Friday 30 March 2018

माँ की कृपा विचित्र होती है

अभी तक सुना था, अब मैं प्रत्यक्ष इस बात का साक्षी हूँ कि माँ की कृपा वास्तव में बड़ी विचित्र होती है, हुआ यह कि मैं पिछले चार वर्षों से अपनी दिमागी परेशानी से रात में ठीक से सो भी नहीं पाता था, मैं अपनी इस उल्झन को किसी से कह भी नहीं सकता था। क्या कंरू, क्या न करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा था, समय व्यतीत करने के लिए मैं नेट चला रहा था, उसमें baglatd.com के एक पोस्ट में हवन देखने से मुझे कुछ शान्ती का अनुभव होने लगा और उसको पढ़ना शुरू किया और फिर मानो मेरा मन उसी में खो गया, लगातार एक घंटे तक मैं उसी को पढ़ता रहा दूसरे दिन मैंने डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह से सम्पर्क किया, उन्होंने रूद्रयामल के बगला अष्टोतर शतनाम का एक हजार पाठ संकल्प कर करने का मुझे दिशा-निर्देश दिया जिसे पूर्ण कर शीघ्र ही उनके सामने उपस्थित हुआ।

दूसरे दिन उन्होंने मेरे साथ इसका हवन सम्पन्न कराया व मुझे आस्वस्त किया कि माँ की कुपा तुम पर हो गई है। अब सब अच्छा ही होगा धैर्य रखे। मन में बड़ी शान्ती का मैं अनुभव कर रहा था, दूसरे दिन मैंने अपने मन की सारी पीड़ा से डाक्टर साहब को अवगत करा दिया। उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से उसका समाधान कर दिया। आज मैं चिन्तामुक्त होकर माँ पीताम्बरा के चरणों मे पूरा जीवन समर्पित कर रहा हूँ।

यह उपरोक्त बाते एक साधक के कष्टमयी जीवन से मुक्तिकर माँ के द्वारा उसे उचित मार्ग प्रदान किया गया। इनकी आप बीती इस प्रकार है - साधक की पुत्री का अपने एक सहपाठी से दिल लग गया, जो दूसरी बिरादरी का था, पुत्री सर्विस में थी व प्रतिमाह साठ हजार वेतन पा रही थी, वह उसका सहपाठी स्टेट बैंक में उच्चपद पर कार्यरत था, जब मैं इनकी समस्या सुन रहा था, उसी समय मेरा एक शिष्य राम चन्द्र यादव मुझसे मिलने दवाखाने पर आ गए, इनकी सारी समस्या सुनने के बाद राम चन्द्र यादव पुत्री के तयागमयी जीवन के कष्टों की अनुभूति कर भाव विभोर होकर रो पड़े और कहने लगे, आप की पुत्री का त्याग महान है वह साठ हजार पा रही है व लड़का भी बैंक में उच्चपद पर है, यदि वे दोनों कोर्ट मैरिज कर लें तो आप कुछ नहीं कर सकते, परन्तु पुत्री ने अपने प्रेम का गला घोंट कर आपकी मर्यादा पर कोई आंच न आए इसलिए उसने कहीं विवाह न करने का फैसला लिया। आप को ज्ञात होगा पुराने जमाने में स्वयंवर द्वारा विवाह होते थे, वर की योग्यता देखी जाती थी, उसकी जाति नहीं, मैं तो आप की पुत्री के त्याग को सुन कर नतमस्तक हूँ, मैं आप को सुझाव देता हूँ, यदि दोनों के मस्तिष्क-विचारों का संतुलन व सामंजस्य बना हुआ है, तब आप झूठी शान हेतु अपनी पुत्री के अरमानों का गला न घोंटे वही उचित होगा, यह मैं आप के विवेक पर छोड़ता हूँ कि आप क्या निर्णय लें। यह बात साधक के मन में बैठ गई कि माँ की शरण में आने के बाद ही उचित मार्ग दिखा है एक लम्बे समय के बाद मन की बातें निकली और उसका समाधान माँ की ही कृपा से हुआ अतः मैं कौन होता हूँ अपनी पुत्री के अरमानों का गला घोंटने वाला इसका विवाह वही होगा जहाँ पुत्री चाहती है। पुत्री के विवाह में मैने भी वर-वधू को माँ की ओर से शुभ आशीर्वाद प्रदान किया। यह होता है माँ पर भरोसा करने का परिणाम।

क्रिया इस प्रकार की गई -


रूद्रयामल का बगला अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत

नोट- माँ की कृपा विचित्र होती है - स्त्रोत पाठ हृदय की कातर पुकार के रूप में अभिव्यक्त हो तो आध्यात्मिक शक्तियाँ अपनी कृपा प्रदान करती ही है और पराम्बा शीघ्रतिशीघ्र द्रवित होती है। दुःखी व्यक्ति के हृदय से कातर पुकार निकलती ही है। शीघ्रता से गा कर, पाठ न करें कहा गया है - रटंत विद्या फलन्त ना ही। यहा हमारा बारम्बार का अनुभव रहा है, बगला शतनाम स्त्रोत में आश्चर्यजनक शक्ति समाई हुई है।

