Wednesday 28 February 2018

जिन्न व ब्रह्म राक्षस को नष्ट करना

भुवनेश्वर से मेरे शिष्य ने बताया उसका सारा परिवार जिन्नो व ब्रह्म राक्षस द्वारा पूर्णतः तवाह किया जा चुका है। उनकी दो बेटियों व पत्नी के साथ ये अनैतिक सम्बन्ध बनाते हैं, बेटे के कारोबार में भी घाटा बना रहता है, कुल मिला कर मेरे परिवार की दुर्दशा बढ़ती ही जा रही है। बहुत उपाय किए, तांत्रिकों के भी अनेकों चक्कर लगाए, परन्तु कहीं भी सफलता नहीं मिल सकी। मैं क्या करुं, किससे कहूं, कुछ समझ में नही आ रहा , मैं जीवन से हताश हो चुका हूँ, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार है, कहीं से प्रकाश की कोई किरण नहीं दिख रही हे, कुल मिलाकर आत्म हत्या करने का विचार बार-बार मेरे मन में कौंध रहा हैं क्या करुं, इसी उधेड़ बुल में बैठा मैं नेट चला रहा था, वहाँ एक अनुभव दिखा, उसे मैं पढ़ता रहा और पड़ता ही रहा, तभी मुझे महसूस होने लगा कि यहीं से मेरी समस्याओं का निदान हो जाएगा, अतः बिना समय व्यर्थ किए मैंने रात्रि दो बज कर तीस मिनट पर ही डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह को फोन लगा दिया, यह मेरा सौभाग्य था कि फोन डाक्टर साहब ने तुरन्त उठा लिया। मैने शीघ्रता पूर्वक अपनी सारी समस्याओं से उन्हें अवगत कराया। डाक्टर साहब ने हमें आवश्वासन दिया, सब ठीक हो जाएगा, माँ पीताम्बरी पर भरोसा रखों, अभी मैं जप से उठा हूँ, थोड़ा खा पीकर आराम कर लूं, कल सुबह बात होगी, पुनः आश्वासन देता हूँ तुम्हारे इस कष्टकारी जीवन में माँ की कृपा अवश्य होगी

वह रात मेरे जीवन की बहुत लम्बी रात थी, रातभर मैं सो ना सका, घड़ी ही देखता रहा, कब सुबह हो। एक लम्बे समय के बाद, एक आशा की किरण मुझे दिखी थी, मुझे आभास हो रहा था, अब मेरे कष्टों का अन्त निकट ही है, क्यों कि जब डाक्टर साहब ने हमें आश्वासन दिया, उसी क्षण मेरे शरीर में एक सिहरन सी उठी थी, मानो एक क्षण के लिए शरीर में तेज ठंडक का अनुभव हुआ, ऐसा अनुभव किसी भी तांत्रिक से मिलने के पश्चात् हमें नहीं हुआ।

दूसरे दिन डाक्टर साहब को फोन लगाया, मानों वो हमारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे, तुरन्त फोन उठा, व हमें बगला अष्टोत्तर के दस हजार पाठों का संकल्प कर पाठ करने का निर्देश दिया व बाकी मैं देख लेता हूँ, कह कर उन्होंने फोन रख दिया। मैंने यह संकल्प पूर्ण किया। हमें अब यह सब स्वप्न जैसा लग रहा है इन सारी कष्टकारी समस्याओं का अन्त हो गया है। यह आप बीती एक साधक की है अब वह हमारा शिष्य है और लोगों के कष्टा को दूर करने में सदैव तत्पर रहता है।

इस प्रकरण में शतनामों के पाठों की संख्या अत्यधिक दो कारणवश बताई गई - पहला यजमान का ध्यान कष्ट से हटा रहे व माँ के पाठों में ही लगा रहे, क्योंकि प्रचंड तीव्र शक्तियों से निपटना कोइ सुगम कार्य नहीं था, इसमें समय लगेगा और दुःखी व्यक्ति चाहता है, कार्य तुरन्त हो जाए। दूसरा जब वह माँ का पाठ करेगा तो माँ की कृपा प्राप्त होनी ही होनी है, जिससे मैं इसके लिए जो प्रयोग करूंगा उससे हमें शीघ्र सफलता प्राप्त होगी और ऐसा ही माँ ने किया हमें सफलता दे दी और वह परिवार आज सुखमय जीवन की ओर अग्रसर हो रहा है।

