Wednesday 23 December 2015

परविद्या भक्षणी व काला जिन्न


शास्त्रो में लिखा है यदि आप को आर्थिक मानसिक, शारीरिक हानि पहुचाने के उद्धेश से किसी स्वार्थी व्यक्ति द्वारा कोई अभिचाारिक कर्म आप के विरूद्ध कराया हो तो भगवती बगला मुखी का यह प्रयोग अति उत्तम है।
इस मंत्र की यह विशेषता है कि विरोधी द्वारा प्रयोग की गई  विद्या का हरण कर, शमन कर देती है।
यह विद्या 1 लाख जप से सिद्व होती है। जिसे 14 से 21 दिनों में पूर्ण कर लेते हैं। यदि यह प्रोग्राम ठीक चला तो 5 किलो मीटर तक कोई भी विद्या कार्य नही करेगी। यदि इस मंत्र के बाद विपरीत प्रत्यगिरा मंत्र लगा कर जाप करे तो वह गड़ंत को नष्ट कर देता है।
हमने मूल मंत्र का सम्पुट लगा कर 1 लाख जप का संकल्प किया, 17 हजार जप के उपरान्त एक रात जप कर उठता हूँ बाहर एक काला जिन्न खडा था, मुझे देखते ही वह छुपने लगा, मैने उसे बुला कर पूछा, यहाँ कैसे ? गुर्रा कर उसने उत्तर दिया - भेजा गया हूँ, मैने उससे कहा माफ किया परन्तु जिसने भेजा है उसे एक किक लगाओ कि उ़सके मुँह से खून आए। उसने मुझे सलाम ठोकी और तुरन्त ही चला गया। एक बात मैने नोट की जिन्न चल नही रहा था हवो में तैरता हुआ मेरे पास आया था दूसरे वह मुँह से नही बोल रहा था वरन् उसके शरीर से आवाज निकल रही थी बड़ा ही लम्बा-चैड़ा हट्टा-कट्टा जिन्न था, यह कोई स्वप्न की बात नही है वरन् प्रत्यक्ष घटी घटना है। ठीक दूसरे दिन मोहल्ले की ही एक औरत को टेम्पों ने पीछे से टक्कर मारी वह मुंह के बल सड़क पर गिरी, उसके मुंह से काफी खून आया, साथ ही सीने की सारी हडिडयाँ टूट गई, वह एक दुष्ट तांत्रिक है।
एक लाख जप के उपरान्त दशांश जप कर हवन किया

हवन सामग्री : हल्दी, पीली सरसों साबुत लाल मिर्च हवन सामग्री जिसे कडुवे तेल में साना गया।





संकल्प : ऊँ तत्सद्य..........प्रसाद सिद्धी द्वारा पर कृत्या नष्टार्थे पर-मंत्र, पर-तन्त्र, पर-यंत्र भक्षार्थे च मम सर्वाभीष्ठ सिद्धियर्थे भगवती बगला मूलमंत्र सम्पुटे पर विद्या भक्षिणी मंत्र एक लक्ष जपे अहम् कुर्वे।

मंत्र - परविद्या भक्षणी मन्त्र (127 अक्षर)

ऊँ ह्लीं श्रीं ह्रीं ग्लौं ऐ क्लीं हुं क्षौं बगला मुखि पर प्रयोगम् ग्रस ग्रस, ऊँ 8 ब्रम्हास्त्र रूपिणि पर विद्या-ग्रासिनि! भक्षय भक्षय, ऊँ 8 पर-प्रज्ञा हारिणि! प्रज्ञां भ्रंशय भ्रंशय ऊँ 8 स्तम्भ नास्त्र रूपिणि! बुद्धिं नाशय नाशय, पच्चेन्द्रिय-ज्ञांन भक्ष भक्ष, ऊँ 8 बगला मुखि हुं फट् स्वाहा।
( जहाँ 8 है वहां ह्लीं से क्षौम तक पढ़ें )

विनियोग : ऊँ अस्य श्री पर विद्या-भेदिनी बगला मुखी मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, पर विद्या भक्षिणी श्री बगलामुखी देवता, आं बीजं, ह्ल्रीं शक्ति, क्रो कीलंक, श्री बगला-देवी-प्रसाद सिद्धि द्वारा पर-विद्या भेदनार्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास : श्री ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, पर विद्या भक्षिणी श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, आं बीजाय नमः गुहो, ह्ल्रीं शक्तिये नमः पदियोः, क्रों कीलकाये नमः सर्वाग्ङे, श्री बगलादेवी प्रसाद सिद्धि द्वारा पर विद्या भेदनार्थेजपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।

कर-न्यास : आं हृीं क्रों अंगुष्ठाभ्यां नमः, वद वद तर्जनीभ्यां स्वाहा, वाग्वादिनि मध्यमाभ्यां वषट्, स्वाहा अनामिकाभ्यां हुं, ऐ क्लीं सौं कनिष्ठाभ्यां वौष्ट्, ह्ल्रीं करतल-कर-पुष्टाभ्यां फट्।

अग्ङ न्यास : आं ह्ल्रीं क्रों हृदयाय नमः, वद वद शिर से स्वाहा, वाग्वादिनि शिखायै वषट्, स्वाहा कवचाय हुं, ऐं क्लीं सौ नेत्र-त्रयाय वौष्ट्, ह्ल्रीं अस्त्राय फट्।

ध्यान - 

सर्व मंत्र मयीं देवीं, सर्वाकर्षण-कारिणीम्।
सर्व विद्या भक्षिणी च भजेऽहं विधि पूर्वकम्।

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Monday 23 November 2015

किस प्रकार साधना प्रारम्भ करें


‘क्रम दीक्षा’ के अनुसार साधना करने से मन्त्र-साधना का श्रेष्ठ फल भुक्ति और मुक्ति दोनों ही साधक को प्राप्त होती है। निम्न क्रम से मन्त्र प्राप्त कर क्रमशः उनका पुरूश्रचरण करते हैं, सामान्यतः लोग सीधे छत्तीस अक्षर (मूल मंत्र) का जप करने लगते हैं, यह उचित नहीं प्रतीत होता, यदि एकाक्षर मंत्र (बीज मंत्र) से साधना प्रारम्भ कर आगे बढ़ते है तो सफलता अवश्य मिलती है। बाकी जो भी हो, यह बात तो अनुभवी गुरूओं के आधीन है। सामान्यतः - एकाक्षर, चतुरक्षर, अष्टाक्षर व छत्तीस अक्षर का पुरश्रचरण पूर्ण करते है। योग्य गुरू के सान्धि में ही साधना को बढ़ाने का प्रयत्न करें। योग्य गुरू - गुरू शब्द दो अक्षरों से मिल कर बना है। गु और रू, ‘‘गु’’ का अर्थ है अन्धकार, और ‘‘रू’’ का अर्थ है भगाने वाला कोई भी चीज या मनुष्य, जो आप के अन्धकार को मिटाने का कार्य करता है। वह आपका गुरू है शरीर में मौजूद गुरू को आप अच्छे तरीके से जोड़ सकते हैं व अपनी शंकाओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकते हैं। केवल पुस्तक से विषय स्पष्ट नहीं होता, न वहाँ कुंजियाँ मिलती हैं। ‘‘क्रम पूर्वक’’ ही महा विद्या का अनुष्ठान करना चाहिए। जैसा शिष्य, जैसी सामर्थ्य, वैसा ही ‘‘क्रम’’ होता है। गुरू और शिष्य - उभय पक्षों को बहुत सोच समझ कर भर पूर परीक्षा के बाद इस महाविद्या को देना और लेना चाहिए।
सर्व प्रथम आप लेखक के अनुभवों का एकाग्र मन से अध्ययन करें, यदि आप ने गुरू से दीक्षा नहीं ली है तो मन में गुरू बनाने की तड़प पैदा करें फिर भी कोई गुरूजन नहीं मिल रहा है तो लेखक का चित्र अपने सामने रख कर, उन्हें अपना मानसिक गुरू बनाने का संकल्प लेकर किसी भी शुभ मुर्हुत में पीताम्बरा माँ के बीज मंत्र ‘‘ह्ल्रीं’’ (हल्रीम) का सवा लाख का जप का संकल्प लेकर जप प्रारम्भ कर दें। माँ बगलामुखी का प्राण प्रतिष्ठित यंत्र साधना स्थल में स्थापित करे और नित्य गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवद्य से पूजन कर, माँ बगलामुखि मंत्र का जप करें। इस यंत्र के विशिष्ट प्रभाव से साधक को तंत्र साधना में शीघ्र सफलता मिलती है। जप हल्दी की माला से करते हैं असानी व पहनने के वस्त्र भी पीले होते हैं।
मन में दृढ़ विश्वास कर अपने मंत्र व गुरू की शक्ति पर भरोसा रखे आप अवश्य सफल होंगे एक अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद पुनः दूसरी, तीसरी व चौथी बार अनुष्ठान पूर्ण करें । इस प्रकार माँ को आप चार बार हवन एक ही मंत्र से ‘‘ह्ल्रीं स्वाहा’’ द्वारा करने के बाद स्वयं अनुभव होने लगेगा, परिस्थितियाँ आप के अनुकूल होने लगेंगी, परन्तु आप की अपनी यात्रा का विराम नहीं होगा, यह तो प्रथम सीढ़ी है। अब तीन-चार दिन विश्राम कर पुनः अनुष्ठान प्रारम्भ करें । इस बार मंत्र होगा ‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों’’ व संकल्प होगा मात्र एक लाख जप का। अनुष्ठान पूर्ण कर तीन चार दिन विश्राम कर पुनः अनुष्ठान प्रारम्भ करें। इस बार मंत्र होगा ‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा’’ व संकल्प होगा मात्र एक लाख जप का। इसको पूर्ण करने के उपरान्त तीन-चार दिन विश्राम कर लें। इस प्रकार निरन्तर अभ्यास करने से आप की साधना की भूमि दृढ़ हो जाती है। अब आप माँ पीताम्बरा के ‘मूल मंत्र’ जप के उत्तराधिकारी बन जाते हैं, अतः भवगती बगलामुखि के मूलमंत्र के एक लाख जप का संकल्प कर पुरश्चरण पूर्ण करें, ऐसा चार बार पुरश्चरण पूर्ण करें। मंत्र जप का समय रात्रि 10 से 2 बजे का हो तो सर्वोत्तम रहेगा। जप समय से ही करें व निश्चित संख्या रखे घट-बढ़ न होने पाए सुबह माँ बगलामुखि के कवच-स्त्रोत का पाठ करें , बीच-बीच में श्तनाम से अर्चियामि भी करते रहें। लेखक के पूर्व के अनुभवों का हृदयांगम करें , निश्चित रहिए मन की तड़प के अनुसार माँ आप पर कृपा करेगी। जो स्वयं ही आप अनुभव करेगें। याद रखें - पुरश्चरण पूर्ण होने व माँ की कृपा प्राप्त होने पर भी आप को अपनी साधना की साध्य से जोड़ने वाली परम्परा को कभी शिथिल नहीं होने देना है यही उच्च कोटि की साधना का गूढ़ रहस्य है।
नोट - जप के अनुसार उसका ध्यान अवश्य करते है क्यों कि सिद्ध मन्त्र भी बिना ध्यान के गूंगा ही रहता है।

