Sunday 14 February 2016

मंत्र विद्या


भारतीय प्राचीन विद्या का मंत्र एक महत्वपूर्ण अंग रहा है, आज के परिवेश में लोगों का विश्वास मंत्रों से हट गया है। कारण भी सही है पुस्तकों से पढ़ कर लोग मंत्र जाप करने लगते हैं और उचित परिणाम न मिलने पर मंत्रों से विश्वास ही नहीं उठता, वरन् वे उसे कपोल कल्पित कहने लगते हैं। यद्यपि आज के युग में मंत्रों की सिद्धी प्राप्त करना कोई आसान कार्य नहीं है, क्योंकि रहन-सहन, आचरण आदि का भी मंत्र सिद्धी में प्रभाव पड़ता है।
मंत्र सिद्धी में मन की एकाग्रता व मंत्र के स्वरूप का चिन्तन दोनों का तारतम्य जप के समय बना रहे तो सिद्धी मिलने में आसानी रहती है। मंत्र कुछ, ध्यान कुछ और, तो सारी मेहनत व्यर्थ चली जाएगी। मंत्र जप के समय अपनी भ्रकुटी पर ध्यान केन्द्रित कर मंत्र का चिन्तन लगातार बना रहे मन को इधर-उधर न भागने दें, प्रयास करने पर भी मन एकाग्र नहीं हो रहा है तो 1 माला निम्न मंत्र का जप कर दें

तन्नै मनः शिव संकल्प मस्तु

क्रमशः मन की एकाग्रता बन जाएगी, ऐसा मेरा अनुभव रहा है। मंत्र इष्ट व अपने गुरू पर दृढ़ विश्वास कर जो साधक मंत्र जप करता है कोई कारण नहीं है कि उसे सफलता न मिले। एक दृष्टांग देखे- लगभग 4 वर्ष पुरानी बात है। मरीज अस्पताल में बेसुध भर्ती था, डाक्टरों ने जबाव दे दिया था, मरीज की सांस चल रही थी, इस केस को हमने, गुरू जी से इस सन्दर्भ में बात की उन्होंने महामृत्युंजय का मंत्र हमें नोट कराया ‘‘ऊँ त्रयंबकंम यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम्, ऊर्वारूक मिव गन्धनान, मृत्योेर्मुक्षी मा मताम्।’’ समय कम था अतः तुरन्त सवा लाख का संकल्प कर जप पर बैठ गया, तीव्र गति से उपांशु जप चलते हुए संकल्प पूर्ण करके मैं अस्पताल मरीज का हाल देखने गया, मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा, भोले बाबा ने मरीज पर कृपा की मरीज पूरी तरह स्वस्थ्य था, हमने कुछ देर उससे बात कर पुनः अपने साधना स्थल पर बैठ कर गौर करने लगा क्या यही मंत्र मैं लगातार जपता रहा। “बधंनान” के स्थान मंत्र में “गंधनान” लिख दिया था। फोन द्वारा मंत्र हमे गुरू जी ने लिखवाया था अतः मै वही मंत्र जपता रहा चुकि मंत्र व गुरू दोनो पर मुझे पूरा भरोसा था अतः फलींभूत हुआ मरीज को जीवन दान मिला।

