Monday 28 March 2016

श्री बगलामुखी कल्प विधान-गुप्त शत्रु मर्दनी

                अपनी शब्दावली भाव प्रणाली की विशिष्टिता के कारण इसे अत्यन्त विकट शत्रु से सन्त्रास को ध्वस्त करने के लिए किया जाता है। प्रस्तुत प्रयोग की फलश्रुति के अनुसार नित्य एक बार अथवा तीनों संन्ध्याओं में एक एक बार, एक मास तक पाठ से बगलामुखी देवी साधक के शत्रु को उद्घ्वस्त करती है:-

मास मेकं पठेन्नित्यं त्रैलोक्ये चाति दुर्लभम्।
सर्व सिद्धिम वाप्नोति देव्या लोकं गच्छति।।

                माँ की सिद्धि का सुगम उपाय है यदि इसका श्रृद्धायुक्त तीनों संघ्याओं में पाठ करने के उपरान्त रात्रि में तिल की खीर से नित्य भवगती को होम दें। एक मास तक यही प्रक्रिया करते रहें भवगती बगलामुखी साधक को बिना जप किए सब कुछ उपलब्ध करा देती है।
                सर्वप्रथम बगलामुखि के यंत्र का आगे दिए विधान द्वारा पूजन कर, स्त्रोत के पाठ से शत्रुओं का शमन होता है और वे आप के मार्ग से हट जाते हैं। ग्यारह सौ पाठ का विधान है एक सौ ग्यारह पाठ का हवन करते हैं।

हवन सामग्री:-  हल्दी, मालकाँगनी, तिल, बूरा, हरताल, घी में सान कर पाठ के प्रत्येक स्वाहा पर आहुति देते हैं। अन्तिम आहुति प्रत्येक पाठ के बाद खीर की देते हैं। इसका तर्पण-मार्जन नहीं होता है। खीर-दूध में तिल डाल कर टाइट खीर बनाते हैं बाद में उसमें केसर शहद भी मिला लेते हैं। स्वअनुभूति इस विधान को पूर्ण कर जब हवन की अन्तिम आहुति दी गई, षडयंत्रकारी को मार्ग से हटना ही पड़ गया, जब कि वह माँ दुर्गा का अच्छा साधक था, परन्तु षडयंत्र रचने में उसे महारत हासिल थी। किसी को ज्ञात भी नहीं होता था कि किसका षडयंत्र है, परन्तु भगवती की दृष्टि से वह माँ दुर्गा का सेवक छुप सका और माँ के दंड को उसे भुगतना ही पड़ गया। इसे नित्य की पूजा में सम्लित कर आप पूर्णतः निश्चिन्त हो जाएं। भगवती सदैव आप की रक्षा ही नहीं करेगी वरन् आप के गुप्त शत्रुओं को मार्ग से सदैव के लिए हटा देती है।
                पुस्तकों में लिखा है परन्तु मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं रहा कि यदि किसी मकान या दुकान को बांध दिया गया है तो उपरोक्त पाठ 108 बार पढ़ कर, जल पर फूकें। इस जल को घर या दुकान में प्रवेश करते समय अपने सिर पर से द्वार के बाहर की ओर फेंक दें। उसके बाद पुनः ग्यारह पाठ कर जल पर फूंके इस जल को घर/दुकान में सभी जगह छिड़क देने से वह स्थान जीवंत हो जाता है। दुकान चलने लगती है घर की समस्त बाधाएं शान्त हो जाती है।
                श्री बगलामुखी कल्प विधान देखने में बहुत बड़ा लगता है, परन्तु वास्तव में अत्यन्त आसान है। सर्व प्रथम भगवति से प्रार्थना करें माँ मैं आप के इस कल्प विधान को करना चाहता हूँ मुझे अनुमति प्रदान करें साथ ही मेरी मदद करे, आप को बता दूँ माँ इसे अत्यधिक सुगम तरीके से करा देगी कि आप को पता ही नहीं चलेगा। पाठ की कुछ कुन्जियाँ आप को देता हूँ, जिससे आप को भटकन नहीं होगी पहली कुन्जी है दिशा जैसे

ऊँ ऐं ह्लीं बगलामुखि एहि एहि पूर्व दिशा बन्धय बन्धय इन्द्रस्य मुखं
ऊँ ऐं ह्लीं पीताम्बरे एहि एहि अग्निदिशायाां - अग्नि मुखं



                इस चक्र को मस्तिष्क मैं बैठा ले किस दिशा पर किस शक्ति को पुकारते हैं और किस देवता का बन्ध करते हैं।

दूसरी कुंजी:-




तीसरी कुंजी - मानव आकृति मस्तिष्क में बैठा लें सर से ध्यान करे-

1. शिरो (सर) - बगलामुखि
2. भाले (मत्था) - पीताम्बरे
3. नेत्रो - महा भैरवि
4. कर्णो (कान) - विजये
5. नासौ (नाक) - जये
6. वदंन (चेहरा) - शारदे
7. कण्ठे (गला) - रूद्राणि
8. स्कन्धौ (कंधे) - विन्ध्यवासिनि
9. बाहू (हाथ) - त्रिपुर सुन्दरि
10. करौ (उगलियाँ) - दुर्गे
11. हृदयं - भवानि
12. उदरं (पेट) - भुवनेश्वरि
13. नाभिं - महामाये
14. कटिं (कमर) - कमल लोचने
15. उरौ (छाती) - तारे
16. सर्वाङ - महातारे
17. अग्रे (सामने) - योगिनि
18. पृष्ठे (पीछे) - कौमारि
19. दक्षिण पार्श्वे (दाई ओर) - शिवे
20. वाम पार्श्वे (बाई ओर) - इन्द्राणि

फिर गां गीं गू .....
                सभी में प्रारम्भ ऊँ ह्लां ह्लीं हलूं ह्लैं ह्लौं ह्लः लगा करे अंग का नाम रक्षतु देवी का नाम रक्ष रक्ष स्वाहा लगाते हुए क्रमशः बढ़ते रहे और अन्त  में  एक पाठ पूरा हो जाएगा जिह्वा धारावाहिक वाचिक चलती रहती है, आनन्द की अनुभूति क्रमशः चलते-चलते चरम पर पहुंच ही जाती है।

बगलामुखी कल्प विधान

                इसमें माँ बगलामुखी का सर्वांग पूजन आगे दी विधि के अनुसार करें। सर्वप्रथम 3 बार मूलमंत्र से प्राणायाम करें बाएं नथुने से धीरे-धीरे सांस खींच कर उसे तब तक रोके रहे जब तक छटपटाहट महसूस होने लगे फिर इसे दांए नथुने से धीरे-धीरे बाहर छोडे़ पुनः दांए से खींच कर बाए नथुने से सांस छोडें़ यह एक प्राणायाम हुआ, इस प्रकार तीन बार कर, मूल मंत्र का 108 बार जाप कर, दिग्बन्धन के समय सम्बन्धित दिशा में चुटकी बजाए-

दिग्बन्धन -

ऊँ ऐं ह्ल्रीं श्रीं श्यामा माँ। पूर्वतः पातु।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आग्नेय्यां पातु तारिणी।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं माहविद्या दक्षिणे तु।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं नैर्ऋत्यां षोडशी तथा।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भुवनेशी पिश्रिमायाम्।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वायव्यां बगलमुखी।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं उत्तरे छिन्नमस्ता च।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऐशान्यां धूमावती तथा।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऊर्घ्व तु, कमला पातु।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवता।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अद्यस्तात् चैव मातङगी।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं सर्वदिग् बगलामुखी।।

विनियोगविनियोग बोल कर जल पृथ्वी पर डाले। दांए हाथ में जल लेकर
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ब्रह्मास्त सिद्ध प्रयोग स्त्रोत मन्त्रस्य भगवान नारद ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, हृं बीजम् शक्ति, लं कीलकं, मम सर्वार्थ-साधन-सिद्धयर्थे पाठे
विनियोमः। फिर सम्बन्धित स्थानो को छुए

                ऊँ भगवते नारदाय ऋषये नमः शिरसि
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्यामा देव्यै नमः ललाटे।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः तारा देव्यै नमः कर्णयोः।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः महा विद्यायै नमः भ्रवोर्मध्ये।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः षोडशी देव्यै नमः नेत्रयो।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्री बगला मुखी देव्यै नमः मुखे।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः बगला भुवनेश्वरी भ्यां नमः नासिकयोः।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः छिन्न मस्ता देव्यै नमः नाभौ।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः धूमावती देव्यै नमः कटयाम्।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः कमला देव्यै नमः गुहृो।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्री मातंगी देव्यै नमः पादयो।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हृी बीजाय नमः नाभौ।
                ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हृी कीलकाय नमः सर्वाङगे।
मम सर्वार्थ साधने बगला देव्यै जपे विनियोगः। (जल पृथ्वी पर डाल दे)

कर न्यास-
                ऊँ ह्लं बगलामुखी अड.गुष्ठाभ्यां नमः।
                ऊँ ह्लीं बगलामुखी तर्जनी भ्यां नमः।
                ऊँ ह्लूं बगलामुखी मध्यमा भ्यां नमः।
                ऊँ ह्लैं बगलामुखी अनामिका भ्यां नमः।
                ऊँ ह्लौं बगलामुखी कनिष्ठिका भ्यां नमः।
                ऊँ ह्लः बगलामुखी करतल कर पृष्ठा भ्यां नमः।

हृदयदि न्यास-
                ऊँ हृीं हृदयाय नमः। (हृदय को दांए हाथ से स्पर्श करें)
                बगलामुखी शिरसे स्वाहा।(सिर का स्पर्श करें)
                सर्व दुष्टानां शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श करें)
                वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्। (कवच बनाएं
                जिह्वां कीलय् नेत्रयाय वौषट। (नेत्रों का स्पर्श करें)
                बुद्धि विनाशाय ऊँ ह्लीं स्वाहा (सिर के पीछे से, दाए हाथ से चुटकी बजाते हुए, दांए हाथ की गदेली पर, बांए हाथ की तर्जनी मध्यमा से तीन बार ताली बजाए।)
कवच - दांए हाथ की उंगलियाँ बाए कंधे पर रखे ठीक इसका उल्टा अर्थात् बांए हाथ की उगलियाँ दाहिने कंधे पर रखे, इस भांति सीने पर कवच की मुद्रा बनाते हैं।



ध्यान -

   सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशु कोल्लासिनीं
   हेमा भाङग रूचिं शशाङक मुकुटां सच्चम्पक स्त्रग्युताम्। 
   हस्तै र्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संविभ्रतीं भूषणैः। 
   र्व्याप्ताङगीं बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये।।

यन्त्रोद्वार -                          
                       त्रिकोणं चैव षट्-कोणं, वसु-पत्रं ततः परम्।
                        पुनश्च वसु-पत्रं, वर्तुलं प्रकल्पयेत्।।
                        षोडशारं ततः पश्चात्, चतुरस्त्रं विधीयते।
                        वर्तुलं चतुरस्तं , मध्ये मायां समालिखेत्।।   

नोट -      माँ बगलामुखी के उपरोक्त यन्त्रोंद्वार वाला ही यंत्र प्रयोग करें, बाजार में इनके विभिन्न प्रकार के यंत्र मिलते हैं। इसकी विधिवत् प्राण प्रतिष्ठा कर, सर्वांग पूजन करते हैं। पीले वस्त्र पर प्राण प्रतिष्ठित यंत्र स्थापित कर जहाँ-जहाँ पूजयामि है वहाँ-वहाँ पुष्प की पंखुडियाँ सामने प्लेट में डालते जाए तर्पयामि भी जल से करते रहें।