1- एकाक्षरी मंत्र - ह्ल्रीं (ह्ल्रीम) 

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगला-मुखी महा-मन्त्रस्य, श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री बगलामुखि देवता, लं बीजं, ह्ल्रीं शक्तिः, ई कीलकं, श्री बगलामुखि-देवताम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः (जल पृथ्वी पर डाल दें)।

ऋष्यादि न्यास - ऊँ ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री बगला मुखी देवतायै नमः हृदि, लं बीजाय नमः गुह्म, ह्ल्रीं शक्तये नमः पादयोः, ई कीलकाय नमः सर्वाङगे।

कर न्यास - ऊँ हल्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ऊँ ह्ल्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा (दोनों प्रथम उंगली के ऊपरी सिरे आपस मंे मिलाएं।
ऊँ ह्ल्रूं मध्यमाभ्यां वषट् (दोनों मध्यमा उंगली के सिरे आपस मंे मिलाए।
ऊँ ह्ल्रैं अनामिकाभ्यां हुं (अनामिका उंगली के सिरे मिलाए)
ऊँ ह्ल्रौंकनिष्ठाभ्यां वौषट् (कनिष्ठा उंगली मिलाए)
ऊँ हल्रः करतल कर - पृष्ठाभ्यां नमः। (दोनों हथेलियों आगे-पीछे भागों को छुए)

अगङ न्यास - 

ऊँ हृा हृदयाय नमः (हृदय को दाहिने हाथ से छुए)
ऊँ हृीं शिरसे स्वाहा (सिर को छुए)
ऊँ हृं शिखायै वषट् (शिखा को छुए)
ऊँ ह्रैं कवचाए हुं (सीने पर कवच बनाए)
ऊँ हृौं नेत्र-लयाय वौषट् (आंखों को छुए)
ऊँ हृः अस्त्राय फट् (सर पर दाया हाथ दाई तरफ से बांई तरफ घुमाते हुए 3 बार चुटकी बजाएं)

ध्यान -

वादी मूकति, रङकति क्षिति-पति वैश्वानरः शीतति,
क्रोधी शाम्यति, दुर्जनः सुजनति, क्षि प्रानुग खञजति।
गर्वी खर्वति सर्व विच्च जड़ति त्वद्-यन्त्रणा यन्त्रितः,
श्री नित्ये! बगलामुखि! प्रति दिनं कल्याणि तुभ्यं नमः।।

भावार्थ: हे कल्याणि! आप के मन्त्र के द्वारा यंत्रित किया गया वादी-गूंगा, छत्रपति रंक, अग्नि शीतल, क्रोधी-शान्त, दुर्जन-सुजन, धावक लंगड़ा, गर्व युक्त छोटा और सर्वज्ञ-जड़ हो जाता है अतः एव हे लक्ष्मी स्वरूपे नित्ये माँ बगला! कल्याणी! मैं आप को प्रतिदिन नमन करता हूँ।

हवन सामग्री -

पीसी हल्दी - 1 किलो0
मालकांगनी - 500 ग्राम
सुनहरी हरताल - 20 ग्राम
पिसा सेंघा नमक - 1 चम्मच
सरसों का तेल - 200 ग्राम
लौंग - 50 ग्राम
बेसन के लड्डू

समिधा - आम/नीम की लकड़ी

एक पुरूश्रचरण पूर्ण होता है -


  1. जप का दशांश हवन 
  2. हवन का दशांश तर्पण
  3. तर्पण का दशांश मार्जन
  4. व मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज


भगवती के बीज मंत्र ‘‘ह्ल्रीं’’ की तीव्रता

मेरे यजमान की ‘‘आप्टिकल्स’’ की दुकान है, मकान मालिक ने दो माह में दुकान खाली कर देने को कहा, मेरा यजमान काफी परेशान हो गया, उसकी पिछले दस वर्षों का परिश्रम व्यर्थ हो रहा था। समीप में कहीं दुकान मिल भी नहीं रही थीं। मैंने उसे भरोसा दिया ‘‘माँ की सेवा में आ जाओ, सब ठीक ही होगा। उसने मुझ पर भरोसा किया रात्रि को श्मशान में वह भी मेरे साथ हवन पर बैठने लगा। यजमान को ‘‘ह्ल्रीं’’ का जप एक लाख पूर्ण कराने के बाद, उसे लेकर भैरोसुर महादेव के प्राचीन मंदिर के प्रांगण में हवन किया तथा उससे भी आहुतियाँ डलवाई, हवन लगातार दो घंटे चला। हवन के अन्त में यजमान के कल्याण हेतु भवगती से प्रार्थना की। रात्रि दो बजे वापस घर, लौट आए तथा यजमान को निर्देश दिया कि घर जाकर तपर्ण, मार्जन भी कर देना।
दूसरे दिन यजमान ने हमें बतलाया कि तपर्ण, मार्जन करते-करते सुबह के छः बज गए थे। उसकी भगवती के प्रति पूर्ण समपर्ण की भावना को देखते हुए मैंने भगवती से पुनः स्वतः प्रार्थना की ‘‘हे! भगवती इस नवीन साधक पर अपनी कृपा दृष्टि करने की महान कृपा करें।’’
चमत्कार हो गया भगवती ने यजमान पर भरपूर कृपा की, एक ग्रहक उसके पास अपना चश्मा बनवाने आया जिसे उसने तुरन्त ठीक कर दिया और कहा अब आगे से आप को सेवा नहीं दे पाऊँगा क्योंकि मकान मालिक ने इस माह के अन्त तक दुकान खाली कर देने को कहा है, मैं देख रहा हूँ, परन्तु दुकान कहीं मिल नहीं रही है, देखों अब मेरा क्या होता है। उस ग्राहक ने तुरन्त कहा, आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। मेरी एक दुकान खाली है, कल शाम आकर मेरी माँ से बात कर लेना, दुकान आपको मिल जाएगी। दूसरे दिन यजमान ने मुझसे वहाँ चलने का आग्रह किया, जिसे मैं टाल नहीं सका और उसकी माँ ने कल बताऊँगी कह कर टाल दिया। मेरा यजमान पुनः भयभीत होने लगा, यदि दुकान न दी तब क्या होगा? मैंने उसे माँ पर भरोसा रखने का आश्वासन दिया। दूसरे दिन मकान मालकिन ने अपने पुत्र के द्वारा दुकान की चाभी भिजवा दी और कहा आप दुकान देख लो आज पन्द्रह तारीख है, मैं पन्द्रह दिनों का किराया नहीं लूंगी, आप का एक तारीख से किराया शुरू होगा। मैंने जब सुना मेरा मन गदगद हो गया, भगवती ने उसकी सुन ली दुकान भी प्रमुख स्थान पर और अभी माह समाप्त होने में पन्द्रह दिन शेष थे। दुकान खाली करने का भय जो मेरे यजमान को सता रहा था भगवती ने उस भय को समाप्त ही नहीं किया वरन् समीप ही उससे अच्छे स्थान पर दुकान दे दी और वह भी बिना प्रयास किए। यह होता है भगवती पर पूर्ण भरोसा रखने का पुरस्कार। यदि आप ने भरोसा किया तो भगवती उसे कभी टूटने नहीं देती ऐसा मेरा बारम्बार का अनुभव रहा है।


2- तुर्याक्षर, चतुरक्षर (4 अक्षरों वाला) मंत्र

‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों’’

ध्यान - 

कुटी लालक-संयुक्तां मदा घूर्णित-लोचनाम्।
मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशा घराम्।।
सुवर्ण-शैल-सुप्रख्य-कठिन-स्तन-मण्डलाम्।
दक्षिणा र्क्त-सन्नाभि-सूक्ष्म-मध्यम-संयुताम।।