1. ब्रम्ह्मास्त्र रूपिणी देवी 
2. माता बगलामुखी।
3. चिच्छक्तिर्ज्ञानरूपा 
4 ब्रम्ह्मानन्द प्रदायिनी।। 1 ।।
5. महाविद्या  
6. महालक्ष्मी 
7. श्री मत्त्रिपुर सुन्दरी।
8. भुवनेशी 
9. जगन्माता 
10. पार्वती
11. सर्वमंगला।। 2 ।।
12. ललिता 
13. भैरवी 
14. शान्ता 
15. अन्नपूर्णा 
16. कुलेश्वरी।
17. वाराही 
18. छिन्नमस्ता 
19. तारा 
20. काली 
21. सरस्वती।। 3 ।।
22. जगत्पूज्या 
23. महामाया 
24. कामेशी 
25. भगमालनी।
26. दक्षपुत्री 
27. शिवांकस्था 
28. शिवरूपा 
29. शिव प्रिया।। 4 ।।
30. सर्व सम्पत्करी देवी 
31. सर्वलेाक वंशकरी।
32. वेद विद्या 
33. महापूज्या 
34. भक्ताद्वेषी 
35. भयंकरी।। 5 ।।
36. स्तम्भरूपा 
37. स्तम्भिनी 
38. दुष्ट स्तम्भन कारिणी।
39. भक्त प्रिया 
40. महाभोगा 
41. श्री विद्या 
42. ललिताम्बिका।। 6 ।।
43. मैनापुत्री 
44. शिवानन्दा 
45. मातंगी
46. भुवनेश्वरी।
47. नारसिहीं 
48. नरेन्द्रा 
49. नृपाराध्या 
50.नरोत्तमा।। 7 ।।
51. नागनी 
52. नागपुत्री 
53. नगराज सुता 
54. उमा।
55. पीताम्बरा 
56. पीतपुष्पा 
57. पीत वस्त्र प्रिया 
58. शुभा।। 8 ।।
59. पीत गंध प्रिया 
60. रामा 
61. पीतरत्नार्चिता 
62. शिवा।
63. अर्द्धचन्द्रधरी देवी 
64. गुदा मुद्गर धारिणी।। 9।।
65. सावित्री 
66. त्रिपदा 
67. शुद्धा 
68. सद्यो राग विवर्धिनी।
69. विष्णुरूपा 
70. जगन्मोहा 
71. ब्रह्मरूपा 
72. हरिप्रिया।। 10 ।।
73. रूद्ररूपा 
74. रूद्रशक्तिश्चिन्मयी 
75. भक्ता वत्सला।
76. लोकमाता 
77. शिवा 
78. सन्ध्या 
79. शिव पूजन तत्परा।। 11 ।।
80. धनाध्यक्षा 
81. धनेशी 
82. धर्मदा 
83. धनदा 
84. धना।
85. चण्डदर्पहरी देवी 
86. शुम्भासुर निवर्हिणी ।। 12 ।।
87. राज राजेश्वरी देवी 
88. महिषा सुर मर्दिनी।
89. मधु कैटभ हन्त्री 
90. रक्त बीज विनाशिनी।। 13 ।।
91. धूम्राक्ष दैत्य हन्त्री 
92. भण्डासुर विनाशिनी।
93. रेणु पुत्री  
94. महामाया 
95. भ्रामरी 
96. भ्रमराम्बिका।। 14 ।।
97. ज्वालामुखी 
98. भद्रकाली 
99. बगला 
100. शत्रु नाशिनी।
101. इन्द्राणी 
102. इन्द्र पूज्या 
103. गुहमाता 
104. गुणेश्वरी।। 15।।
105. ब्रजपाशधरा देवी 
106. जिह्वा मुद्गर धारिणी।
107. भक्ता नन्द करी देवी 
108 बगला परमेश्वरी।। 16।।



24 March Havan


23 March Havan


डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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Wednesday 28 February 2018

जिन्न व ब्रह्म राक्षस को नष्ट करना

भुवनेश्वर से मेरे शिष्य ने बताया उसका सारा परिवार जिन्नो व ब्रह्म राक्षस द्वारा पूर्णतः तवाह किया जा चुका है। उनकी दो बेटियों व पत्नी के साथ ये अनैतिक सम्बन्ध बनाते हैं, बेटे के कारोबार में भी घाटा बना रहता है, कुल मिला कर मेरे परिवार की दुर्दशा बढ़ती ही जा रही है। बहुत उपाय किए, तांत्रिकों के भी अनेकों चक्कर लगाए, परन्तु कहीं भी सफलता नहीं मिल सकी। मैं क्या करुं, किससे कहूं, कुछ समझ में नही आ रहा , मैं जीवन से हताश हो चुका हूँ, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार है, कहीं से प्रकाश की कोई किरण नहीं दिख रही हे, कुल मिलाकर आत्म हत्या करने का विचार बार-बार मेरे मन में कौंध रहा हैं क्या करुं, इसी उधेड़ बुल में बैठा मैं नेट चला रहा था, वहाँ एक अनुभव दिखा, उसे मैं पढ़ता रहा और पड़ता ही रहा, तभी मुझे महसूस होने लगा कि यहीं से मेरी समस्याओं का निदान हो जाएगा, अतः बिना समय व्यर्थ किए मैंने रात्रि दो बज कर तीस मिनट पर ही डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह को फोन लगा दिया, यह मेरा सौभाग्य था कि फोन डाक्टर साहब ने तुरन्त उठा लिया। मैने शीघ्रता पूर्वक अपनी सारी समस्याओं से उन्हें अवगत कराया। डाक्टर साहब ने हमें आवश्वासन दिया, सब ठीक हो जाएगा, माँ पीताम्बरी पर भरोसा रखों, अभी मैं जप से उठा हूँ, थोड़ा खा पीकर आराम कर लूं, कल सुबह बात होगी, पुनः आश्वासन देता हूँ तुम्हारे इस कष्टकारी जीवन में माँ की कृपा अवश्य होगी

वह रात मेरे जीवन की बहुत लम्बी रात थी, रातभर मैं सो ना सका, घड़ी ही देखता रहा, कब सुबह हो। एक लम्बे समय के बाद, एक आशा की किरण मुझे दिखी थी, मुझे आभास हो रहा था, अब मेरे कष्टों का अन्त निकट ही है, क्यों कि जब डाक्टर साहब ने हमें आश्वासन दिया, उसी क्षण मेरे शरीर में एक सिहरन सी उठी थी, मानो एक क्षण के लिए शरीर में तेज ठंडक का अनुभव हुआ, ऐसा अनुभव किसी भी तांत्रिक से मिलने के पश्चात् हमें नहीं हुआ।

दूसरे दिन डाक्टर साहब को फोन लगाया, मानों वो हमारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे, तुरन्त फोन उठा, व हमें बगला अष्टोत्तर के दस हजार पाठों का संकल्प कर पाठ करने का निर्देश दिया व बाकी मैं देख लेता हूँ, कह कर उन्होंने फोन रख दिया। मैंने यह संकल्प पूर्ण किया। हमें अब यह सब स्वप्न जैसा लग रहा है इन सारी कष्टकारी समस्याओं का अन्त हो गया है। यह आप बीती एक साधक की है अब वह हमारा शिष्य है और लोगों के कष्टा को दूर करने में सदैव तत्पर रहता है।