आदौ-त्रिकोण देवताः पूजयेत् -
ऊँ ऐं ह्री श्रीं क्रोधिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्री श्रीं स्तंभिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्री श्रीं चामर धारिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
पुनस्त्रि कोणे -
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ओडयान पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जालन्धर पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कामगिरि पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अनन्त नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कण्ठ नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं दन्तात्रेय नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ षट्कोणे -
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं सुभगायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग वाहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग मालिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग शुद्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग पत्न्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ वसुपत्रे -
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ब्राह्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं माहेश्वर्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कौमार्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं वैष्णव्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं वाराहौै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं इन्द्राण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं चामुण्डायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ द्वितीय वसुपत्रे -
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं विजयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अपराजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ पत्राग्रे-
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं असिताङग भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं रूरू भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं चण्ड भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्रोध भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं उन्मन्त भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कपालि भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भीषण भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं संहार भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
षोडश दले -
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगला मुख्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं चच्चत्रायैै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अचलायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं वश्यायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कालिकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कल्मषायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं छात्रयै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं काल्पान्तायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शाकिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अष्ट गन्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भोगेच्छायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भाविकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

मन्त्र पाठ -108 बार पाठ कर, स्त्रोत का पाठ करें।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगला मुखि सर्व दुष्टानां वश्यं कुरू कुरू कलीं कलीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा। ऊँ ह्लं बगलामुखि श्री बगलामुखि दुष्टान् भिन्धि भिन्धि, छिन्धि छिन्धि, पर मन्त्रान् निवारय निवारय, वीर चंक्र छेदय छेदय, वृहस्पति मुखं स्तम्भय स्तम्भय, ऊँ ह्रीं अरिष्ट स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा, ऊँ ह्रीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा। (108 बार पाठ करें)

स्त्रोत्र -
ब्रह्मास्त्रां प्रवक्ष्यामि बगलां नारद सेविताम्।
देव गन्धर्व यक्षादि सेवित पाद पङकजाम्।।
त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या सर्व शत्रु वशङकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरी मारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लं द्राविणि द्राविणि भ्रामिणि भ्रामिणी एहि एहि सर्व भूतान् उच्चाटय उच्च्चाटय सर्व दुष्टान् निवारय निवारय भूत प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनीः छिन्धि छिन्धि, खड्गेन भिन्धि भिन्धि मुद्गरेण संमारय संमारय, दुष्टान्, भक्षय-भक्षय, ससैन्यं भूपतिं कीलय मुख स्तम्भनं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                आत्म-रक्षा ब्रह्म-रक्षा, विष्णु-रक्षा रूद्र-रक्षा, इन्द्र-रक्षा, अग्नि-रक्षा, यम-रक्षा, नैर्ऋत-रक्षा, वायु-रक्षा, कुवेर-रक्षा, ईशान-रक्षा, सर्व-रक्षा, भूत-प्रेत, पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-रक्षा-अग्नि वैताल-रक्षा गण-गन्धर्व-रक्षा, तस्मात् सर्वरक्षां कुरू कुरू, व्याध्र-गज-सिंह रक्षा गण तस्कर-रक्षा, तस्मात् सर्व बन्ध्यामि ऊँ ह्लं बगलामुखि हुँ फट् स्वाहा।
                ऊँ ह्लीं भो बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगलामुखि एहि-एहि पूर्व दिशायां बन्धय-बन्धय इन्द्रस्य मखं स्तम्भ-स्तम्भ इन्द्र शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं पीताम्बरे एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय अग्नि मुखं स्तम्ीाय स्तम्भय अग्नि शस्त्र निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महर्षि मर्दिनि एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय समस्य अग्नि स्तम्भय स्तम्भय यम शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं हज्जृम्भणं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चण्डिके एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय नैऋत्य मुखं स्तम्भय नैऋत्य शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कराल नयने एहि-एहि पश्चिम दिशायां बन्धय-बन्धय वरूण मुखं स्तम्भय वरूण शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कालिके एहि-एहि वायव्य दिशायां बन्धय-बन्धय वायु मुखं स्तम्भय वायु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महा त्रिपुर सुन्दरी एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय कुवेर मुखं स्तम्भय कुबेर शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं महाभैरवि एहि एहि ईशान दिशायां बन्धय बन्धय ईशान मुखं स्तम्भय स्तम्भय ईशान शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं गाङगेश्वरि एहि एहि ऊर्ध्व दिशायां बन्धय बन्धय ब्रह्मणं चतुर्मखं स्तम्भय स्तम्भय ब्रह्म शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ललितादेवी एहि एहि अन्तरिक्ष दिशायां बन्धय बन्धय विष्णु मुखं स्तम्भय स्तम्भय विष्णु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं चक्रधारिणि एहि एहि अधो दिशायां बन्धय बन्धय वासुकि मुखं स्तम्भय स्तम्भय वासुकि शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                दुष्ट मन्त्रम् दुष्ट यन्त्रं दुष्ट पुरूषम् बन्धयामि शिखां बन्ध ललाट बन्ध भ्रवौ बन्ध नेत्रे बन्ध कर्णों बन्ध नासौ बन्ध ओष्ठी बन्ध अधरौ बन्ध जिह्वां बन्ध रसनां बन्ध बुद्धि कष्ठम् बन्ध हृदयं बन्ध कुक्षि बन्ध हस्तौ बन्ध नाभि बन्धा लिङगम् बन्ध गुहां बन्ध ऊरू बन्ध जानू बन्ध जङघे बन्ध गुल्फौ बन्ध पादौ बन्ध स्वर्ग-मृत्युं-पातालं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि इन्द्राय सुराधि पतये ऐरावत् वाहनाय श्वेत वर्णाय वज्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् निरासय निरासय विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि अग्नेय तेजोधिपतये छाग वाहनाय रक्त  वर्णाय शक्ति हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि यमाय प्रेताधिपतये महिष वाहनाय कृष्ण वर्णाय दण्ड हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वरूणाय जलाधि पतये मकर वाहनाय श्वेत वर्णाय पाश हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वायव्याय मृगवाहनाय ध्रूम वर्णाय ध्वजा हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ईशानाय भूताधि पतये वृषभ वाहनाय कर्पूर वर्णाय त्रिशूल हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ब्रह्मणे ऊर्ध्व दिग्लोकपालाधि पतये हंस वाहनाय श्वेत वर्णाय कमण्डलु हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वैष्णी सहिताय नागाधिपतये गरूण वाहनाय श्याम वर्णाय चक्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ नमो भगवते पुण्य पवित्रे स्वाहा।
                ऊँ ह्लीं बगलामुखि नित्यम् एहि एहि रवि मण्डल मध्याद् अवतर अवतर सानिध्यं कुरू कुरू। ऊँ ऐं परमेश्वरीम् आवाहयामि नम्। मम् सानिध्यं कुरू। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुम् फट् स्वाहा।
                ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बगले चतुर्भुजे मुद्धरशर संयुक्ते दक्षिणे जिह्वा व्रज संयुक्ते वामे श्री महाविद्ये पीत बस्त्रे पच्च महाप्रेताधि रूढे सिद्ध विद्याधर बन्दिते ब्रह्म विष्णु रूद्र पूजिते आनन्द स्वरूपे विश्व सृष्टि स्वरूपे महा भैरव रूप धारिणि स्वर्ग मृत्यु पाताल सतम्भिनि वाम मार्गाश्रिते श्री बगले ब्रह्म विष्णु रूद्र रूप निर्मिते षोडशकला परिपूरिते दानाव रूप सहस्त्रादित्य शेभिते त्रिवर्णे एहि एहि हृदयं प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भ स्तम्भ अन्य भूत पिशाचान् खादय खादय अरिसैन्यं विदारय विदारय पर विद्यां परचक्रं छेदय छेदय वीर चक्रं धनुषां संभारय संभारय त्रिशूलेन् छिन्धि छिन्धि पाशेन बन्धय बन्धय भूपतिं वश्यं कुरू कुरू संमाहेय-संमोहय बिना जाप्येन सिद्धय सिद्धय बिना मन्त्रंण सिद्धिं कुरू कुरू सकल दुष्टान् घातय-घतय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरू-कुरू सकल कुल राक्षसान् दह दह पच पच मथ मथ हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय भक्षय भक्षय मां रक्ष रक्ष विस्फाटका दीन् नाश्य नाशय ऊँ ह्रीं विषम ज्वरं नाशय-नाशय विषं निर्विष कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
                ऊँ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पंद स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धि विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहा।
                ऊँ बगलामुखि स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे स्वाहा। ऊँ त्रिपुर भैरवि स्वाहा। ऊँ विजयायै स्वाहा। ऊँ जयायै स्वाहा। ऊँ शारदायै स्वाहा। ऊँ सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै स्वाहा। ऊँ विन्घ्य वासिन्यै स्वाहा। ऊँ त्रिपुर सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गाये स्वाहा। ऊँ भवान्यै स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै स्वाहा। ऊँ महा मायायै स्वाहा। ऊँ कमल लोचनायै स्वाहा। ऊँ तारायै स्वाहा। ऊँ योगिन्यै स्वाहा। ऊँ कौमार्यै स्वाहा। ऊँ शिवायै स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हं फट् स्वाहा।
                ऊँ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहां
                ऊँ बगलामुखि स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे स्वाहा। ऊँ त्रिपुर भैरवि स्वाहा। ऊँ विजयायै स्वाहा। ऊँ जयायै स्वाहा। ऊँ शारदायै स्वाहा। ऊँ सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै स्वाहा। ऊँ विन्ध्य वासिन्यै स्वाहा। ऊँ त्रिपुर सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गायै स्वाहा। ऊँ भवान्यै स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै स्वाहा। ऊँ महा मायायै स्वाहा। ऊँ कमल लोचनायै स्वाहा। ऊँ तारायै स्वाहा। ऊँ योगिन्यै स्वाहा। ऊँ कौमार्यै स्वाहा। ऊँ शिवायै स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हं फट् स्वाहा।
                ऊँ ह्लीं शिव तत्व व्यापिनि बगलामुखि स्वाहा। ऊँ ह्लीं माया तत्व-व्यापिनि बगलामुखि हृदयाय स्वाहा। ऊँ ह्लीं विद्या तत्व व्यापिनि बगलामुखि शिसे स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः शिरो रक्षतु बगलामुखि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः भालं रक्षतु पीताम्बरे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नेत्रे रक्षतु महा भैरवि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कर्णों रक्षतु विजये रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नासौ रक्षतु जये रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वदनं रक्षतु शारदे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः स्कनधौ रक्षतु विन्घ्यं रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बाहु रक्षतु त्रिपुर सुन्दरि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः करौ रक्षतु दुर्गे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उदरं रक्षतु भुवनेश्वरि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नाभिं रक्षतु महामाये रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कटिं रक्षतु कमल लोचने रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उरौ रक्षतु तारे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः संर्वाङगे रक्षतु महातारे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः अग्रे रक्षतु येागिनि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः पृष्ठे रक्षतु कौमारि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः दक्षिण पार्श्वे रक्षतु शिवे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वाम पार्श्वे रक्षतु इन्द्राणि रक्ष रक्ष स्वाहा।
                ऊँ गां गीं गूं गैं गौं गः गणपतये सर्व जन मुख स्तम्भनाय आगच्डछ आगच्छ मम विध्नान् नाशय नाशय दुष्टं खादय खादय दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकाल मृत्युं हन हन भो गणाधिपते ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

