Friday 9 October 2015

सम्पुटित मंत्र की तीव्रता (स्वास्थ्य लाभ हेतु)


मेरे परिचित की रात एकाएक स्वास्थ्य चिन्ता जनक हो गयी उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाना पड़ा, इधर गुरू जी को फोन लगाया उन्होनें महामृत्युंजय जप बगलामुखि के मूल मंत्र द्वारा सम्पुटित कर दस हजार जाप का निर्देश दिया, मंैने शीघ्र ही महामृत्युंजय मंत्र गुरू वचनों को लिपिबद्ध कर तुरन्त संकल्प लें जप प्रारम्भ किया। रात्रि 11.57 से सुबह सात बजे तक जप चलता रहा, मरीज के हालात में सुधार था इस प्रकार तीन ही दिनों में मरीज के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया, व मरीज अस्पताल से घर आ गयी।

मरीज के घर आने पर-क्रिया की-

कच्चे धागे से मरीज को सर से पांव तक नापते हैं ऐसा 7 बार नाप कर, वह धागा जटा नारियल (पानी वाला) पर लपेट कर रोली व काजल के 7-7 टीके लगा कर मरीज के ऊपर से 7 बार उतारे, उतारते समय कहे, मरीज के सारे रोग शोक इसमें आ जाए व सन्ध्या समय बहते पानी में इसे प्रवाहित करे यह कहते हुए कि मरीज के सारे रोग-शोक अपने साथ ले जाओ, पीछे मुड़कर न देखें।

संकल्प- ऊँ तत्सध......... भगवती पीताम्बराया प्रसाद सिद्वि द्वारा कश्यप गोत्रोत्यन्न (रोगी का नाम) नामम्ने मम यजममानस्या सर्वोभिष्ट सिद्वियार्थे च स्वास्थ्य लाभर्थे श्री भगवती पीताम्बरा मूल मंत्र सम्पुटे महामृत्युंजय मंत्र यथा शक्ति जपे अहम् करिण्ये।

बगलामूल मंत्र + महामृत्युंजय मंत्र + बगला मूल मंत्र यह 1 मंत्र हुआ। 5 माला उपरोक्त की जप नित्य 5 दिनों में मरीज को ठीक होते देखा गया है। अन्त में भवगती को भोग यह कहते हुए अर्पित किया कि भगवति कृपया भोग स्वीकार करें व भोग को बांट दें। तीन माह बाद मेरे यजमानस्या की पुनः स्वास्थ्य चिन्ता जनक होने लगा एकाएक शरीर ठंडा हो जाता, बेहोशी आ जाती, लेटने पर स्वतः पेशाब हो जाता था।

संकल्प- ऊँ तत्सध......... कृत्या प्रयोगम् मंत्र यंत्र तंत्र कृत प्रयोग विनाशार्थे, आरोग्य प्राप्ताथे भगवति अमृतेश्वरी स्वरूपा वगलामुखि प्रसाद सिद्धि द्वारा मम यजमानस्या (नाम ......) सर्व आरोग्य प्राप्तार्थे होमे अहम् करिष्ये।

नोट: प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति, प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति। क्रमशः 1 से 4 व पुनः क्रम 4 से 1 की आहुति व्यवस्था की।



1. महामृत्युंजय - 5 माला का हवन किया, मंत्र के अन्त में स्वाहा लगा कर, प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति दी।
2. अमृतेश्वरी मंत्र - ऊँ श्री हृीं मृत्युंजये भवगती चैतन्य चन्दे हंस संजीवनी स्वाहा।
3. भवान्य अष्टक - 1 पाठ, प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति दी।
4. वगलामुखि मूल मंत्र - 5 माला, प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति दी गई।

अब क्रम को उल्ट कर हवन किया जो क्रमशः 4, 3, 2 व 1 की भांति आहुतियाँ दी गई। यह रात्रि 11 से प्रारम्भ कर रात्रि 2.37 पर समापन कर दिया। घी का दीपक हवन समय जलता रहे व वहीं कलश में पानी रखे।
हवन सामग्री:-पीली सरसों 250 ग्राम, राई 250 ग्राम, लाजा 500 ग्राम, वालछड़ 10 ग्राम, काली मिर्च 100 ग्राम, बूरा 500 ग्राम, शहद 200 ग्राम, हल्दी 200 ग्राम, लौंग 5/-, इलाइची 5/-, खीर 100 ग्राम इन सभी को घी में साना गया। दूसरे दिन ही मरीज़ को पेशाब रोकने की शक्ति नहीं रह गई थी, वह सब ठीक हो गई, पुनः कच्चे धागे वाला प्रयोग पूर्ववत् कर दिया परिणाम अति उत्तम रहा।

भवान्मअष्टक

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता,
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्म मैव,
गतिस्वत्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि !!1!! स्वाहा
भवान्धाग्पारे महादुःख भीरूः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमतः।
कु संसार-पाश प्रबद्धः सदाऽहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।2।। स्वाहा
न जाननानि दानं न ध्यान योगं
न जानामि तन्त्रं न च स्त्रोत मन्त्र।
न जानामि पूजां न च न्यास योगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।3।। स्वाहा
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ
न जानामि मुक्तिलयं वा कदाचित।
न जानामि भक्तिं व्रतंवाऽपि मात 
गतिस्त्व-गविस्त्व त्वमेका भवानी।।4।। स्वाहा
कुमार्गी कुसंग्ङी कुबुदि कुदासः
कुलाचार हीनः कदाचार लीनः।
कुदृष्टि कुवाक्य प्रबन्धः सदाऽहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।5।। स्वाहा
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशी थेश्वरं वा कदाचित।
न जानामि चाऽन्यत् सदाऽहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।6।। स्वाहा
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चा अनले पर्वते शत्रु मध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदां मां प्रथाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।7।। स्वाहा
अनाथो दरिद्रो जरा रोग युक्तो
महाक्षीणः दीनः सदा जाड्त वक्त्रः।
विपन्तौ प्रवीष्टः प्रवष्टः सदादहं
गतिस्तवं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।8।। स्वाहा

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