इस प्रकरण में शतनामों के पाठों की संख्या अत्यधिक दो कारणवश बताई गई - पहला यजमान का ध्यान कष्ट से हटा रहे व माँ के पाठों में ही लगा रहे, क्योंकि प्रचंड तीव्र शक्तियों से निपटना कोइ सुगम कार्य नहीं था, इसमें समय लगेगा और दुःखी व्यक्ति चाहता है, कार्य तुरन्त हो जाए। दूसरा जब वह माँ का पाठ करेगा तो माँ की कृपा प्राप्त होनी ही होनी है, जिससे मैं इसके लिए जो प्रयोग करूंगा उससे हमें शीघ्र सफलता प्राप्त होगी और ऐसा ही माँ ने किया हमें सफलता दे दी और वह परिवार आज सुखमय जीवन की ओर अग्रसर हो रहा है।

क्रिया इस प्रकार की गई:-

बगला तंत्र के अन्तर्गत ब्रह्मास्त्र माला मंत्र का नित्य 108 पाठ व हवन, ऐसा 30 दिनों तक निरंतर किया गय। मेरा यंत्र चटक गया भगवती ने उसकी सारी दुष्ट शक्तियों को यंत्र में चपका कर नष्ट कर दिया, प्रमाण यंत्र में दे दिया। अब वह परिवार सुखी है, माँ कभी भी अपने साधकों को निराश नहीं होने देती ऐसा मेरा बारम्बार का अनुभव रहा है।

ब्रह्मास्त्र माला मंत्र:-

ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंकगृधोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररूधिर मांस चरू भोजन प्रिये सिद्ध विद्याधर वृन्द वन्दित चरणे ब्रह्मेश विष्णु वरूण कुबेर भैरवी भैरवप्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छागच्छ मानय-मानय नुद-नुद अमुकं (अपने शत्रु का नाम लें).......... मारय-मारय, चूर्णय-चूर्णय, आवेशयावेशय त्रुट-त्रुट, त्रोटय-त्रोटय स्फुट-स्फुट स्फोटय-स्फोटय महाभूतान जृम्भय-जृम्भय ब्रह्मराक्षसान-उच्चाटयोच्चाटय भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय-मूर्च्छय मम शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय शत्रून् चूर्णय-चूर्णय सत्यं कथय-कथय वृक्षेभ्यः सन्नाशय-सन्नाशय अर्कं स्तम्भय-स्तम्भय गरूड़ पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरू-कुरू लीलांगालय वृक्षेभ्यः परिपातय-परिपातय शैलकाननमहीं मर्दय-मर्दय मुखं उत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय भूत भविष्यं तय्सर्वं कथय-कथय कृन्त-कृन्त दह-दह पच-पच मथ-मथ प्रमथ-प्रमथ घर्घर-घर्घर ग्रासय-ग्रासय विद्रावय – विद्रावय उच्चाटयोच्चाटय विष्णु चक्रेण वरूण पाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय – नाशय प्रविदं स्फोटय-स्फोटय सर्व शत्रुन् मम वशं कुरू-कुरू पातालं पृत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनयानय करालि विकरालि महाकालि रूद्रशक्ते पूर्व दिशं निरोधय-निरोधय पश्चिम दिशं स्तम्भय-स्तम्भय दक्षिण दिशं निधय-निधय उत्तर दिशं बन्धय-बन्धय ह्रां ह्रीं ॐ बंधय-बंधय ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनी मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृतहार भूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहासे निलय-निलय हुं फट्-फट् विजृम्भित शरीरे सप्तद्वीपकृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तनयुगले असिमुसल परशुतोमरक्षुरिपाशहलेषु वीरान शमय-शमय सहस्रबाहु परापरादि शक्ति विष्णु शरीरे शंकर हृदयेश्वरी बगलामुखी सर्व दुष्टान् विनाशय-विनाशय हुं फट् स्वाहा। ॐ ह्ल्रीं बगलामुखि ये केचनापकारिणः सन्ति तेषां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय जिह्वां कीलय – कीलय बुद्धिं विनाशय-विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा । ॐ ह्रीं ह्रीं हिली-हिली अमुकस्य (शत्रु का नाम लें) वाचं मुखं पदं स्तम्भय शत्रुं जिह्वां कीलय शत्रुणां दृष्टि मुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय-बंधय मारय-मारय शोषय-शोषय हुं फट् स्वाहा।।




नोट - शत्रु के स्थान पर ‘‘गुप्त अलौकिक शत्रु’’ दिया गया।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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Tuesday 30 January 2018

तांत्रिक विधान और माँ बगलामुखी


नेट के माध्यम से एक महिला ने हमें फोन किया, लगभग आधे घंटे बात हुई, उसके सारे कष्ट सुनने के बाद मैंने उसे प्रेरित किया कि वह माँ की शरण में आ जाए, सारे कष्टों का निदान हो जाएगा, परन्तु जटिल समस्याओं के चक्र व्यूह में वह बुरी तरह उलझ गई व कोई भी साधना करने का साहस उसमें शेष नहीं रह गया था। दो पुत्रियाँ भी कष्टों से घिरी रहती। तरह-तरह के स्वप्न आना, शरीर दुखना, कमर में दर्द, जाँघों में फटन, दिन भर आलस में पड़े रहना, किसी कार्य में मन न लगना। किसी जानकार को दिखलाया उसके मतानुसार किया धरा है। मैंने इनके परिवार के पृष्ठिभूमि के बारे में जानकारी ली तो ज्ञात हुआ, इन्हीं के परिवार के लोग ही इनके पीछे पड़े हैं कि लड़का न होने पाए। मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कृत्या का प्रयोग किया गया है, अतः तांत्रिक विधान काटने व कृत्या विनाश हेतु बगला प्रत्यंगिरा से संम्पुटित बगला सूक्त के ग्यारह हजार पाठों का चयन किया। भगवती का स्वभाव है अपने साधकों को अचंम्भित कर देना, इनके भक्त परिणाम देख कर अंचम्भित होकर गद्गद् हो जाते हैं, वही मेरे साथ भी हुआ, हवन का धूंवा ध्रूम रंग का न होकर, काले रंग का उठता रहा मानो डीजल जल रहा हो और अन्त में ध्रूम रंग का धूंवा काफी मात्रा में उठा। इसके ऊपर की गई सारी कृत्या को भगवती ने एक ही झटके में समाप्त कर दिया। सारा दर्द समाप्त हो गया, स्वपनों का अन्त हो गया, परिवार में खुशहाली है, कोई रोग नहीं, कोई बाधा नहीं। एक वर्ष पश्चात् इनके घर एक बालक ने जन्म लिया अर्थात् घर का चिराग माँ ने बुझने नहीं दिया।