हवन - जहाँ-जहाँ स्वाहा है आहुतियां देते रहें।

                एक हजार पाठ के उपरान्त यह पाठ स्वतः चलने लगता है, भगवती के यंत्र की पंचोपचार पूजन कर, रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठे अपनी त्रिकुटि के मध्य में ध्यान रखते हुए पाठ करें कैसा भी आप पर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसको यह ध्वस्त कर देता है अभिचारिक व्यक्ति को दंड भी मिल जाता है। इस पाठ को आप अपनी दैनिक पूजा में यदि स्थान देते हैं तो भगवती आप की पूरी सुरक्षा ही नहीं करती वरन् बहुत कुछ दे देती है, जिसे स्वयं आप अनुभव करेंगे, धर्मता पूर्वक क्रमशः आगे बढ़ते रहें, भगवती आप की प्रत्येक मनोकामनाओं को पूर्ण करेगी। एक वर्ष में ही आप शक्ति सम्पन्न हो जाएगें। ऐसा अनुभवी साधकों ने स्वीकारा है।
(श्री बगलामुखि कल्पै वीर-तन्त्रे बगला-सिद्ध प्रयोग)

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Saturday 27 February 2016

बगला मुखी मूल मंत्र



‘‘क्रम दीक्षा के अनुसार-एकाक्षरी, चतुरक्षर, अष्टाक्षर मंत्र जप के बाद पश्चात् ही मूल मंत्र का जप करें, सीधे मूल मंत्र का जप न करें, क्यों कि बालू पर उठाई गई दीवार अधिक दिन टिक नहीं पाएगी, अतः नींव मजबूत करनी ही पड़ेगी।’’

साधानानुशासन इनकी साधना में अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि  ये दुधारी तलवार है, अतः थोड़ी भी चूक का परिणाम भुगतान ही पड़ता है। एक दृष्टांग बताते हैं। हम और एक पंडित जी ने बगला जप प्रारम्भ किया, तीसरे दिन मेरे दवाखाने में एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री आई, उसके बाए स्तन में गिल्टी थी, पहले तो मैं उसे टाल रहा था, किसी लेडी डाक्टर से चेक करा लो, परन्तु उसके बार-बार आग्रह को मैं टाल न सका और उसका बाया स्तन चेक करने लगा, तीन बड़ी गिल्टियाँ थी, दांए स्तन की ओर भी मेरे हाथ गए, जब कि दांए स्तन में कोई तकलीफ नहीं थी, चंूकि चिकित्सीय परीक्षण के अनुसार मैने उचित कार्य किया, परन्तु मन के भाव ठीक नहीं थे, मैं जानता था इसका दंड हमें अवश्य मिलेगा। रात्रि दवाखाने से मैं लौट रहा था, मेरा एक्सीडेन्ट हुआ और मैं जमीन पर पड़ा था, परन्तु कोई चोट नहीं लगी, गाड़ी भी ठीक हालत में थी, मैं उठा और चलता बना। मेरे साथ दुर्घटना हुई क्यों कि मेरी भावनाएं उचित नहीं थी। परन्तु चिकित्सीय परिवेश में उचित थी, दूसरे दिन पंडित जी को यह सब बताने हेतु उनके घर गया। पंडित जी के पैरो पर प्लास्टर चढ़ा था। यह सब कैसे हुआ पूछने पर उन्होंने बताया, यजमानी में कथा वाचने गया था लौटते समय यजमान ने हमें दूसरे दिन दोपहर में आने को कहा, मैं भी सीधा व दक्षिणा के लालच में दूसरे दिन उनके वही पहुंच गया, घर में सन्नाटा था यजमानिन ने मेरी काफी आवभगत की सीधा भी काफी बांध दिया और उसने वह सब हमें अर्पित कर दिया जो न देना चाहिए, भावावेश में मैं बह गया, और जब पाप का नशा उतरा तभी मैं डर गया था कि इसका दंड हमें अवश्य मिलेगा, वहाँ से घर लौट रहा था, रास्ते में एक्सीडेन्ट हुआ, सीधा-वीघा तो वहीं जमीन पर गिर कर बेकार हो गया, लोगों ने उठा कर अस्पताल पहुंचाया, परीक्षण के बाद पता चला मेरे दोनो पैर की हड्डियाँ टूट गई है और पैरों मैं प्लास्टर चढ़ गया। उन्हें हमने भी अपनी घटना बताई। हमारे इस अनुभव से आप भली-भाती समझ लें, माँ बगलामुखी के अनुष्ठान में सघना अनुशासन अति आवश्यक है, चूक हुई नहीं कि दंड भोगने के लिए तैय्यार रहे। अतः हमारा साधकों से विनम्र निवेदन है भगवति के प्रति पूर्णतः समर्पित होकर उनसे प्रार्थना करते रहे माँ मेरे अनुष्ठान को आप निर्विघ्न पूर्ण कराएं। माँ इस अनुष्ठान को करने की आप अनुमति प्रदान करंे व इसे शीघ्र ही निर्विघ्न पूर्ण कराएं।
इस मंत्र की जितनी प्रशंसा की जाय वह कम है। यह मंत्र सिद्ध हो जाने पर स्वयं में अपार शक्ति का संचार होने लगता है। ब्रह्मचर्य पूर्वक इस विद्या का क्रमशः अभ्यास करते-करते हुए एक एसी अवस्था आ जाती है कि स्वयं को आभास होने लगता है कोई शक्ति सदैव मरे साथ बनी हुई है। दैनिक जीवन में इस मंत्र की आवश्यकता -
1. यदि आप आग से जल जाए तो भगवती के मूल मंत्र केवल एक बार पढ़ कर अपनी हथेली पर फूकें व जले भाग पर एक बार हाथ फेर दें। जलन तुरन्त समाप्त हो जाती है व फफोला भी नहीं पड़ता। हवन करते समय मेरा हाथ अक्सर जल जाया करता था, जलन से मैं छटपटा जाता था दूसरे दिन जले स्थान पर फफोला भी पड़ जाता था। हवन से पूर्व में भी भगवती से प्रार्थना करता कि हाथ जलने न पाए फिर भी हाथ जल गया, आवाज आई ‘फूको व फेरो’ मैने मूलमंत्र तुरन्त अपने बांए हाथ पर ‘फंूका’ व जली हुई उगलियों पर हाथ फेरा मुझे स्वयं बड़ा आश्चर्य हुआ जलन तुरन्त समाप्त हो गई इतनी तीव्रता तो किसी औषधि में भी नहीं है बस मुझे एक फार्मूला मिल गया ‘‘फूंको और फेरो’’।
2. बरैय्या का डंक वह भी आंख के पपोटे के ऊपर-गाड़ी चला रहा था, एक पीली बर्र तेजी से आकर आंखों के ऊपर डंक मार कर उड़ गई, तीव्र जलन का एहसास तभी अपना फार्मूला याद आया, हाथ पर मूल मंत्र फूंका व उसे आंखें पर फेर दिया, चमत्कार हुआ जलन तीव्रगति से उसी क्षण समाप्त हो गई।
3. बिच्छू का डंक - एक बालिका को बिच्छू ने डंक मार दिया था, वह छटपटा रही थी, तेज स्वर में चीख रही थी, मैं उधर से निकल रहा था, बालिका से पूछा बिच्छू ने कहाँ डंक मारा है, तीव्र पीड़ा वाले स्थान की ओर इशारा किया मैंने तुरन्त अपने फार्मूले का प्रयोग किया। वह बालिका खुशी से उछलने लगी और कहने लगी अंकल जी आप जादू जानते हैं क्यों कि हाथ फेरते ही उसकी तीव्र पीड़ा, तीव्र गति से ही चली गई।
कहने का तात्पर्य है कि भगवती के मूल मंत्र में असीमित शक्ति समाई हुई है, हमें मात्र उसे जाग्रत कर देना है और वह आप के हाथ में है। अपने गुरू, मंत्र और भगवती पर पूर्ण आस्था रखते हुए धैर्यता पूर्वक मंत्र का पुरश्चरण करे , जो एक लाख होता है, परन्तु वर्तमान काल में 4 गुना जप करने के पश्चात् मंत्र फलीभूत होते मैंने देखा है यह अति गोपनीय तथ्य है। अधिकांश गुरूजप मात्र 1 लाख जप करा निर्देश देते हैं कार्य नहीं बनता अतः शिष्य के मन में मंत्रों के प्रति अविश्वास आ जाता है और वह मन्त्र जाप छोड़ देता है। यह आप की समस्या का समाधान नहीं है, आप निर्दिष्ट संख्या का चार गुना जप करें सफलता अवश्य मिलेगी।
किसी शुभ मुहुर्त से, माँ बगलामुखि के यंत्र के सामने पीले आसन पर बैठ कर माँ का पच्चोपचार पूजन के उपरान्त संकल्प कर जप प्रारम्भ करें। पूजा में उपयोगी वस्तुए पीले रंग की रखें, जैसे पीत पुष्प, बेसन का लड्डू, हल्दी का माला, पीतल का यंत्र, सरसों के तेल का दीपक आदि। दिशा पूर्व की हो। जप स्थान में एक कलश में जल अवश्य रखें जप के उपरान्त कपूर जला कर माँ के बाएं हाथ में जप समर्पित करते हैं। सर्वप्रथम जल ले कर संकल्प करें -

संकल्प - ऊँ तत्सद्य परमात्मन् आज्ञया प्रवर्तमानस्य 2070 सवंत्सरस्य श्री श्वेत वाराह कल्पे जम्बूदीपे भरत खंडे उत्तर प्रदेशे, लखनऊ नगरे ........... निवासे, ......... मासे .......... पक्षे ............... तिथे गुरू वासरे, गोत्रोत्पनः (अपना नाम) अंह भगवत्याः पीताम्बरायाः प्रसाद सिद्धि द्वारा मम सर्वाभिष्ट सिद्धियर्थे च भगवती पीताम्बरायाः प्रसन्नार्थे एक लक्ष मूल-मंत्र जपे अहं कुर्वे।

ध्यान - सौ वर्णासन-सस्थितांत्रिननां पीतांशुकोल्लासिनी, हेमा भाङग रूचिं शशांङक मुकटां सच्चम्पक स्रगयुताम, हेस्तै मुर्द्गर-पाश बद्ध-रसनां संविभ्रतिं भूषणै-व्र्याप्ताङगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनी चिन्तये।
भावार्थ - सुवर्ण के आसन पर स्थित, तीन नेत्रों वाली, पीताम्बर से उल्लसित, सुवर्ण की भांति क्रान्ति-मय अङगों वाली, जिनके मणिमय मुकुट में चन्द्र चमक रहा है, कण्ठ में सुन्दर चम्पा पुष्प की माला शोभित है, जो अपने चार हाथों में -1 गदा, 2 पाश, 3 बज्र और 4 शत्रु की जीभ ग्रहण किए है, दिव्य आभूषणों से जिनका सारा शरीर भरा हुआ है - ऐसी तीनों लोकों का स्तम्भन करने वाली श्री बगलामुखी की मैं चिन्तन करता हूँ।

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगलामुखि महाविद्या मन्त्रस्य नारद ऋषि, त्रिष्टुप छन्दः, बगलामुखि महाविद्यां देवता, ह्ली बीजम् स्वाहा शक्ति, ऊँ कीलंक ममडभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग।

दाए हाथ में जल लेकर विनियोग बोल कर बगलामुखि यंत्र के सामने जल छोड़ दे, फिर न्यास करें।

