Tuesday 7 January 2020

करते रहो-करते रहो-माँ सब कुछ देती है

    जब माँ बगलामुखी अपने साधक को कुछ विशेष देना चाहती है, तब परिश्रम अत्यधिक करा लेती है। हमारे सद्गुरू बसन्त बाबा कामाख्या धाम, असम हमसे यही कहते रहते थे, ‘‘ करते रहो-करते रहो-माँ सब कुछ देती है’’ सुन कर मैं म नही मन सोचा करता था, यह हमें कुछ बतलाना नहीं चाहते। अतः करते रहो करते रहो कह कर हमें टरका रहें हैं। परन्तु गुरू आज्ञा सर्वोपरी मान कर पुनः मैं जय के मार्ग पर आगे बढ़ने लगता, करते-करते दो वर्ष कब व्यतीत हो गए, हमें ज्ञात ही नहीं रहा, परन्तु माँ ने हमें देना प्रारम्भ किया तो देती ही रही, जिसका क्रम आज भी चल रहा है, मन अत्यधिक प्रफुल्लित रहता है। अब तो कुछ मांगने की इच्छा ही नहीं होती, क्यों कि माँ सब कुछ पहले ही कर देती है, हाँ कभी-कभी मैं परेशान हो जाता हूँ तो माँ से कहना ही पड़ जाता है, हे माँ! मेरे शिष्यों की समस्याओं का भी निदान करने की कृपा करें, चुंकि मेरे अधिकांश शिष्य किसी न किसी समस्या से घिरे हुए हैं अतः अब मैने अपनी दैनिक साधना के अन्त में नियमिति रूप से माँ से उपरोक्ता प्रार्थना कर देता हँ। अधिकांश साधकों की आर्थिक समस्या है अतः माँ ने स्पष्ट रुप से हवा में लिख कर हरिद्रा गणेश का मंत्र व उसके हवन का मंत्र दिखला दिया है, चुंकि हरिद्रा गणपति विघ्न हर्ता व व धन प्रदाता है अतः हमें विश्वास है जो भी साधक इस प्रयोग को ग्रहण काल में करेंगे उन्हें निश्चय ही लाभ मिलेगा। इस प्रयोग के अनुभवों को शीघ्र ही साधकों के समक्ष रखूंगा।

सुरेश चन्द्र माँ पीताम्बरा के उच्च कोटि के साधक व हमारे शिष्य हैं, एक दबंग व्यक्ति ने इन्हें चिन्ता ग्रस्त कर दिया, वह भी माँ की इच्छा से ही हुआ था, अतः इन्होंने हमसे दीक्षा ले कर निरन्तर दो वर्षों तक माँ पीताम्बरा के अनेक मंत्रों का विधिवत अनुष्ठान सम्पन्न किए, परन्तु सफलता नहीं मिली। घोर निराश ने इन्हें चारों ओर से आलिंग्न बघ्य कर लिया, तभी माँ का चमत्कार हुआ। माँ पीताम्बरा कभी भी अपने साधकों का अहित होने ही नहीं देती, यदि देर लगती है तो स्पष्ट है मन्त्रों के द्वारा हमारे प्रारब्ध को सुधारा जा रहा है, हुआ यह कि उस दबंग ने इनके प्लाट पर बल पूर्वक कब्जा कर लिया, यदि उससे मुकदमा लड़ते तो अत्यधिक समय तो लगता ही साथ ही जीवन भी संकट में आ सकता था, हमने इन्हें माँ की शरण में आने का सुझाव दिया परन्तु दो वर्षों तक साधना करने के उपरान्त भी कुछ नहीं हुआ, अब तो हद भी पार हो गई उस दबंग ने इनके प्लाट में नींव भी खुदवाना प्रारम्भ कर दिया और यह शिष्य मेरे पास भगता हुआ आया कि अब क्या होगा, और उसने प्लाट पर जाने का निश्चिय किया, वहाँ पहुचाने पर एक माध्यम के द्वारा हमारे प्लाट को खरीदने की एक पार्टी मिल गई, जिसने हमसे वह प्लाट खरीद कर हमें चिन्ता मुक्त कर दिया। इस कार्यक्रम में अन्त में माँ बगलामुखी के विलोम शतनाम के पाठ के पूर्व ऊँ नमः शिवाय की एक माला जप कर एक हजार पाठ किए गए, दोबारा पुनः एक हजार पाठ पूर्ण किए गए, तीसरी बार एक हजार पाठ पूरे नहीं हो पाए कि काम बन गया।