मंत्र की महत्ता

मंत्र विज्ञान द्वारा अलौकिक शक्तियों के सम्पर्क में आकर पहले अपना भला करे, सुख-शान्ती, रूपया-पैसा, मान-सम्मान के साथ ही अपनी आन्तरिक शक्तियों का पूर्णतः विकास करें। मंत्र विज्ञान के लिए आवश्यक है, माला एवं यंत्र जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा की गई हो अतः आप को प्राण-प्रतिष्ठा करने की विधि का ज्ञान होना अनिवार्य है, हमने देखा है गुरू जनों को यंत्र पर उंगली रख कर यंत्र की प्राण प्रातिष्ठ कर देते हैं। ऐसे गुरू बहुत कम मिलते हैं जो अपनी यौगिक शक्ति द्वारा शक्ति पात कर अपने शिष्य को दीक्षा देते थे। गुरू द्वारा शक्ति पात यानी अपनी शक्ति का कुछ अंश, अपने शिष्य को तुरन्त देकर उसे सामर्थवान पहले ही दिन से बना देते थे, शक्तिपात जब गुरू अपने शिष्य पर करता है तो शिष्य को एक क्षण के लिए जबर्दस्त ठंडक का अनुभव होता है। एसे गुरू मिलते ही कहा हैं, मार्ग कठिन अवश्य है परन्तु, असम्भव नहीं है। परिश्रम करते रहना चाहिए जितनी छटपटाहट आप को सद्गुरू से मिलने की होती है, उतनी ही छटपटाहट सद्गुरूओं में अपने योग्य शिष्य पाने की भी होती है। समय आने पर ही मिलन होता है अतः समय को व्यर्थ न जाने दे और अपनी आन्तरिक शक्तियों का विकास मंत्र विज्ञान के माध्यम से करें।
पहले अपने आराध्य का चुनाव करें, वैसे मेरा विश्वास है कि आराध्य महाविद्याओं में से ही चुनने में ही अधिक लाभ रहता है, महाभारत के युद्ध से ही हमें यह शिक्षा मिल जाती मिल जाती है, उस समय जितने भी शस्त्र होते ये किसी न किसी देवी-देवताओं की शक्ति से चलते थे, सभी देवी-देवताओं की शक्ति एक निश्चित सीमा तक ही होती थी जब कि महाशक्तियों की कोई सीमा रेखा नहीं होती। अर्जुन अजेय रहे-भगवती बगलामुखि व श्री कृष्ण की उन पर कृपा थी दूसरे तरह यो समझले दरोगा, एस.पी., आई.जी., मुख्य मंत्री, प्रधानमंत्री प्रत्येक की शक्तियों की एक सीमा रेखा है। यदि किसी को मृत्युदंड मिल गया तो इस सब से काम नहीं चलेगा तब राष्ट्रपति ही उसे क्षमा कर सकता है, उसी प्रकार जब हमारा प्रारब्ध अत्याधिक बुरा हो - जिससे कष्टों का अम्बार दिख रहा हो, तब उस बुरे प्रारब्ध को नष्ट करने की शक्ति केवल महाशक्तियों के पास होती है। एक दृष्टांग देखें सुबह से मेरी बाई आँख लगातार फड़क रही थी, कुछ नुक्सान होना था, मैं जान रहा था, दोपहर तक बाई आँख फड़कती रही बार-बार मन में आ रहा था एक्सीडेन्ट होगा, दोहपर में हमें बाहर जाना पड़ गया, गाड़ी रोककर मैं भी खड़ा था, मेरे पीछे एक कार वाला था, उसने हार्न दिया परन्तु आगे जाम था, मैं आगे नहीं बढ़ सकता था, उसने अपनी गाड़ी धीरे से स्टार्ट की और मेरी गाड़ी में छुआ दिया, बस उसी छड़ बाई आंख जो लगातार फड़क रही थी, फड़कना बन्द कर दिया।
आज एक्सीडेन्ट प्रारब्ध में लिखा था, परन्तु भगवती बगलामुखी ने उस एक्सीडेन्ट को इतना सूक्ष्म कर दिया कि हमे पता ही नहीं चला। इसीलिए मैं कहता हूँ कि आराहना करो सर्वोच्च की, जिसकी सत्ता की कोई सीमा रेखा न हो। जिसमें प्रारब्ध को भी बदल देने की क्षमता हो, जैसे विज्ञान प्रयोग में कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही मंत्र विज्ञान में माला, यंत्र, आसन व अन्य पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है, प्रत्येक शक्ति के मंत्रों जप के लिए अलग-अलग माला की आवश्यकता होती है, जैसे माँ बगलामुखि की जप-हल्दी की माला से, माँ घूमावती के लिए रूद्धाक्ष की माला।
पहले इन माला की विधिवत् प्राण प्रतिष्ठा कर फिर इससे जप करने से कार्य शीघ्र बनते हैं। माले की कोई गुडि़या कटी-घुनी न होनी चाहिए।

माले की प्राण प्रतिष्ठा 

स्नान कर किसी पवित्र स्थान पर आसन लगा कर बैठ जाए।
पीतल के बर्तन में गाय के पंत्र गव्य को एकत्रित करें।

पंच गव्य के निर्माण में - गाय का दूध 50 ग्राम, गाय का दही 50 ग्राम, गाय का घी 50 ग्राम, गो मूत्र 10 ग्राम, गाय का गोबर 5 ग्राम।

इसी सभी सामग्री को निर्दिष्ट पात्र में लेकर उसमें हल्दी की नई माला या अन्य माला डाल दें।
फिर इस पात्र को अपने दक्षिण हाथ की अंगुलियों से ढक कर 108 बार मूल मंत्र का जप करें। (ऊँ हल्रीं बगलामुखि सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पंद स्तम्भय जिह्वाम् कीलय बुद्धिम् विनाशय ह्ल्रीम ऊँ स्वाहा)
फिर उस माला को गो दुग्ध में डाल दें। इसी मूलमंत्र से पुनः 108 बार गोदुग्ध में अभिमंत्रित करें।
फिर गंगा जल से 36 बार मूलमंत्र पढ़ते हुए घो ले। गंगाजल स्नान के बाद 36 बार मूलमंत्र पढ़ते हुए गुग्गल से घूपित कर पुनः पंचामृत से स्नान कराए। (पंजामृत - गंगाजल, गो दुग्ध-गो घृत-तुलसी-शर्करा)
यह स्नान भी मूलमंत्र से 36 या 108 बार करें। फिर माला की प्राणप्रतिष्ठा करें-