ऋष्यादि न्यास - ऊँ नारद ऋषये नमः शिरसि, ऊँ त्रिष्टुप छन्द से नमः मुखे, ऊँ बगलामुखी महाविद्या देवताये नमः हृदि, ऊँ ह्लीं बीजाय नमः गुहो, ऊँ स्वाहा-शक्तये नमः पादयो, ऊँ ओम् कीलकाय नमः नाभौ।

कर न्यास - ऊँ ऊँ ह्लीं अनुष्ठाभ्याम् नमः। ऊँ बगलमुखि तर्जनीभ्याम् नमः, ऊँ सर्व दुष्टानां मध्यमाभ्याम् नम, ऊँ वाचं मुखं पंद स्तम्भय अनामिकाभ्याम् नमः, ऊँ बुद्धिं विनाशयं ह्लीं ऊँ स्वाहा करतल कर-पृष्ठाभ्याम नमः।

हृदयादि न्यास - ऊँ ऊँ ह्लीं हृदयाय नमः, ऊँ बगलामुखि शिरसे स्वाहा, ऊँ सर्वदुष्टानां शिखायौ वषट्, ऊँ वाचं मुखं पंद स्तम्भय् कवचाय हुम्, ऊँ जिह्वा कीलम नेत्र त्रयाय वौषट्, बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा अस्त्राय फट्।

जप से पूर्व क्रियायें - जप से पूर्व मुखशोधन हेतु ‘ऐ ह्लीं ऐ’  का दस बार जप करे। चैतन्य मंत्र ‘ई मूलं ई’ का 108 बार जप, कुल्लका ऊँ हुं क्षौ सिर पर 10 बार, सेतु ‘‘ह्लीं स्वाहा’’ कष्ठ पर 10 बार, महासेतु ‘‘स्त्रीम्’’ हृदय पर 10 बार, दीपन ई (मूल मंत्र ई-7 बार जपे)

कवच (जप से पूर्व पढ़े)

ऊँ ह्लीं में हृदयं पातु पादौ श्री बगलामुखी।
ललाटम् सततं पातु दुष्ट ग्रह निवारिणी।।
रसनां पातु कौमारी भैरवी चक्षु षोम्र्मय।
कटौ पृष्ठे महेशानी कर्णों शंकर भामिनी।।
वर्जितान तु सथानानि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि में देवी सततं पातु स्तम्भिनी।।

स्त्रोत (जप से पूर्व पढ़े)

बगला सिद्ध विद्या च दुष्ट निग्रह कारिणी।
स्तम्भिन्या कार्षिणी चैव तथोच्चाटन कारिणी।
भैरवी भीम नयनां महेश गृहिणी शुभा।
दश नामात्मकं स्त्रोत पठेद्वा पाठयेद्यदि।
स भवेत् मन्त्र सिद्धश्च देवी पुत्र दव क्षितौ।

बगला गायत्री

ऊँ ह्लीं ब्रह्मा स्तायै विद्महे स्तम्भन वाणायै धीमहि तन्नो बगला प्रचोतयात।

जप से पूर्व 1 माला करे, जप में आने वाली विघ्नो से रक्षा होती है। तत्पश्चात! जप प्रारम्भ करें -

मंत्र - ऊँ ह्लीं बगलामुखि! सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा। 
(ह्लीं का उच्चारण - हल्रिम )

एक लक्ष के उपरान्त हवन कर उसका दशांश तर्पण, मार्जन ब्राम्हण भोज कराए।




हवन सामग्री - पिसी हल्दी, पीली सरसों, चम्पा के फूल, सुनहरी हरताल, थोड़ा नमक पिसा, लौंग, मालकांगनी, इसे कड़ुवे तेल में सान कर आहुतियाँ दें।


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Sunday 14 February 2016

मंत्र विद्या


भारतीय प्राचीन विद्या का मंत्र एक महत्वपूर्ण अंग रहा है, आज के परिवेश में लोगों का विश्वास मंत्रों से हट गया है। कारण भी सही है पुस्तकों से पढ़ कर लोग मंत्र जाप करने लगते हैं और उचित परिणाम न मिलने पर मंत्रों से विश्वास ही नहीं उठता, वरन् वे उसे कपोल कल्पित कहने लगते हैं। यद्यपि आज के युग में मंत्रों की सिद्धी प्राप्त करना कोई आसान कार्य नहीं है, क्योंकि रहन-सहन, आचरण आदि का भी मंत्र सिद्धी में प्रभाव पड़ता है।
मंत्र सिद्धी में मन की एकाग्रता व मंत्र के स्वरूप का चिन्तन दोनों का तारतम्य जप के समय बना रहे तो सिद्धी मिलने में आसानी रहती है। मंत्र कुछ, ध्यान कुछ और, तो सारी मेहनत व्यर्थ चली जाएगी। मंत्र जप के समय अपनी भ्रकुटी पर ध्यान केन्द्रित कर मंत्र का चिन्तन लगातार बना रहे मन को इधर-उधर न भागने दें, प्रयास करने पर भी मन एकाग्र नहीं हो रहा है तो 1 माला निम्न मंत्र का जप कर दें

तन्नै मनः शिव संकल्प मस्तु

क्रमशः मन की एकाग्रता बन जाएगी, ऐसा मेरा अनुभव रहा है। मंत्र इष्ट व अपने गुरू पर दृढ़ विश्वास कर जो साधक मंत्र जप करता है कोई कारण नहीं है कि उसे सफलता न मिले। एक दृष्टांग देखे- लगभग 4 वर्ष पुरानी बात है। मरीज अस्पताल में बेसुध भर्ती था, डाक्टरों ने जबाव दे दिया था, मरीज की सांस चल रही थी, इस केस को हमने, गुरू जी से इस सन्दर्भ में बात की उन्होंने महामृत्युंजय का मंत्र हमें नोट कराया ‘‘ऊँ त्रयंबकंम यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम्, ऊर्वारूक मिव गन्धनान, मृत्योेर्मुक्षी मा मताम्।’’ समय कम था अतः तुरन्त सवा लाख का संकल्प कर जप पर बैठ गया, तीव्र गति से उपांशु जप चलते हुए संकल्प पूर्ण करके मैं अस्पताल मरीज का हाल देखने गया, मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा, भोले बाबा ने मरीज पर कृपा की मरीज पूरी तरह स्वस्थ्य था, हमने कुछ देर उससे बात कर पुनः अपने साधना स्थल पर बैठ कर गौर करने लगा क्या यही मंत्र मैं लगातार जपता रहा। “बधंनान” के स्थान मंत्र में “गंधनान” लिख दिया था। फोन द्वारा मंत्र हमे गुरू जी ने लिखवाया था अतः मै वही मंत्र जपता रहा चुकि मंत्र व गुरू दोनो पर मुझे पूरा भरोसा था अतः फलींभूत हुआ मरीज को जीवन दान मिला।

मंत्र की महत्ता

मंत्र विज्ञान द्वारा अलौकिक शक्तियों के सम्पर्क में आकर पहले अपना भला करे, सुख-शान्ती, रूपया-पैसा, मान-सम्मान के साथ ही अपनी आन्तरिक शक्तियों का पूर्णतः विकास करें। मंत्र विज्ञान के लिए आवश्यक है, माला एवं यंत्र जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा की गई हो अतः आप को प्राण-प्रतिष्ठा करने की विधि का ज्ञान होना अनिवार्य है, हमने देखा है गुरू जनों को यंत्र पर उंगली रख कर यंत्र की प्राण प्रातिष्ठ कर देते हैं। ऐसे गुरू बहुत कम मिलते हैं जो अपनी यौगिक शक्ति द्वारा शक्ति पात कर अपने शिष्य को दीक्षा देते थे। गुरू द्वारा शक्ति पात यानी अपनी शक्ति का कुछ अंश, अपने शिष्य को तुरन्त देकर उसे सामर्थवान पहले ही दिन से बना देते थे, शक्तिपात जब गुरू अपने शिष्य पर करता है तो शिष्य को एक क्षण के लिए जबर्दस्त ठंडक का अनुभव होता है। एसे गुरू मिलते ही कहा हैं, मार्ग कठिन अवश्य है परन्तु, असम्भव नहीं है। परिश्रम करते रहना चाहिए जितनी छटपटाहट आप को सद्गुरू से मिलने की होती है, उतनी ही छटपटाहट सद्गुरूओं में अपने योग्य शिष्य पाने की भी होती है। समय आने पर ही मिलन होता है अतः समय को व्यर्थ न जाने दे और अपनी आन्तरिक शक्तियों का विकास मंत्र विज्ञान के माध्यम से करें।
पहले अपने आराध्य का चुनाव करें, वैसे मेरा विश्वास है कि आराध्य महाविद्याओं में से ही चुनने में ही अधिक लाभ रहता है, महाभारत के युद्ध से ही हमें यह शिक्षा मिल जाती मिल जाती है, उस समय जितने भी शस्त्र होते ये किसी न किसी देवी-देवताओं की शक्ति से चलते थे, सभी देवी-देवताओं की शक्ति एक निश्चित सीमा तक ही होती थी जब कि महाशक्तियों की कोई सीमा रेखा नहीं होती। अर्जुन अजेय रहे-भगवती बगलामुखि व श्री कृष्ण की उन पर कृपा थी दूसरे तरह यो समझले दरोगा, एस.पी., आई.जी., मुख्य मंत्री, प्रधानमंत्री प्रत्येक की शक्तियों की एक सीमा रेखा है। यदि किसी को मृत्युदंड मिल गया तो इस सब से काम नहीं चलेगा तब राष्ट्रपति ही उसे क्षमा कर सकता है, उसी प्रकार जब हमारा प्रारब्ध अत्याधिक बुरा हो - जिससे कष्टों का अम्बार दिख रहा हो, तब उस बुरे प्रारब्ध को नष्ट करने की शक्ति केवल महाशक्तियों के पास होती है। एक दृष्टांग देखें सुबह से मेरी बाई आँख लगातार फड़क रही थी, कुछ नुक्सान होना था, मैं जान रहा था, दोपहर तक बाई आँख फड़कती रही बार-बार मन में आ रहा था एक्सीडेन्ट होगा, दोहपर में हमें बाहर जाना पड़ गया, गाड़ी रोककर मैं भी खड़ा था, मेरे पीछे एक कार वाला था, उसने हार्न दिया परन्तु आगे जाम था, मैं आगे नहीं बढ़ सकता था, उसने अपनी गाड़ी धीरे से स्टार्ट की और मेरी गाड़ी में छुआ दिया, बस उसी छड़ बाई आंख जो लगातार फड़क रही थी, फड़कना बन्द कर दिया।
आज एक्सीडेन्ट प्रारब्ध में लिखा था, परन्तु भगवती बगलामुखी ने उस एक्सीडेन्ट को इतना सूक्ष्म कर दिया कि हमे पता ही नहीं चला। इसीलिए मैं कहता हूँ कि आराहना करो सर्वोच्च की, जिसकी सत्ता की कोई सीमा रेखा न हो। जिसमें प्रारब्ध को भी बदल देने की क्षमता हो, जैसे विज्ञान प्रयोग में कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही मंत्र विज्ञान में माला, यंत्र, आसन व अन्य पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है, प्रत्येक शक्ति के मंत्रों जप के लिए अलग-अलग माला की आवश्यकता होती है, जैसे माँ बगलामुखि की जप-हल्दी की माला से, माँ घूमावती के लिए रूद्धाक्ष की माला।
पहले इन माला की विधिवत् प्राण प्रतिष्ठा कर फिर इससे जप करने से कार्य शीघ्र बनते हैं। माले की कोई गुडि़या कटी-घुनी न होनी चाहिए।