सत्यवीर सिंह मेरे शिष्य है जो पिछले दो वर्षों से निरन्तर माँ के अनेको मंत्रों का अनुष्ठान पूर्व कर लिया है फिर भी उनका पड़ोसी जो दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति है इन्हें कुछ न कुछ कारणों से चिन्ता ग्रस्त किए रहता, चुंकि सत्यवीर का घर गली मे है, उस गली में उस दुष्ट ने अपना टेम्पां खड़ा कर दिया अतः इनके घर जोन का मार्ग ही बन्द हो गया, मोटर साइकिल घर तक कैसे जाए, पड़ोसी से टेम्पों हटाने की बात की तो काफी लड़ाई झगड़ा हुआ, पुलिस थाना तक हो गया, पड़ोसी की पत्नी ने इन्हें बहुत भद्दी-भद्दी गालियाँ भी दी। इन्होंने इस दुष्ट से परेशान होकर इस समस्या का निश्चित निदान का मार्ग बारम्बार पूछने लगे, कौन सा अनुष्ठान इसके लिए कर दूं, मैने इन्हें सुझाव दिया करते रहो - करते रहो माँ की सेवा इसी भाँति करते रहो। जब शत्रु, कुछ करेगा-तभी तो मरेगा। अब माँ से मात्र एक ही प्रार्थना करना ‘‘माँ मुझे इस शत्रु से बचाओ, बस और कोई विशेष अनुष्ठान कर अपने प्रारब्ध को नहीं बिगाड़े। मेरे निर्देशानुसार बीज मंत्र का एक हजार जप कर माँ से उपरोक्त प्रार्थना करना प्रारम्भ किया, एक सप्ताह बाद ही उस दुष्ट पड़ोसी पर माँ की तिरछी दृष्टि घूमने लगी, जिस पड़ोसिन ने मुझे भद्दी-भद्दी गालियाँ दी थी गम्भीर रूप से बीमार होकर अस्पताल में कुछ दिन भर्ती रही, जहाँ डाक्टरों ने जबाव दे दिया, इसे किसी बड़े अस्पताल में ले जाए, उसके लड़के को आंख से दिखना बन्द हो गया है, अभी तक काफी रूपया खर्च कर चुके हैं, कोई लाभ नहीं हो रहा है आँख से कुछ दिखता ही नहीं डाक्टर जोक की भाँति इनकी दौलत का नशा नित्य चूस रहे हैं और झगड़े का प्रमुख कारण जो टेम्पो था, उसका भयानक एक्सीडेन्ट हो गया, जिसमें वह एकदम चकनाचूर हो गया है। अब मैं यह सोचने पर विवश हूँ कि गुरूजी जो कहते हैं ‘‘करते रहो-करते रहो’’ यही महामन्त्र है।

जय विन्द यादव ने बतलाया उनके शत्रु काफी तीव्र है अतः मुझे घर छोड़ कर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। गुरू आदेशानुसार माँ पीताम्बरा के बीज मंत्र का अनुष्ठान पूर्ण क्रिया, गुरूदेव से सम्पर्क किया अब कौन सा अनुष्ठान करू इन्होंने इसे ही ‘‘करते रहो ’’ का निर्देश दिया व हवन में विशेष सामग्री का प्राविधान बतालाया-हल्दी, मालकांगनी, सुनहरी हरताल से हवन के बाद, काली मिच्र का पाउडर$सरसों का तेल$शराब आपस में मिला कर एक सो आठ आहुतियाँ दी गई, हवन में प्रत्येक एक सौ आहुतियों के बाद एक मछली दी गई (मछली छील कर, पेट साफ कर शराब में डुबो कर आहुति दी गई) इस क्रिया के बाद उस तीव्र शत्रु को माँ का दंड भोगना ही पड़ गया जा बहुत ही भयानक था तथा अन्य चारों को दर-दस वर्ष की सजा हो गई व जेल जाना पड़ गया। यह था ‘‘करते रहो-करते रहो’’ महामन्त्र का परिणाम (नोट : अपने गुरू की अनुमति से ही विशेष हवन करें, वर्ना परिणाम दुखद भी हो सकते हैं।)

हमारे द्वितीय सद्गुरू महाराज योगेश्वरा नन्द जी भी हमसे निरन्तर एक के बाद एक अनुष्ठान पूर्ण करवाते रहे। एक अनुष्ठान पूर्ण होने पर पुनः दूसरे अनुष्ठान के लिए प्रेरित करते रहे जो उनकी ही कृपा से पूर्ण होते रहे, हमें स्वयं ही आश्चय होता है, मैं यह सब कैसे निर्विघ्न पूर्ण करता रहा। मेरा अब यह मानना है यदि सद्गुरू स्वयं सक्षम है तो उसकी शक्तियों का सम्भल लेकर शिष्य निर्विघ्न आगे का मार्ग स्वयं प्रसस्त्र कर लेता है, मेरे गुरूदेव महाराज योगेश्वरा नन्द जी का कहना है - पुएचरण होने तथा माँ की कृपा प्राप्त होने पर भी साधक को अपनी साधना की साघ्य से जोड़ने वाली डोर (परम्परा) को कभी शिथिल नहीं होने देना चाहिए-यही उच्च कोटि की साधना का गूढ़ रहस्य है।    




डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434
लखनऊ यू0पी0

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