Wednesday 22 March 2017

माँ पीताम्बरा के हवन देखने मात्र से कष्टों से मुक्ति

एक महिला जो पिछले दो वर्षों से परेशान थी, साथ ही उसके घर वाले भी, परेशान रहते थे, हुआ यह कि उन लोगों ने एक सर्प को मार दिया, उसी के बाद से परेशानियों का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। कई तांत्रिकों को दिखलाया परन्तु ज्यों-ज्यों क्रियाएं की गई, परेशानियाँ बढ़ती गई। रात भर महिला डरी-सहमी सी रहती व रह-रह कर बकती मेरे पास सांप चल रहा है उसे दूध पिलाओ कहते-कहते बेहोश हो जाती। रात में खाना खाकर सोती, एकाएक रात में उठ कर बैठ जाती जिद् करती मैंने खाना नहीं खाया मुझे भूख लग रही है, मुझे खाना दो, यदि खाना नहीं दिया जाता तो बच्चों की भाँति फूट-फूट कर रोने लगती उसकी इन हरकतों से घर वाले परेशान रहते। अभी दो वर्ष पूर्व ही उसका विवाह हुआ था। अक्सर बच्चों की भांति जिद करती उसके न मिलने पर फूट-फूट कर रोने लगती। नई दुल्हन थी हाथों में तमामों चूड़ियाँ पहन रखी थीं, फिर भी चूड़ियों की फरमाइश करती यदि चूड़ियाँ न दी गई तो बच्चों की भाँति उसका रोना प्रारम्भ हो जाता। एक बलशाली तांत्रिक (जिससे मेरा एक बार मनुमुटाव हो चुका था) ने 40 दिन अपने पास बुलाया, कुछ दिनों तक राहत मिली, परन्तु उसके बाद और तीव्र प्रकोप बढ़ने लगा। इस बीच उस नई नवेली दुल्हन ने अपने पति के साथ दाम्पत्य कर्तव्यों का निर्वाहन नहीं कर सकी। उसके पति की हालत देखने लायक थी। हमारे शिष्य सुरेश चन्द्र श्रीवासतव ने इस दाम्पत्य जोड़े को भगवती पीताम्बरा के हमारे हवन पर आमंत्रित किया।

साधारण तौर पर उन लोगों ने हवन का प्रारम्भ से अन्त तक दर्शन किया तथा प्रसाद व भभूत लेकर चले गए। आज एक वर्ष हो गए हैं, अभी तक पूर्व की भाँति कोई समस्या सामने नहीं आयी अपितु अब वह महिला एक बेटे की माँ भी बन गई है। यही नहीं नेट से एक श्रीमान जी ने अपना अनुभव हमें बतलाया। वह अस्पताल में बेड पर पड़े थे समय व्यतीत करने के लिए उन्होंने यू-ट्यूब पर हमारे भगवती के हवनों को बड़े चाव से देखते रहें। परिणाम स्वरूप उनकी जटिल बीमारी बहुत तीव्र गति से ठीक हो गई।

भगवती पीताम्बरा के हवनों में जो सामग्री प्रयोग की गई, वह इस प्रकार है -

पिसी हल्दी - 4 किलो0
मालकांगनी - 2 किलो0
सुनहरी हड़ताल - 250 ग्राम
साबुत लाल मिर्च - 1 किलो0
लाजा - 1 किलो0
सेंघा नमक - 200 ग्राम
सरसों का तेल - 1 लीटर

हवन में प्रयोग किए गए मंत्रों का उल्लेख -

1. माँ बगुलामुखी के मूलमंत्र
2. बगला विपरीत प्रत्यांगिरा
3. बगला गायत्री मंत्र
4. बगला कल्प विधान




नोट - इस विधान द्वारा क्रूर से क्रूरतम दुष्ट विधान को नष्ट किया जाता रहा है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Monday 27 February 2017

भगवती पीताम्बरा की साधना क्यों करें व कैसे करें

जिस समाज में हम रहते हैं यहाँ भाँति-भाँति के लोग हैं, कुछ अच्छे तो कुछ बुरे लोग भी हैं, जिसे आप नकार नहीं सकते। यह आवश्यक नहीं जो आप से मीठे बोलते हैं वह आप के हित चिन्तक ही हो यह अनुभव में आया है कि प्रत्येक पर विश्वास करने का परिणाम अच्छा नहीं होता, कहने का तात्पर्य यह नहीं कि किसी पर विश्वास ही न किया जाए। अब यहाँ पर भगवती पीताम्बरा की आवश्यकता पड़ती है, क्यांेकि ऐहिक या पारलौकिक, देश या समाज के दुःखद, दुरूह अरिष्टों एवं शत्रुओं के दमन शमन में इनके समकक्ष अन्य कोई भी नहीं है। ‘‘जो छुपे हुए शत्रुओं को नष्ट कर देती है वह पीताम्बरा पीले उपचारों द्वारा पूज्या है’’-

‘‘यन्नि तान्तमा विष्करोति विद्विषः सेयं पीता वयवः पूज्या।’’

ऐसा बगला उपनिषद में लिखा है तथा मेरे भी अनुभवों में इसकी प्रमाणिकता कई बार सफल सिद्ध हुई है। साधना करें तो सर्वोच्च की जिससे आप को कभी पराजय का मुंह न देखना पड़े। भगवती पीताम्बरा लौकिक वैभव की दात्री होने के साथ ही अपने साधकों के काम, क्रोध, लोभ, मात्सर्य, मोह ईष्यादि शत्रुओं का दमन भी करती है। साधना के सभी विघ्नों को निरस्त कर साधकों के मन-बुद्धि पर अपना प्रभाव डाल कर वे अपनी ओर आकृष्ट करती  है। जीवन अत्यन्त शान्तमय हो जाता है फिर आप साधना क्षेत्र में निर्भय होकर आगे बढ़ते चले जाएंगे, बस इतना सा ही मेरा अनुभव रहा, अच्छा लगे तो आप भी थोड़ा आगे बढ़ कर देखे, बाकी भगवती पर छोड़ दें। अत्यल्प काल में ही आशु सिद्धिदा होने से भगवती बगला अपने साधकों को सभी लौकिक सम्पदाओं से सम्पन्न कर अन्त में उसे अपना सान्रिघ्य एवं मोक्ष प्रदान करती है।