माले की प्राण प्रतिष्ठा 

स्नान कर किसी पवित्र स्थान पर आसन लगा कर बैठ जाए।
पीतल के बर्तन में गाय के पंत्र गव्य को एकत्रित करें।

पंच गव्य के निर्माण में - गाय का दूध 50 ग्राम, गाय का दही 50 ग्राम, गाय का घी 50 ग्राम, गो मूत्र 10 ग्राम, गाय का गोबर 5 ग्राम।

इसी सभी सामग्री को निर्दिष्ट पात्र में लेकर उसमें हल्दी की नई माला या अन्य माला डाल दें।
फिर इस पात्र को अपने दक्षिण हाथ की अंगुलियों से ढक कर 108 बार मूल मंत्र का जप करें। (ऊँ हल्रीं बगलामुखि सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पंद स्तम्भय जिह्वाम् कीलय बुद्धिम् विनाशय ह्ल्रीम ऊँ स्वाहा)
फिर उस माला को गो दुग्ध में डाल दें। इसी मूलमंत्र से पुनः 108 बार गोदुग्ध में अभिमंत्रित करें।
फिर गंगा जल से 36 बार मूलमंत्र पढ़ते हुए घो ले। गंगाजल स्नान के बाद 36 बार मूलमंत्र पढ़ते हुए गुग्गल से घूपित कर पुनः पंचामृत से स्नान कराए। (पंजामृत - गंगाजल, गो दुग्ध-गो घृत-तुलसी-शर्करा)
यह स्नान भी मूलमंत्र से 36 या 108 बार करें। फिर माला की प्राणप्रतिष्ठा करें-

स्वच्छ कुश को मूलमंत्र से 36 बार गंगाजल से पवित्र करके चैकी या आसान पर रखी उस माला से -
‘‘ऊँ ह्ल्रीं हरिद्रा मालिकायै नमः’’ 108 बार कह कर स्पर्श कराए। अभिमंत्रित कुशाग्र भाग को छूते ही माला प्राणवन्त हो जाती है। माला की पंचोपचार विधि से मूलमंत्र से पूजा करके, फिर माला की वंदना करें-

ऊँ मां माले महामाये सर्व शक्ति स्वरूपिणी।
चतुर्वर्ग, त्वपि न्यस्तः तस्मान् में सिद्विदा भव।।
ऊँ अविघ्नं कुरू माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जप काले च सिद्धयर्थ प्रसीद मम सिद्धये।।
ऊँ हरिद्रा मालाघि पतये सुसिद्व देहि-देहि बगला
मन्त्रार्थ-साघिनि साघरय-साघय सर्व सिद्धि
परिकल्पय परिकल्पय में स्वाहा।।

अन्त में मूलमंत्र से 108 बार जप करके देवी को निम्न मंत्र बोल कर जप निवेदन करें -
ऊँ गुह्यति गुह्य गोप्ती त्वं गृहाण स्यत् कृत जपं। सिद्धि भर्वतु में देवि त्वत्! प्रसादात् महेश्वरी।



यंत्र की महत्ता व उसके शक्ति वर्धन के उपाए

सिद्ध की हुई माला से जो जप किया जाता है वह शीघ्र ही फलीभूत होता है। बिना प्राण प्रतिष्ठा के यंत्र शक्ति विहीन ही रहता है। यंत्र की क्षमता - तांबे व पीतल के यंत्र 6 वर्ष बाद प्रवाहित कर दें, चांदी का यंत्र 12 वर्ष, सोने का यंत्र 25 वर्ष फिर उसे प्रवाहित कर देते हैं। स्फटिक यंत्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है, यह जितना ही पुराना होता है उतना ही अधिक प्रभावित होता है। सर्वश्रेष्ठ नीलमणि यंत्र होता है यह नीलम के अन्दर होता है।
स्फटिक यंत्र आँखों को शीतलता देता है यह वजन में भारी होता है कांच का हल्का होता है। जो यंत्र ठंडा होता है, वह अच्छा होता है। यंत्र चमकदार होना अच्छा है। यंत्र को संतरे के रस से स्नान करा कर रगड़ दें चमकदार हो जाता है। जितना ही स्नान करायेगें व श्रृद्धा करेंगेयंत्र में उतनी ही शक्ति बढ़ती जाती है। श्री यंत्र की विशेषता है आसन पर बैठते ही एनर्जी देता है। माँ बगलामुखि का पीतल का यंत्र ठीक रहता है। इसे दूध मे केसर मिला कर स्नान कराए, कभी मौसम के फलों के जूस से स्नान कराए जो समृद्धि देते हैं।

गन्ने के रस द्वारा यंत्र का स्नान रोग नाश व पैसा देता है।
शहद का स्नान - परिवार में मिठास पैदा करता है।
अंगूर का रस व दूध - आर्थिक, मानसिक शान्ति देता है।
बेल का रस - आर्थिक बहुत मदद देता है।

यंत्र पर बेल से मले फिर गन्ने के रस, दूध फिर दही से, फिर गंगा जल से स्नान करा दें, इससे यंत्र की शक्ति बढ़ती है, इस स्नान से पूरे जाड़े भर यंत्र की शक्ति बनी रहती है। यन्त्र की शक्ति बढ़ाना अपने हाथ में है नित्य यंत्र को स्नान कराए व उसके समक्ष दीपक जला कर एकाग्रचित्र होकर भवगति का ध्यान करते हुए जप करें ऐसा निरन्त अभ्यास से यंत्र में इतनी अधिक शक्ति आ जाती है कि कितना ही तेज तंत्र विधान किया गया हो उसे बिना कहे स्वयं ही नष्ट कर देता है। एक साहब को भगवती बगलामुखि का यंत्र प्राण प्रतिष्ठा करा कर, उनसे मूलमंत्र का जप दीपक जला कर करने को बताया अभी जप करते 6 माह भी नहीं बीते थे, रात 2 बजे उसकी बहन के पेट में बड़ा भयानक दर्द उठा, उनकी कुछ समझ में नहीं आया, क्या करें? हड़बड़ी में अपने साधना कक्ष में यंत्र के सामने रखे लौटे के जल से अपनी बहन के ऊपर कुछ छींटे मारे व थोड़ा उसके मुंह में भी डाल दिया। जल के छीटे पड़ते ही दर्द समाप्त हो गया और उसकी बहन आराम से सो गई।
दूसरे दिन जानकार लोगों से रात के घटना चक्र के बारे में पूछा तो ज्ञात हुआ कि किसी ने सिफली का प्रयोग किया था। यह बता दें कि मुस्लिम तंत्र में जान से मारने हेतु सिफली का प्रयोग किया जाता है। सिफली आनन-फानन में जान ले लेती है परन्तु आप के यंत्र के सम्मुख रखे जल की यह महिमा है कि बिना  कोई मंत्र पढ़े उसने सिफली तंत्र को तुरन्त नष्ट कर दिया।
मंत्र की महिमा देख कर तो मैं अनवरत भगवति बगलामुखि को कोटिश कोट धन्यवाद देता रहता हूँ।

यंत्र स्नान

एक प्लेट में फूल या रूई रखकर यंत्र का सिरहाना ऊँचा रखें अब इस पर शंख या लोटे से जल डालते जाए व निम्न मंत्र पढ़ते रहें -

ऊँ हिरण्यवर्णा हरिणी सुवर्ण रजत स्त्रजाम्
चन्द्रां हिरण्यमंयी लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।
आगच्छेह, महादेवी सर्व सम्पत प्रदायिनी
यावत् कर्म समाप्येत तावस्तं सन्रि घौ भव।

ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय, ऊँ नमो भगवते.....5 बार पढ़े। अब यंत्र को रूई या तौलिये से साफ कर, अच्छे से पोछ दे, भावना प्रधान रखे कि मैं माँ को स्नान करा रहा हूँ पूरे भाव से धीरे-धीरे जल डालें, भाव से ही यंत्र पोछे, बड़े ही रोमान्च का अनुभव करेंगे। अब यंत्र पोछ कर उस पर घी या कडुवे तेल का लेपन कर उस पर हल्दी अंगुली से लगा दें साथ ही कुमकुम से टीका कर दें। स्नान के जल को ग्रहण करें या किसी पौधे में डाल दें।
यंत्र की और शक्ति बढ़ाना है ता अर्चयामि कर दें। अर्चयामि का महत्व एक छोटे हवन के बराबर ही होता है। अर्चयामि चाहे जब करें, सुबह-दोपहर-शाम। अर्चयामि में यंत्र के सम्मुख एक छोटी प्लेट रख लें, उसमें यंत्र पढ़ते हुए पुण्य की एक-एक पंखुड़ी डालते रहे या चावल हल्दी में रंग कर डाले वैसे मैं किशमिश से अर्चयामि करता हूँ। अर्चयामि की हुई इस किशमिश में भी गजब की शक्ति होती है। एक दृष्टांग बताता हूँ। यह किशमिश मैं अपनी जेब में रख लेता हूँ कुछ स्वयं ही खा लेता हूँ। एक बार मैं मरीज को देखने अस्पताल गया, मरीज की हालत काफी खराब थी, उसमें सुधार नहीं हो पा रहा था, मरीज को देखते ही मन में विचार उठा कि क्यों न इसे किशमिश दे दूं। अतः उसकी पत्नी को दो किशमिश दे दी कि इसे खिला देना, कुछ देर वहाँ रूक कर मैं अस्पताल से नीचे उतरा ही था कि उसकी पत्नी हाँफती हुई मेरे पास आई कि वह किशमिश कहीं खो गई है। मिल नहीं रही है, मैने उसे ढांढस दिलाया कोई बात नहीं मैं दूसरी किशमिश दे देता हूँ जेब में हाथ डाला केवल एक ही किशमिश निकली, मैने कहा तुरन्त इसे खिला देना और वह वापस चली गई। एक सप्ताह बाद उस महिला से मेरी भेंट हुई, मरीज का हाल पूछा। उस महिला ने बताया जब से उस किशमिश को खाया है हालात बहुत तेजी से सुधरने लगे, दूसरे ही दिन डाक्टर ने अस्पताल से छुट्टी दे दी अब वह एकदम स्वथ्य हैं। मैंने मन ही मन अपनी भगवति पीताम्बरा माँ को धन्यवाद दिया।

