पूर्व ही उसका विवाह हुआ था। अक्सर बच्चों की भांति जिद करती उसके न मिलने पर फूट-फूट कर रोने लगती। नई दुल्हन थी हाथों में तमामों चूड़ियाँ पहन रखी थीं, फिर भी चूड़ियों की फरमाइश करती यदि चूड़ियाँ न दी गई तो बच्चों की भाँति उसका रोना प्रारम्भ हो जाता। एक बलशाली तांत्रिक (जिससे मेरा एक बार मनुमुटाव हो चुका था) ने 40 दिन अपने पास बुलाया, कुछ दिनों तक राहत मिली, परन्तु उसके बाद और तीव्र प्रकोप बढ़ने लगा। इस बीच उस नई नवेली दुल्हन ने अपने पति के साथ दाम्पत्य कर्तव्यों का निर्वाहन नहीं कर सकी। उसके पति की हालत देखने लायक थी। हमारे शिष्य सुरेश चन्द्र श्रीवासतव ने इस दाम्पत्य जोड़े को भगवती पीताम्बरा के हमारे हवन पर आमंत्रित किया।

साधारण तौर पर उन लोगों ने हवन का प्रारम्भ से अन्त तक दर्शन किया तथा प्रसाद व भभूत लेकर चले गए। आज एक वर्ष हो गए हैं, अभी तक पूर्व की भाँति कोई समस्या सामने नहीं आयी अपितु अब वह महिला एक बेटे की माँ भी बन गई है। यही नहीं नेट से एक श्रीमान जी ने अपना अनुभव हमें बतलाया। वह अस्पताल में बेड पर पड़े थे समय व्यतीत करने के लिए उन्होंने यू-ट्यूब पर हमारे भगवती के हवनों को बड़े चाव से देखते रहें। परिणाम स्वरूप उनकी जटिल बीमारी बहुत तीव्र गति से ठीक हो गई।

भगवती पीताम्बरा के हवनों में जो सामग्री प्रयोग की गई, वह इस प्रकार है -

पिसी हल्दी - 4 किलो0
मालकांगनी - 2 किलो0
सुनहरी हड़ताल - 250 ग्राम
साबुत लाल मिर्च - 1 किलो0
लाजा - 1 किलो0
सेंघा नमक - 200 ग्राम
सरसों का तेल - 1 लीटर

हवन में प्रयोग किए गए मंत्रों का उल्लेख -

1. माँ बगुलामुखी के मूलमंत्र
2. बगला विपरीत प्रत्यांगिरा
3. बगला गायत्री मंत्र
4. बगला कल्प विधान




नोट - इस विधान द्वारा क्रूर से क्रूरतम दुष्ट विधान को नष्ट किया जाता रहा है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Monday 27 February 2017

भगवती पीताम्बरा की साधना क्यों करें व कैसे करें

जिस समाज में हम रहते हैं यहाँ भाँति-भाँति के लोग हैं, कुछ अच्छे तो कुछ बुरे लोग भी हैं, जिसे आप नकार नहीं सकते। यह आवश्यक नहीं जो आप से मीठे बोलते हैं वह आप के हित चिन्तक ही हो यह अनुभव में आया है कि प्रत्येक पर विश्वास करने का परिणाम अच्छा नहीं होता, कहने का तात्पर्य यह नहीं कि किसी पर विश्वास ही न किया जाए। अब यहाँ पर भगवती पीताम्बरा की आवश्यकता पड़ती है, क्यांेकि ऐहिक या पारलौकिक, देश या समाज के दुःखद, दुरूह अरिष्टों एवं शत्रुओं के दमन शमन में इनके समकक्ष अन्य कोई भी नहीं है। ‘‘जो छुपे हुए शत्रुओं को नष्ट कर देती है वह पीताम्बरा पीले उपचारों द्वारा पूज्या है’’-

‘‘यन्नि तान्तमा विष्करोति विद्विषः सेयं पीता वयवः पूज्या।’’

ऐसा बगला उपनिषद में लिखा है तथा मेरे भी अनुभवों में इसकी प्रमाणिकता कई बार सफल सिद्ध हुई है। साधना करें तो सर्वोच्च की जिससे आप को कभी पराजय का मुंह न देखना पड़े। भगवती पीताम्बरा लौकिक वैभव की दात्री होने के साथ ही अपने साधकों के काम, क्रोध, लोभ, मात्सर्य, मोह ईष्यादि शत्रुओं का दमन भी करती है। साधना के सभी विघ्नों को निरस्त कर साधकों के मन-बुद्धि पर अपना प्रभाव डाल कर वे अपनी ओर आकृष्ट करती  है। जीवन अत्यन्त शान्तमय हो जाता है फिर आप साधना क्षेत्र में निर्भय होकर आगे बढ़ते चले जाएंगे, बस इतना सा ही मेरा अनुभव रहा, अच्छा लगे तो आप भी थोड़ा आगे बढ़ कर देखे, बाकी भगवती पर छोड़ दें। अत्यल्प काल में ही आशु सिद्धिदा होने से भगवती बगला अपने साधकों को सभी लौकिक सम्पदाओं से सम्पन्न कर अन्त में उसे अपना सान्रिघ्य एवं मोक्ष प्रदान करती है।