अब प्रश्न उठता है माँ पीताम्बरा की साधना किस प्रकार करें। तंत्र की व्यापक दृष्टिकोण है यहाँ उम्र, जाति, लिंग, धर्म आदि का कोई भेदभाव नहीं होता। एक मुस्लिम साधक को मैं जानता हूँ वे माँ पीताम्बरा के उच्चकोटि के साधक हैं। तंत्र में दीक्षा का विधान पूर्व से चला आ रहा है, इसमें गुरू अपने शिष्य को विशेष तकनीक के द्वारा पहले ही दिन से शक्ति सम्पन्न कर देता है। अब गुरू निर्देश का पालन करते हुए अपनी शक्तियों का विकास करना होता है व क्रमश शिष्य को माँ की निकटता का अनुभव होने लगता है उसके जीवन में चमत्कार होने आरम्भ हो जाते हैं, परन्तु चमत्कार व कार्य हमारी मंजिल नहीं हैं, हमें आगे ही बढ़ते रहना है। शैनः-शैनः हमारी अर्थवा का रंग अपने ध्येय माँ पीताम्बरा की अर्थवा पीत वर्ण में परिवर्तित होने लगता है। वर्ण का यही परिवर्तन कुण्डलिन जागरण कहलाता है। कितना सुगम मार्ग है, बस लगे रहो बाकी तो माँ स्वयं ही करवा देती है। कुण्डलिनी जागरण में तमामों साधक लगे रहते हैं, बड़ा परिश्रम करने के बाद भी उनकी कुण्डलिनी जागरण नहीं हो पाती और उनके इस दुनियाँ से जाने का समय भी आ जाता है, वहीं भगवती पीतामबरा के योग्य साधक को इस संसार का भोग करते हुए मोक्ष भी बड़े सस्ते में, बिना कष्टकारी परिश्रम किए स्वतः ही उपलब्ध हो जाता है।
पुस्तकों द्वारा मात्र ज्ञानार्जन किया जाता है। साधना तो योग्य गुरू के दिशा-निर्देश में ही करना चाहिए। सर्वप्रथम योग्य गुरू का चुनाव करना अत्यन्त आवश्यक है। कहा गया है - ‘‘गुरू कीजै जान कर, पानी पीजै छान कर।’’ गुरू व शिष्य उभय पक्षों को खूब सोच विचार कर दीक्षा ली व दी जानी चाहिए। यदि गुरू योग्य न हुआ तो शिष्य का क्या हश्र होगा? सर्व विदित है। यदि शिष्य योग्य न हुआ तो वह इस विद्या का दुरूपयोग करेगा, जिसका दंड गुरू को भी भोगना पड़ेगा। कुंज्जियाँ तो गुरू के पास ही होती है, पुस्तक में मात्र ज्ञान ही होता है। वह पथ प्रदर्शक तो होती है, परन्तु गुरू से आप अपनी जिज्ञासा शान्त कर आगे बढ़ने का सुगम मार्ग पा जाते हैं, यदि तंत्र क्षेत्र में आप का रूझान है तो सर्वप्रथम आप गुरू से दीक्षा लीजिए, यदि फिर भी आप को कोई गुरू नहीं मिलता तो हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। माँ बगलामुखी इतनी सस्ती नहीं कि हर किसी को इनकी दीक्षा दी जाए। दीक्षा केवल योग्य पात्र को ही दी जानी चाहिए। ऐसा हमारे गुरूवर बसन्त बाबा ने हमसे कहा था। तीन वर्ष हमें लग गए, प्रत्येक वर्ष में कामाख्या आसम जाता रहा। प्रत्येक बार बसन्त बाबा का एक ही उत्तर होता था ‘‘यह इतनी सस्ती नहीं कि हर एक को बता दी जाए। तीन वर्ष पश्चात् इन्होंने हमे दीक्षा दी। गुरू केवल अपने ही शिष्य को गोपनीय बाते बता सकती है, दूसरे गुरू के शिष्यों को वह गुप्त ज्ञान देने का अधिकारी ही नहीं होता। यही है गुरू परम्परा, प्रत्येक ज्ञानवान गुरू इस परम्परा को दृढ़ता के साथ पालन करता है।
माँ बगलामुखी ने स्वयं कहा है ‘‘जो भक्त शारीरिक आरोग्य हेतु अथवा वैरियो के निग्रह के लिए दिन या रात एक सहस्त्र आहुतियाँ देता है, उसे अतिशीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। मेरे नामों का उच्चारण करने पर सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और भक्त के सभी कार्य सफल हो जाते हैं, जो व्यक्ति मेरे स्वरूप को सदार निम्न प्रकार ध्यान में रखता है, उसे देख कर ही कपटी व्यक्ति भयभीत हो जाते हैं:-



अमृत समुद्र के मध्य में मणि-निर्मित मंडप में रत्न जटित चैकी पर स्वर्ण सिंहासन पर बैठी पीत-वर्णा, पीताम्बरा, सर्वाभरण भूषणों से सुशोभित सुन्दर अंगोवाली, शत्रु की जिह्वा को पकड़े हुए, मुद्गर हाथ में लिए पीताम्बरा देवी को मैं भजता हूँ। आप के मस्तक पर चन्द्र द्वारा सुशोभित मुकुट तथा पुष्ट हाथ में गदा और ब्रज शोभायमान है। पीताम्बर धारिणी माँ पीताम्बरा देवी को मैं प्रणाम करता हूँ। महारूद्र की महाशक्ति माँ बगलामुखी की जय हो, जय हो। हेम की आभा के समान अंगों वाली, पीत चम्पा की मात्र को अपने हृदय पर धारण करने वाली माँ बगलामुखी को मैं प्रणाम करता हूँ। सम्पूर्ण लोकों में विचरण करने वाली गरूड़-सदृश वेग वाली माँ बगलामुखी की जय हो-जय हो।

विभिन्न विदेशों में बाओं की समस्या का समाधान करते हुए, यह कहना चाहता हूँ कि वास्तव में आप माँ बगलामुखी की साधना करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने ज्ञान को बढ़ाए जैसा कि मैने अपने लेखों में इनके बारे में बहुत कुछ समझाने का प्रयास किया है। ज्ञान तभी सार्थक होता है जब हम उसे व्यवहार में एकाग्रता व संयम के साथ अपनाने की कोशिश करते हैं, एकाग्रता तभी बनती है, जब हमारा मन व बुद्धि दोनों साथ देते हैं मंत्र जप से पूर्व मंत्र का निर्णय अपने मन व बुद्धि दोनों को साथ में रख कर करें क्यों कि मन व बुद्धि जिस कार्य में लीन हो जाते हैं तो समय का आभास तक नहीं होता, यदि मंत्र जप का मन भी हो और बुद्धि भी उसे करने के लिए प्रेरित करें तो उस कार्य में आप को आनन्द का सहज बोध होता दिखेगा और आप ध्यानिस्थ अवस्था सहज रूप से प्राप्त करने में सफल होगे व समय का आभास तक नहीं होगा, यही मंत्र सिद्धी का प्रथम सोपान है।