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगला-चतुरक्षरी-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री बगला मुखी देवता, ह्ल्रीं बीजम् आँ शक्तिः, क्रों कीलंक श्री बगलामुखी देवताऽम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोग।

ऋष्यादि न्यास - श्री ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदये, ह्ल्रीं बीजाय नमः गुहये, आँ शक्तिये नमः पादयो, क्रों कीलकाय नमः सर्वाङगे, श्री बगलामुखी देवताऽम्बा- प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।

कर न्यास व अंग न्यास - एकाक्षरी की तरह करें।

3- अष्टाक्षर (आठ अक्षरों वाला मंत्र)

‘‘ऊँ आं ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा।’

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगलाऽष्टाक्षरात्मक-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, ऊँ बीजं, ह्ल्रीं शक्तिः, क्रों कीलकम् श्री बगलाम्बा प्रसाद प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। (जल पृथ्वी पर डाल दें)

ऋष्यादि-न्यास - श्री ब्रह्मार्षये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, ऊँ बीजाय नमः गुहे, ह्रीं शक्तये नमः पादयोः, क्रों कीलकाय नमः सर्वाङगे, श्री बगला-प्रसाद पीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।
(कर न्यास, अङगन्यास - एकाक्षर मंत्र की तरह करें।)

ध्यान -

युवतीं च मदोन्मतां, पीताम्बरा-घरां शिवाम्।
पीत-भूषण-भूषाङगी-सम-पीन-पयोघराम्।।
मदिरामोद-वनां प्रवाल-सदृशाघराम्।
पान-पात्रं च शुद्धि च विभ्रतौ बगलां स्मरेत्।।

नोट - इस बीज मंत्र ह्ल्रीं में माँ पीताम्बरा लता की तरह सदा विलास करती हैं। अतः ध्यान पूर्वक जप करने से वह साधक के शत्रुओं का स्तम्भन करती है, मनोहर कामिनियाँ उसके वशीभूत होती हैं, विपत्तियाँ दूर होती है और मन-माना घर प्राप्त होता है तथा सभी मनोवांच्छित कार्य पूरे होते हैं, ऐसा मेरा अनुभव रहा है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Friday 9 October 2015

सम्पुटित मंत्र की तीव्रता (स्वास्थ्य लाभ हेतु)


मेरे परिचित की रात एकाएक स्वास्थ्य चिन्ता जनक हो गयी उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाना पड़ा, इधर गुरू जी को फोन लगाया उन्होनें महामृत्युंजय जप बगलामुखि के मूल मंत्र द्वारा सम्पुटित कर दस हजार जाप का निर्देश दिया, मंैने शीघ्र ही महामृत्युंजय मंत्र गुरू वचनों को लिपिबद्ध कर तुरन्त संकल्प लें जप प्रारम्भ किया। रात्रि 11.57 से सुबह सात बजे तक जप चलता रहा, मरीज के हालात में सुधार था इस प्रकार तीन ही दिनों में मरीज के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया, व मरीज अस्पताल से घर आ गयी।

मरीज के घर आने पर-क्रिया की-

कच्चे धागे से मरीज को सर से पांव तक नापते हैं ऐसा 7 बार नाप कर, वह धागा जटा नारियल (पानी वाला) पर लपेट कर रोली व काजल के 7-7 टीके लगा कर मरीज के ऊपर से 7 बार उतारे, उतारते समय कहे, मरीज के सारे रोग शोक इसमें आ जाए व सन्ध्या समय बहते पानी में इसे प्रवाहित करे यह कहते हुए कि मरीज के सारे रोग-शोक अपने साथ ले जाओ, पीछे मुड़कर न देखें।

संकल्प- ऊँ तत्सध......... भगवती पीताम्बराया प्रसाद सिद्वि द्वारा कश्यप गोत्रोत्यन्न (रोगी का नाम) नामम्ने मम यजममानस्या सर्वोभिष्ट सिद्वियार्थे च स्वास्थ्य लाभर्थे श्री भगवती पीताम्बरा मूल मंत्र सम्पुटे महामृत्युंजय मंत्र यथा शक्ति जपे अहम् करिण्ये।

बगलामूल मंत्र + महामृत्युंजय मंत्र + बगला मूल मंत्र यह 1 मंत्र हुआ। 5 माला उपरोक्त की जप नित्य 5 दिनों में मरीज को ठीक होते देखा गया है। अन्त में भवगती को भोग यह कहते हुए अर्पित किया कि भगवति कृपया भोग स्वीकार करें व भोग को बांट दें। तीन माह बाद मेरे यजमानस्या की पुनः स्वास्थ्य चिन्ता जनक होने लगा एकाएक शरीर ठंडा हो जाता, बेहोशी आ जाती, लेटने पर स्वतः पेशाब हो जाता था।

संकल्प- ऊँ तत्सध......... कृत्या प्रयोगम् मंत्र यंत्र तंत्र कृत प्रयोग विनाशार्थे, आरोग्य प्राप्ताथे भगवति अमृतेश्वरी स्वरूपा वगलामुखि प्रसाद सिद्धि द्वारा मम यजमानस्या (नाम ......) सर्व आरोग्य प्राप्तार्थे होमे अहम् करिष्ये।

नोट: प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति, प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति। क्रमशः 1 से 4 व पुनः क्रम 4 से 1 की आहुति व्यवस्था की।



1. महामृत्युंजय - 5 माला का हवन किया, मंत्र के अन्त में स्वाहा लगा कर, प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति दी।
2. अमृतेश्वरी मंत्र - ऊँ श्री हृीं मृत्युंजये भवगती चैतन्य चन्दे हंस संजीवनी स्वाहा।
3. भवान्य अष्टक - 1 पाठ, प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति दी।
4. वगलामुखि मूल मंत्र - 5 माला, प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति दी गई।

अब क्रम को उल्ट कर हवन किया जो क्रमशः 4, 3, 2 व 1 की भांति आहुतियाँ दी गई। यह रात्रि 11 से प्रारम्भ कर रात्रि 2.37 पर समापन कर दिया। घी का दीपक हवन समय जलता रहे व वहीं कलश में पानी रखे।
हवन सामग्री:-पीली सरसों 250 ग्राम, राई 250 ग्राम, लाजा 500 ग्राम, वालछड़ 10 ग्राम, काली मिर्च 100 ग्राम, बूरा 500 ग्राम, शहद 200 ग्राम, हल्दी 200 ग्राम, लौंग 5/-, इलाइची 5/-, खीर 100 ग्राम इन सभी को घी में साना गया। दूसरे दिन ही मरीज़ को पेशाब रोकने की शक्ति नहीं रह गई थी, वह सब ठीक हो गई, पुनः कच्चे धागे वाला प्रयोग पूर्ववत् कर दिया परिणाम अति उत्तम रहा।

भवान्मअष्टक

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता,
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्म मैव,
गतिस्वत्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि !!1!! स्वाहा
भवान्धाग्पारे महादुःख भीरूः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमतः।
कु संसार-पाश प्रबद्धः सदाऽहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।2।। स्वाहा
न जाननानि दानं न ध्यान योगं
न जानामि तन्त्रं न च स्त्रोत मन्त्र।
न जानामि पूजां न च न्यास योगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।3।। स्वाहा
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ
न जानामि मुक्तिलयं वा कदाचित।
न जानामि भक्तिं व्रतंवाऽपि मात 
गतिस्त्व-गविस्त्व त्वमेका भवानी।।4।। स्वाहा
कुमार्गी कुसंग्ङी कुबुदि कुदासः
कुलाचार हीनः कदाचार लीनः।
कुदृष्टि कुवाक्य प्रबन्धः सदाऽहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।5।। स्वाहा
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशी थेश्वरं वा कदाचित।
न जानामि चाऽन्यत् सदाऽहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।6।। स्वाहा
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चा अनले पर्वते शत्रु मध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदां मां प्रथाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।7।। स्वाहा
अनाथो दरिद्रो जरा रोग युक्तो
महाक्षीणः दीनः सदा जाड्त वक्त्रः।
विपन्तौ प्रवीष्टः प्रवष्टः सदादहं
गतिस्तवं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।8।। स्वाहा

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बगला विपरीत प्रत्यंगिरा का अनुष्ठान

जब दुष्टों द्धारा कोई तांत्रिक  विधान कर दिया जाता है तो जीवन कष्टमय हो जाता है, मुझ पर कुछ दुष्टों की छत्र छाया ऐसी पड़ी कि अभी मुझे ब्रम्ह राक्षस से मुक्ति पाकर कुछ ही मास बीते थे, कि मुझे अनुभव होने लगा, कहीं कोई गड़बड है, क्योंकि  मेरेे कार्यो में पुनः पूर्व की भांति रूकावटें आने लगी। चूँकि अब मैं भगवती की शरण में आ चुका था, गुरूजनों से निर्देश लिया, उन्होने मदार मंत्र का अनुष्ठान बताया, परन्तु मदार मंत्र का अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद भी मुझे कोई लाभ नही हुआ। मंथन किया जब तक गुप्त शत्रु, नष्ट नही होता, तब तक वह हम पर अपनी शक्तियो का प्रयोग करता रहेगा। अतः गुरू जी से परामर्श लिया, उन्होने कहा बहुत हो गया अब इसे निपटा ही दो।
गुप्त शत्रु के निग्रहार्थ भगवती वगला मुखि के विपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग करते है अतः सर्वार्थ सिद्धयोग में सवालक्ष जप का संकल्प पूर्ण कर जप पूर्ण कर अन्ततः हवन करने के दस दिनो बाद ही गुप्त शत्रु के मँुह में रोग हो गया चूंकि इस शत्रु को दंड देने का संकल्प लिया था अतः दो वर्षों से वह मुँह के रोग से कष्ट भुगत रहा है।
मुझ निरपराधी पर माँ की कृपा हुई, यदि आप अपराधी नही है, व दुष्ट आप को नाना प्रकार से कष्ट दे रहा है, तो भूल कर उस अपराधी के नाम का उल्लेख कर संकल्प मत करे, केवल गुप्त शत्रु निग्रहार्थे च दंडाथे ही कहे क्यों कि कभी-कभी सोचते हम कुछ है और अपराधी निकलता दूसरा है, यह कार्य भगवती पर छोड़ दे, वह स्वयं पता कर लेगी कौन वास्तव में आप का शत्रु है। और उसे ही दंड दे देती है। जिस प्रकार क्रिया की गई आप के सम्मुख रख रहा हूँ-