अब प्रश्न उठता है माँ पीताम्बरा की साधना किस प्रकार करें। तंत्र की व्यापक दृष्टिकोण है यहाँ उम्र, जाति, लिंग, धर्म आदि का कोई भेदभाव नहीं होता। एक मुस्लिम साधक को मैं जानता हूँ वे माँ पीताम्बरा के उच्चकोटि के साधक हैं। तंत्र में दीक्षा का विधान पूर्व से चला आ रहा है, इसमें गुरू अपने शिष्य को विशेष तकनीक के द्वारा पहले ही दिन से शक्ति सम्पन्न कर देता है। अब गुरू निर्देश का पालन करते हुए अपनी शक्तियों का विकास करना होता है व क्रमश शिष्य को माँ की निकटता का अनुभव होने लगता है उसके जीवन में चमत्कार होने आरम्भ हो जाते हैं, परन्तु चमत्कार व कार्य हमारी मंजिल नहीं हैं, हमें आगे ही बढ़ते रहना है। शैनः-शैनः हमारी अर्थवा का रंग अपने ध्येय माँ पीताम्बरा की अर्थवा पीत वर्ण में परिवर्तित होने लगता है। वर्ण का यही परिवर्तन कुण्डलिन जागरण कहलाता है। कितना सुगम मार्ग है, बस लगे रहो बाकी तो माँ स्वयं ही करवा देती है। कुण्डलिनी जागरण में तमामों साधक लगे रहते हैं, बड़ा परिश्रम करने के बाद भी उनकी कुण्डलिनी जागरण नहीं हो पाती और उनके इस दुनियाँ से जाने का समय भी आ जाता है, वहीं भगवती पीतामबरा के योग्य साधक को इस संसार का भोग करते हुए मोक्ष भी बड़े सस्ते में, बिना कष्टकारी परिश्रम किए स्वतः ही उपलब्ध हो जाता है।
पुस्तकों द्वारा मात्र ज्ञानार्जन किया जाता है। साधना तो योग्य गुरू के दिशा-निर्देश में ही करना चाहिए। सर्वप्रथम योग्य गुरू का चुनाव करना अत्यन्त आवश्यक है। कहा गया है - ‘‘गुरू कीजै जान कर, पानी पीजै छान कर।’’ गुरू व शिष्य उभय पक्षों को खूब सोच विचार कर दीक्षा ली व दी जानी चाहिए। यदि गुरू योग्य न हुआ तो शिष्य का क्या हश्र होगा? सर्व विदित है। यदि शिष्य योग्य न हुआ तो वह इस विद्या का दुरूपयोग करेगा, जिसका दंड गुरू को भी भोगना पड़ेगा। कुंज्जियाँ तो गुरू के पास ही होती है, पुस्तक में मात्र ज्ञान ही होता है। वह पथ प्रदर्शक तो होती है, परन्तु गुरू से आप अपनी जिज्ञासा शान्त कर आगे बढ़ने का सुगम मार्ग पा जाते हैं, यदि तंत्र क्षेत्र में आप का रूझान है तो सर्वप्रथम आप गुरू से दीक्षा लीजिए, यदि फिर भी आप को कोई गुरू नहीं मिलता तो हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। माँ बगलामुखी इतनी सस्ती नहीं कि हर किसी को इनकी दीक्षा दी जाए। दीक्षा केवल योग्य पात्र को ही दी जानी चाहिए। ऐसा हमारे गुरूवर बसन्त बाबा ने हमसे कहा था। तीन वर्ष हमें लग गए, प्रत्येक वर्ष में कामाख्या आसम जाता रहा। प्रत्येक बार बसन्त बाबा का एक ही उत्तर होता था ‘‘यह इतनी सस्ती नहीं कि हर एक को बता दी जाए। तीन वर्ष पश्चात् इन्होंने हमे दीक्षा दी। गुरू केवल अपने ही शिष्य को गोपनीय बाते बता सकती है, दूसरे गुरू के शिष्यों को वह गुप्त ज्ञान देने का अधिकारी ही नहीं होता। यही है गुरू परम्परा, प्रत्येक ज्ञानवान गुरू इस परम्परा को दृढ़ता के साथ पालन करता है।
माँ बगलामुखी ने स्वयं कहा है ‘‘जो भक्त शारीरिक आरोग्य हेतु अथवा वैरियो के निग्रह के लिए दिन या रात एक सहस्त्र आहुतियाँ देता है, उसे अतिशीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। मेरे नामों का उच्चारण करने पर सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और भक्त के सभी कार्य सफल हो जाते हैं, जो व्यक्ति मेरे स्वरूप को सदार निम्न प्रकार ध्यान में रखता है, उसे देख कर ही कपटी व्यक्ति भयभीत हो जाते हैं:-