योग्य गुरू के सानिघ्य में ही साधना प्रारम्भ करनी चाहिए आज मोबाइल युग हैं गुरू का सानिघ्य हर क्षण प्राप्त हो जाता है, इस विलुप्त होती विद्या को बचाना है तो योग्य शिष्य को सब कुछ बताना ही पड़ेगा। मोबाइल के माध्यम से दीक्षा दी जाए-दीक्षा में गुरू अपने शिष्य को पहले ही दिन से शक्ति सम्पन्न बनाता है, जिससे वह तंत्र क्षेत्र में निर्भय होकर पूर्ण श्रृद्धा के साथ लग कर अपने कार्य में सफल हो सके, प्रयास करे पुनः प्रयास करें अन्ततः सफलता आप को मिल कर रहेगी।
कहा गया है:-

करै जप प्रतिदिन पाँच हजार,
विजय पावै बहु वारम्बार,
बगलामुखी की जय जय कार।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
मो0: 9839149434
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Friday 20 January 2017

धनाभाव और माँ बगलामुखी

बात पाँच वर्ष पुरानी है, मैं अपने एक मित्र के यहाँ गया, उसके सेवा भाव से मन प्रसन्न हो गया, परन्तु मैंने एक बात नोट की यह सब दिखावा मात्र था, मैंने उसे कुरेदा तो उसकी बाते सुनकर मैं हैरान रह गया, वह अत्यधिक धनाभाव से संघर्ष कर रहा था, घर में एक ही समय चूल्हा जलता था, कुल मिलाकर अत्यन्त दयनीय स्थिति से जेसे तैसे गुजारा चल रहा था। घर आकर मैं सोचने लगा, क्या करूँ कि इसके जीवन में कुछ सुधार हो जाये, मैंने इसका नमक  खाया है - वासी रोटी व टमाटर की चटनी, हमने बड़े चाव से खाई थी, भूख में बहुत स्वाद इस भोजन में मुझे मिला। समय आ गया अब इसके नमक को व्यर्थ नहीं जाने दूंगा, भगवती से अवश्य प्रार्थना करूँगा और ऐसा ही हमने किया। एक वर्ष पश्चात् मैं पुनः इनके वहाँ गया, मैं देख कर दंग रह गया, इनकी यजमानी चल निकली थी, घर पर यजमानों की भीड़ लगी थी, टोकन बट रहा था, जिस नम्बर का टोकन वही यजमान इनसे मिल सकता था। भगवती से मैने इनके लिए कुछ माँगा था, भगवती ने बहुत कुछ दे दिया एक बार पुनः भगवती ने सिद्ध कर दिया सच्चे मन से कुछ मांग कर तो देखों बहुत कुछ अपने भक्तों को दे देती है, मेरा मन अत्यन्त गदगद हो गया, अपने पर नियंत्रण समाप्त हो गया - आँखों से अश्रुधारा स्वतः ही प्रवाहित हो चली।
जिस प्रकार की गई आप के सम्मुख प्रस्तुत है:-

जप - रूद्राक्ष की माला पर।
भोग - खीर जिसमें केशर मिला हो।
ध्यान - भगवती बगलामुखी स्वर्ण सिंहासन पर बैठी है और अपने दोनों हाथों से स्वर्ण मुद्राए बरसा रही है।
हवन सामग्री - सफेद तिल, हल्दी, हरताल, बूरा, जव, शहद, पंचमेवा, कमल गट्टे, माल कांगनी, गुगल, काले तिल, लौंग, छोटी इलायची, देशी घी।

संकल्प - ऊँ तत्सद्य परमात्मा आज्ञया प्रवर्तमानस्य 2073 संवत्सरस्य श्री श्वेत वाराह कल्पे जम्बूदीपे भरत खण्डे उत्तर प्रदेश, लखनऊ नगरे पुराना हैदराबाद निवासे ...... मासे, .......... पक्षे, .............. तिथे, ........... गोत्रोत्पन्न (अपना नाम) अहं भगवत्या पीताम्बरा प्रसाद सिद्धि द्वारा मम यजमानस्य .................. नाम ................. व्यवसाय वृद्धर्थे च स्थिर लक्ष्मी प्राप्ताथे मन्दार मंत्रस्य सम्पुटित रमा स्वरूपा श्री बगलया सट्ली दस सहस् जपे अहं कुर्वे।

मन्त्र - ‘‘श्री ह्रीं ऐं भगवति बगले तत्श्च विर्भूत साक्षात श्री रमा भगवत् परा रंजियंति दिशह् कान्तया विद्युत् सोदामनी यथा में श्रीयम् देहि देहि स्वाहा।

जप से पूर्व व बाद में क्रमशः 1-1 माला निम्न मंत्र का जप अवश्य कर दें -

‘‘ॐ ऐं बगलामुखि विद्महे ॐ क्लीं कान्तेश्वरि धीमहि ॐ सौः तन्नो प्रह्ल्रीं प्रचोदयात्’’



हवन के उपरान्त निम्न मन्त्र द्वारा 108 बार तर्पण करना है - दूध से श्रीं ह्रीं ऐं भगवति बगले तत्श्च विर्भूत साक्षात् श्री रमा भगवत प्ररा रंजियति दिशह् कान्तया विद्युत सोदामनी यथा में श्रीयम् देहि देहि स्वाहा तर्पयामी।

परिणाम - अति उत्तम आया। हमने पाया है उपरोक्त विधि द्वारा 36 हजार जप के पश्चात् निश्चित ही 99 प्रतिशत लाभ मिलता है।

नोट - चलते समय पंडित जी ने 36 हजार गुरू दक्षिणा स्वरूप मुद्राएं हमें यह कहते हुए भेंट की कि यह सब आप का ही दिया है, मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार करें, मन ही मन स्वतः प्रार्थना निकलती है ‘‘हे भगवती इन्हें कभी पराजय का मुुँह न देखना पड़े।

इस केस में पितर-दोष था अत पितरों की प्रसन्नता एवं तृप्ती हेतु इन्इें एक उपाय भी बताया कि सुबह पक्षियों को कुछ खिला दिया करें जैसे मीठा दें, पूड़ी या नमकीन दें, बिस्कुट आदि दे सकते हैं, साथ ही पक्षियों के पीने हेतु साफ पानी भी वहाँ रखना न भूलें, इस कार्य में अर्थाभाव आड़े नहीं आएगा।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह

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Sunday 25 December 2016

भगवती पीताम्बरा के मंत्रों का प्रयोग

यह तो तय है मंत्रों में बहुत ही गजब की शक्ति समाई रहती है। उसका उचित ढंग से व आवश्यक रीति से जप किया जाये तो सुखद परिणाम प्राप्त होते हैं। सर्व प्रथम भवगती बगलामुखी के मूल मंत्र के 36 लाख जप आप पूर्ण कर चुके हैं। (योग्य गुरू के निर्देशानुसार एक वर्ष में ही आप 36 लाख जप पूर्ण कर लेंगे, जो भी हो, यह बात तो अनुभवी गुरूओं के आधीन है) तो कोई कारण नहीं कि आपको सफलता न मिले। कुछ गुप्त तथ्य आप के सम्मुख प्रस्तुत हैं:-

1. किसी कार्य के संकल्प हेतु पीली चुनरी व नारियल चढ़ा कर कार्य प्रारम्भ करें
2. गंगा के किनारे या कोई भी प्राचीन शिवाला या देवी का प्राचीन मंदिर हो वहाँ जप से शीघ्र ही सफलता मिल जाती है।
3. साधक लगातार जप से निपुण होता है।
4. अच्छे कार्यों से मंत्रों की शक्ति बढ़ती है।
5. किसी का भी हवन कर रहे हो तो हवन सामग्री में कुछ अंश अपना भी लगा दें।
6. जब भी प्रयोग करते है, 20 दिन बाद हवन करते रहे, यदि हवन होता रहता है तो शीघ्र सुखद परिणाम प्राप्त होता है।
7. कभी भी साधना को अधर में न छोड़े, परिणाम प्राप्त होने पर भी संकल्प पूर्ण करें।
8. जब कोई काम न बने तब ब्रम्हास्त्र बगला कवच ही फल जाता है। जब कोई शक्तिशाली चीज प्रहार करती है, तब यही कवच रक्षा करता है। पहले कवच का ग्यारह सौ पाठ कर सिद्ध कर लें। मरीज का हाथ छूते ही झुनझुनी सी मालूम होती है, समझ ले इस पर ऊपरी कोई बाधा है, अतः बगला गायत्री मंत्र मात्र सात बार पढ़ कर जल अभिमंत्रित कर, मरीज पर छीटा मारे, मरीज में आग सी लगती है वह चीखता है, चिल्लाता है। अब आगे जैसा आप चाहेंगे वैसा ही होगा।






ब्रम्हास्त्र बगला कवच


नोट:- पाठ से पूर्व बगला मूल मंत्र का 11 माला व बगला गायत्री का एक माला जप कर लें।

बगला में शिरः पातु ललाटं ब्रह्म संस्तुता।
बगला में भ्रवो नित्यं कर्णयोः क्लेश हारिणी।।
त्रिनेत्रा चक्षुषी पातु स्तम्भनी गण्डयो स्तथा।
मोहिनी नासिंका पातु, श्री देवी बगलामुखी।
ओष्ठयो र्दुर्घरा पातु स्र्वदन्तेषु चच्चला।
सिद्धान्न पूर्णा जिह्वायां जिह्वागे्र शारदाम्बिका।।
अकल्मषा मुखे पातु चिबुके बगलामुखी।
घीरा में कण्ठदेशे तु कण्ठाग्रे काल कर्षिणी।
शुद्ध स्वर्ण निभा पातु कण्ठ मध्ये तथाऽम्बिका।
कण्ठ मूले महाभोगा स्कन्धौ शत्रु विनासिनी।
भुजौ में पातु सततं बगला सुस्मिता परा।
बगला में सदा पातु कूर्परे कमलोभ्दवा।।
बगलाऽम्बा प्रकोष्ठौ तु मणि बन्धे महाबला।
बगला श्री र्हस्तयोश्च कुरू कुल्ला कराङगुलिम।।
नखेषु वज्रहस्ता च हृदये ब्रह्म वादिनी।
स्तनौ मे मन्द गमना कुक्षयो र्योगिनी तथा।।
उदरं बगला माता नाभिं ब्रह्मास्त्र देवता।
पुष्टिं मुदगर् हस्ता च पातुनो देव वंन्दिता।।
पाश्र्वयो र्हनुमद् वन्द्या प्शु पाश विमोचिनी।
करौ राम प्रिया पातु उरू युग्मं महेश्वरी।।
भगमाला तु, गह्मं में लिङग कामेश्वरी तथा।
लिंग मूले महाक्लिन्ना वृषणो पातु दूतिका।।
बगला जानुनी पातु जानुयुग्मं च नित्यशः।
जङघे पातु, जगद्धात्री गुल्फौ रावण पूजिता।।
चरणौ दुर्जया पातु पीताम्बा चरणाङ्गुली।
पाद पृष्ठं पद्यहस्ता पादाघ चक्र धारिणी।।
सर्वाङग बगला देवी पातु, श्री बगलामुखी।
वाराही मे पूर्वतः पातु, माहेशी बहिन भागतः।।
कौमारी दक्षिणो पातु, वैष्णवी स्वर्ग मार्गतः।
ऊघ्र्व पाशघरा पातु, शत्रु जिह्वा घरा ह्यघः।।
रणे राजकुले वादे महायोगे महाभये।
बगला भैरवी पातु नित्यं क्लींकार रूपिणी।।
इत्येवं वज्र कवचं महा ब्रह्मास्त्र संज्ञकम्।
त्रिसन्हयं यः पठेत् घीमान् सर्वैश्वर्य वाष्रुयात्।।
(दक्षिणामूर्ति संहिता उद्घृत)

क्रमशः

1. दक्षिण काली और भैरव का विधान किस प्रकार समाप्त करे।
2. जिन्न को कैसे नष्ट किया जाए।
3. गडन्त को कैसे नष्ट किया जाए।
4. कृत्या को कैसे समाप्त करें।
5. दुष्ट ब्रह्मराक्षस पर भगवती पीताम्बरा के मंत्रों का चमत्कार।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह

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Saturday 5 November 2016

आईये मंगलमय प्रारब्ध का निर्माण करें

मनुष्य के कर्मो के अनुसार ही उसके प्रारब्ध का निमार्ण होता है, जिसे भुगतना ही पड़ता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण जी ने स्पष्ट कहा है, अनेको जन्मों के संचित कर्मो का परिणाम भुगतान ही पड़ता है। हम यह जानते है कि इस जन्म में जो कष्टकारी परिणाम मिल रहे  है वह हमारे द्वारा अनेकों जन्मों के कर्मो का संचित परिणाम ही तो है, न ही हमे वह योग्यता है कि अपने पिछले जन्मों के इतिहास को जान सके तथा उसमे सुधार कर सके
अब आते है जो हमारे जीवन के कष्टकारी दिन चल रहे है उन्हे कैसे सुधारा जाए़ हमारे पुरातन आचार्यो ने इसका निदान ढूढ़ निकाला था कि कैसे पुरातन प्रारब्ध को बदला जाए। वह था तंत्र विज्ञान ! तन्त्रं का मूल उद्देश्य है- आत्म साक्षत्कार व त्रय तापो से मुक्ति । आत्म साक्षात्कार के लिए मंत्रो द्वारा ही सबसे सरल व समर्थ मार्ग पाया गया है, जिससे कुण्डलिनी जागरण की क्रिया स्वतः हो जाती है। तंत्र वस्तुतः एक साधना पद्वति है,तंत्र की व्यापक दृष्टि सर्वोपरि है, इसी कारण यह अन्य सभी धर्मो से विशिष्ट भी है। यह उम्र, वर्ग, जाति, स्थान, लिंग आदि का भेद नही करता। स्त्रियाँ भी उच्च कोटि की साधिकाए हुई है जैसे लोपामुद्रा, लोना चमारिन आदि, चुकि मनुष्य की प्रवृतियाँ भिन्न-भिन्न होती है अतः कुछ आचार यानी नियम भी बनाए गए है। तंत्र में सात आचार प्रमुख है -
वेदाचार, वैष्णवाचार , शैवाचार, दक्षिणाचार, वामाचार, सिद्वान्ताचार और कौलाचार ।
तंत्र विज्ञान में आने से पूर्व अपने धरातल को मजबूत कर ले, अपने ज्ञान को बढ़ाए, अधूरा ज्ञान कभी-कभी इस क्षेत्र में जानलेवा भी हो जाता है अतः क्रमशः धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे, शीघ्र सिद्वी प्राप्त करने की छटपटाहट का त्याग कर दे। छटपटाहट सफलता प्राप्त होने से रूकावट बनती है। तन्त्रोक्त साधना में अत्यन्त कठोर अनुशासन का विधान होता है, इसमें साधक की वास्तविक परीक्षा होती है। कहा गया है-जहाँ मद्य, मांस एवं मदारूण-लोचना तरूणियो का जमघट हो, वहाँ चित को एकाग्र एवं शान्त (अविकृत) रख सकना कठिन होता है। विकारोत्यादक एवं मोहक सामग्री के मध्य में स्थिर रह कर जिसका चित विचलित न हो, वही साधक देवी का सच्चा भक्त हो सकता है। इस प्रकार संयत चित साधक ही तन्त्रोक्त  साधना का अधिकारी होता है। किसी भी महाविद्या का श्रेष्ठ उपासक आवागमन के चक्र को अवरूद्व कर देने में सक्षम होता है क्योकि महाविद्याओ का ध्येय परमार्थं की प्राप्ति है, जो कि जीव का परम लक्ष्य है।
माँ पीताम्बरा के गायत्री मंत्र का दस लाख जप आप के पुरातन प्रारब्ध के ठीक करने के लिए पर्याप्त है।

संकल्प होगा-मम पुरातन परम अनिष्ठ बन्धन क्षयार्थे च नव मंगलमय प्रराब्ध निर्माणार्थे भगवती बगला गायत्री मंत्र- - - लाख जपे अहम् कुर्वे।

लगातार जप से आप की अर्थवा में परिवर्तन होने लगेगा और यही हमारा लक्ष्य है। अर्थवा में रंग परिवर्तन को भली भाति समझ ले तो आगे आप के जप में आसानी होगी। अर्थवा-प्रत्येक प्राणी के चारों ओर होता है जिसे अर्थवा (ओरा) कहते है, जिसे हम प्रयत्न कर बदल सकते है, प्रत्येक पदार्थ में अर्थवा होता है, यदि हम जड़ पदार्थ के अर्थवा के रंग द्वारा चैतन्य ‘अर्थवा‘ का रंग परिवर्तन करते है तो वह रंग अपने साथ जड़त्व को भी लायेगा अतः अत्याधिक रंग का उपयोग मानसिक जड़त्व लाएगा, जिससे मानसिक विकृतियाँ पैदा होगी अतः केवल जप समय ही इस जड़ पदार्थ के अर्थवा का प्रयोग मात्र सहायक के रूप में प्रयोग करते है जैसे मंत्र  जप की सूक्ष्म चैतन्य क्रिया की सफलता हेतु बाहरी वातावरण भी उसी रंग का रखते है जो हमारे ध्येय ‘अर्थवा‘ के अनुकूल हो।
वर्ण परिवर्तन के लिए आवश्यक है-
 1. ध्यान
 2. वाक्
 3. वातावरण।

1- ध्यान-  ध्यान का अर्थ है कल्पना नेत्रो से देखना, जिस भी वस्तु या आकार का हम ध्यान करते है उसे अपने कल्पना नेत्रों के द्वारा देखते है वास्तव में वह आकार मूल वस्तु का सू़क्ष्म रूप ही होता है। वस्तु का ’’अर्थवा’’ जिसे अग्रेजी में ’’ओरा’’ कहते है, जो प्रत्येक वस्तु के चारों ओर होता है जो वास्तव में उस वस्तु का सूक्ष्म शरीर होता है दूसरे शब्दों में हम ध्यान में जिस पदार्थ का ध्यान कर रहे है, उसके अर्थवा अर्थात उसके सूक्ष्म शरीर से, अपने सूक्ष्म (कल्पना,मस्तिष्क) का सम्बन्ध स्थापित करते है। अनन्य चिन्तन की अवस्था प्राप्त होते ही, हमारा ’’अर्थवा’’तद् रूप धारण कर लेता है। हमारे पुरातन आचार्य यह भली-भाँति जानते थे, ध्यान द्वारा जन साधारण पूर्ण तन्मयता नही प्राप्त कर सकते न ही अर्थवा में परिवर्तन कर सकते  अतः उन्होंने ध्यान के साथ वाणी (मंत्रो) का प्रयोग भी किया ।