स्वच्छ कुश को मूलमंत्र से 36 बार गंगाजल से पवित्र करके चैकी या आसान पर रखी उस माला से -
‘‘ऊँ ह्ल्रीं हरिद्रा मालिकायै नमः’’ 108 बार कह कर स्पर्श कराए। अभिमंत्रित कुशाग्र भाग को छूते ही माला प्राणवन्त हो जाती है। माला की पंचोपचार विधि से मूलमंत्र से पूजा करके, फिर माला की वंदना करें-

ऊँ मां माले महामाये सर्व शक्ति स्वरूपिणी।
चतुर्वर्ग, त्वपि न्यस्तः तस्मान् में सिद्विदा भव।।
ऊँ अविघ्नं कुरू माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जप काले च सिद्धयर्थ प्रसीद मम सिद्धये।।
ऊँ हरिद्रा मालाघि पतये सुसिद्व देहि-देहि बगला
मन्त्रार्थ-साघिनि साघरय-साघय सर्व सिद्धि
परिकल्पय परिकल्पय में स्वाहा।।

अन्त में मूलमंत्र से 108 बार जप करके देवी को निम्न मंत्र बोल कर जप निवेदन करें -
ऊँ गुह्यति गुह्य गोप्ती त्वं गृहाण स्यत् कृत जपं। सिद्धि भर्वतु में देवि त्वत्! प्रसादात् महेश्वरी।



यंत्र की महत्ता व उसके शक्ति वर्धन के उपाए

सिद्ध की हुई माला से जो जप किया जाता है वह शीघ्र ही फलीभूत होता है। बिना प्राण प्रतिष्ठा के यंत्र शक्ति विहीन ही रहता है। यंत्र की क्षमता - तांबे व पीतल के यंत्र 6 वर्ष बाद प्रवाहित कर दें, चांदी का यंत्र 12 वर्ष, सोने का यंत्र 25 वर्ष फिर उसे प्रवाहित कर देते हैं। स्फटिक यंत्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है, यह जितना ही पुराना होता है उतना ही अधिक प्रभावित होता है। सर्वश्रेष्ठ नीलमणि यंत्र होता है यह नीलम के अन्दर होता है।
स्फटिक यंत्र आँखों को शीतलता देता है यह वजन में भारी होता है कांच का हल्का होता है। जो यंत्र ठंडा होता है, वह अच्छा होता है। यंत्र चमकदार होना अच्छा है। यंत्र को संतरे के रस से स्नान करा कर रगड़ दें चमकदार हो जाता है। जितना ही स्नान करायेगें व श्रृद्धा करेंगेयंत्र में उतनी ही शक्ति बढ़ती जाती है। श्री यंत्र की विशेषता है आसन पर बैठते ही एनर्जी देता है। माँ बगलामुखि का पीतल का यंत्र ठीक रहता है। इसे दूध मे केसर मिला कर स्नान कराए, कभी मौसम के फलों के जूस से स्नान कराए जो समृद्धि देते हैं।

गन्ने के रस द्वारा यंत्र का स्नान रोग नाश व पैसा देता है।
शहद का स्नान - परिवार में मिठास पैदा करता है।
अंगूर का रस व दूध - आर्थिक, मानसिक शान्ति देता है।
बेल का रस - आर्थिक बहुत मदद देता है।