अमृत समुद्र के मध्य में मणि-निर्मित मंडप में रत्न जटित चैकी पर स्वर्ण सिंहासन पर बैठी पीत-वर्णा, पीताम्बरा, सर्वाभरण भूषणों से सुशोभित सुन्दर अंगोवाली, शत्रु की जिह्वा को पकड़े हुए, मुद्गर हाथ में लिए पीताम्बरा देवी को मैं भजता हूँ। आप के मस्तक पर चन्द्र द्वारा सुशोभित मुकुट तथा पुष्ट हाथ में गदा और ब्रज शोभायमान है। पीताम्बर धारिणी माँ पीताम्बरा देवी को मैं प्रणाम करता हूँ। महारूद्र की महाशक्ति माँ बगलामुखी की जय हो, जय हो। हेम की आभा के समान अंगों वाली, पीत चम्पा की मात्र को अपने हृदय पर धारण करने वाली माँ बगलामुखी को मैं प्रणाम करता हूँ। सम्पूर्ण लोकों में विचरण करने वाली गरूड़-सदृश वेग वाली माँ बगलामुखी की जय हो-जय हो।

विभिन्न विदेशों में बाओं की समस्या का समाधान करते हुए, यह कहना चाहता हूँ कि वास्तव में आप माँ बगलामुखी की साधना करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने ज्ञान को बढ़ाए जैसा कि मैने अपने लेखों में इनके बारे में बहुत कुछ समझाने का प्रयास किया है। ज्ञान तभी सार्थक होता है जब हम उसे व्यवहार में एकाग्रता व संयम के साथ अपनाने की कोशिश करते हैं, एकाग्रता तभी बनती है, जब हमारा मन व बुद्धि दोनों साथ देते हैं मंत्र जप से पूर्व मंत्र का निर्णय अपने मन व बुद्धि दोनों को साथ में रख कर करें क्यों कि मन व बुद्धि जिस कार्य में लीन हो जाते हैं तो समय का आभास तक नहीं होता, यदि मंत्र जप का मन भी हो और बुद्धि भी उसे करने के लिए प्रेरित करें तो उस कार्य में आप को आनन्द का सहज बोध होता दिखेगा और आप ध्यानिस्थ अवस्था सहज रूप से प्राप्त करने में सफल होगे व समय का आभास तक नहीं होगा, यही मंत्र सिद्धी का प्रथम सोपान है।

योग्य गुरू के सानिघ्य में ही साधना प्रारम्भ करनी चाहिए आज मोबाइल युग हैं गुरू का सानिघ्य हर क्षण प्राप्त हो जाता है, इस विलुप्त होती विद्या को बचाना है तो योग्य शिष्य को सब कुछ बताना ही पड़ेगा। मोबाइल के माध्यम से दीक्षा दी जाए-दीक्षा में गुरू अपने शिष्य को पहले ही दिन से शक्ति सम्पन्न बनाता है, जिससे वह तंत्र क्षेत्र में निर्भय होकर पूर्ण श्रृद्धा के साथ लग कर अपने कार्य में सफल हो सके, प्रयास करे पुनः प्रयास करें अन्ततः सफलता आप को मिल कर रहेगी।
कहा गया है:-

करै जप प्रतिदिन पाँच हजार,
विजय पावै बहु वारम्बार,
बगलामुखी की जय जय कार।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434
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Friday 20 January 2017