क्रिया इस प्रकार की गई -

संकल्प - पर कृत्या, पर मंत्र, पर यंत्र, पर तंत्र निवार्णनार्थे बगला प्रत्यंगिरा, सम्पुटे बगला सूक्त एको परी एका सहस्त्र (ग्यारह हजार) पाठे अंह कुर्वे।

नोट - बगला प्रत्यंगिरा व बगला-सुक्त हम लिख चुके हैं।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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Saturday 30 December 2017

माँ बगलामुखी की कृपा का आंकलन कैसे करें

भगवती पीताम्बरा अपने सभी साधकों पर कृपा अवश्य करती है, ऐसा मेरा बारम्बार का अनुभव रहा है कुछ साधकों को प्रत्यक्ष कृपा मिलती है तो कुछ को घटना चक्र के अनुसार माँ की कृपा का अनुभव होता है दृष्टांत देखें -
1. लखनऊ में राधिका सिंह जो मेरी शिष्या हैं ने हमें बतलाया इनकी बेटी सेवारत है जो दूसरी बिरादरी के लड़के को चाहने लगी व उसी से विवाह करने की ज़िद ठान ली। मैंने भी मन बना लिया कि इसकी कोर्ट मेरिज कर दूंगी, परन्तु लड़का कुछ करता नहीं था। अतः मेरा मन पता नहीं क्यों इस विवाह के लिए इच्छुक नहीं हो रहा था, तभी नेट के माध्यम से मैं तपेश्वरी दयाल सिंह के सम्पर्क के आकर उनसे दीक्षा ली। गुरू जी द्वारा बताये जप व सतनाम का एक हजार पाठ कर गुरू जी से हवन करवाया, हवन होने के दो दिन पश्चात् घटना चक्र बहुत तेजी से बदलने लगे, मैं भी अचम्भित थी कि यह हो क्या रहा है। हमें विश्वास ही नहीं हो रहा था, चूंकि मैंने अपनी बेटी को बहुत समझाया, ऊँच-नींच की खाई की दुहाई दी, परन्तु वह उस लड़के से ही विवाह करने की ज़िद पर दृढ़ता से खड़ी थी। परन्तु ऐसा क्या हो गया मैरी बेटी ने उस लड़के से विवाह करने से ही मना कर दिया। हुआ यह कि लड़के के दो अन्य लड़कियों से अनैतिक सम्बन्ध चल रहे थे, उन दो लड़कियों में से एक कन्या ने सप्रमाण उस लड़के की पोल मेरी बेटी को दिखा दिया। सही समय पर माँ ने हम पर कृपा की और मेरी बेटी को अन्धकार में जाने से बचा दिया।
मैंने बेटी के लिए रिश्ता ढूंढा विवाह की दो रश्में भी पूर्ण हो गयी, फिर लड़के वालों ने विवाह से मना कर दिया, मेरे तो होश ही उड़ गये, गुरू जी ने समझाया परेशान न हो माँ सब ठीक करेगी, गुरू जी ने एक संकल्पित हवन का आयोजन किया, कुछ ही दिन बाद लड़के वालों ने कहला भेजा कि आप लोग तिलक लेकर कब आ रहें हैं, इस प्रकार पुनः माँ ने हम पर अपनी कृपा दृष्टि की जिससे मेरी बेटी का विवाह निर्विघ्न पूर्ण हुआ। मैं देखती हूं जब से हम गुरू जी के सम्पर्क में आयें हैं। गुरू जी फोन द्वारा ही मेरी समस्याओं का समाधान तुरन्त बता देते हैं व माँ की कृपा का अनुभव भी करा देते हैं। मेरी हार्दिक कामना है ऐसे गुरू जी सभी सच्चे हृदय वाले साधकों को मिलें।

2. मेरठ से मेरी शिष्या उमा जोशी जिसकी हाथों व पैरों में रात में काफी भयानक खुजली होती थी। पिछले चार वर्षों से परेशानी थी अनेकों दवा की तांत्रिकों के अभिमन्त्रित तेलों का प्रयोग किया कुछ लाभ न हुआ। जब से मैं भगवती बगलामुखी की शरण में आयी यह सारी समस्याओं का स्वतः ही समाधान हो गया। जब कभी खुजली होती है अपनी गदेलियों को मूल मंत्र से अभिमंत्रित कर वहां हाथ फैर देती हूँ खुजली तुरन्त समाप्त हो जाती है, है न यह माँ की कृपा ।

3. अलीगढ़ से मेरे शिष्य सुरेश चन्द्र ने भी माँ की कृपा का अनुभव इस प्रकार प्राप्त किया - मेरे बेटे का विवाह तय होकर विवाह की दो रश्में भी पूर्ण हो गयी परन्तु कहीं से पैसों का प्रबन्ध नहीं हो पा रहा था, मैंने उन्हें आश्वासन दिया, यदि माँ पर भरोसा किया है तो वह कुछ न कुछ प्रबन्ध अवश्य करेगी और हुआ भी ऐसा ही, विवाह से एक सप्ताह पूर्व ही इन्हें विवाह सम्पन्न कराने से अधिक पैसों का प्रबन्ध हो गया, इन्होंने माना माँ कृपा अवश्य करती है। हुआ यों कि इन्होंने ने दो वर्ष पूर्व ब्रेड कारखाना लगाया था। कुछ मशीनें व बड़ा ओवन भी लिया था, परन्तु कुछ कारणोंवश कारखाना नहीं चल सका। अब इन्होंने जिससे मशीनें वगैरह खरीदे थे अपनी समस्या बताते हुए उसे अनुरोध किया जो भी उचित पैसा बनता हो हमें देकर मशीनें ले लीजिये, मशीन बनाने वाली पार्टी ने आकर देखा वह उतने ही पैसे इनको दे दिये जितने में इन्होंने मशीनें खरीदें थी, लाखों रूपये इनके हाथों में थे, पुत्र का विवाह निर्विघ्न सम्पन्न हुआ।