क्रिया इस प्रकार की गई:-

बगला तंत्र के अन्तर्गत ब्रह्मास्त्र माला मंत्र का नित्य 108 पाठ व हवन, ऐसा 30 दिनों तक निरंतर किया गय। मेरा यंत्र चटक गया भगवती ने उसकी सारी दुष्ट शक्तियों को यंत्र में चपका कर नष्ट कर दिया, प्रमाण यंत्र में दे दिया। अब वह परिवार सुखी है, माँ कभी भी अपने साधकों को निराश नहीं होने देती ऐसा मेरा बारम्बार का अनुभव रहा है।

ब्रह्मास्त्र माला मंत्र:-

ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंकगृधोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररूधिर मांस चरू भोजन प्रिये सिद्ध विद्याधर वृन्द वन्दित चरणे ब्रह्मेश विष्णु वरूण कुबेर भैरवी भैरवप्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छागच्छ मानय-मानय नुद-नुद अमुकं (अपने शत्रु का नाम लें).......... मारय-मारय, चूर्णय-चूर्णय, आवेशयावेशय त्रुट-त्रुट, त्रोटय-त्रोटय स्फुट-स्फुट स्फोटय-स्फोटय महाभूतान जृम्भय-जृम्भय ब्रह्मराक्षसान-उच्चाटयोच्चाटय भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय-मूर्च्छय मम शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय शत्रून् चूर्णय-चूर्णय सत्यं कथय-कथय वृक्षेभ्यः सन्नाशय-सन्नाशय अर्कं स्तम्भय-स्तम्भय गरूड़ पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरू-कुरू लीलांगालय वृक्षेभ्यः परिपातय-परिपातय शैलकाननमहीं मर्दय-मर्दय मुखं उत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय भूत भविष्यं तय्सर्वं कथय-कथय कृन्त-कृन्त दह-दह पच-पच मथ-मथ प्रमथ-प्रमथ घर्घर-घर्घर ग्रासय-ग्रासय विद्रावय – विद्रावय उच्चाटयोच्चाटय विष्णु चक्रेण वरूण पाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय – नाशय प्रविदं स्फोटय-स्फोटय सर्व शत्रुन् मम वशं कुरू-कुरू पातालं पृत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनयानय करालि विकरालि महाकालि रूद्रशक्ते पूर्व दिशं निरोधय-निरोधय पश्चिम दिशं स्तम्भय-स्तम्भय दक्षिण दिशं निधय-निधय उत्तर दिशं बन्धय-बन्धय ह्रां ह्रीं ॐ बंधय-बंधय ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनी मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृतहार भूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहासे निलय-निलय हुं फट्-फट् विजृम्भित शरीरे सप्तद्वीपकृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तनयुगले असिमुसल परशुतोमरक्षुरिपाशहलेषु वीरान शमय-शमय सहस्रबाहु परापरादि शक्ति विष्णु शरीरे शंकर हृदयेश्वरी बगलामुखी सर्व दुष्टान् विनाशय-विनाशय हुं फट् स्वाहा। ॐ ह्ल्रीं बगलामुखि ये केचनापकारिणः सन्ति तेषां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय जिह्वां कीलय – कीलय बुद्धिं विनाशय-विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा । ॐ ह्रीं ह्रीं हिली-हिली अमुकस्य (शत्रु का नाम लें) वाचं मुखं पदं स्तम्भय शत्रुं जिह्वां कीलय शत्रुणां दृष्टि मुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय-बंधय मारय-मारय शोषय-शोषय हुं फट् स्वाहा।।




नोट - शत्रु के स्थान पर ‘‘गुप्त अलौकिक शत्रु’’ दिया गया।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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