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Wednesday 23 December 2015

परविद्या भक्षणी व काला जिन्न


शास्त्रो में लिखा है यदि आप को आर्थिक मानसिक, शारीरिक हानि पहुचाने के उद्धेश से किसी स्वार्थी व्यक्ति द्वारा कोई अभिचाारिक कर्म आप के विरूद्ध कराया हो तो भगवती बगला मुखी का यह प्रयोग अति उत्तम है।
इस मंत्र की यह विशेषता है कि विरोधी द्वारा प्रयोग की गई  विद्या का हरण कर, शमन कर देती है।
यह विद्या 1 लाख जप से सिद्व होती है। जिसे 14 से 21 दिनों में पूर्ण कर लेते हैं। यदि यह प्रोग्राम ठीक चला तो 5 किलो मीटर तक कोई भी विद्या कार्य नही करेगी। यदि इस मंत्र के बाद विपरीत प्रत्यगिरा मंत्र लगा कर जाप करे तो वह गड़ंत को नष्ट कर देता है।
हमने मूल मंत्र का सम्पुट लगा कर 1 लाख जप का संकल्प किया, 17 हजार जप के उपरान्त एक रात जप कर उठता हूँ बाहर एक काला जिन्न खडा था, मुझे देखते ही वह छुपने लगा, मैने उसे बुला कर पूछा, यहाँ कैसे ? गुर्रा कर उसने उत्तर दिया - भेजा गया हूँ, मैने उससे कहा माफ किया परन्तु जिसने भेजा है उसे एक किक लगाओ कि उ़सके मुँह से खून आए। उसने मुझे सलाम ठोकी और तुरन्त ही चला गया। एक बात मैने नोट की जिन्न चल नही रहा था हवो में तैरता हुआ मेरे पास आया था दूसरे वह मुँह से नही बोल रहा था वरन् उसके शरीर से आवाज निकल रही थी बड़ा ही लम्बा-चैड़ा हट्टा-कट्टा जिन्न था, यह कोई स्वप्न की बात नही है वरन् प्रत्यक्ष घटी घटना है। ठीक दूसरे दिन मोहल्ले की ही एक औरत को टेम्पों ने पीछे से टक्कर मारी वह मुंह के बल सड़क पर गिरी, उसके मुंह से काफी खून आया, साथ ही सीने की सारी हडिडयाँ टूट गई, वह एक दुष्ट तांत्रिक है।
एक लाख जप के उपरान्त दशांश जप कर हवन किया

हवन सामग्री : हल्दी, पीली सरसों साबुत लाल मिर्च हवन सामग्री जिसे कडुवे तेल में साना गया।





संकल्प : ऊँ तत्सद्य..........प्रसाद सिद्धी द्वारा पर कृत्या नष्टार्थे पर-मंत्र, पर-तन्त्र, पर-यंत्र भक्षार्थे च मम सर्वाभीष्ठ सिद्धियर्थे भगवती बगला मूलमंत्र सम्पुटे पर विद्या भक्षिणी मंत्र एक लक्ष जपे अहम् कुर्वे।

मंत्र - परविद्या भक्षणी मन्त्र (127 अक्षर)

ऊँ ह्लीं श्रीं ह्रीं ग्लौं ऐ क्लीं हुं क्षौं बगला मुखि पर प्रयोगम् ग्रस ग्रस, ऊँ 8 ब्रम्हास्त्र रूपिणि पर विद्या-ग्रासिनि! भक्षय भक्षय, ऊँ 8 पर-प्रज्ञा हारिणि! प्रज्ञां भ्रंशय भ्रंशय ऊँ 8 स्तम्भ नास्त्र रूपिणि! बुद्धिं नाशय नाशय, पच्चेन्द्रिय-ज्ञांन भक्ष भक्ष, ऊँ 8 बगला मुखि हुं फट् स्वाहा।
( जहाँ 8 है वहां ह्लीं से क्षौम तक पढ़ें )

विनियोग : ऊँ अस्य श्री पर विद्या-भेदिनी बगला मुखी मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, पर विद्या भक्षिणी श्री बगलामुखी देवता, आं बीजं, ह्ल्रीं शक्ति, क्रो कीलंक, श्री बगला-देवी-प्रसाद सिद्धि द्वारा पर-विद्या भेदनार्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास : श्री ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, पर विद्या भक्षिणी श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, आं बीजाय नमः गुहो, ह्ल्रीं शक्तिये नमः पदियोः, क्रों कीलकाये नमः सर्वाग्ङे, श्री बगलादेवी प्रसाद सिद्धि द्वारा पर विद्या भेदनार्थेजपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।

कर-न्यास : आं हृीं क्रों अंगुष्ठाभ्यां नमः, वद वद तर्जनीभ्यां स्वाहा, वाग्वादिनि मध्यमाभ्यां वषट्, स्वाहा अनामिकाभ्यां हुं, ऐ क्लीं सौं कनिष्ठाभ्यां वौष्ट्, ह्ल्रीं करतल-कर-पुष्टाभ्यां फट्।

अग्ङ न्यास : आं ह्ल्रीं क्रों हृदयाय नमः, वद वद शिर से स्वाहा, वाग्वादिनि शिखायै वषट्, स्वाहा कवचाय हुं, ऐं क्लीं सौ नेत्र-त्रयाय वौष्ट्, ह्ल्रीं अस्त्राय फट्।

ध्यान - 

सर्व मंत्र मयीं देवीं, सर्वाकर्षण-कारिणीम्।
सर्व विद्या भक्षिणी च भजेऽहं विधि पूर्वकम्।

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Monday 23 November 2015

किस प्रकार साधना प्रारम्भ करें


‘क्रम दीक्षा’ के अनुसार साधना करने से मन्त्र-साधना का श्रेष्ठ फल भुक्ति और मुक्ति दोनों ही साधक को प्राप्त होती है। निम्न क्रम से मन्त्र प्राप्त कर क्रमशः उनका पुरूश्रचरण करते हैं, सामान्यतः लोग सीधे छत्तीस अक्षर (मूल मंत्र) का जप करने लगते हैं, यह उचित नहीं प्रतीत होता, यदि एकाक्षर मंत्र (बीज मंत्र) से साधना प्रारम्भ कर आगे बढ़ते है तो सफलता अवश्य मिलती है। बाकी जो भी हो, यह बात तो अनुभवी गुरूओं के आधीन है। सामान्यतः - एकाक्षर, चतुरक्षर, अष्टाक्षर व छत्तीस अक्षर का पुरश्रचरण पूर्ण करते है। योग्य गुरू के सान्धि में ही साधना को बढ़ाने का प्रयत्न करें। योग्य गुरू - गुरू शब्द दो अक्षरों से मिल कर बना है। गु और रू, ‘‘गु’’ का अर्थ है अन्धकार, और ‘‘रू’’ का अर्थ है भगाने वाला कोई भी चीज या मनुष्य, जो आप के अन्धकार को मिटाने का कार्य करता है। वह आपका गुरू है शरीर में मौजूद गुरू को आप अच्छे तरीके से जोड़ सकते हैं व अपनी शंकाओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकते हैं। केवल पुस्तक से विषय स्पष्ट नहीं होता, न वहाँ कुंजियाँ मिलती हैं। ‘‘क्रम पूर्वक’’ ही महा विद्या का अनुष्ठान करना चाहिए। जैसा शिष्य, जैसी सामर्थ्य, वैसा ही ‘‘क्रम’’ होता है। गुरू और शिष्य - उभय पक्षों को बहुत सोच समझ कर भर पूर परीक्षा के बाद इस महाविद्या को देना और लेना चाहिए।
सर्व प्रथम आप लेखक के अनुभवों का एकाग्र मन से अध्ययन करें, यदि आप ने गुरू से दीक्षा नहीं ली है तो मन में गुरू बनाने की तड़प पैदा करें फिर भी कोई गुरूजन नहीं मिल रहा है तो लेखक का चित्र अपने सामने रख कर, उन्हें अपना मानसिक गुरू बनाने का संकल्प लेकर किसी भी शुभ मुर्हुत में पीताम्बरा माँ के बीज मंत्र ‘‘ह्ल्रीं’’ (हल्रीम) का सवा लाख का जप का संकल्प लेकर जप प्रारम्भ कर दें। माँ बगलामुखी का प्राण प्रतिष्ठित यंत्र साधना स्थल में स्थापित करे और नित्य गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवद्य से पूजन कर, माँ बगलामुखि मंत्र का जप करें। इस यंत्र के विशिष्ट प्रभाव से साधक को तंत्र साधना में शीघ्र सफलता मिलती है। जप हल्दी की माला से करते हैं असानी व पहनने के वस्त्र भी पीले होते हैं।
मन में दृढ़ विश्वास कर अपने मंत्र व गुरू की शक्ति पर भरोसा रखे आप अवश्य सफल होंगे एक अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद पुनः दूसरी, तीसरी व चौथी बार अनुष्ठान पूर्ण करें । इस प्रकार माँ को आप चार बार हवन एक ही मंत्र से ‘‘ह्ल्रीं स्वाहा’’ द्वारा करने के बाद स्वयं अनुभव होने लगेगा, परिस्थितियाँ आप के अनुकूल होने लगेंगी, परन्तु आप की अपनी यात्रा का विराम नहीं होगा, यह तो प्रथम सीढ़ी है। अब तीन-चार दिन विश्राम कर पुनः अनुष्ठान प्रारम्भ करें । इस बार मंत्र होगा ‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों’’ व संकल्प होगा मात्र एक लाख जप का। अनुष्ठान पूर्ण कर तीन चार दिन विश्राम कर पुनः अनुष्ठान प्रारम्भ करें। इस बार मंत्र होगा ‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा’’ व संकल्प होगा मात्र एक लाख जप का। इसको पूर्ण करने के उपरान्त तीन-चार दिन विश्राम कर लें। इस प्रकार निरन्तर अभ्यास करने से आप की साधना की भूमि दृढ़ हो जाती है। अब आप माँ पीताम्बरा के ‘मूल मंत्र’ जप के उत्तराधिकारी बन जाते हैं, अतः भवगती बगलामुखि के मूलमंत्र के एक लाख जप का संकल्प कर पुरश्चरण पूर्ण करें, ऐसा चार बार पुरश्चरण पूर्ण करें। मंत्र जप का समय रात्रि 10 से 2 बजे का हो तो सर्वोत्तम रहेगा। जप समय से ही करें व निश्चित संख्या रखे घट-बढ़ न होने पाए सुबह माँ बगलामुखि के कवच-स्त्रोत का पाठ करें , बीच-बीच में श्तनाम से अर्चियामि भी करते रहें। लेखक के पूर्व के अनुभवों का हृदयांगम करें , निश्चित रहिए मन की तड़प के अनुसार माँ आप पर कृपा करेगी। जो स्वयं ही आप अनुभव करेगें। याद रखें - पुरश्चरण पूर्ण होने व माँ की कृपा प्राप्त होने पर भी आप को अपनी साधना की साध्य से जोड़ने वाली परम्परा को कभी शिथिल नहीं होने देना है यही उच्च कोटि की साधना का गूढ़ रहस्य है।
नोट - जप के अनुसार उसका ध्यान अवश्य करते है क्यों कि सिद्ध मन्त्र भी बिना ध्यान के गूंगा ही रहता है।

1- एकाक्षरी मंत्र - ह्ल्रीं (ह्ल्रीम) 

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगला-मुखी महा-मन्त्रस्य, श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री बगलामुखि देवता, लं बीजं, ह्ल्रीं शक्तिः, ई कीलकं, श्री बगलामुखि-देवताम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः (जल पृथ्वी पर डाल दें)।

ऋष्यादि न्यास - ऊँ ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री बगला मुखी देवतायै नमः हृदि, लं बीजाय नमः गुह्म, ह्ल्रीं शक्तये नमः पादयोः, ई कीलकाय नमः सर्वाङगे।

कर न्यास - ऊँ हल्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ऊँ ह्ल्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा (दोनों प्रथम उंगली के ऊपरी सिरे आपस मंे मिलाएं।
ऊँ ह्ल्रूं मध्यमाभ्यां वषट् (दोनों मध्यमा उंगली के सिरे आपस मंे मिलाए।
ऊँ ह्ल्रैं अनामिकाभ्यां हुं (अनामिका उंगली के सिरे मिलाए)
ऊँ ह्ल्रौंकनिष्ठाभ्यां वौषट् (कनिष्ठा उंगली मिलाए)
ऊँ हल्रः करतल कर - पृष्ठाभ्यां नमः। (दोनों हथेलियों आगे-पीछे भागों को छुए)