शुभ मुर्हत से प्रारम्भ करते है।

संकल्प-ऊँ तत्सधं---- मम अज्ञात शत्रु कृत यंत्र-मंत्र तंत्र कृत्या प्रयोग सम्नार्थे च दुष्ट शत्रु क्षयार्थे च दंडार्थे भगवती पीताम्बराया विपरीत प्रत्यंगिरा एक लक्ष जपे अहम् कुर्वे।

अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि, अनुष्टुय छन्दः प्रत्यंगिरा देवी देवता, ऊँ बींज, हृीं शक्ति कृत्या नाशने कार्य जपे विनियोगः! 

ऋष्यादि न्यास-

ऊँ हृीं यां कल्पयन्ती नोअरयः हृां हृदयाय नमः।
ऊँ क्रूराम् कृत्याम् हृीं शिर से स्वाहा।
ऊँ वधूमिव हृं शिखायै वषट्।
ऊँ ताम् ब्रह्मणा ह्रैं कवचाय हुम्।
ऊँ अप निर्णुद्य हृों नेत्र त्रयाय वौषट्।
ऊँ प्रत्यक् कर्तार मृच्छतु हृः अस्त्राय फट्।

फिर ध्यान करे-

1. भगवती के मुंह से ज्वाला निकाल रही है।
2. सर के बाल छोटे-छोटे है जो तन कर खड़े हो गए है
3. कराल वदना है, भयंकर रूप है।
4. चार भुजाए है-

दांए में 2 भुजा-  

1. गदा घुमा रही है।
2. मशाल जल रही है।

बाए में 2 भुजाए है  
        
1. वर मुद्रा है
2. जिह्वा है। 

इसी जिह्वा वाले हाथ में जप समय शत्रु का ध्यान करे।

जप मंत्र- ‘‘ऊँ हृीं याम् कल्पयन्ती नो अरेय क्रूराम कृत्यामि वधू मिव। तांम् ब्रम्हणा अप निर्नुद्म प्रत्यक् करतार मिच्छतु हृीं ऊँ।‘‘ 

भगवती कं यंत्र के सामने कडुवे तेल का दीपक जला कर रूद्राक्ष की माला से जप पूर्ण करे। इससे गड़न्त भी कट जाता है, यह एमरजेन्सी प्रयोग है। जप कर दशाशं हृवन, तर्पण, मार्जन व ब्राम्हण भोज पूरा विधान करें। जितनी भी उच्चकोटि की साधनाएं हैं उनका विधान एक लाख जप का होता है, वैसे 40 हजार से कार्य बनते देखे गए हैं। यह विपरीत प्रत्यंगिरा किए हुए अभिचारों को काटती हैं व पुनः कृत्या करने वाले के पास वापस लौट जाती है।

हवन सामग्री:- राई 250 ग्रा, पीली सरसों, 500 ग्रा., हल्दी 50 ग्रा., काली मिर्च थोड़ी सी, लौंग 10 ग्रा. व हवन सामग्री, नीम की पत्ती, थोड़ा पिसा नमक, नारियल के तेल में सान कर दशांश हवन करें।

हवन से पूर्व:- एक आठ अंगुल गूलर की लकड़ी छील कर, उस पर मनुष्य की आकृति बनाए व जो दुःखी कर रहा है, उस कलाकार के नाम से या अज्ञात शत्रु की प्राण प्रतिष्ठा करें। प्राण प्रतिष्ठा में जहाँ-जहाँ वगला प्राण ही प्राण लिखा है वहाँ (शत्रु का नाम) प्राण ही प्राण करें। शत्रु के हृदय स्थान पर अनामिका उंगली रख कर प्राण प्रतिष्ठा करें व 1 माला प्रत्यंगिरा से अभिमंत्रित कर उठाकर अलग रख दें। हवन प्रारम्भ करें व लकड़ी प्रज्वलित होते ही इस गूलर की लकड़ी को हवन कुंड में यह कहते हुए रख दें ‘हे भवगति प्रत्यंगिरे मैं अपने इस शत्रु को आप को समर्पित कर रहा हूँ, इसे आप स्वीकार करे तथा पुनः आहूतियाँ डालना प्रारम्भ करे। गूलर की लकड़ी पर प्राण प्रतिष्ठा से उलट वार होता है।

प्राण प्रतिष्ठा- गूलर की लकड़ी पर 
विनियोग-ऊँ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु रूद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामानिच्छन्दासि, पराऽऽख्या प्राण शक्ति देवता आं बीजं, हृी शक्तिः, क्रों कीलकम् मम शत्रु (.......) प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।(जल भूमि पर डाल दे)

ऋष्यादि न्यास- ऊँ अंगुष्ठायो।
ऊँ आं हृीं क्रौं अं कं खं गं घं ड़ं आं ऊँ हीं वाय वग्नि सलिल
पृथ्वी स्वरूपाददत्मने डंग प्रत्यंगयौः तर्जन्येश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं इं छं जं झं ञं ई परमात्य पर सुगन्धा ऽऽत्मने
शिरसे स्वाहृा मध्यमयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं ड़ं टं ठं डं ढं णं ऊँ श्रोत्र त्व क्चक्षु-जिव्हा 
ध्राणाऽऽत्यने शिखायैं वषट् अनामिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों एं तं थं दं धं नं प्राणात्मने-कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों पं फं बं भं मं वचना दान गमन विसर्गा
नन्दाऽऽत्मने औं नेत्र त्रयाय वौषट।

ऊँ आं हृीं क्रौ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धय हंकार
चित्मऽऽमने अस्त्राय फट्।

इस प्रकार न्यास कर गूलर की लकड़ी पर बनाई गई आकृति के हृदय स्थान पर स्पर्श करते हुए यह मंत्र पढ़े-

ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः बगलायः प्रणा इह प्राणाः। 
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम) जीव इह स्थितः।
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)
सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि । ऊँ आं हृी क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)  वाडमनश्चक्षु-श्रोत्र-ध्राण-प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

तदोपरान्त हवन प्रारम्भ कर इसे हवन कुड़ं में रखे।




शत्रु की क्रिया को उसी पर लौटाने हेतु हवन सामग्री- अपा मार्ग की समिधा हल्दी, सफेद सरसों  का तिल, राई थोड़ा नमक आदि को प्रयोग करें ।

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Thursday 3 September 2015

पीले पुष्प और जल

‘‘पीला रंग’’ पृथ्वी का है व गति का कारण ही नहीं है वरन् जहाँ वह गति के अभाव में गति-प्रद है वही गति के आधिक्य में अवसादक है। एक शब्दों में कह सकते हैं कि पीत वर्ण गति का सर्व तो -भावेन संयामक है। भगवति बगलामुखि का वर्ण भी पीला है अतः इन्हें पीताम्बरा भी पुकारते हैं एक दृष्ठांत देखे-

बात सम्वत् 1930 की है स्वामी परमहंस राम कृष्ण देव की पत्नी श्री श्री शारदा माँ मलेरिया से मुक्त हुई थी और बहुत कमजोर थी। चिकित्सक की राय से दरवाजे पर शाम को धीरे-धीरे टहला करती थी। उसी गांव में एक पहलवान था, जो पागल हो गया था। जिसे भी देखता मारने दौड़ता था।एक दिन श्री श्री माँ जब टहल रही थी, तब वह पागल लकड़ी से माँ को मारने दौड़ा, पहले तो माँ मार से बचने के लिए दौड़ती हुई चक्कर लगाने लगी। फिर घूम कर उस पागल को एक थप्पड़ मारा। पागल गिर पड़ा और उसकी जिव्हा बाहर निकल आई, माँ ने उसकी जिह्वा बाए हाथ से पकड़ ली और उसके सीने पर अपना ठेहुना अड़ा कर थप्पड़ से उसे मारने लगी। तब तक लोग भी दौड़ कर आ गए थे, किन्तु सभी कुछ दूरी पर ही स्तम्भित होकर खड़े थे, क्योंकि उन लोगों ने देखा कि पागल नीचे पड़ा है और माँ उसकी जिव्हा को पकड़ उसे मार रही है, किन्तु माँ का देह, वस्त्र आदि सभी पीत प्रकाश से परिपूर्ण है और वह प्रकाश बाहर भी फैल रहा है तथा वह पागल भी ‘‘पीत वर्ण’’ का हो गया। पागल शान्त हो गया। माँ ने उसे छोड़ दिया और हंसती हुई अपने कमरे में चली गई। वह पागल भी उठा और अपने घर चला गया। बाद में वह पागल ‘साधू’ कहा जाने लगा। माँ की इस पर विशेष कृपा रही। इस प्रकार हम देखते है भवगती के पूजन में सभी सामग्रियों का रंग पीत वर्ण ही रखते हैं। पुण्य जो भगवती को अर्पण करते हैं बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। इन पुष्पों में भी अत्यधिक चमत्कारिक शक्ति छिपी होती है। एक दृष्टांत देखे-