4. लखनऊ से मेरे शिष्य मयंक सिंह को माँ की कृपा का चमत्कारी अनुभव प्राप्त हुआ, शतनाम एक हजार पाठ कर इसका हवन सम्पन्न किया। अमेरिका जाने का बीजा माँ ने इतनी सरलता से दे दिया कि इन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था। अमेरिका का बीजा इस समय बड़ी ही कठिनाई से मिल रहा है। इन्टरव्यु में उत्तीर्ण होने के कम ही अवसर होते हैं। इन्टरव्यु में जब इसका नम्बर आया तो इन्होंने माँ का स्मरण कर उनसे प्रार्थना की, माँ आप ही सम्भालें, इन्टरव्यु भी चमत्कारी ही हुआ, दो प्रश्न पूछे और ओ0के0 कर दिया। मेरे शिष्य मयंक सिंह अब अमेरिका रिटर्न होकर माँ के चरणों की सेवा में अपने आप को पूर्ण समर्पित कर दिया है। यह एक विद्ववान वैज्ञानिक हैं व समय निकाल कर माँ बगलामुखी की स्त्रुति परक एक गीत लिखकर हमें दिया है जो शीघ्र ही आप को हवन में सुनने को मिलेगा।




गुप्त संकेत - 

नित जाप करे जो पाँच हजार,
विजय पावें बहु बारम्बार,
बगलामुखी की जय जय कार।

नोट:- मेरे सारे शिष्य इस गुप्त संकेत से लाभ प्राप्त कर रहें है, आप भी प्राप्त करें।
डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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Tuesday 28 November 2017

माँ बगलामुखी की कृपा - साधकों पर कैसे होती है

नासिक से पुरूषोत्तम व सुदर्शना काफी परेशान थे, अलौकिक शक्तियों का काफी कोप था, आर्थिक संकट के कारण इन श्रीमान जी के मस्तिष्क में आत्महत्या करने का विचार बार-बार कौंध रहा था, नेट पर हमारे लेखों को इन्होंने पढ़ा, हिम्मत जुटा कर इन्होंने फोन पर अपनी सारी व्यथा से हमें परिचित कराया, मैंने इन्हें हिम्मत दी और बतलाया कि हमारी दो शर्तों का पालन कर सको तो तुमको इस ब्रम्हाण्ड की सर्वोच्च सत्ता के निकट लाने का प्रयास कर सकता हूँ, जिसमें तुम्हारी सम्पूर्ण समस्याओं का अन्त हो जाएगा और जीवन निष्कंटक हो जाएगा। पहली शर्त है, इस विद्या का दुरूपयोग नहीं करोगे और दूसरी है कि अनुष्ठान के समय पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करोगे। फोन के माध्यम से इनको अपनी मंत्र शक्ति का कुछ अंश देकर दीक्षित कर, भगवति के बीज मंत्र का एक लाख जप का अनुष्ठान कराया, जीवन में कुछ सुधार हुआ, पुरूषोत्तम की पत्नी सुलोचना ने भी स्वप्रेरित होकर हमसे मंत्र जाप की अनुमति ली, अतः उसे भी अपने मंत्र शक्ति का कुछ अंश देकर बीज मंत्र एक लाख जप का अनुष्ठान कराया, जो क्रमैव चल रहा है। तभी इनके सम्मुख घटनाएं घटने लगी व प्रत्यक्ष दिखने लगी वह घटनाक्रम इन्हीं के शब्दों में आप पढ़े-

गुरू जी आपने जब से मुझे माँ बगलामुखी का अनुष्ठान करवाया है तब से न जाने मेरे परिवार और मेरे साथ क्या अद्भुत और अनन्य अनुभव हो रहा है यह सविस्तार बता रहा हूँ। मेरे जीवन को सही में आकार प्राप्त हुआ तो सिर्फ मेरे गुरूवर डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह जी की कृपा से। गुरू जी ने मुझे बहुत बार माँ बगलामुखी के अलग-अलग अनुष्ठान कराए परन्तु जैसा श्री गुरू जी चाहते थे, वैसा रिजल्ट नहीं मिल रहा था मेरी धन सम्बन्धित समस्या बहुत दिनों से चली आ रही है, गुरू जी ने हमें बतलाया भगवती के मंदार मंत्र का अनुष्ठान करना अनिवार्य हो गया है। अतः गुरू निर्देशानुसार संकल्प कर जप प्रारम्भ कर दिया अभी सात हजार जप ही हुए थे कि रात्रि 2.30 बजे मेरी पत्नी को एक लगभग तीन फुट ऊँची फूलदार हरी साड़ी पहने एक औरत दिखी जो मेरी चार साल की बेटी को उठा रही थी, मेरी पत्नी सुदर्शना ने चिल्लाकर उस औरत से कहा, यह क्या कर रही हो तो वह वहाँ से हट कर मेरे पैरों के पास खड़ी हो गई, पत्नी बहुत डर गई थी। रात भर जागती रही यह प्रत्यक्ष घटना उसके आंखों के सामने हुई, कोई स्वप्न की बात नहीं है। रात को उसने हमें जगाने की बहुत कोशिश की, परन्तु हम बहुत गहरी नींद मे थे, सुबह उसने हमें बताया तो मुझे मजाक लगा और बाहर निकल गया, फिर उसी दिन दोपहर में मेरी पत्नी बेटी को साथ लेकर सुलाने लगी तो वही हरी साड़ी वाली औरत जिसका सिर (चेहरा) साड़ी से ढका हुआ था, अतः उसका चेहरा नजर नहीं आया, यह मेरी बेटी को दिखाई दी, मुझे पत्नी ने फोन द्वारा यह घटना बताई परन्तु मैं काम पर था, पैसे की फ्रिक में मैंने ध्यान नहीं दिया, शाम को इसी बात पर पत्नी से हमारा झगड़ा हुआ, मैं गुरू जी को बार-बार परेशान नहीं करना चाहता था, क्यों कि गुरू जी मेरा आखिरी सहारा है फिर उस दिन रात को हमें नींद नहीं आई, मैंने पत्नी व बेटी को आश्वस्त कर सुला दिया और मैं उस औरत के आने की प्रतीक्षा करने लगा कि वह आए तो मैं उसकी पिटाई कंरू, लगभग तीन बजे मैं सो गया मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया, सुबह आठ बजे मेरी आँख खुली, मंदार मंत्र पूर्ण कर गुरू अनुमति से हवन किया।

