Monday 27 February 2017

भगवती पीताम्बरा की साधना क्यों करें व कैसे करें

जिस समाज में हम रहते हैं यहाँ भाँति-भाँति के लोग हैं, कुछ अच्छे तो कुछ बुरे लोग भी हैं, जिसे आप नकार नहीं सकते। यह आवश्यक नहीं जो आप से मीठे बोलते हैं वह आप के हित चिन्तक ही हो यह अनुभव में आया है कि प्रत्येक पर विश्वास करने का परिणाम अच्छा नहीं होता, कहने का तात्पर्य यह नहीं कि किसी पर विश्वास ही न किया जाए। अब यहाँ पर भगवती पीताम्बरा की आवश्यकता पड़ती है, क्यांेकि ऐहिक या पारलौकिक, देश या समाज के दुःखद, दुरूह अरिष्टों एवं शत्रुओं के दमन शमन में इनके समकक्ष अन्य कोई भी नहीं है। ‘‘जो छुपे हुए शत्रुओं को नष्ट कर देती है वह पीताम्बरा पीले उपचारों द्वारा पूज्या है’’-

‘‘यन्नि तान्तमा विष्करोति विद्विषः सेयं पीता वयवः पूज्या।’’

ऐसा बगला उपनिषद में लिखा है तथा मेरे भी अनुभवों में इसकी प्रमाणिकता कई बार सफल सिद्ध हुई है। साधना करें तो सर्वोच्च की जिससे आप को कभी पराजय का मुंह न देखना पड़े। भगवती पीताम्बरा लौकिक वैभव की दात्री होने के साथ ही अपने साधकों के काम, क्रोध, लोभ, मात्सर्य, मोह ईष्यादि शत्रुओं का दमन भी करती है। साधना के सभी विघ्नों को निरस्त कर साधकों के मन-बुद्धि पर अपना प्रभाव डाल कर वे अपनी ओर आकृष्ट करती  है। जीवन अत्यन्त शान्तमय हो जाता है फिर आप साधना क्षेत्र में निर्भय होकर आगे बढ़ते चले जाएंगे, बस इतना सा ही मेरा अनुभव रहा, अच्छा लगे तो आप भी थोड़ा आगे बढ़ कर देखे, बाकी भगवती पर छोड़ दें। अत्यल्प काल में ही आशु सिद्धिदा होने से भगवती बगला अपने साधकों को सभी लौकिक सम्पदाओं से सम्पन्न कर अन्त में उसे अपना सान्रिघ्य एवं मोक्ष प्रदान करती है।

अब प्रश्न उठता है माँ पीताम्बरा की साधना किस प्रकार करें। तंत्र की व्यापक दृष्टिकोण है यहाँ उम्र, जाति, लिंग, धर्म आदि का कोई भेदभाव नहीं होता। एक मुस्लिम साधक को मैं जानता हूँ वे माँ पीताम्बरा के उच्चकोटि के साधक हैं। तंत्र में दीक्षा का विधान पूर्व से चला आ रहा है, इसमें गुरू अपने शिष्य को विशेष तकनीक के द्वारा पहले ही दिन से शक्ति सम्पन्न कर देता है। अब गुरू निर्देश का पालन करते हुए अपनी शक्तियों का विकास करना होता है व क्रमश शिष्य को माँ की निकटता का अनुभव होने लगता है उसके जीवन में चमत्कार होने आरम्भ हो जाते हैं, परन्तु चमत्कार व कार्य हमारी मंजिल नहीं हैं, हमें आगे ही बढ़ते रहना है। शैनः-शैनः हमारी अर्थवा का रंग अपने ध्येय माँ पीताम्बरा की अर्थवा पीत वर्ण में परिवर्तित होने लगता है। वर्ण का यही परिवर्तन कुण्डलिन जागरण कहलाता है। कितना सुगम मार्ग है, बस लगे रहो बाकी तो माँ स्वयं ही करवा देती है। कुण्डलिनी जागरण में तमामों साधक लगे रहते हैं, बड़ा परिश्रम करने के बाद भी उनकी कुण्डलिनी जागरण नहीं हो पाती और उनके इस दुनियाँ से जाने का समय भी आ जाता है, वहीं भगवती पीतामबरा के योग्य साधक को इस संसार का भोग करते हुए मोक्ष भी बड़े सस्ते में, बिना कष्टकारी परिश्रम किए स्वतः ही उपलब्ध हो जाता है।
पुस्तकों द्वारा मात्र ज्ञानार्जन किया जाता है। साधना तो योग्य गुरू के दिशा-निर्देश में ही करना चाहिए। सर्वप्रथम योग्य गुरू का चुनाव करना अत्यन्त आवश्यक है। कहा गया है - ‘‘गुरू कीजै जान कर, पानी पीजै छान कर।’’ गुरू व शिष्य उभय पक्षों को खूब सोच विचार कर दीक्षा ली व दी जानी चाहिए। यदि गुरू योग्य न हुआ तो शिष्य का क्या हश्र होगा? सर्व विदित है। यदि शिष्य योग्य न हुआ तो वह इस विद्या का दुरूपयोग करेगा, जिसका दंड गुरू को भी भोगना पड़ेगा। कुंज्जियाँ तो गुरू के पास ही होती है, पुस्तक में मात्र ज्ञान ही होता है। वह पथ प्रदर्शक तो होती है, परन्तु गुरू से आप अपनी जिज्ञासा शान्त कर आगे बढ़ने का सुगम मार्ग पा जाते हैं, यदि तंत्र क्षेत्र में आप का रूझान है तो सर्वप्रथम आप गुरू से दीक्षा लीजिए, यदि फिर भी आप को कोई गुरू नहीं मिलता तो हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। माँ बगलामुखी इतनी सस्ती नहीं कि हर किसी को इनकी दीक्षा दी जाए। दीक्षा केवल योग्य पात्र को ही दी जानी चाहिए। ऐसा हमारे गुरूवर बसन्त बाबा ने हमसे कहा था। तीन वर्ष हमें लग गए, प्रत्येक वर्ष में कामाख्या आसम जाता रहा। प्रत्येक बार बसन्त बाबा का एक ही उत्तर होता था ‘‘यह इतनी सस्ती नहीं कि हर एक को बता दी जाए। तीन वर्ष पश्चात् इन्होंने हमे दीक्षा दी। गुरू केवल अपने ही शिष्य को गोपनीय बाते बता सकती है, दूसरे गुरू के शिष्यों को वह गुप्त ज्ञान देने का अधिकारी ही नहीं होता। यही है गुरू परम्परा, प्रत्येक ज्ञानवान गुरू इस परम्परा को दृढ़ता के साथ पालन करता है।
माँ बगलामुखी ने स्वयं कहा है ‘‘जो भक्त शारीरिक आरोग्य हेतु अथवा वैरियो के निग्रह के लिए दिन या रात एक सहस्त्र आहुतियाँ देता है, उसे अतिशीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। मेरे नामों का उच्चारण करने पर सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और भक्त के सभी कार्य सफल हो जाते हैं, जो व्यक्ति मेरे स्वरूप को सदार निम्न प्रकार ध्यान में रखता है, उसे देख कर ही कपटी व्यक्ति भयभीत हो जाते हैं:-