आज  से आठ वर्ष पूर्व मैं सुबह भगवती की दैनिक पूजा कर रहा था, कमरे के बाहर एक स्त्री बहुत ही करूणा पूर्वक रो रही थी, जैसे तैसे पूजा कर बाहर आया, उस स्त्री ने बताया उसका पति अस्पताल में भर्ती है, डाक्टरो ने जवाब दे दिया है खून व ग्लूकोज नहीं चढ़ पा रहा है, मैने उसे धीरज दिलाया सब ठीक हो जाएगा और पूजा घर से भगवती को अर्पित पुष्पो से एक पुष्प उठा कर दे दिया, इसे अस्पताल में जाकर उनके पलंग के सिरहाने रख देना। दूसरे दिन वह स्त्री मेरे पास पुनः आई उसने बताया, फूल रखते ही उनकी दशा में सुधार आने लगा। मै जानता हूँ भगवती को आर्पित प्रत्येक वस्तु बहुत ही चमत्कारिक बन जाती है चाहे अर्चयामि की किशमिश हो, चाहे भगवती को आर्पित पुण्य हो या उनके सामने रखा जल हो, चाहे मंत्र को स्नान कराया गया जल हो।

भगवती को आर्पित जल का चमत्कार-

मेरे शिष्य ने हमें बताया रात्रि 2 बजे मेरी बड़ी बहन के पेट के तीव्र दर्द से छटपटा रही थी, मुझे कुछ  समझ में नही आया क्या करू, फौरन पूजा घर से भगवती को अर्पित जल लाकर उसके छीटे अपनी बहन पर छोड़ी,छीटे पड़ते ही वह शान्त हो गई। तीव्र दर्द तुरन्त शांत हो गया, और वह सो गई। दूसरे दिन जानकारो से पूछा यह सब क्या था? उससे ज्ञात हुआ मारण हेतु शिफली का प्रयोग किया गया था। शिफली मुस्लिम तंत्र में मारण के लिए अकाट्य प्रयोग होता है। इसको कोई बहुत पहुँचा तांत्रिक ही काट सकता है, परन्तु देखे माँ को अर्पित जल का चमत्कार, छीटे पड़ते ही सिफली कट गई।

मेरे एक मित्र है टेलिरिग की दुकान है, बड़े परेशान रहते, कोई कारीगर दुकान पर नही टिकता, उनका  बड़ा बेटा जो पहले दुकान पर नही आ रहा था, ग्राहक भी कम आ रहे थे कुल मिलाकर उनकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो गई। मैने भगवती को अर्पित जल उनको दिया, दुकान पर छिड़को व अपने बेटे को किसी भांति पिला दो, उसने पूरे मनोवेग से पन्द्रह दिन ऐसा ही किया। उसका बेटा अब दुकान में हाथ बढ़ा रहा है, कारीगर भी वापस आ गया साथ ही सिलाई के कपड़ो को अम्बार लगा रहता है। यह सब इस लिए बता रहा हूँ कि आप भगवती को अर्पित उपयोग चीजो को कभी भूल कर हल्के में न लेना वरन् उनसे लाभ उठाए व दुसरे को भी लाभावन्ति करेंगे ।

घर में स्थान-स्थान पर काली चीटियों, जमीन से काफी मिट्टी निकाल रही थी, नित्य झाडू से मैं तमाम  मिट्टी हटाते-हटाते परेशान हो गया, एक दिन यंत्र को अभिषेक किया जल उसी स्थान पर डाल दिया जहाँ चीटियाँ काफी थी व मिट्टी नित्य 100 ग्राम तक निकाल रही थी, आश्चर्य उस तारीख के बाद चीटियाँ एकदम लुप्त हो गई।
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ब्रह्मराक्षस से छुटकारा



माँ प्रत्यंगिरा 
प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की शत्रुता के व्यामोह में आबद्ध है। इसीलिए सकारात्मक प्रवृत्तियाँ
उदान्त चेतना-घरातल का परित्याग कर विनाश को आमन्त्रित कर रही है। श्रद्धा विश्वास निश्चित रूपेण सुफल
प्रदान करते हैं। इस सन्दर्भ में स्वयं मेरा अनुभव उद्धरणीय है।

 बात आज से 30 वर्ष पूर्व की है, जब मेरे ऊपर कुछ करा दिया गया था, मेरे प्रत्येक कार्य में रूकावट आ
जाती थी, मैं काफी परेशान रहता, कहीं से कोई मदद नहीं मिल पा रही थी, तांत्रिकों मौलवियों की शरण में गया
सफलता तो नहीं मिली वरन जेब जरूर हल्की हो गई। मैं समयानुसार पीछे जा रहा था, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैं क्या करूँ? चिकित्सक तो मैं किसी
प्रकार बनने में सफल हो गया परन्तु सर्विस हमसे कोसो दूर हो गई हाई कोर्ट व सुप्रिम कोर्ट में भी बहुत पैरवी
करने के बादभी सफलता न मिल सकी। अन्ततः सोचने पर मजबूर हुआ कि राम भक्त हनुमान भी मेरी मदद
क्यों नहीं कर पा रहे हैं जब कि मैं उन्हें नित्य सुन्दर काण्ड व हनुमान चालीसा वह भी उनके अलीगंज स्थित
मंदिर में लगातार पिछले 10 वर्षों से सुनाता रहा। बार-बार मन में आता कुछ गड़बड़ है-प्रतिष्ठित तांत्रिक भी मेरे
बारे में कुछ न बता पा रहे थे, आर्थिक तंगी के दौर से मैं गुजर रहा था, मानसिक पीड़ा झेल रहा था, कहीं से कोई
आशा की किरण नज़र नहीं आ रही थी।

एक सरकटा व्यक्ति, जो सफेद पैजामा पहने हमारे प्लाट में बैठा था, रात्रि का समय था उसका पैजामा व
कुर्ता चमक रहा था, परन्तु शक्ल नहीं दिख रही थी, अतः जेब से माचिस निकाल कर जलाया कि उसकी शक्ल
तो देखू कौन है? परन्तु माचिस की लौ जो छोटी सी होती है, एक फुट के घेरे में चमकदार सफेद हो गई, उसके
उस पार कुछ नहीं दिख रहा था अतः माचिस की तीली बुझा दी पुनः वह व्यक्ति बैठा हुआ दिखने लगा, इस
प्रकार कई बार मैंने माचिस जलाई वही सफेद घेरा बन जाता था कि उस पार कुछ दिखाई नहीं पड़ता, तीली
बुझने पर वही सरकटा व्यक्ति, जिसके सर नहीं था बैठा दिखता रहा। मुझे अजीब सा लगने लगा, यह सब मैं
क्या देख रहा हूँ चूंकि मैं प्रारम्भ से ही साहसी रहा हूँ अतः डर तो नहीं लग रहा था, घर जा कर टार्च लेकर आया,
और उसे अंधेरे में तलाश करता रहा परन्तु वो न दिखा।

दूसरे दिन एक तांत्रिक के पास गया और इस प्रकरण पर उनसे बात की उन्होंने बताया वहाँ सैय्यद का वास
है, कुछ उपचार किए परन्तु कोई लाभ न हुआ। इस उपचार क्रम में तीन तांत्रिकों को मृत्यु को गले लगाना पड़ा।
अब मैं सोचने लगा आखीर तीन तांत्रिकों की मौत कार्यक्रम शुरू करने के ठीक तीसरे दिन ही क्यों होती रही,
कुछ तो कारण है? यह अलसुलझा प्रश्न मेरे मस्तिष्क में लगातार गूंजता रहा। मैंने ठान लिया अब किसी
तांत्रिक के पास नहीं जाऊँगा। यह तो निश्चित हो गया, मेरी परेशानी का कारण यह सरकटा व्यक्ति ही है, लक्ष्य
मेरे सामने था, साहस भी मुझमें था, परन्तु मायावी शक्ति से मैं जीत नहीं सकता था, जिसने तीनों प्रतिष्ठित
तांत्रिकों को मौत के मुंह में ढकेल दिया था, मेरा चाल-चलन ठीक था, किसी को कभी कोई कष्ट नहीं दिया अतः
मुझ निरपराध पर किसने यह अभिचार कर हमारा जीवन कष्टमय कर दिया। मैंने पढ़ा था द्वेषवश या
स्वार्थवश कोई दुष्ट किसी निरपराध पर आभिचारादि आरोपित कर दें तो ऋषियों ने ‘‘वगला प्रत्यंगिरा’ के
प्रयोग की अनुष्ठानिक व्यवस्था की है। यह विचार लगातार कई दिनों तक मेरे मस्तिष्क में गूंजता रहा,