एक प्राचीन शिव मंदिर में हवन का दृश्य 



घर से जाते समय मैंने पत्नी व बेटी को समझाया जो काफी डरी हुई थीं। मेरी पत्नी भी गुरू जी की कृपा से माँ बगलामुखी की साधक है। इसी बीच एक दिन दोपहर में उस औरत ने पत्नी को हाल से घसीट कर रसोई की ओर ले गई, मेरे घर में डर का माहौल बना हुआ है, पत्नी को वह औरत बार-बार दिखने लगी, एक दिन उसने मेरी बेटी का गला दबाया और पत्नी ने गुरू जी को फोन लगाकर बतलाया तभी श्री गुरू जी ने बताया आप लोगों पर माँ की कृपा हो गई है। यही गुप्त अलौकिक शक्ति तुम्हारे घन सम्बन्धी कार्य सम्पन्न नहीं होने दे रही है, इसको नष्ट करने के लिए भगवती बगलामुखी के प्रत्यंगिरा का दस हजार संकल्प लेकर पाठ प्रारम्भ करो अतः हमने गुरू निर्देशानुसार पाठ शुरू कर दिया और अभी पाठ चल रहा है, पाठ करते बहुत विघ्न आ रहे हैं, पाठों की संख्या सौ से ऊपर नहीं हो पा रही है, गुरू जी को बताया बहुत कम पाठ हो पा रहा है, गुरू जी ने हमें बतलाया बहुत अच्छा पाठ हो रहा है, इस बात का ध्यान रखना छोड़ना नहीं और सम्पूर्ण पाठ का जप करना। हमारा मन केवल मंत्र ही करने का हो रहा था, लेकिन जब हमने गुरू जी के आदेश से मां को कपूर देकर माँ से पूछा इतना बड़ा मंत्र और उसके नीचे जो पद्य है उसकी क्या जरूरत है, तब जाप बढ़ने के बाद एक दिन अंतर चेतना में माँ ने ज्ञात कराया, अपने आस-पास नजर डाल कर देख - मैंने अनुभव किया, मेरे शत्रु संतापय, मेरा मीठी जबान वाला दोस्त मुझे देख कर संताप करता है, मेरा विरोध करने वालों पर मोहय-मोहय कहा गया है, मेरे शत्रुओं पर स्तम्भय-स्तम्भ्य कहा गया है। अब हमें पता चल गया, यह मंत्र तो मेरे लिए ही है, मेरी सारी समस्याओं का सम्पूर्ण हल तो इसी मंत्र में लिखा है, मेरे अन्दर ऐसी भावना आते ही मैने अपने अन्दर एक अद्भुद ऊर्जा के संचार का अनुभव किया और मैं पूरे होशों-हवास के साथ पाठ करता रहा, परन्तु मेरे आंखों के ऊपर बहुत दर्द होता है, पत्नी के एक कान व दांत में असहनीय दर्द होता है, बच्ची बहुत चिड़चिड़ापन करती है, मेरी मम्मी के बाए पैर में असहनीय दर्द होता है। श्री गुरू जी को अपनी यह पीड़ा बतलाई उन्होंने निर्देश दिया जप के समय सामने एक लोटे या गिलास में जल रख दिया करो और इसी जल का प्रयोग करो, तब से हम लोग इस जल को पीने लगे, बच्ची को उस जल से नहलाया, उसका चिड़चिड़ापन लगभग उसी दिन से गायब हो गया, मुझे भी उस पानी के स्नान से उसी क्षण शरीर के भारीपन से राहत मिली, परन्तु मेरी पत्नी का दांत दुखता रहा, वापस श्री गुरू जी से पूछा तो उन्होंने बतलाया, अब ऐसा करो जब भी दर्द करें अपनी उंगलियों पर मूलमंत्र तीन बार पढ़ कर फूंक कर दर्द वाले स्थान पर फेर दिया करो, ऐसा ही मेरी पत्नी ने किया, उसका दाँत दर्द उसी क्षण बन्द हो गया, श्री गुरू जी ने तो हमंे वह बता दिया जैसे जादू हो। अब जब भी पत्नी के दांतों में दर्द उठता है, वह इसी जादू का प्रयोग करती है और उसे तुरन्त राहत मिल जाती है, उधर वह हरी साड़ी वाली मोटी ताजी औरत सूख कर एकदम पतली हो गई है, और तीन दिन बाद उसका घर में दिखना भी बन्द हो गया है। हम और सुदर्शना बातें कर रहे थे बहुत दिन हो गए हैं, श्री गुरू जी से बाते नहीं हुई है - तभी श्री गुरू जी का फोन आया, हम पति-पत्नी दोनों ने उनसे बातें की। धन्य हैं माँ बगलामुखी जिन्होंने मुझे श्री गुरू जी को दिया और धन्य हैं मेरे श्री गुरूमूर्ति जिन्होंने मुझे माँ बगलामुखी की दीक्षा देकर कृतकृत्य किया, मैं श्री गुरू जी का ऋणी हूं, क्यों कि आज तक हम सिर्फ और सिर्फ फोन पर मिलें हैं, इसमें मुझे किसी प्रकार का खर्चा नहीं आया, मेरे श्री गुरूजी सम्पूर्णतया निस्वार्थ ही हैं और मैं पति-पत्नी अपने को भाग्यशाली समझते हैं कि माँ बगलामुखी के चरणों में आने का सुनहरा अवसर मिला। अब मुझे जहाँ भी टाइम मिलता है श्री गुरू निर्देशानुसार माँ के मूलमंत्र का मानसिक जाप करता हूँ और माँ की शरण में रहता हूँ।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434