अगङ न्यास - 

ऊँ हृा हृदयाय नमः (हृदय को दाहिने हाथ से छुए)
ऊँ हृीं शिरसे स्वाहा (सिर को छुए)
ऊँ हृं शिखायै वषट् (शिखा को छुए)
ऊँ ह्रैं कवचाए हुं (सीने पर कवच बनाए)
ऊँ हृौं नेत्र-लयाय वौषट् (आंखों को छुए)
ऊँ हृः अस्त्राय फट् (सर पर दाया हाथ दाई तरफ से बांई तरफ घुमाते हुए 3 बार चुटकी बजाएं)

ध्यान -

वादी मूकति, रङकति क्षिति-पति वैश्वानरः शीतति,
क्रोधी शाम्यति, दुर्जनः सुजनति, क्षि प्रानुग खञजति।
गर्वी खर्वति सर्व विच्च जड़ति त्वद्-यन्त्रणा यन्त्रितः,
श्री नित्ये! बगलामुखि! प्रति दिनं कल्याणि तुभ्यं नमः।।

भावार्थ: हे कल्याणि! आप के मन्त्र के द्वारा यंत्रित किया गया वादी-गूंगा, छत्रपति रंक, अग्नि शीतल, क्रोधी-शान्त, दुर्जन-सुजन, धावक लंगड़ा, गर्व युक्त छोटा और सर्वज्ञ-जड़ हो जाता है अतः एव हे लक्ष्मी स्वरूपे नित्ये माँ बगला! कल्याणी! मैं आप को प्रतिदिन नमन करता हूँ।

हवन सामग्री -

पीसी हल्दी - 1 किलो0
मालकांगनी - 500 ग्राम
सुनहरी हरताल - 20 ग्राम
पिसा सेंघा नमक - 1 चम्मच
सरसों का तेल - 200 ग्राम
लौंग - 50 ग्राम
बेसन के लड्डू

समिधा - आम/नीम की लकड़ी

एक पुरूश्रचरण पूर्ण होता है -


  1. जप का दशांश हवन 
  2. हवन का दशांश तर्पण
  3. तर्पण का दशांश मार्जन
  4. व मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज


भगवती के बीज मंत्र ‘‘ह्ल्रीं’’ की तीव्रता

मेरे यजमान की ‘‘आप्टिकल्स’’ की दुकान है, मकान मालिक ने दो माह में दुकान खाली कर देने को कहा, मेरा यजमान काफी परेशान हो गया, उसकी पिछले दस वर्षों का परिश्रम व्यर्थ हो रहा था। समीप में कहीं दुकान मिल भी नहीं रही थीं। मैंने उसे भरोसा दिया ‘‘माँ की सेवा में आ जाओ, सब ठीक ही होगा। उसने मुझ पर भरोसा किया रात्रि को श्मशान में वह भी मेरे साथ हवन पर बैठने लगा। यजमान को ‘‘ह्ल्रीं’’ का जप एक लाख पूर्ण कराने के बाद, उसे लेकर भैरोसुर महादेव के प्राचीन मंदिर के प्रांगण में हवन किया तथा उससे भी आहुतियाँ डलवाई, हवन लगातार दो घंटे चला। हवन के अन्त में यजमान के कल्याण हेतु भवगती से प्रार्थना की। रात्रि दो बजे वापस घर, लौट आए तथा यजमान को निर्देश दिया कि घर जाकर तपर्ण, मार्जन भी कर देना।
दूसरे दिन यजमान ने हमें बतलाया कि तपर्ण, मार्जन करते-करते सुबह के छः बज गए थे। उसकी भगवती के प्रति पूर्ण समपर्ण की भावना को देखते हुए मैंने भगवती से पुनः स्वतः प्रार्थना की ‘‘हे! भगवती इस नवीन साधक पर अपनी कृपा दृष्टि करने की महान कृपा करें।’’
चमत्कार हो गया भगवती ने यजमान पर भरपूर कृपा की, एक ग्रहक उसके पास अपना चश्मा बनवाने आया जिसे उसने तुरन्त ठीक कर दिया और कहा अब आगे से आप को सेवा नहीं दे पाऊँगा क्योंकि मकान मालिक ने इस माह के अन्त तक दुकान खाली कर देने को कहा है, मैं देख रहा हूँ, परन्तु दुकान कहीं मिल नहीं रही है, देखों अब मेरा क्या होता है। उस ग्राहक ने तुरन्त कहा, आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। मेरी एक दुकान खाली है, कल शाम आकर मेरी माँ से बात कर लेना, दुकान आपको मिल जाएगी। दूसरे दिन यजमान ने मुझसे वहाँ चलने का आग्रह किया, जिसे मैं टाल नहीं सका और उसकी माँ ने कल बताऊँगी कह कर टाल दिया। मेरा यजमान पुनः भयभीत होने लगा, यदि दुकान न दी तब क्या होगा? मैंने उसे माँ पर भरोसा रखने का आश्वासन दिया। दूसरे दिन मकान मालकिन ने अपने पुत्र के द्वारा दुकान की चाभी भिजवा दी और कहा आप दुकान देख लो आज पन्द्रह तारीख है, मैं पन्द्रह दिनों का किराया नहीं लूंगी, आप का एक तारीख से किराया शुरू होगा। मैंने जब सुना मेरा मन गदगद हो गया, भगवती ने उसकी सुन ली दुकान भी प्रमुख स्थान पर और अभी माह समाप्त होने में पन्द्रह दिन शेष थे। दुकान खाली करने का भय जो मेरे यजमान को सता रहा था भगवती ने उस भय को समाप्त ही नहीं किया वरन् समीप ही उससे अच्छे स्थान पर दुकान दे दी और वह भी बिना प्रयास किए। यह होता है भगवती पर पूर्ण भरोसा रखने का पुरस्कार। यदि आप ने भरोसा किया तो भगवती उसे कभी टूटने नहीं देती ऐसा मेरा बारम्बार का अनुभव रहा है।


2- तुर्याक्षर, चतुरक्षर (4 अक्षरों वाला) मंत्र

‘‘ऊँ आँ ह्ल्रीं क्रों’’

ध्यान - 

कुटी लालक-संयुक्तां मदा घूर्णित-लोचनाम्।
मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशा घराम्।।
सुवर्ण-शैल-सुप्रख्य-कठिन-स्तन-मण्डलाम्।
दक्षिणा र्क्त-सन्नाभि-सूक्ष्म-मध्यम-संयुताम।।

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगला-चतुरक्षरी-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री बगला मुखी देवता, ह्ल्रीं बीजम् आँ शक्तिः, क्रों कीलंक श्री बगलामुखी देवताऽम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोग।

ऋष्यादि न्यास - श्री ब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदये, ह्ल्रीं बीजाय नमः गुहये, आँ शक्तिये नमः पादयो, क्रों कीलकाय नमः सर्वाङगे, श्री बगलामुखी देवताऽम्बा- प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।

कर न्यास व अंग न्यास - एकाक्षरी की तरह करें।

3- अष्टाक्षर (आठ अक्षरों वाला मंत्र)

‘‘ऊँ आं ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा।’

विनियोग - ऊँ अस्य श्री बगलाऽष्टाक्षरात्मक-मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, ऊँ बीजं, ह्ल्रीं शक्तिः, क्रों कीलकम् श्री बगलाम्बा प्रसाद प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। (जल पृथ्वी पर डाल दें)

ऋष्यादि-न्यास - श्री ब्रह्मार्षये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, ऊँ बीजाय नमः गुहे, ह्रीं शक्तये नमः पादयोः, क्रों कीलकाय नमः सर्वाङगे, श्री बगला-प्रसाद पीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अज्जलौ।
(कर न्यास, अङगन्यास - एकाक्षर मंत्र की तरह करें।)

ध्यान -

युवतीं च मदोन्मतां, पीताम्बरा-घरां शिवाम्।
पीत-भूषण-भूषाङगी-सम-पीन-पयोघराम्।।
मदिरामोद-वनां प्रवाल-सदृशाघराम्।
पान-पात्रं च शुद्धि च विभ्रतौ बगलां स्मरेत्।।

नोट - इस बीज मंत्र ह्ल्रीं में माँ पीताम्बरा लता की तरह सदा विलास करती हैं। अतः ध्यान पूर्वक जप करने से वह साधक के शत्रुओं का स्तम्भन करती है, मनोहर कामिनियाँ उसके वशीभूत होती हैं, विपत्तियाँ दूर होती है और मन-माना घर प्राप्त होता है तथा सभी मनोवांच्छित कार्य पूरे होते हैं, ऐसा मेरा अनुभव रहा है।

डा0 तपेश्वरी दयाल सिंह
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Friday 9 October 2015

सम्पुटित मंत्र की तीव्रता (स्वास्थ्य लाभ हेतु)


मेरे परिचित की रात एकाएक स्वास्थ्य चिन्ता जनक हो गयी उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाना पड़ा, इधर गुरू जी को फोन लगाया उन्होनें महामृत्युंजय जप बगलामुखि के मूल मंत्र द्वारा सम्पुटित कर दस हजार जाप का निर्देश दिया, मंैने शीघ्र ही महामृत्युंजय मंत्र गुरू वचनों को लिपिबद्ध कर तुरन्त संकल्प लें जप प्रारम्भ किया। रात्रि 11.57 से सुबह सात बजे तक जप चलता रहा, मरीज के हालात में सुधार था इस प्रकार तीन ही दिनों में मरीज के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया, व मरीज अस्पताल से घर आ गयी।

मरीज के घर आने पर-क्रिया की-

कच्चे धागे से मरीज को सर से पांव तक नापते हैं ऐसा 7 बार नाप कर, वह धागा जटा नारियल (पानी वाला) पर लपेट कर रोली व काजल के 7-7 टीके लगा कर मरीज के ऊपर से 7 बार उतारे, उतारते समय कहे, मरीज के सारे रोग शोक इसमें आ जाए व सन्ध्या समय बहते पानी में इसे प्रवाहित करे यह कहते हुए कि मरीज के सारे रोग-शोक अपने साथ ले जाओ, पीछे मुड़कर न देखें।

संकल्प- ऊँ तत्सध......... भगवती पीताम्बराया प्रसाद सिद्वि द्वारा कश्यप गोत्रोत्यन्न (रोगी का नाम) नामम्ने मम यजममानस्या सर्वोभिष्ट सिद्वियार्थे च स्वास्थ्य लाभर्थे श्री भगवती पीताम्बरा मूल मंत्र सम्पुटे महामृत्युंजय मंत्र यथा शक्ति जपे अहम् करिण्ये।

बगलामूल मंत्र + महामृत्युंजय मंत्र + बगला मूल मंत्र यह 1 मंत्र हुआ। 5 माला उपरोक्त की जप नित्य 5 दिनों में मरीज को ठीक होते देखा गया है। अन्त में भवगती को भोग यह कहते हुए अर्पित किया कि भगवति कृपया भोग स्वीकार करें व भोग को बांट दें। तीन माह बाद मेरे यजमानस्या की पुनः स्वास्थ्य चिन्ता जनक होने लगा एकाएक शरीर ठंडा हो जाता, बेहोशी आ जाती, लेटने पर स्वतः पेशाब हो जाता था।

संकल्प- ऊँ तत्सध......... कृत्या प्रयोगम् मंत्र यंत्र तंत्र कृत प्रयोग विनाशार्थे, आरोग्य प्राप्ताथे भगवति अमृतेश्वरी स्वरूपा वगलामुखि प्रसाद सिद्धि द्वारा मम यजमानस्या (नाम ......) सर्व आरोग्य प्राप्तार्थे होमे अहम् करिष्ये।

नोट: प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति, प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति। क्रमशः 1 से 4 व पुनः क्रम 4 से 1 की आहुति व्यवस्था की।