2- वाक्- वाक् के द्वारा विशिष्ट मंत्रों की आवतियों के द्वारा ध्येय मूर्ति प्रत्यक्ष होती है। इसमें आवश्यक है ध्येय आकृति (अर्थवा) के अनुरूप ही ध्वनि तरंगो का उत्पादन किया जाय। ध्यान कुछ और मंत्र कुछ तो परिणाम शून्य ही रहता है। इसी लिए बार-बार कहते है मन को एकाग्र कर ध्यान पूर्वक जप करे। देखने में आता है जप कर रहे है और मन दुनियाँदारी के कार्यो की ओर सोचता रहता है तो सफलता कैसे मिलेगी। कहा गया है -

माला फेरत युग गया, गया न मन का फेर।
करका मनका डाल दे, मनका मन का फेर।।

जप संख्या पूर्ण हो जाती है, परन्तु कोई परिणाम सामने नही आता, तब मंत्रों को दोष देते है, ऐसा कदापि न करे। मन को एकाग्र कर ध्येय आकृति को अपने कल्पना नेत्रों से लगातार देखते हुए अनवरत मंत्र का जप करते रहे, जब आप के रोम-रोम से इष्ट मंत्र के जप का अनुभव होने लगे अर्थात् श्वासोच्छवास के साथ स्वमेव जप होने लगे, तब समझ ले- अब आप सफलता के निकट आ गए है। मंत्र जप की तीन दशाए होती है-
1. वाचिक,   2. उपांशु  3. मानसिक जप

वाचिक जप- जो वाणी द्वारा जप होता है। दीर्घकाल तक वाणी द्वारा जप करने से वह स्वभावतः उपांशु दशा को प्राप्त होता है।

उपांशु जप -इसमें केवल वागिन्द्रिय के कम्पन के साथ जप सम्पन्न होता है अर्थात् ध्वनि रहित जप।

मानसिक जप - दीर्घ काल तक उपांशु जप के फलस्वरूप स्वतः मानसिक जप होने लगता है। तब जिहवा कण्ठादि का कम्पन समाप्त हो जाता है जप बराबर चला करता है। इस समय मंत्र श्वासोच्छवास के साथ मिल जाता है और अन्तिम मंत्र की चमर सिद्धी में साधक मंत्र-मय देह वाला हो जाता है, यह अजपा की दशा वाणी की सूक्ष्म दशा है। अपनी सूक्ष्मता की शक्ति से ‘अर्थवा’ को परिवर्तित करने में पूर्ण सूक्ष्म होती है। ध्येय मूर्ति (अर्थवा) का वाक् रूप-मंत्र है उसी मंत्र की सिद्धी (अजपा-दशा) हमारे ‘‘अर्थवा’’ को परिवर्तित कर तद्रूप करने में सक्षम होगी। अतः ध्येय (अर्थवा) व वाक्-रुप मंत्र भिन्न न होने पाए। ‘अर्थवा वर्ण परिवर्तन’ और कुण्डलिनी जागरण दो अलग-अलग कार्य नहीं है। केवल शब्दों का फेर मात्र है। महाशक्ति कुण्डलिनी के प्रकाश का दूसरा नाम ही अर्थवा हैं वही माहा माया कुण्डलिनी जब अपनी पीताभा का प्रसार करती है तो सिद्ध-पीताम्बरा के नाम से अभिहित होती है।
अब बाकी शेष ही क्या रह जाता है। आप का प्रारब्ध स्वतः ही मंगलमय जीवन की ओर आपको ले जाएगा, जीवन कष्ट रहित हो जाता है, सारे शत्रुओं का उन्मूलन स्वमेव हो जाता है, माँ से कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, यहाँ तक आप का बुरा सोचने वालों को इस दुनिया से जाना ही पड़ जाता है। एक बार प्रयास के बाद यदि मानसिक जप ठीक से नहीं चल पा रहा हो तो माँ से कातर प्रार्थना करो की वह आप के मानसिक जप को उचित ढंग से पूर्ण कराए, सदैव ध्यान रहे कि इस पुकार से पराम्बा शीघ्रतिशीघ्र द्रवित होती है, और आपका मानसिक जप स्वतः तीव्र गति से चलने लगेगा। हिम्मत न हारे, आगे बढ़े, सफलता तो आपको मिल कर रहेगी, नए प्रारब्ध का निर्माण होकर रहेगा, सदैव आशावान बने रहें, आप अकेले नहीं हो, हमारी भी शक्तियाँ आपके साथ है व स्वयं माँ भी तो आपके साथ हैं, थोड़ा परिश्रम कर लो, जीवन ही बदल जाएगा। मनुष्य जन्म लेने का उद्देश्य भी सफल हो जाएगा। इस आवागमन का चक्र भी अवरूद्ध हो जाएगा। कितना सीधा व सरल मार्ग है। बढ़ते रहो-बढ़ते रहो और आगे बढ़ते रहो, आपको मंजिल मिल कर रहेगी। सदैव ध्यान रहे आप का परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाएगा - यह मेरा वादा रहा।



नोट :- यह लेख केवल उनके लिए, जो परिश्रम करना चाहते हैं।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Monday 17 October 2016

संतान प्राप्त हेतु - माँ बगलामुखी कृपा


एक महिला जिसकी उम्र 43 वर्ष, लंदन में रहती हैं, कोई संतान नहीं हुई, वह महिला डाक्टर है, परन्तु चिकित्सकों के अनुसार वह माँ नहीं बन सकती। जहाँ विज्ञान समाप्त हो जाता है, वहाँ से अध्यात्म का प्रारम्भ हो जाता है, ऐसा मैने सुना था, अब समय आ गया कि इसका परीक्षण भी कर लिया जाय। यह केस मेरे पास आया। सर्व प्रथम उस महिला के प्रारब्ध को ठीक करना था, तभी सफलता मिल सकती है, बुरे प्रारब्ध को ठीक करने की क्षमता भगवती पीताम्बरा के पास है यह मुझे भली-भांति ज्ञात है अतः बगला गायत्री का एक लाख जप का संकल्प लिया। बिना गायत्री संध्या के शिवा स्वरूपा भगवती पीताम्बरा बगला श्रेष्ठफल प्रदान नहीं करती। एक लाख जप पूर्ण करने के बाद ‘बगला हृदय मंत्र’ द्वारा यजमानस्या को संतान प्रप्ति हेतु प्रार्थना की गई। संख्यान तंत्र में स्पष्ट दिया है बन्ध्या पुत्रवती चैव, षण्मानसादि भवित घ्रुवम

