Wednesday 25 May 2016

मंत्र सिद्धी

माता बगलामुखि ज्ञान-विज्ञान की सीमा से परे, भाषा-जाति के बन्धन से मुक्त, ब्रह्माण्ड की ऐसी निरविशय, भूमा और महा विराट् चिन्मय शक्ति है, जो सदैव श्रद्धा-भक्ति और कर्म के वशीभूत होती है। इनके मंत्रों में अपार शक्ति छिपी है।

मंत्र सिद्धि के लिए शास्त्रों में दो उपक्रम दिए हैं :-
  1. मंत्र-संस्कार
  2. मंत्र-जप

मंत्र संस्कार :- दस होते हैं, इन संस्कारों के बिना मंत्र अपनी शक्ति और सामर्थ्य नहीं प्राप्त कर सकता।

1. जनन संस्कार :- भोजपत्र पर गोरोचन, हल्दी के रस या पीले चन्दन से मातृका योनि बनावे, फिर ईशान कोण से मातृका वर्ण लिख कर पूर्ण करे व इस अंकित भोजपत्र को पीठ पर स्थापित कर के आवाहन-स्थापन व पंचोपचार विधि से बगलामुखि देवी की पूजा-अर्चना करें, दीप इत्यादि जलाए फिर एक खाली भोजपत्र के चौकोर टुकड़े पर बगलामुखि मंत्र के एक-एक वर्ण को मातृका योनि से उतारे, ऐसा करने से जनन संस्कार होता है, फिर उस भोजपत्र से देख कर 1008 बार मंत्र जप करें बाद में पूजा घर में ऊँचा चिपका दें या पूर्वी दीवाल पर लटका दें जहाँ पूजा करते समय दृष्टि जाती रहे।

2. दीपन संस्कार :- ह्ंसः ऊँ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय् जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा सोऽहम्। 1000 बार जपे यह मन्त्र को उद्दीप्त करता है।

3. बोघन संस्कार :- 5000 बार जपने से होता है। हुं ऊँ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वा कीलय बुद्धि विनाशय हृं ऊँ स्वाहा हुं।

4. ताडन संस्कार :- मंत्र के आगे-पीछे फट् लगा कर 1000 बार जपे। फट् ऊँ ह्लीं बगलामुखि .............................. हृं ऊँ स्वाहा फट्।

5. अभिषेक संस्कार :-  हल्दी चन्दन से भोजपत्र पर मूलमंत्र को लिखें रां हं सः ऊँ व्याहतियो से गंगाजल को एक हजार बार अभिमंत्रित करें। उस जल को पीपल के पत्ते से, पीतल की थाली में रखे हुए (भोज पत्रांकित) मंत्र पर 36 बार डाले फिर मूल मंत्र को एक हजार बार जप करें।

6. विमली करण :- एक हजार बार निम्नमंत्र का जप करें-
ऊँ त्रों वषट् ऊँ ह्लीं बगलामुखि ........ ह्लीं ऊँ स्वाहा वषट् त्रों ऊँ।

7. जीवन संस्कार :- एक हजार बार जप करें-
स्वघा वषट् ऊँ ह्लीं बगलामुखि ............ ह्लीं ऊँ स्वाहा वषट् स्वघा।

8. तर्पण संस्कार :- दूध, घी व जल के मिश्रण से मूलमंत्र को जपते हुए कुश हाथ में लेकर देवतीर्थ से ‘‘तर्पयामि’’ लगा कर सौ बार तर्पण करें।

9. आप्यायन संस्कार :- ह्रौं बीज लगा कर मूलमंत्र को एक हजार बार जप करें व बीच में मंत्र वणों की संख्या के बराबर अर्थात् 36 बार आप्यायित नमः पद कहकर जल देने से यह संस्कार पूर्ण होता है।

10. गोपन संस्कार :- मूल मंत्र में ह्रीं लगाकर एक हजार बार जपे। इस संस्कार को जपने से पूर्व सदैव के लिए मंत्र को गुप्त रखने का संकल्प भी लेना होता है।

विशेष - इन दस संस्कार को करके, इन समस्त जपों के दशांश के बराबर हवन और उसके भी दशांश के बराबर मार्जन तथा उस मार्जन के दशांश के बराबर तर्पण तथा तर्पण के दशांश ब्रह्मण भोज कराया जाता है।
इस प्रक्रिया से साधक को मंत्र सिद्धि मिल जाती है, जो साधक को यथेष्ट फलदायी सिद्ध होती है।

हवन :- शुद्ध घी द्वारा करें।

मातृका योनि

भोजपत्र पर आत्म विमुख त्रिकोण बनाए, फिर उस त्रिकोण में छः-छः समान रेखाएं खींच कर 49 त्रिकोणों में विभक्त कर लेते हैं, इस प्रकार मातृका योनि बनती है। फिर उसमें ईशान कोण से मातृका वर्ण लिख कर पूर्ण करें।



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