धनाभाव और माँ बगलामुखी

बात पाँच वर्ष पुरानी है, मैं अपने एक मित्र के यहाँ गया, उसके सेवा भाव से मन प्रसन्न हो गया, परन्तु मैंने एक बात नोट की यह सब दिखावा मात्र था, मैंने उसे कुरेदा तो उसकी बाते सुनकर मैं हैरान रह गया, वह अत्यधिक धनाभाव से संघर्ष कर रहा था, घर में एक ही समय चूल्हा जलता था, कुल मिलाकर अत्यन्त दयनीय स्थिति से जेसे तैसे गुजारा चल रहा था। घर आकर मैं सोचने लगा, क्या करूँ कि इसके जीवन में कुछ सुधार हो जाये, मैंने इसका नमक  खाया है - वासी रोटी व टमाटर की चटनी, हमने बड़े चाव से खाई थी, भूख में बहुत स्वाद इस भोजन में मुझे मिला। समय आ गया अब इसके नमक को व्यर्थ नहीं जाने दूंगा, भगवती से अवश्य प्रार्थना करूँगा और ऐसा ही हमने किया। एक वर्ष पश्चात् मैं पुनः इनके वहाँ गया, मैं देख कर दंग रह गया, इनकी यजमानी चल निकली थी, घर पर यजमानों की भीड़ लगी थी, टोकन बट रहा था, जिस नम्बर का टोकन वही यजमान इनसे मिल सकता था। भगवती से मैने इनके लिए कुछ माँगा था, भगवती ने बहुत कुछ दे दिया एक बार पुनः भगवती ने सिद्ध कर दिया सच्चे मन से कुछ मांग कर तो देखों बहुत कुछ अपने भक्तों को दे देती है, मेरा मन अत्यन्त गदगद हो गया, अपने पर नियंत्रण समाप्त हो गया - आँखों से अश्रुधारा स्वतः ही प्रवाहित हो चली।
जिस प्रकार की गई आप के सम्मुख प्रस्तुत है:-

जप - रूद्राक्ष की माला पर।
भोग - खीर जिसमें केशर मिला हो।
ध्यान - भगवती बगलामुखी स्वर्ण सिंहासन पर बैठी है और अपने दोनों हाथों से स्वर्ण मुद्राए बरसा रही है।
हवन सामग्री - सफेद तिल, हल्दी, हरताल, बूरा, जव, शहद, पंचमेवा, कमल गट्टे, माल कांगनी, गुगल, काले तिल, लौंग, छोटी इलायची, देशी घी।

संकल्प - ऊँ तत्सद्य परमात्मा आज्ञया प्रवर्तमानस्य 2073 संवत्सरस्य श्री श्वेत वाराह कल्पे जम्बूदीपे भरत खण्डे उत्तर प्रदेश, लखनऊ नगरे पुराना हैदराबाद निवासे ...... मासे, .......... पक्षे, .............. तिथे, ........... गोत्रोत्पन्न (अपना नाम) अहं भगवत्या पीताम्बरा प्रसाद सिद्धि द्वारा मम यजमानस्य .................. नाम ................. व्यवसाय वृद्धर्थे च स्थिर लक्ष्मी प्राप्ताथे मन्दार मंत्रस्य सम्पुटित रमा स्वरूपा श्री बगलया सट्ली दस सहस् जपे अहं कुर्वे।

मन्त्र - ‘‘श्री ह्रीं ऐं भगवति बगले तत्श्च विर्भूत साक्षात श्री रमा भगवत् परा रंजियंति दिशह् कान्तया विद्युत् सोदामनी यथा में श्रीयम् देहि देहि स्वाहा।

जप से पूर्व व बाद में क्रमशः 1-1 माला निम्न मंत्र का जप अवश्य कर दें -

‘‘ॐ ऐं बगलामुखि विद्महे ॐ क्लीं कान्तेश्वरि धीमहि ॐ सौः तन्नो प्रह्ल्रीं प्रचोदयात्’’



हवन के उपरान्त निम्न मन्त्र द्वारा 108 बार तर्पण करना है - दूध से श्रीं ह्रीं ऐं भगवति बगले तत्श्च विर्भूत साक्षात् श्री रमा भगवत प्ररा रंजियति दिशह् कान्तया विद्युत सोदामनी यथा में श्रीयम् देहि देहि स्वाहा तर्पयामी।

परिणाम - अति उत्तम आया। हमने पाया है उपरोक्त विधि द्वारा 36 हजार जप के पश्चात् निश्चित ही 99 प्रतिशत लाभ मिलता है।

नोट - चलते समय पंडित जी ने 36 हजार गुरू दक्षिणा स्वरूप मुद्राएं हमें यह कहते हुए भेंट की कि यह सब आप का ही दिया है, मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार करें, मन ही मन स्वतः प्रार्थना निकलती है ‘‘हे भगवती इन्हें कभी पराजय का मुुँह न देखना पड़े।

इस केस में पितर-दोष था अत पितरों की प्रसन्नता एवं तृप्ती हेतु इन्इें एक उपाय भी बताया कि सुबह पक्षियों को कुछ खिला दिया करें जैसे मीठा दें, पूड़ी या नमकीन दें, बिस्कुट आदि दे सकते हैं, साथ ही पक्षियों के पीने हेतु साफ पानी भी वहाँ रखना न भूलें, इस कार्य में अर्थाभाव आड़े नहीं आएगा।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह

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