1. महामृत्युंजय - 5 माला का हवन किया, मंत्र के अन्त में स्वाहा लगा कर, प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति दी।
2. अमृतेश्वरी मंत्र - ऊँ श्री हृीं मृत्युंजये भवगती चैतन्य चन्दे हंस संजीवनी स्वाहा।
3. भवान्य अष्टक - 1 पाठ, प्रत्येक श्लोक के बाद आहुति दी।
4. वगलामुखि मूल मंत्र - 5 माला, प्रत्येक मंत्र के बाद आहुति दी गई।

अब क्रम को उल्ट कर हवन किया जो क्रमशः 4, 3, 2 व 1 की भांति आहुतियाँ दी गई। यह रात्रि 11 से प्रारम्भ कर रात्रि 2.37 पर समापन कर दिया। घी का दीपक हवन समय जलता रहे व वहीं कलश में पानी रखे।
हवन सामग्री:-पीली सरसों 250 ग्राम, राई 250 ग्राम, लाजा 500 ग्राम, वालछड़ 10 ग्राम, काली मिर्च 100 ग्राम, बूरा 500 ग्राम, शहद 200 ग्राम, हल्दी 200 ग्राम, लौंग 5/-, इलाइची 5/-, खीर 100 ग्राम इन सभी को घी में साना गया। दूसरे दिन ही मरीज़ को पेशाब रोकने की शक्ति नहीं रह गई थी, वह सब ठीक हो गई, पुनः कच्चे धागे वाला प्रयोग पूर्ववत् कर दिया परिणाम अति उत्तम रहा।

भवान्मअष्टक

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता,
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्म मैव,
गतिस्वत्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि !!1!! स्वाहा
भवान्धाग्पारे महादुःख भीरूः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमतः।
कु संसार-पाश प्रबद्धः सदाऽहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।2।। स्वाहा
न जाननानि दानं न ध्यान योगं
न जानामि तन्त्रं न च स्त्रोत मन्त्र।
न जानामि पूजां न च न्यास योगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।3।। स्वाहा
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ
न जानामि मुक्तिलयं वा कदाचित।
न जानामि भक्तिं व्रतंवाऽपि मात 
गतिस्त्व-गविस्त्व त्वमेका भवानी।।4।। स्वाहा
कुमार्गी कुसंग्ङी कुबुदि कुदासः
कुलाचार हीनः कदाचार लीनः।
कुदृष्टि कुवाक्य प्रबन्धः सदाऽहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।5।। स्वाहा
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशी थेश्वरं वा कदाचित।
न जानामि चाऽन्यत् सदाऽहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।6।। स्वाहा
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चा अनले पर्वते शत्रु मध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदां मां प्रथाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।7।। स्वाहा
अनाथो दरिद्रो जरा रोग युक्तो
महाक्षीणः दीनः सदा जाड्त वक्त्रः।
विपन्तौ प्रवीष्टः प्रवष्टः सदादहं
गतिस्तवं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।8।। स्वाहा

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बगला विपरीत प्रत्यंगिरा का अनुष्ठान

जब दुष्टों द्धारा कोई तांत्रिक  विधान कर दिया जाता है तो जीवन कष्टमय हो जाता है, मुझ पर कुछ दुष्टों की छत्र छाया ऐसी पड़ी कि अभी मुझे ब्रम्ह राक्षस से मुक्ति पाकर कुछ ही मास बीते थे, कि मुझे अनुभव होने लगा, कहीं कोई गड़बड है, क्योंकि  मेरेे कार्यो में पुनः पूर्व की भांति रूकावटें आने लगी। चूँकि अब मैं भगवती की शरण में आ चुका था, गुरूजनों से निर्देश लिया, उन्होने मदार मंत्र का अनुष्ठान बताया, परन्तु मदार मंत्र का अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद भी मुझे कोई लाभ नही हुआ। मंथन किया जब तक गुप्त शत्रु, नष्ट नही होता, तब तक वह हम पर अपनी शक्तियो का प्रयोग करता रहेगा। अतः गुरू जी से परामर्श लिया, उन्होने कहा बहुत हो गया अब इसे निपटा ही दो।
गुप्त शत्रु के निग्रहार्थ भगवती वगला मुखि के विपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग करते है अतः सर्वार्थ सिद्धयोग में सवालक्ष जप का संकल्प पूर्ण कर जप पूर्ण कर अन्ततः हवन करने के दस दिनो बाद ही गुप्त शत्रु के मँुह में रोग हो गया चूंकि इस शत्रु को दंड देने का संकल्प लिया था अतः दो वर्षों से वह मुँह के रोग से कष्ट भुगत रहा है।
मुझ निरपराधी पर माँ की कृपा हुई, यदि आप अपराधी नही है, व दुष्ट आप को नाना प्रकार से कष्ट दे रहा है, तो भूल कर उस अपराधी के नाम का उल्लेख कर संकल्प मत करे, केवल गुप्त शत्रु निग्रहार्थे च दंडाथे ही कहे क्यों कि कभी-कभी सोचते हम कुछ है और अपराधी निकलता दूसरा है, यह कार्य भगवती पर छोड़ दे, वह स्वयं पता कर लेगी कौन वास्तव में आप का शत्रु है। और उसे ही दंड दे देती है। जिस प्रकार क्रिया की गई आप के सम्मुख रख रहा हूँ-

शुभ मुर्हत से प्रारम्भ करते है।

संकल्प-ऊँ तत्सधं---- मम अज्ञात शत्रु कृत यंत्र-मंत्र तंत्र कृत्या प्रयोग सम्नार्थे च दुष्ट शत्रु क्षयार्थे च दंडार्थे भगवती पीताम्बराया विपरीत प्रत्यंगिरा एक लक्ष जपे अहम् कुर्वे।

अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि, अनुष्टुय छन्दः प्रत्यंगिरा देवी देवता, ऊँ बींज, हृीं शक्ति कृत्या नाशने कार्य जपे विनियोगः! 

ऋष्यादि न्यास-

ऊँ हृीं यां कल्पयन्ती नोअरयः हृां हृदयाय नमः।
ऊँ क्रूराम् कृत्याम् हृीं शिर से स्वाहा।
ऊँ वधूमिव हृं शिखायै वषट्।
ऊँ ताम् ब्रह्मणा ह्रैं कवचाय हुम्।
ऊँ अप निर्णुद्य हृों नेत्र त्रयाय वौषट्।
ऊँ प्रत्यक् कर्तार मृच्छतु हृः अस्त्राय फट्।

फिर ध्यान करे-

1. भगवती के मुंह से ज्वाला निकाल रही है।
2. सर के बाल छोटे-छोटे है जो तन कर खड़े हो गए है
3. कराल वदना है, भयंकर रूप है।
4. चार भुजाए है-

दांए में 2 भुजा-  

1. गदा घुमा रही है।
2. मशाल जल रही है।

बाए में 2 भुजाए है  
        
1. वर मुद्रा है
2. जिह्वा है। 

इसी जिह्वा वाले हाथ में जप समय शत्रु का ध्यान करे।

जप मंत्र- ‘‘ऊँ हृीं याम् कल्पयन्ती नो अरेय क्रूराम कृत्यामि वधू मिव। तांम् ब्रम्हणा अप निर्नुद्म प्रत्यक् करतार मिच्छतु हृीं ऊँ।‘‘ 

भगवती कं यंत्र के सामने कडुवे तेल का दीपक जला कर रूद्राक्ष की माला से जप पूर्ण करे। इससे गड़न्त भी कट जाता है, यह एमरजेन्सी प्रयोग है। जप कर दशाशं हृवन, तर्पण, मार्जन व ब्राम्हण भोज पूरा विधान करें। जितनी भी उच्चकोटि की साधनाएं हैं उनका विधान एक लाख जप का होता है, वैसे 40 हजार से कार्य बनते देखे गए हैं। यह विपरीत प्रत्यंगिरा किए हुए अभिचारों को काटती हैं व पुनः कृत्या करने वाले के पास वापस लौट जाती है।

हवन सामग्री:- राई 250 ग्रा, पीली सरसों, 500 ग्रा., हल्दी 50 ग्रा., काली मिर्च थोड़ी सी, लौंग 10 ग्रा. व हवन सामग्री, नीम की पत्ती, थोड़ा पिसा नमक, नारियल के तेल में सान कर दशांश हवन करें।

हवन से पूर्व:- एक आठ अंगुल गूलर की लकड़ी छील कर, उस पर मनुष्य की आकृति बनाए व जो दुःखी कर रहा है, उस कलाकार के नाम से या अज्ञात शत्रु की प्राण प्रतिष्ठा करें। प्राण प्रतिष्ठा में जहाँ-जहाँ वगला प्राण ही प्राण लिखा है वहाँ (शत्रु का नाम) प्राण ही प्राण करें। शत्रु के हृदय स्थान पर अनामिका उंगली रख कर प्राण प्रतिष्ठा करें व 1 माला प्रत्यंगिरा से अभिमंत्रित कर उठाकर अलग रख दें। हवन प्रारम्भ करें व लकड़ी प्रज्वलित होते ही इस गूलर की लकड़ी को हवन कुंड में यह कहते हुए रख दें ‘हे भवगति प्रत्यंगिरे मैं अपने इस शत्रु को आप को समर्पित कर रहा हूँ, इसे आप स्वीकार करे तथा पुनः आहूतियाँ डालना प्रारम्भ करे। गूलर की लकड़ी पर प्राण प्रतिष्ठा से उलट वार होता है।

प्राण प्रतिष्ठा- गूलर की लकड़ी पर 
विनियोग-ऊँ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु रूद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामानिच्छन्दासि, पराऽऽख्या प्राण शक्ति देवता आं बीजं, हृी शक्तिः, क्रों कीलकम् मम शत्रु (.......) प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।(जल भूमि पर डाल दे)

ऋष्यादि न्यास- ऊँ अंगुष्ठायो।
ऊँ आं हृीं क्रौं अं कं खं गं घं ड़ं आं ऊँ हीं वाय वग्नि सलिल
पृथ्वी स्वरूपाददत्मने डंग प्रत्यंगयौः तर्जन्येश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं इं छं जं झं ञं ई परमात्य पर सुगन्धा ऽऽत्मने
शिरसे स्वाहृा मध्यमयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं ड़ं टं ठं डं ढं णं ऊँ श्रोत्र त्व क्चक्षु-जिव्हा 
ध्राणाऽऽत्यने शिखायैं वषट् अनामिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों एं तं थं दं धं नं प्राणात्मने-कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों पं फं बं भं मं वचना दान गमन विसर्गा
नन्दाऽऽत्मने औं नेत्र त्रयाय वौषट।

ऊँ आं हृीं क्रौ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धय हंकार
चित्मऽऽमने अस्त्राय फट्।

इस प्रकार न्यास कर गूलर की लकड़ी पर बनाई गई आकृति के हृदय स्थान पर स्पर्श करते हुए यह मंत्र पढ़े-

ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः बगलायः प्रणा इह प्राणाः। 
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम) जीव इह स्थितः।
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)
सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि । ऊँ आं हृी क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)  वाडमनश्चक्षु-श्रोत्र-ध्राण-प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

तदोपरान्त हवन प्रारम्भ कर इसे हवन कुड़ं में रखे।




शत्रु की क्रिया को उसी पर लौटाने हेतु हवन सामग्री- अपा मार्ग की समिधा हल्दी, सफेद सरसों  का तिल, राई थोड़ा नमक आदि को प्रयोग करें ।

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