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Sunday 29 October 2017

शताक्षरी मंत्र का प्रयोग - यह शत्रु नाशक है

हमारा एक शिष्य जो अपने शत्रुओं से भयंकर रूप से पीड़ित था, शत्रु अति बलशाली व पैसों वाला था, उसके दस-दस ट्रक सड़कों पर दौड़ते थे और हमारा शिष्य इनके आगे कहीं टिक ही नहीं सकता तथा उसकी पत्नी से शत्रु के गुप्त सम्बन्ध थे, बस यहीं से शत्रुता जो प्रारम्भ हुई आज तक इनकी बरबादी का कारण बनी रही। शिष्य की सारी व्यथा सुनने के उपरान्त इन्हें दिशा-निर्देश दिया बगला शताक्षरी मंत्र के दस हजार जप का संकल्प लें, परन्तु दस हजार जप के उपरान्त कुछ नहीं हुआ। मेरा शिष्य काफी हताशा की स्थिति में आ गया था, मैने उसे ढाढस बंधाया व वास्तिविकता से परिचय कराया, ये कलियुग है, इसमें मंत्र का चार गुना जप करने के उपरान्त ही वह फलीभूत होता है। अतः लगे रहो सफलता मिल कर रहेगी, यदि सफल नहीं होते तो यह अनुष्ठान तुम्हारे लिए मैं ही कर दूंगा। मेरे शिष्य के अन्दर अजब आशा का संचार हुआ। अन्तोगत्वा उसने चारों अनुष्ठान निर्विध्न पूर्ण कर लिया। एक माह व्यतीत हो गए कोई परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था, उसके निराश मन को उत्साहित करते हुए मैने उसे माँ को कपूर देने को कहा। आज रात एक बड़ा कपूर जला कर माँ का आवाह्न करना है - हे माँ! आपको मैं कपूर की ज्योति देना चाहता हूँ, आप आए और इसे ग्रहण करें, जैसे ही कपूर बुझने वाला हो थोड़ा कपूर उस पर रखते रहें और अपनी सारी व्यथा उनसे कहते रहे, कल्पना करें माँ सामने ही है, जैसे अपनी व्यथा सुनाते हुए मेरे सामने रोए थे, वैसे ही माँ को अपनी सारी व्यथा सुना दो, आंसू स्वतः ही अविरल गति से बहने लगेगे, इससे माँ तुरन्त ही तुम्हारे कार्य कासम्पादन करने के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेगी, भक्त की छटपटाहट माँ को बैचेन कर देती है। उसने मेरे दिशा-निर्देश का सटीक पालन किय। दूसरे ही दिन से समाचार मिलने प्रारम्भ हो गए, उसकी ट्रकों का भयंकर एक्सीडेंट होना प्रारम्भ हो गया, अब दस की दसों ट्रकें बिक चुकी हैं। शत्रु की पत्नी पागल हो गई, उसके पुत्रों से ऐसी अनबन हुई कि इन्हें छोड़ कर अलग रहने लगे, माँ का क्रोध यही नहीं रूका, शत्रु को फालिज का अटैक पड़ा बोलने व चलने में लाचार हो गए तब जाकर मेरे शिष्य की पत्नी इनके चंगुल से छूट पाई।

क्रिया इस प्रकार की गई -

शताक्षरी मंत्र -

‘‘|| ह्लीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ग्लौं ह्लीं वगलामुखि स्फुर स्फुर सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय प्रस्फुर प्रस्फुर 
विकटांगि घोररुपि जिह्वां कीलय महाभ्मरि बुद्धिं नाशय विराण्मयि सर्व-प्रज्ञा-मयी प्रज्ञां नाशय, उन्मादं कुरु कुरु, मनो-पहारिणि ह्लीं ग्लौं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं ह्लीं स्वाहा ||

विनियोग -

ऊँ अस्य श्री बगला-मुखि शताक्षरी-महा-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, जगत्-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला मुखी देवता, ह्लीं शक्तिः, ऐं कीलकं, जगत-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला-मुखी-देवताम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास - 

श्री ब्रह्मा-ऋषये नमः शिरसे,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे, 
जगत्-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला मुखी-देवतायै नमः हृदि, 
हृीं ब्रीजाय नमः लिंगे, 
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः, 
ऐं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे। 
जगत् स्तम्भन-कारिणी श्री बगलामुखी- देवताम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ।

कर न्यास -

ऊँ ह्राँ अनुष्ठाभ्यां नमः। 
ऊँ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा। 
ऊँ ह्रूं मध्यमाभ्यां वषट्। 
ऊँ ह्रैं अनामिकाभ्यां हुं। 
ऊँ ह्रौं कनिष्ठाभ्यां वौषट्। 
ऊँ ह्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

अंग न्यास:- 

ऊँ ह्रां हदयाय नमः। 
ऊँ ह्रीं शिरस स्वाहा। 
ऊँ ह्रूं शिखाये वषट्। 
ऊँ ह्रैं कवचाय हुं। 
ऊँ ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। 
ऊँ ह्रः अस्त्राय फट्।

ध्यान

पीताम्बर -धरां सौम्यां, पीत-भूषण-भूषिताम्।
स्वर्ण-सिहासनस्थां च, मूले कल्प-तरोरधः।।
वैरि-जिह्वा-भेदनार्थ, छुरिकां विभ्रतीं शिवाम्।
पान-पात्रं गदां पाशं, धारयन्तीं भजाम्यहम्।।

नलखेड़ा बगलामुखी मंदिर हवन वीडियो




तपेश्वरी दयाल सिंह
9839149434


नोट: 