  अन्ततः हमारा परिश्रम सफल हुआ, अमीनाबाद में मुझे एक पुस्तक दिख ही गई जिसमें ‘‘वगला प्रत्यगिरा’’ केबारे में जानकारी दी गई थी। सोचने लगा इसका अनुष्ठान कैसे करू? कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही थी, तंत्र लाइन वह भी बिन गुरू के पूरी तरह हताश के दौर से मैं गुजर रहा था, संकल्प लिया कुछ भी हो अब इस मायवी दुष्ट से स्वयं ही निपटूंगा अतः सर्वार्थ सिद्ध योग से मैने भगवती प्रत्यगिरा का पाठ प्रारम्भ कर दिया। शनैः शनैः  10 हजार पाठ पूरे हुए, कोई परिणाम नहीं आया, पुनः 10 हजार पाठ का संकल्प कर पाठ करने लगा पूर्ण शक्ति व पूर्ण आस्था के साथ 10 हजार पुनः पाठ पूर्ण किया, परन्तु निराश ही हाथ आई कोई परिणाम नहीं आया। मन में थोड़ी हताशा भी आने लगी परन्तु हमारी पीड़ा का एक मात्र भगवती का ही सहारा मान कर पुनः 10 हजार का संकल्प कर पाठ आरम्भ कर दिया, मस्तिष्क में लगातार विचार चल रहे थे कि वगलामुखि के प्रयोग से साधक विजयी अवश्य होता है अन्त में यह भी 10 हजार पाठ पूर्ण हो गए, अब भी मैं हताश नहीं हुआ वरन पाठ करते-करते हमें स्वयं में आनन्द आने लगा, मन में विचार आने लगा मंत्र की आणुविक शक्तियाँ मेरे चारों ओर घूम रही है, हमें अनुभव हो रहा था, मेरे अन्दर काफी जोश आ रहा था, भ्रामरी, स्तम्भिनी, क्षोभिनी, मोहनी संहारिणी, द्राविणी, जृम्भिणी, रौद्र रूपिणी देवियों मेरे इस शत्रु, का अवश्य संहार करेगी अतः पुनः पूरे जोश एवं होश के साथ 10 हजार पाठ का संकल्प कर पाठ करने लगा, पाठ बहुत तीव्र गति से चलते हुए लगभग समाप्ति की ओर बढ़ रहा था, मन में आज बड़ा उत्साह था आज चन्द्र ग्रहण रात्रि 3 से 6 बजे रात्रि तक होता रहा, परन्तु आज चन्द्र ग्रहण के कारण 10 से 3 व पुनः 3 से 6 तक पाठ करना था। अभी रात्रि के 3 बजे कर 30 मिनट हुए थे, पाठ अपनी तीव्रगति व लय के साथ चल रहा था तभी अचानक मेरे दाएं कान में तीव्र दर्द की लहर उठी मैं छटपटा गया, तुरन्त मेरे कानों में स्पष्ट आवाज ने दिशा-निर्देश दिया, कान पर हाथ फेरा दर्द फौरन गायब हो गया, मैं समझ गया उस मायावी ने मेरे ऊपर अपना वार कर दिया है परन्तु पाठ की तीव्रता में कोई कमी न आई पुनः मेरे दूसरे कानों में दर्द उठा मैंने पूर्व की भांति कानों पर अपना हाथ फेरा-दर्द से तुरन्त राहत मिली अन्ततः उस दुष्ट को भगवती ने मेरे समक्ष पेश कर ही दिया।

  हमारे सामने बड़ी ही दीन-हीन दशा में हाथ जोड़े बैठा था, उसने बतलाया मेरी कोई गल्ती नहीं है मुझे
भेजा गया है, किसने भेजा पूछने पर उसने जिस व्यक्ति की शक्ल हमें दिखाई वह हमारा ही खानदानी था, हमें
तुरन्त याद आया इसी ने तो हमसे बहुत पहले कहा था, घर का बटवारा तुरन्त कर लो नहीं तो बरबाद हो
जाओगे न शादी कर सकोगे न घर बसा सकोगे आज हमें उसके शब्द याद आने लगे। उस मायावी से पूछा तुम
हो कौन? उसने बताया मैं ब्रह्म राक्षस हूँ और तुम्हे बरबाद व तबाह करने आया हूँ। मैंने कहा तुम हमें क्या
बरबाद करोगे, एक भद्दी गाली दी और कहा अब हम तुम्हें ही मार देंगे।
वह एक ग्रामीण परिवेश की धोती पहने हुए था, वह सर विहीन नहीं था, चेहरे पर खसखसी दाढ़ी थी,
अभिमंत्रित पानी का छिटा उस पर फेंक दिया वह तुरन्त गायब हो गया और मैं पुनः पाठ करने में व्यस्त हो
गया। मन बड़ा प्रफुल्लित था। भगवती की कृपा का मुझे अहसास हो रहा था, पाठ करते-करते जब सुबह के 7
बज गये थे मुझे पता ही न चला। मैं थक गया घड़ी देखी सुबह हो ही चुकि थी। अतः अब क्या सोए नित्य कर्म
करके जब मैं यंत्र का अभिषेक कर रहा था देखा यंत्र चिटक गया था।

  भगवती ने ब्रह्म राक्षस को अपने यंत्र में चपका कर विधिवत् जला दिये पीतल के यंत्र में मोटी काली रेखा
के साथ ही ऐसा दिख रहा था, जैसा कच्ची मिट्टी में आप कुरेद कर रेखा खींच दें, कई कुरेदी हुई रेखाएं जो यंत्र की
दूसरी ओर भी स्पष्ट दिख रही थी। यंत्र को लेकर मैं कामाख्या धाम गया, वहाँ भगवती पीतात्मबरा के श्रेष्ठ
साधक श्री बसन्त बाबा को यंत्र दिखलाया, उन्होंने बताया उस दुष्ट का अन्त हो गया, अब इस पर पीले फूल व
मीठा रख कर गंगा में प्रवाहित कर दो और भवगती से इसकी मुक्ति की प्रार्थना कर देना। अतः लखनऊ आकर
कुछ लोगों के साथ, बक्सर, गंगा नदी में कमर तक जा कर ‘‘बसन्त बाबा’’ के निर्देशानुसार यंत्र का विसर्जन
गंगा में कर दिया।

  आप को बता दें ब्रह्म राक्षस में बहुत शक्ति होती है, वह पलक झपकते कुछ भी करने में सक्षम होता है,
अपना रूप भी इक्क्षानुसार बदल-सकता है, वह सफेद बिल्ली के रूप में वहाँ हर समय विद्यमान रहता था, जब
से इसका अन्त हुआ वह सफेद बिल्ली आज तक हमें नहीं दिखी।
दोबारा जब मैं आसाम, कामाख्या धाम गया, ‘‘बसन्त बाबा’’ ने हमें अपना शिष्य बना कर विधिवत् दीक्षा
दी। गुरू जी ने हमें आंख बन्द कर बैठने का निर्देश दिया व स्वयं पद्मासन में हमसे 4 फिट दूर बैठ गए, एक क्षण
के लिए सारे शरीर में तीव्र कम्पन्न महसूस हुआ, उन्होंने शक्तिपात कर के दीक्षा दी।

  मैं भय, त्रास एवं आतंक की छाया में असहज जीवन व्यतीत कर रहा था भगवती ने हमारे जीवन के उस
काले अध्याय को सदा-सदा के लिए बन्द कर दिया। उसी प्रत्यंगिरा को मैं आप के सम्मुख दे रहा हूँ इसी से आप
भी लाभ लें।

बगला प्रत्यंगिरा

 अस्य श्री बगला प्रत्यंगिरा मन्त्रस्य नारद ऋषि, स्त्रिष्टुप छन्दः प्रत्यंगिरा देवता, हृीं, बींज, हूँ शक्ति, हृीं 
कीलकम्, हृीं हृीं हृीं हृीं प्रत्यंगिरा मम शत्रु विनाशे विनियोगः (दाएं हाथ में जल लेकर जल पृथवी पर डालें।) फिर
 पाठ प्रारम्भ करें। संकल्प 10 हजार का करें। वर्तमान में 4 गुना करने पर फलदायी होता है जैसा मेरे अनुभव में आया।

नोट - पूरा पाठ करेगे - संक्षिप्त न करें

ऊँ प्रत्यंगिरायै नमः प्रत्यंगिरे सकल कामान्
साधय मम रक्षां कुरू कुरू सर्वान् शत्रून् खादय-खादय
मारय-मारय घातय-घातय ऊँ हृीं फट् स्वाहा। 
ऊँ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी मोहिनी तथा।
संहारिणी द्राविणी च जृम्भिणी रौद्र रूपिणी।।
इत्यटौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजिताः।
धारयेत् कण्ठदेशे च सर्वशत्रु विनाशिनीः।।
ऊँ हृीं भ्रामरी सर्वशत्रून् भ्रामय भ्रामय ऊँ हृीं स्वाहा।
ऊँ हृीं स्तम्भिनि सर्व शत्रून स्तम्भय स्तम्भय ऊँ हृीं स्वाहा।
ऊँ हृीं क्षोभिणि सर्व शत्रून क्षोभय क्षोभय ऊँ हृीं स्वाहा।
ऊँ हृीं मोहिनि सर्व शत्रून मोहय मोहय ऊँ हृीं स्वाहा।
ऊँ हृीं संहारिणि मम शत्रून् संहारय संहारय ऊँ हृीं स्वाहा।
ऊँ हृीं द्राविणि मम शत्रून् द्रावय द्रावय ऊँ हृीं स्वाहा।
ऊँ हृीं जृम्भिणि मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ऊँ हृीं स्वाहा।
ऊँ हृीं रौद्रि मम शत्रून् सन्ताय सन्तापय ऊँ हृीं स्वाहा।