यंत्र पर बेल से मले फिर गन्ने के रस, दूध फिर दही से, फिर गंगा जल से स्नान करा दें, इससे यंत्र की शक्ति बढ़ती है, इस स्नान से पूरे जाड़े भर यंत्र की शक्ति बनी रहती है। यन्त्र की शक्ति बढ़ाना अपने हाथ में है नित्य यंत्र को स्नान कराए व उसके समक्ष दीपक जला कर एकाग्रचित्र होकर भवगति का ध्यान करते हुए जप करें ऐसा निरन्त अभ्यास से यंत्र में इतनी अधिक शक्ति आ जाती है कि कितना ही तेज तंत्र विधान किया गया हो उसे बिना कहे स्वयं ही नष्ट कर देता है। एक साहब को भगवती बगलामुखि का यंत्र प्राण प्रतिष्ठा करा कर, उनसे मूलमंत्र का जप दीपक जला कर करने को बताया अभी जप करते 6 माह भी नहीं बीते थे, रात 2 बजे उसकी बहन के पेट में बड़ा भयानक दर्द उठा, उनकी कुछ समझ में नहीं आया, क्या करें? हड़बड़ी में अपने साधना कक्ष में यंत्र के सामने रखे लौटे के जल से अपनी बहन के ऊपर कुछ छींटे मारे व थोड़ा उसके मुंह में भी डाल दिया। जल के छीटे पड़ते ही दर्द समाप्त हो गया और उसकी बहन आराम से सो गई।
दूसरे दिन जानकार लोगों से रात के घटना चक्र के बारे में पूछा तो ज्ञात हुआ कि किसी ने सिफली का प्रयोग किया था। यह बता दें कि मुस्लिम तंत्र में जान से मारने हेतु सिफली का प्रयोग किया जाता है। सिफली आनन-फानन में जान ले लेती है परन्तु आप के यंत्र के सम्मुख रखे जल की यह महिमा है कि बिना  कोई मंत्र पढ़े उसने सिफली तंत्र को तुरन्त नष्ट कर दिया।
मंत्र की महिमा देख कर तो मैं अनवरत भगवति बगलामुखि को कोटिश कोट धन्यवाद देता रहता हूँ।

यंत्र स्नान

एक प्लेट में फूल या रूई रखकर यंत्र का सिरहाना ऊँचा रखें अब इस पर शंख या लोटे से जल डालते जाए व निम्न मंत्र पढ़ते रहें -

ऊँ हिरण्यवर्णा हरिणी सुवर्ण रजत स्त्रजाम्
चन्द्रां हिरण्यमंयी लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।
आगच्छेह, महादेवी सर्व सम्पत प्रदायिनी
यावत् कर्म समाप्येत तावस्तं सन्रि घौ भव।

ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय, ऊँ नमो भगवते.....5 बार पढ़े। अब यंत्र को रूई या तौलिये से साफ कर, अच्छे से पोछ दे, भावना प्रधान रखे कि मैं माँ को स्नान करा रहा हूँ पूरे भाव से धीरे-धीरे जल डालें, भाव से ही यंत्र पोछे, बड़े ही रोमान्च का अनुभव करेंगे। अब यंत्र पोछ कर उस पर घी या कडुवे तेल का लेपन कर उस पर हल्दी अंगुली से लगा दें साथ ही कुमकुम से टीका कर दें। स्नान के जल को ग्रहण करें या किसी पौधे में डाल दें।
यंत्र की और शक्ति बढ़ाना है ता अर्चयामि कर दें। अर्चयामि का महत्व एक छोटे हवन के बराबर ही होता है। अर्चयामि चाहे जब करें, सुबह-दोपहर-शाम। अर्चयामि में यंत्र के सम्मुख एक छोटी प्लेट रख लें, उसमें यंत्र पढ़ते हुए पुण्य की एक-एक पंखुड़ी डालते रहे या चावल हल्दी में रंग कर डाले वैसे मैं किशमिश से अर्चयामि करता हूँ। अर्चयामि की हुई इस किशमिश में भी गजब की शक्ति होती है। एक दृष्टांग बताता हूँ। यह किशमिश मैं अपनी जेब में रख लेता हूँ कुछ स्वयं ही खा लेता हूँ। एक बार मैं मरीज को देखने अस्पताल गया, मरीज की हालत काफी खराब थी, उसमें सुधार नहीं हो पा रहा था, मरीज को देखते ही मन में विचार उठा कि क्यों न इसे किशमिश दे दूं। अतः उसकी पत्नी को दो किशमिश दे दी कि इसे खिला देना, कुछ देर वहाँ रूक कर मैं अस्पताल से नीचे उतरा ही था कि उसकी पत्नी हाँफती हुई मेरे पास आई कि वह किशमिश कहीं खो गई है। मिल नहीं रही है, मैने उसे ढांढस दिलाया कोई बात नहीं मैं दूसरी किशमिश दे देता हूँ जेब में हाथ डाला केवल एक ही किशमिश निकली, मैने कहा तुरन्त इसे खिला देना और वह वापस चली गई। एक सप्ताह बाद उस महिला से मेरी भेंट हुई, मरीज का हाल पूछा। उस महिला ने बताया जब से उस किशमिश को खाया है हालात बहुत तेजी से सुधरने लगे, दूसरे ही दिन डाक्टर ने अस्पताल से छुट्टी दे दी अब वह एकदम स्वथ्य हैं। मैंने मन ही मन अपनी भगवति पीताम्बरा माँ को धन्यवाद दिया।

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