परिणाम:- अति सुन्दर आया, मेरी यजमानस्या गर्भवती हुई, कुछ समयोपरान्त उसने जुड़ुवा पुत्रों को जन्म दिया। है न माँ की महिमा, मैं माँ का आभार मानते हुए उन्हें कोटिश-कोटि प्रणाम करता हूँ।
क्रिया जिस प्रकार की गई आप के समक्ष
श्री बगला गायत्री मंत्र विधि विधान के साथ प्रस्तुत है:-

मंत्र:- ‘‘ऊँ ह्लीं ब्रह्महस्त्राय विद्यहे स्तम्भन-वाणाय धीमहि तन्नः बगला प्रचोदयात्। (27 अक्षरी)

संकल्प:- ऊँ तत्सद्य परमात्मन ..... मम यजमानस्या पुरातन अनिष्ट प्रारब्ध नष्टार्थे च नव मंगलमय प्रारब्ध निर्माणार्थे श्री बगला गायत्री मंत्र एक लक्ष जपे अहं कुर्वे।

विनियोगः - ऊँ अस्य श्री बगला गायत्री मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छन्दः ब्रह्मास्त्र- बगला देवता, ऊँ बीजं, ह्लीं शक्तिः, विद्यहे कीलकं, श्री ब्रह्मास्त्र बगलाम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास:- 
श्री ब्रह्मार्षये नमः शिरसि, 
गायत्री छन्दसे नमः मुखे, 
श्री ब्रह्मास्त्र बगलाम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमःअंजलौ । 

कर न्यास:- 
ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्यहे अनुष्ठाभ्यां नमः, 
स्तम्भन वाणाय धीमहि तर्जनीभ्यां स्वाहा, 
तन्नो बगलाप्रचोदयात् मध्यमाभ्यां वषट्, 
ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्यहे अनामिकाभ्यां हुं, 
स्तम्भन वाणाय धीमहि कनिष्ठाभ्यां वौषट्, 
तन्नो बगला प्रचोदयात् कर तल-कर पृष्ठाभ्यां फट्।

अङग न्यास:- 
ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्ताय विद्यहे हृदयाय नमः, 
स्तम्भन वाणाय धीमहि शिरसे स्वाहा, 
तन्नों बगला प्रचोदयात्, शिखायै वषट्, 
ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्ताय विद्यहे कवचाय हुं, 
स्तम्भन-वाणाय धीमहि नेत्र-त्रयाय वौषट्, 
तन्नो बगला प्रचोदयात अस्त्राय फट्।

ध्यान:- 


(प्रातः)

गम्भीरां च मदोन्मत्तां, स्वर्ण-कान्ति-सम-प्रभाम्।
चतुर्थजां त्रि-नयनां, कम लासन-संस्थिताम्।।
मुद्गर दंक्षिणें पाशं, वामे जिह्वां च विभ्रतीम।
पीताम्बर-धरां सौम्यां, दृढ़-पीन-पयोधराम्।।
हेम-कुण्डल-भूषाङगी, पीत-चन्द्रार्द्ध-शेखराम्।
पीत-भूषण-भूषाङगी, स्वर्ण-सिहासने स्थिताम्।।

(दोपहर) 

दुष्ट-स्तम्भनमुग्र-विघ्न-शमनं दारिद्र्य-विद्रावणम्,
भूभृत्-सन्दमनं चलन्मृग-दृशां चेतः समाकर्षणम् ।
सौभाग्यैक-निकेतनं सम-दृश कारुण्य-पूर्वेक्षणम्,
मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयंमातस्त्वदीयं वपुः 

(सायं)

मातर्भञ्जय मद्-विपक्ष-वदनं जिह्वां च संकीलय,
ब्राह्मीं मुद्रय दैत्य-देव-धिषणामुग्रां गतिं स्तम्भय ।
शत्रूंश्चूर्णय देवि ! तीक्ष्ण-गदया गौरांगि, पीताम्बरे !
विघ्नौघं बगले ! हर प्रणमतां कारुण्य-पूर्णेक्षणे ! ।

अब उपरोक्त 27 अक्षरी मंत्र का एक लाख जप करने के उपरान्त बगला हृदय मंत्र का एक लाख जप संकल्प कर किया गया।

श्री बगला हृदय मंत्र (80 अक्षरी) - सांख्यायन तन्त्र से लिया गया है।

|| आं ह्लीं क्रों ग्लौं हूं ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं वगलामुखि आवेशय आवेशय आं ह्लीं क्रों ब्रह्मास्त्ररुपिणि एहि एहि आं ह्लीं क्रों मम हृदये आवाहय आवाहय सान्निध्यं कुरु कुरु आं ह्लीं क्रों ममैव हृदये चिरं तिष्ठ तिष्ठ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा ||

नोट: यह मंत्र बड़ा ही चमत्कारिक है। इसे सिद्ध कर, मात्र 3 बार अभिमंत्रित जल को पिलाने से रोगी रोग मुक्त हो जाता है।



डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Monday 5 September 2016

माँ बगलामुखि मूल मंत्र द्वारा सम्पुटित माता धूमावती साधना की तीव्रता

मैं बड़ा परेशान रहता था, जमीन तो थी परन्तु पैसा नहीं था कि मकान बनवा सकू, कभी सोचता एक कमरा ही बन जाए परन्तु सोचने से कुछ नहीं होता। कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। लोग मेरी जमीन हड़पने का प्रयास भी करने लगे। कोई कहता यहाँ मकान बन ही नहीं सकता, कोर्ट से स्टे ले लूंगा, कोई कहता यहाँ पर नीम का पेड़ है जैसे ही कटेगा अन्दर करवा दूंगा, पैसा भी मेरे पास नहीं कैसे सबका सामना करूगा। मेरे प्लाट के मध्य में एक नीम का पेड़ लगा था। एक दिन उस पेड़ के नीचे खड़े होकर उससे उपरोक्त बाते करने लगा, उसने सुना या नहीं, यह तो मुझे ज्ञात नहीं, परन्तु दूसरे ही दिन पेड़ की सारी पत्तियाँ गिरने लगी, मानो पतझड़ आ गया, अब वहाँ वृक्ष की मोटी-मोटी शाखाएं ही शेष रह गई। सोचने लगा कुछ तो है, पेड़ यो ही नहीं सूख गया, मन की स्थित शान्त नहीं थी, एक हफ्ते बाद मन में दृढ़ विश्वास किया कि अब हमें माता बगलामुखि के मूल मंत्र द्वारा सम्पुटित माता घूमावती मूल मंत्र का अनुष्ठान करना है, अतः एक लाख जप का संकल्प कर, जप प्रारम्भ कर निर्विघ्न पहला अनुष्ठान पूर्ण किया पुनः दूसरा एक लाख जप का अनुष्ठान करने से पूर्व एक बार घूवती गायत्री का अनुष्ठान कर लें, अतः घूमावती गायत्री का एक लाख जप का संकल्प कर जप समाप्त किया, तभी ज्ञात हुआ घूमावती जप 80 हजार पर एक सर्किल होता है अतः मैने साठ हजार जप और कर थकावट महसूस कर रहा था, तभी एक सज्जन मेरे पीछे पड़ गये कि मकान मैं बनवा दूंगा, कितना पैसा तुम्हारे पास है। मैने कहा मात्र एक लाख ही मेरे पास है - कहा बहुत है। दूसरे ही दिन मकान की नींव खुदने लगी। मैं चिन्तित था जग हँसाई होगी। एक लाख में तो एक कायदे का कमरा भी नहीं बन सकता, कार्य होता रहा। दवाखाने में प्रतिदिन कभी 4 हजार कभी 5 हजार मिलता रहा, अन्ततः तीन माह में तीन बड़े कमरे, किचन, बाथरूम, लैट्रीन, जीना व पूजाघर सभी बन गया। मैं बड़ा अचम्भित था, यह सब हो कैसे गया और आज तक भी मुझे विश्वास नहीं हो रहा, यह सब कैसे हो गया। किसी भी विरोधी ने कोई विरोध करना तो दूर रहा, वहाँ आया तक नहीं। माँ की अजब कृपा हुई मैं भाव विभोर हूँ। आप को भी माँ की कृपा प्राप्त हो अतः जैसे मैने क्रिया की आप के सामने रख रहा हूँ, कृपया योग्य गुरू के मार्ग दर्शन से आगे बढ़े।
मन्त्र जप समय ध्यान बहुत महत्वपूर्ण होता है, बिना ध्यान में मंत्र जप निष्फल हो जाता है। मात्रा घूमावती का ध्यान है-कौवे की ध्वजा वाले रथ पर बैठी है, विधवाओं जैसे वेश है। खुले रूखे बाल है, बूढ़ी औरतों की तरह लटके स्तन है, दाएं हाथ में खाली सूप है व बाया हाथ वरद मुद्रा में उठा हुआ है। कल्पना करें - हमारे दुःख, दरिद्रता-कलह-क्लेश व बुरे प्रारब्ध को अपने साथ ले जा रही है और जाते समय अपने वरद हस्त से हमें आशीर्वाद दे रही है।
आवाह्न - कौवे के पंख पर सिन्दुर में घी लगा कर त्रिशुल की आकृति बनाकर, उसी पर इनका आवाह्न करते हैं जप के अन्त में जय माँ के बाए हाथ में समर्पित कर विसर्जन कर दें।
विसर्जन- हे माता पुनः आगमन हेतु अब आप प्रस्थान करें, जप वाद जब कपूर जलाए तब कपूर बुझने से पूर्व इनका विसर्जन कर देते हैं।
बगला मूलमंत्र संपुटित घूमावती साधना करने के पूर्व मेरे एक परिचित हैं, वह माँ घूमावती के अच्छे साधक है, उनसे विचार विमर्श किया, उन्होंने हमें बतलाया बगला और घूमावती में आपस में शत्रुता है, यदि तुम इनके साथ घूमावती का जप करोगे तो बगला तुरन्त तुम्हारी दुश्मन बन जायेगी। मैने इनकी बात सुन तो ली, परन्तु विरोध नहीं किया। मंथन किया जब बगला कल्प में ‘‘ ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं घूमावती यथेशान्याम्’’ व ‘‘ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं  ह्रः घूमावती देव्यै नमः कटयाम्’’ इन दो स्थानों पर घूमावती को पुकारा गया है, तो इन दोनों में शत्रुता होने का प्रश्न ही नहीं उठता अतः संकल्प लिया -

मम पुरातन अनिष्ठ परम बन्धन विनाशार्थे च भगवति बगलामुखी व भगवती घूमावती प्रसन्नार्थे, भगवती बगलामुखी मूल मंत्र सम्पुटे, भगवती घूमावती मूल मंत्र एक लक्ष जपे अहं कुर्वे

संम्पुटित मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखि सर्व दुटानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ऊँ स्वाहा (1 माला)
धूं धूं धूमावती ठः ठः। (1 माला)
ऊँ  ह्रीं बगलामुखि सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा (1 माला)

यह एक मंत्र हुआ इसी का जप किया गया।

मंदिर में हवन

परिणाम - अति उत्तम व विस्मयकारी आया।

धूमावती गायत्री - घूमावत्यै च विद्यहे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो घूमा प्रचोदयात्।

विनियोग - अस्य श्री घूमावती गायत्री मन्त्रस्य श्री घूमावती देवता वर प्रसाद सिद्धी द्वारा मम सर्वमनोभिलाष्टि कार्य सिद्धै जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास -

पिप्पलाद ऋषये नमः शिरसि। 
निवृच्छन्दसे नमः मुखे। 
घूमावती देवतायै नमः हृदि। 

कर न्यास -

धूमावत्यै अनुष्ठाभ्यादि नमः। 
विद्यहे तर्जनीभ्यां नमः। 
संहारिण्यै मध्यमाभ्यां नमः। 
धीमहि अनामिकाभ्यां नमः। 
तन्नो घूमा कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 
प्रचोदयात् कर तल कर पृष्ठाभ्यां नमः।

षडंग न्यास -

धूमावत्यै च ह्दयाय नमः। 
विद्यहे शिरसे स्वाहा। 
संहारिण्यै च शिखायै वषट्। 
धीमहि कवचाय हुं। 
तन्नो घूमा नेत्र त्रयाय वौष्ट्। 
प्रचोदयात् अस्त्राय फट्।

नोट - दीर्घ काल तक, निरन्तर प्रतिदिन सत्कार पूर्वक अभ्यास करने से साधना की भूमि दृढ़ होती है और तब कहीं उसका फल होता है। सतर्कता से इन्द्रिय-निग्रह-पूर्वक साधना-पथ पर अग्रसर होते हुए सफलता की प्राप्ति होने तक प्रयत्न पूर्वक रहना पड़ता है। पुरश्चरण पूर्ण होने तथा माँ की कृपा प्राप्त होने पर भी साधक को अपनी साधना की साध्य से जोड़ने वाली परम्परा को कभी शिथिल नहीं होने देना चाहिए-यही ‘‘ऊर्ध्वाम्नाय’’ की उच्च कोटि की साधना का गूढ़ रहस्य है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह

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