अमृत समुद्र के मध्य में मणि-निर्मित मंडप में रत्न जटित चैकी पर स्वर्ण सिंहासन पर बैठी पीत-वर्णा, पीताम्बरा, सर्वाभरण भूषणों से सुशोभित सुन्दर अंगोवाली, शत्रु की जिह्वा को पकड़े हुए, मुद्गर हाथ में लिए पीताम्बरा देवी को मैं भजता हूँ। आप के मस्तक पर चन्द्र द्वारा सुशोभित मुकुट तथा पुष्ट हाथ में गदा और ब्रज शोभायमान है। पीताम्बर धारिणी माँ पीताम्बरा देवी को मैं प्रणाम करता हूँ। महारूद्र की महाशक्ति माँ बगलामुखी की जय हो, जय हो। हेम की आभा के समान अंगों वाली, पीत चम्पा की मात्र को अपने हृदय पर धारण करने वाली माँ बगलामुखी को मैं प्रणाम करता हूँ। सम्पूर्ण लोकों में विचरण करने वाली गरूड़-सदृश वेग वाली माँ बगलामुखी की जय हो-जय हो।

विभिन्न विदेशों में बाओं की समस्या का समाधान करते हुए, यह कहना चाहता हूँ कि वास्तव में आप माँ बगलामुखी की साधना करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने ज्ञान को बढ़ाए जैसा कि मैने अपने लेखों में इनके बारे में बहुत कुछ समझाने का प्रयास किया है। ज्ञान तभी सार्थक होता है जब हम उसे व्यवहार में एकाग्रता व संयम के साथ अपनाने की कोशिश करते हैं, एकाग्रता तभी बनती है, जब हमारा मन व बुद्धि दोनों साथ देते हैं मंत्र जप से पूर्व मंत्र का निर्णय अपने मन व बुद्धि दोनों को साथ में रख कर करें क्यों कि मन व बुद्धि जिस कार्य में लीन हो जाते हैं तो समय का आभास तक नहीं होता, यदि मंत्र जप का मन भी हो और बुद्धि भी उसे करने के लिए प्रेरित करें तो उस कार्य में आप को आनन्द का सहज बोध होता दिखेगा और आप ध्यानिस्थ अवस्था सहज रूप से प्राप्त करने में सफल होगे व समय का आभास तक नहीं होगा, यही मंत्र सिद्धी का प्रथम सोपान है।

योग्य गुरू के सानिघ्य में ही साधना प्रारम्भ करनी चाहिए आज मोबाइल युग हैं गुरू का सानिघ्य हर क्षण प्राप्त हो जाता है, इस विलुप्त होती विद्या को बचाना है तो योग्य शिष्य को सब कुछ बताना ही पड़ेगा। मोबाइल के माध्यम से दीक्षा दी जाए-दीक्षा में गुरू अपने शिष्य को पहले ही दिन से शक्ति सम्पन्न बनाता है, जिससे वह तंत्र क्षेत्र में निर्भय होकर पूर्ण श्रृद्धा के साथ लग कर अपने कार्य में सफल हो सके, प्रयास करे पुनः प्रयास करें अन्ततः सफलता आप को मिल कर रहेगी।
कहा गया है:-

करै जप प्रतिदिन पाँच हजार,
विजय पावै बहु वारम्बार,
बगलामुखी की जय जय कार।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434

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