 यह महाविद्या गुप्त शत्रुओं का निवारण किस भाँति, कितने पाठ के उपरान्त करती है, यह आप ने देख
लिया। संक्षिप्त पाठ से बचे, शार्टकट तंत्र विज्ञान में वर्जित होता है। इसमें माँ को आना पड़ गया, स्पष्ट दिशा
निर्देश दिए, उसी के पालन से सफलता मिल सकी, एसी सभी को सफलता मिले व माँ का आशीर्वाद प्राप्त हो।
इसी कामना के साथ बात समाप्त करता हूँ।

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भगवती बगलामुखी को जानिए

माता श्री बगला 


आइये माता श्री बगला के बारे में जानते हैं 


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Tuesday 7 July 2015

अकाल मृत्यु काटने हेतु संपुटित मन्त्र की तीव्रता

नवरात्री के अंतिम दिन व्रत समाप्त कर खाना खाने के ठीक बाद, किसी दुष्ट ने मेरे यजमान के उपर तीव्र मारण प्रयोग कर दिया, जिससे एकाएक उनका स्वास्थ्य चिंताजनक होने लगा | हार्ट के अस्पताल लारी ले गये, वहीँ ज्ञात हुआ की दिल का केस नहीं है , ब्रेन का केस है | अतः रात्रि 12 बजे एक अस्पताल में भरती किया गया | सी.टी. स्कैन द्वारा ज्ञात हुआ की दिमाग की नस फट गयी है , क्लाटिंग हो गयी है | इस घटना क्रम के बारे में मुझे सुबह ज्ञात हुआ ब्रेन हेमरेज का केस उपर वाले के भरोसे ही ठीक होते हैं | अतः बिना समय नष्ट किये मैंने अपनी भगवती पीताम्बरा के मूल मन्त्र से महामृत्युंजय मन्त्र को संपुटित कर मानसिक जप का दस हज़ार का संकल्प कर बैठ गया | जप अपनी गति से तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा था , उधर मेरी बाई आख भी तेजी से लगातार फडकती रहीं, मन में भय व्याप्त हो रहा था , विचार उठने लगा की क्या मेरी साधना व्यर्थ हो जायेगी, मैंने छटपटाहट में भगवती को पुकारा -माँ मेरी मदद करो, मेरी मेहनत को सफल करो | मानसिक जप की तीव्रता को बढाता हुआ अंततः रात्रि के तीन बज गये , तभी मेरी दाहिनी आँख फड़कने लगी | मन में दृढ विश्वास हो गया, माँ ने मेरी सुन ली, जप को विराम देकर सोने के लिए चल दिया |
दुसरे सुबह जब मानसिक जप करकने लगी, केवल एक माला ही जप कर उसे विराम दे दिया | दोपहर मरीज को देखने अस्पताल गया, वह होश में थे,परन्तु अस्पष्ट बोल रहे थे, कुछ देर रुक कर वापस आकर पुनः जप पर बैठ गया व क्रमशः रात्रि को भी परिश्रम किया दाई आँख लगातार फड़कती रही |
तीसरे दिन मरीज का ऑपरेशन हुआ जो सफल रहा, मानसिक जप निरंतर चलते हुए अंतत अपने लक्ष्य दस हज़ार तक पहुच ही गया | छठे दिन मरीज की हालत पुनः बिगड़ने लगी अतः हवन की तैयारी कर दी व अपने शिष्य राम चन्द्र यादव को बुद्धेश्वर मंदिर जो भगवान् शिव जी का प्राचीन व जाग्रत स्थान है में रात्रि आठ बजे बुलाया | रात्रि 9 बजे से हवन की प्रक्रिया प्रारंभ किया | पहले संकल्प लिया ॐ तत्सत् परमात्मन आज्ञाया प्रवर्त्मनास्य 2072 संवत्सरस्य श्री श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे उत्तर प्रदेशे लखनऊ नगरे बुद्धेश्वर मंदिर स्थिते वैशाखामासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्थी तिथे , बुद्ध वासरे कश्यप गोत्रोत्पन्न तपेश्वरी दयाल सिंह कारित कृत्या प्रयोगम मन्त्र-यंत्र-तंत्र कृत प्रयोग विनाशार्थे आरोग्य प्राप्त अर्थे भगवती अमृतेश्वरी स्वरूप बगलामुखी प्रसाद सिद्धि द्वारा मम यजमानस्य दूध नाथ मिश्र आरोग्य प्राप्त अर्थे हवन अहम् कुर्वे |

हवन निम्न प्रकार किया गया -



1. महामृयुन्जय मन्त्र की 5 माला हवन किया |
2. अमृतेश्वरी एक माला हवन |

मन्त्र - ॐ श्रीं ह्रीं मृत्युन्ज्ये भगवती चैतन्य चन्द्रे हंस संजीवनी स्वाहा |

1. भावाष्टक - एक पाठ की , प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति दी गयी |
2. माँ बगलामुखी मूल मन्त्र के 5 माला का हवन किया गया |

क्रमशः उलट कर हवन किया गया -

1. माँ बगलामुखी मूल मन्त्र - 5 माला हवन |
2. भावाष्टक - एक पाठ की , प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति |
3. अमृतेश्वरी - एक माला प्रत्येक मन्त्र के बाद आहुति |
4. महामृयुन्जय - 5 माला हवन मन्त्र के बाद आहुति |

हवन समय घी का दीपक व गंगाजल रखा गया |


  • हवन सामग्री -
  • पीली सरसों - 500 ग्राम
  • राई - 500 ग्राम
  • लाजा - 500 ग्राम
  • वाल छड - 100 ग्राम
  • काली मिर्च - 100 ग्राम
  • बूरा - 500 ग्राम
  • शहद - 200 ग्राम
  • सफ़ेद तिल - 500 ग्राम
  • लौंग
  • इलाइची ( छोटी)
  • हल्दी - 500 ग्राम
  • टाइट खीर - 100 ग्राम
  • देसी घी


समिधा - गूलर की लकड़ी + आम की लकड़ी

लाजा व लौंग इधर उधर का बवाल काट देती है, पाठ के अंत में खीर की आहुति दी |

परिणाम - यजमान मुंह द्वारा खाना खाने लगा व सामान्य गति विधियों से कार्य करने लगा परन्तु अभी धाराप्रवाहित उच्चारण करने में थोडा प्रयत्न करना पड़ता है |

डॉ तपेश्वरी दयाल सिंह
read more " अकाल मृत्यु काटने हेतु संपुटित मन्त्र की तीव्रता "