1. सांकेतिक शब्द

ह्रीं - सतब्ध माया, स्तम्भ माया, स्थिर-माया।
ऐं - वाग्भव।
ह्रीं - भुवनेशी, शक्ति बींज
क्लीं - काम-राज।
श्रीं - श्री-बींज
ग्लौ - शक्ति-वाराह।

2. पच्चाङग-पुरश्चरण करने से ही मंत्र सिद्ध होता है। तब अभीष्ठ कामना की पूर्ति के लिए उसका प्रयोग करते हैं। जपान्त में दसांश पद्धति से हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन सम्पन्न करते हैं।
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Saturday 23 September 2017

माँ बगला की कृपा और दुष्टता का शमन

मेरे एक गुरुभाई हैं ओंकार जी | मैं उनसे कहता था की आप भी अपना कोई अनुभव शेयर करिए | बचपन से ही माँ की कृपा दया की गाथाएं तो बहुत हैं, पर हाल में हुई एक घटना, प्रसन्नता और भक्ति पूर्वक नवरात्री के पावन अवसर पर इस प्रकार भेजा है  -

उनकी पत्नी सुलेखा ( बदला हुआ नाम ) की पुणे के एक बैंक में पोस्टिंग हुई | पर उस ब्रांच का मेनेजर दुष्ट था और उन्हें अपने ब्रांच में नहीं रहने देना चाहता था | और वह तरह तरह से अकारण ही परेशानी खड़े करने लगा जैसे की उनके द्वारा किया गया काम उनके नाम पे नहीं जाने देता था और अपने किसी चाटुकार के नाम पे कर देता था ,आदि आदि | गलत तरीके से बात करना और सबके सामने उनकी बेइज्जती करने  में उसे बहुत तृप्ति मिलती थी | नयी एम्प्लोयी होने के कारण उन्हें सीखने की जरूरत थी, जिसके वो सख्त खिलाफ था, जिसके लिए वो उनके हर काम में अडंगा डालता था | सुलेखा जी का हर दिन ऑफिस से घर आते समय रास्ता रोते हुए कटता था | ओंकार जी, को शुरू में लगा की शायद स्थिति थोड़े दिन बाद सुधर जायेगी, परन्तु लगातार १ महीने तक ऐसा ही चलता रहा | और तो और उन्हें मेनेजर ने बैठने की जगह तक नहीं दी, और सिस्टम भी नहीं मिलने दिया जिससे की उनका सारा काम रुक गया | मेनेजर की सीनियर से सांठ गाँठ होने से वह उल्टा उनकी शिकायत करके उनके भविष्य को अंधकारमय बनाने का भरसक प्रयत्न करने लगा | पर माँ भगवती की भक्त होने के कारण, दुष्ट के आगे ना झुकने का उनका स्वभाव, मेनेजर की आखों में चुभता था, जिससे की उसका रवैया और आक्रामक होता गया| डिपुटी ब्रांच मेनेजर भी उस दुष्ट की सहयोगी थी, और उनसे चपरासी के लेवल का काम कराती थी|

सच्चे साधक का ये स्वभाव  होता है की वो निष्काम भाव से माँ की साधना करे | और वो भरसक प्रयास करता है की, अपनी साधना से  आत्मिक कल्याण के लिए तत्पर रहे | परन्तु जब उस साधक को दुष्ट प्रयोजन से, कोई अत्यंत नुक्सान करने पे उतर आये तो फिर ऐसे भगवती के साधक अंततः माँ से गुहार लगाते हैं| और ये सर्वविदित है माँ बगला फिर अपने भक्त के दुश्मन की लंका लगाने में देर नहीं करती|


खैर, अभी उसकी दुष्टता का अंत नहीं हुआ, मेनेजर अपने सीनियर से बात करके उन्हें अपने ब्रांच से निकलवाने की कोशिश में सफल हो गया | और उन्हें बाहर घुमने वाले सेल्स का काम लगवा कर स्थानान्तरन करवा दिया| परेशानी हद से पार जाते देख ओंकार जी ने मुझे फ़ोन करके बताया| मुझे ये समझते देर नहीं लगी की माँ परीक्षा पे उतर आई है, और वही पार लगाएगी| ओंकार जी का एक अनुष्ठान पहले से ही चल रहा था, लेकिन इस परेशानी के लिए बगला साबर मन्त्र उठाने को बोला| ये साबर मन्त्र अत्यंत अचूक है, और ये ऐसा रिवाल्वर है जिसकी गोली का वार कभी खाली नहीं जाता| हाँ शक्ति को मन्त्र जप की संख्या से जरूर बढाया जा सकता है, जिससे की शीघ्रतिशीघ्र परिणाम संभव हो जाता है | मेरे सलाह से सुलेखा जी ने भी 1000, शतनाम स्तोत्र का जप संकल्प लिया | शाबर के १०,००० के संकल्प का तीसरा ही दिन हुआ था, की मेनेजर की दुष्टता से परेशान एक दुसरे एम्प्लोयी ने उसे सरेआम थप्पर मार सफलता का शिलान्यास कर दिया | जिससे की साधना सही दिशा में जा रही है ऐसा प्रतीत होने लगा| माँ की कार्यशैली माँ ही जाने, संकल्प पूरा होते होते, 2 महीने ही बीते थे की उन्हें वापस अपने पोस्ट के अनुकूल काम दिया गया| नयी एम्प्लोयी होने के कारण इनके साथ कोई नहीं था, पर जब माँ साथ हो तो दुनिया को साथ चलना ही पड़ता है| यही रीत है| समय गुजरने के साथ,  मैनेजमेंट ने ब्रांच मेनेजर की दुष्टता को समझा और वो प्रश्न के घेरे में फसने लगा | इधर डेपुटी ब्रांच मेनेजर की शादी हुए १ साल ही हुए थे की उसके पति को लकवा का अटैक आ गया| सुलेखा जी को अच्छे काम के लिए इतने कम समय में ही अवार्ड भी मिला| माँ का न्याय अभी जारी ही है, और सुलेखा जी की परेशानी का सुखद अंत होने से गदगद ह्रदय से हम सब माँ की वंदना करते हैं| जय माँ बगलामुखी|

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434
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