Friday 5 June 2015

बगलामुखी मन्त्र द्वारा सम्पुटित मन्त्र की तीव्रता


कोई भी मन्त्र हो यदि वह भगवती बगलामुखी के मन्त्रों द्वारा संपुटित कर जप करते हैं, तो तीव्र गति से सुखद परिणाम आते हैं | एक दृष्टान्त देखें - 
हमारे एक मित्र सरकारी ड्राईवर हैं , पिछले 10 वर्षों से वह अपने विभाग के आई.ए.एस. की ही कार चलाते रहे , इधर विभाग के आई.ए.एस. से कुछ अनबन हो गयी , उसने कल से काम पर न आने का आदेश इनको दे दिया , चूँकि इनकी अस्थायी न्युक्ति थी अतः अब बच्चों के पालन-पोषण की विकराल समस्या इनके आगे कड़ी थी | हमसे संपर्क किया काफी सोचने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पंहुचा की कोई तीव्र प्रयोग किया जाए , अतः दुर्गा शप्तशती के एक मन्त्र को अपनी भगवती के शाबर मन्त्र से संपुटित कर 10 हजार का संकल्प किया |
  मैंने इनसे किसी प्राचीन शिव मंदिर ले चलने को कहा , लखनऊ से 35 किमी. दूर भैरोसुर मंदिर जो शिव जी का प्राचीन मंदिर जहाँ स्वतः प्रकट शिव जी की लाट है , न की मानव स्थापित , सई नदी के किनारे एकांत-वीरान में बना है | समय रात्रि के दस बज रहे थे , चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था , वहां के पुजारी ने बड़ी मुश्किल से अंदर बैठने की आज्ञा दी, ये महाशय बाहर कार में लेट गये व मंदिर के प्रांगन में आसनी बिछा कर मन्त्र जप प्रारंभ किया | अभी जप करते एक ही घंटा व्यतीत हुआ था, तभी बंदरों का एक झुण्ड आया, पास की टीनों पर उछलने लगे, खड़बड़-खड़बड़ की तीव्र ध्वनि रात के सन्नाटे को भयावह बना रही थी तुरंत बंदरों पर स्तम्भन प्रयोग किया , बंदरों की उचक-फांद बंद हुई , मन्त्र अपनी तीव्र गति से लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था , हमें अनुभव हो रहा था की मेरे बगल में बैठ कर कोई जाप कर रहा है , बीच-बीच में उसकी फुसफुसाहट स्पष्ट सुने पद रही थी , अंततः सुबह के 5 बज गये , फ़ोन कर कार से इनको उठाया व हवन की तैयारी करने लगा लगभग 6 बजे हवन समाप्त कर लौट आये |
दुसरे दिन पुनः रात्रि 10 बजे भैरोसुर मंदिर पहुच गये, आसनी बिछा कर अभी एक ही घंटा जप कर पाए थे की बूंदा-बांदी होने लगी अतः शिवाले के अंदर आक्सर आसनी लगे व उसके चारो दरवाजे अंदर से बंद कर जप करने लगा | वहां के बंदरों ने हमें चिड़ियाघर का सदस्य समझा अतः बंद दरवाजों पर चढ़-चढ़ कर हमें देखने लगे परन्तु मैं अपनी गति को बढ़ाते हुए लक्ष्य की ओर तीव्रता से बढ़ता रहा अंततः सुबह के पांच बज गये | अब हवन की तैयारी होनी है अतः फ़ोन कर बुलाया | हवन कुंड में मैं लकड़ियाँ रखने लगा इतने में एक मोटे से बन्दर ने हवन सामग्री वाला थैला उठा लिया , मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़ कर तेजी से कहा तेरे बाप का सामान है , रख साले , बन्दर ने थैली तो छोड़ दी परन्तु कुछ दूर हट कर बैठा रहा | सुबह 6 बजे हवन समाप्त कर, वापस आ गये |
तीसरे दिन हमलोग मोटर साइकिल से भैरोसुर मंदिर के लिए चले, रास्ता ही भटक गये तभी वर्षा होने लगी, एक टीन शेड के निचे रुक गये, पानी रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था, आखिर रात्रि 12:30 पर वर्षा रुकी हमने कहा वापस चलो , और वापस लौट आये चूँकि कुछ भींग गये थे अतः जप करने की हिम्मत नहीं हो रही थी , मन में दहशत थी की मन्त्र जप खंडित हो जाएगा , अतः लेटे ही लेटे मानसिक जप प्रारंभ किया , कब नींद आ गयी हमें पता ही नहीं चला |
चौथा दिन बुद्धेश्वर मंदिर यह भी भगवान् शिव जी का प्राचीन व जाग्रत मंदिर है, यहाँ की लाट भगवान् रामचंद्र जी के अनुज भाई श्री लक्ष्मण जी के द्वारा स्थापित की गयी थी | रात्रि 10 बजे मंदिर पहुच गये | मंदिर का प्रमुख द्वार बंद हो चूका था अतः पीछे के रास्ते से पुजारी के पास पहुच कर रात जप करने की आज्ञा लेने लगा , बड़ी बड़-बड़ के बाद उसने हमें मंदिर में रुकने की आज्ञा दी | रात्रि में एकदम बीरानगी छाई थी और मेरा मन्त्र तीव्र गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए सुबह के 5 पांच बज गये , हवन का समय हो गया था , हवन किया और लौट आये |
पांचवा दिन ठीक 10 बजे बुद्धेश्वर मंदिर पहुच कर जप प्रारंभ किया रात्रि एक बजे मंदिर के प्रमुख द्वार पर दो पुलिस वाले मुझे बुलाने लगे, उठ कर मैं प्रमुख द्वार पर गया | यहाँ रात में क्या कर रहे हो , जप कर रहे हैं | पुलिस वाला बोला रात में कहीं पूजा होती है | उसे तांत्रिक विद्या का ज्ञान नहीं था , मैं पुनः आसन पर आकर जप करने लगा , वह पुलिस वाला पीछे के रास्ते से मंदिर में आकर पुजारी को जगा कर कहने लगा , तुम्हारे मंदिर में दो बाहरी लोग आये हैं, 
तुम्हे पता है , पुजारी ने कहा हाँ हमने उन्हें यहाँ बैठ कर जप करने की आज्ञा दी है | समय तीव्र गति से चलते हुए सुबह के 5 बज गये , हवन की तैयारी की , आहुति के उपर आहुतियाँ पड़ रही थी , पूरी तरह से मैं एकाग्र था तभी एक औरत रोते हुए आई और उसने अपना सर मेरे जाँघों पर रख दिया, मैंने उसे समीप बैठे यादव जी
की ओर कर दिया चूँकि हवन प्रचंड रूप से प्रज्वलित था और हवन मन्त्र भी उसी भाँती तीव्र चल रहा था , मैं कोई विघ्न आने से पूर्व ही अपने लक्ष्य तक पहुच जाना चाहता था और निर्विघ्न पूर्ण हुआ  | अब हमें परिणाम आने की प्रतीक्षा थी | दस हज़ार संपुटित मन्त्र पूर्ण कर मन को बड़ी शांति मिली, मैं जानता हु मुझे सफलता अवश्य मिलेगी और - वही हुआ भी | संकल्प पूर्ण कर अभी साथी ही दिन हुए थे की घटना चक्र में बहुत तेजी से परिवर्तन होने लगे, उस आई.ए.एस. का स्थानांतरण अन्यत्र हो गया | इनके स्थान पर जो दुसरे आई.ए.एस. आये उसने इन्हें बुला कर अस्थाई न्युक्ति को पिछले 10 वर्षों से स्थायी न्युक्ति कर कार्यभार दिया साथ ही पिछले दस वर्षों का एरियर बनवा कर लाखों रूपये का चेक भी दे दिया और एक माह बाद उनका भी स्थानांतरण हो गया |
इस प्रकार हम देखते हैं की भगवती से जितना मांगो वे उससे भी अधिक देती है | इसमें हमने जो सम्पुट प्रयोग किया दे रहा हूँ -
जगद वसंकरी का सम्पुट लगाकर जप किया था |
ॐ ह्रीं बगलामुखी जगद वसंकरी ! माँ बगले पीताम्बरे 
प्रसीद-प्रसीद मम सर्व मनोरथान पूरय-पूरय ह्रीं ॐ |
सर्व बाधा प्रशमनं त्रैलोकस्या खिलेश्वरी ,
एवमेव त्वया कार्य मस्य द्वैरी विनाशनं |
ॐ ह्रीं बगलामुखी जगद वसंकरी ! माँ बगले पीताम्बरे 
प्रसीद-प्रसीद मम सर्व मनोरथान पूरय-पूरय ह्रीं ॐ |
यह एक मन्त्र हुआ | इसका दस हज़ार जप कार्य सिद्ध कर देता है | कामना वाले कार्यों में सम्पुट आवश्यक है , जिससे शीघ्र ही सुखद परिणाम मिलते हैं |


डॉक्टर तपेश्वरी दयाल सिंह द्वारा बगलामुखी हवन 

 


हवन सामग्री - पिसी हल्दी , माल कांगनी , सुनहरी हरताल , लौंग, पिसा नमक, काले तिल, रोज हवन के अंत में गरी का गोला , ऊपर से काट कर बची हवन सामग्री उस में भर कर पूर्णाहुति दी व कार्य की सफलता हेतु प्रार्थना की गयी |

डॉ तपेश्वरी दयाल सिंह 

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लेखक कॆ विषय मॆ



डॉक्टर तपेश्वरी दयाल सिंह 
मान्यता प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक के साथ ही इनका रुझान अध्यात्म की ओर प्रारंभ से रहा है | अतः अपनी ज्ञान पिपासा शांत करने हेतु अनेक महात्माओं और गुरुओं के संपर्क में आये , परन्तु फिर भी मन की छटपटाहट का अंत नहीं हुआ , लेखक तपेश्वरी दयाल सिंह को अक्सर एक स्वप्न आता रहा "एक बड़ा सा विशाल पत्थर जो दो फीट ऊँचे हैं आसन की भाँती विराजमान हैं | झरोखेदार खिड़कियाँ दोनों ओर हैं , तीन द्वार मेहराब दार हैं , इस विशाल हॉल में कुछ साधक बैठे हुए साधना कर रहे हैं , जिनके सर का आकर बड़े कद्दू के बराबर है व् सभी के सर पे बाल नहीं है | यह स्वप्न साधक को परेशान किये रहता , अतः इस स्थान की खोज में अक्सर इधर उधर यात्रा करता रहा , कामख्या मंदिर असम में जाकर इस खोज को विराम मिला , वही विशाल हॉल , वही दो बड़े बड़े पत्थर, वही झरोखेदार खिड़कियाँ, वैसे ही दरवाजे | अब हमें ज्ञात हो गया , हमारा सम्बन्ध यही से है , अब प्रारंभ हुई सद्गुरु की खोज | उस क्षेत्र के उच्चतम कोटि के बगला उपासक "बसंत बाबा" के बारे में ज्ञात हुआ, इनके पास लेखक पंहुचा, काफी देर तक तंत्र क्षेत्र की बात हुई , अपना मनोरथ बताया की "मैं आपसे दीक्षा लेना चाहता हु" बसंत बाबा ने कहा बगलामुखी इतनी सस्ती नहीं है जो हर किसी को बता दी जाए | इस प्रकार तीसरे वर्ष उन्होंने लेखक को माँ पीताम्बर की वामाचारी दीक्षा प्रदान की | लेखक के दुसरे सद्गुरु "श्री योगेश्वरानंद" बागपत ने दक्षिणाचार दीक्षा प्रदान की | आज भी लेखक चिकित्सक का कार्य करते हुए , भगवती पीताम्बर की साधना में निरंतर प्रगति कर रहे हैं | 
लेखक का पता है :-
मकान नंबर 509 / 113 ई , 
पुराना हैदराबाद , लखनऊ-07 , 
उत्तर प्रदेश , 
मोबाइल नंबर - 9839149434

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Sunday 24 May 2015

बगलामुखी मंत्र


मूल मंत्र 
ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय 
जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ।




Om Hlreem Baglamukhi Sarvadustanaam Vaacham Mukham Padam Stambhay Jihvaam Kilay Budheem Vinashay Hlreem Om Swaha |



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Maa Baglamukhi Mool Mantra


OM HLREEM BAGLAMUKHI SARV DUSHTANAM VACHAM MUKHAM PADAM STAMBHYA JIHVAAM KILAY BUDDHIM VINASHAY HLREEM OM SWAHA 

ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ।


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